साक्षात्कार: कठुआ मामले में पीड़िता का केस लड़ रही वकील दीपिका सिंह राजावत से बातचीत.
जम्मू: जहां एक ओर कठुआ में आठ साल की मासूम बच्ची के जघन्य बलात्कार और हत्या मामले में जम्मू के कई वकील आरोपियों के खिलाफ पुलिस की चार्जशीट के विरोध में उतरे, वहीं एक स्थानीय वकील ने दूसरी राह चुनी और पीड़ित बच्ची के परिवार की ओर से केस लड़ने का फैसला लिया.
38 साल की दीपिका सिंह राजावत एक कश्मीरी पंडित हैं, जिनका परिवार 1986 में कश्मीर से पलायन कर जम्मू आया था, साथ ही वे एक सिंगल मदर भी हैं. अपने सहयोगियों के इस केस को लेने से मनाही के बावजूद दीपिका ने इसकी जिम्मेदारी ली. उन्हें इसके बाद धमकियों का भी सामना करना पड़ा.
द वायर से बात करते हुए उन्होंने पिछले दिनों देश भर से उन्हें मिले समर्थन, जम्मू बार एसोसिएशन की भूमिका और जम्मू कश्मीर पुलिस के इस मामले की जांच करने के बारे में बात की.
दीपिका इस बात से खुश हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिरकार इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ी लेकिन वे यह भी चाहती हैं कि प्रधानमंत्री और जिम्मेदार बनें और अपनी पार्टी के सदस्यों के प्रति कड़ा रुख अपनाएं.
प्रधानमंत्री मोदी ने आखिरकार कठुआ और उन्नाव बलात्कार मुद्दों पर अपनी चुप्पी तोड़ी है और कहा कि आरोपियों को नहीं बख्शा जाएगा. आपको क्या लगता है कि यह काफी है?
अच्छा है कि वे बोले तो सही. लेकिन उन्हें थोड़ी और जिम्मेदारी लेनी चाहिए. उन्हें उन दो भाजपा विधायकों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए जो कठुआ गए और जिन्होंने लोगों को कानून तोड़ने के लिए उकसाया.
उन्हें उन्नाव मामले की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए क्योंकि वे देश के प्रधानमंत्री हैं, वे भाजपा के नेता हैं. उन्हें पता होना चाहिए कि पार्टी के लोगों को कैसे नियंत्रण में रखना है. अगर उनकी पार्टी के किसी व्यक्ति द्वारा कोई गलती हो जाती है, तो उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
इस मासूम बच्ची के साथ जो हुआ उसका देश भर में विरोध हो रहा है. हर तरह के लोग साथ आकर परिवार के लिए इंसाफ मांग रहे हैं. पीड़ित पक्ष की वकील होने के नाते आप इस लड़ाई में सबसे आगे हैं. इस लड़ाई को कैसे देखती हैं?
पूरा देश अब हमारे साथ है. सब जाग चुके हैं. मुझे मज़बूत महसूस होता है. मुझे लगता है कि अब सब मेरे साथ हैं तो अब वे मुझे नुकसान नहीं पहुंचा सकते.
यह घटना जनवरी में हुई थी. फरवरी में इस परिवार से मिलने के बाद मैं इस केस से जुड़ी. एक एक्टिविस्ट होने के नाते मुझे लगा कि उन्हें उचित कानूनी सलाह की जरूरत है.
उस समय बहुत ही कम लोग मदद के लिए आगे आये थे. मैंने जब से यह केस लिया मैं तबसे सोशल मीडिया पर इस बारे में पोस्ट करती थी. लेकिन राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान अब इस पर गया है. उन दो महीनों में सिर्फ हम तीन लोग थे जो यह लड़ाई लड़ रहे थे.
लेकिन मैं किसी को दोष नहीं दूंगी. जो नुकसान हुआ था, बीते कुछ दिनों में उसकी भरपाई हो गयी. अब हमें साथ आकर आगे बढ़ने दे दीजिये. यह सुनिश्चित करने दीजिये कि उस बच्ची और उसके परिवार को न्याय मिले.
जम्मू बार एसोसिएशन के वकील आपके यह केस लेने के खिलाफ क्यों थे?
