एक जनहित याचिका में दावा किया गया था कि कार्यालय छोड़ने के बाद भी सांसदों को मिलने वाली पेंशन तथा अन्य भत्ते संविधान में मिले समानता के अधिकार के विपरीत है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने पूर्व सांसदों को पेंशन तथा यात्रा भत्ते सहित मिलने वाले अन्य भत्तों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका सोमवार को खारिज कर दी.
न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर एवं न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा, ‘याचिका खारिज की जाती है.’
पीठ ने इसी वर्ष सात मार्च को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
केंद्र ने सात मार्च को शीर्ष न्यायालय को बताया था कि पूर्व सांसदों को पेंशन तथा अन्य लाभ मिलना उचित है क्योंकि सांसद के तौर पर उनका कार्यकाल भले भी समाप्त हो गया हो, उनकी गरिमा बरक़रार रखी जानी चाहिए.
केंद्र ने वित्त विधेयक 2018 का भी ज़िक्र किया था जिसमें सांसदों के वेतन तथा पेंशन से जुड़े प्रावधान हैं. इस विधेयक में लागत मुद्रास्फीति सूचकांक के अधार पर एक अप्रैल 2023 से प्रत्येक पांच वर्ष में उनके भत्तों को रिवाइज़ करने का भी प्रावधान है.
उच्चतम न्यायालय ने फरवरी में केंद्र को सांसदों के वेतन तथा भत्ते तय करने के लिए एक स्वतंत्र तंत्र बनाने पर अपना रुख़ स्पष्ट करने के कहा था. इससे पहले सरकार ने कहा था कि मामला विचारधीन है.
इसके बाद शीर्ष न्यायालय पूर्व सांसदों को पेंशन तथा अन्य भत्ते देने वाले क़ानूनों की संवैधानिक वैधता की जांच के लिए सहमत हो गया था और उसने केंद्र तथा चुनाव आयोग से इस मुद्दे पर जवाब मांगा था.
दरअसल स्वयं सेवी संस्था ‘लोक प्रहरी’ ने इलाहाबद उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ उच्चतम न्यायालय का रुख़ किया था.
उच्च न्यायालय ने एनजीओ की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें दावा किया गया था कि कार्यालय छोड़ने के बाद भी सांसदों को मिलने वाली पेंशन तथा अन्य भत्ते संविधान में मिले समानता का अधिकार के विपरीत है.