यह तो मुझे भी समझ नहीं आया. मैं तो कानून बनाए रखने की कोशिश कर रही हूं. एक वकील के तौर पर यही मेरा फर्ज है और मुझे लग रहा है कि उसी के लिए मुझे ऐसे निशाना बनाया जा रहा है जैसे मैंने कोई गलत काम कर दिया हो.
वकील का काम कोर्ट के अंदर और बाहर होता है. और ये वकील सुनवाई में रुकावट डालने की कोशिश कर रहे हैं. आप सोचिये उन्होंने चार्जशीट दाखिल करने जा रही पुलिस को रोकने की कोशिश की! मैं हैरान हूं!
क्या वे आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट रोक देंगे? क्या वकीलों का ये काम है? ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. मेरा सिर शर्म से झुक जाता है कि मैं भी इसी बिरादरी से आती हूं.
उन्होंने मुझे धमकाने की कोशिश की. वकील जनता को डराने के लिए नहीं होते. हम यहां डराने के लिए नहीं हैं कि हम हाथ में एके-47 लेकर खड़े हो जाएंगे. वकील ऐसा करते अच्छे नहीं लगते. वकील एक उचित मंच से इंसाफ के लिए लड़ते अच्छे लगते हैं.
यह केस लेने के कुछ दिन बाद आपने याचिका दाखिल की जांच अदालत की निगरानी में हो. इसकी जरूरत क्यों पड़ी? क्या यह संभव था कि जांच करने वाले अपना काम सही से न करें?
मुझे लगा था कि जांच बंद करवा दी जाएगी. जिस तरह भाजपा के लोग सामने आये, नारे लगाये गए, लोगों को कानून तोड़ने के लिए उकसाया गया, इस सब से हमें लगा कि जांच की निगरानी के लिए हाईकोर्ट से अपील करनी चाहिए.
जहां तक जांच करने वालों की बात है, तो ऐसा नहीं था कि उनकी क्षमता या विश्वसनीयता पर कोई सवाल था. हमें लगा था कि वे दबाव में आ जाएंगे. जिस तरह से वे दो विधायक, जो ताकतवर मंत्री भी थे, दावा कर रहे थे कि वे सुनिश्चित करेंगे कि जिसे भी गिरफ्तार किया जाये वो वापस लौटे, तो लग रहा था कि जांच करने वाले दबाव में न आ जाएं.
लेकिन अब चार्जशीट दायर हो चुकी है. पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई है. हमें उनकी मेहनत की तारीफ करनी चाहिए. बस अब सुनवाई शुरू होने का इंतजार है.
आपने सुनवाई कठुआ से शिफ्ट करने की मांग की है. क्यों?
एक असुरक्षा की भावना है. लोग यहां केस को नुकसान पहुंचा सकते हैं. ये तो सबने देखा कि कैसे क्राइम ब्रांच को चार्जशीट दाखिल करने से रोकने की कोशिश की गयी. अगर वे ऐसा कर सकते हैं तो सोचिये हमारे साथ क्या-क्या हो सकता है.
और अभी तो राष्ट्रीय मीडिया इस केस के बारे में बात कर रहा है, लेकिन कब तक? उसके बाद क्या होगा?
आपने यह भी बताया कि जम्मू बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बीएस सलाथिया ने आपको धमकाया था.
उन्होंने मुझसे कहा ‘यहां गंदगी मत फैलाओ. काम मत करों क्योंकि हम हड़ताल पर हैं. खबरदार जो हड़ताल के समय काम किया. मेरे पास तुम्हें रोकने के तरीके हैं.’ उन्होंने मुझसे ये सब कोर्ट में कहा. इसके बाद कैंटीन के लोगों को मुझे खाना देने से मना कर दिया गया.
फिर जैसे किसी भी वकील को कानूनी तरीका अपनाना चाहिए, मैंने वही किया. मैंने जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को शिकायत लिखी, जिन्होंने इस पर संज्ञान लिया.
पीड़ित परिवार की क्या हालत है?
वे बेहद गरीब लोग हैं. उन्हें नहीं पता कि दुनिया कैसे चलती है. बकरवाल लोग बंजारे होते हैं, हमेशा एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं. वे अनसुनी-सी ज़िंदगी जीते हैं और अनसुने ही मर जाते हैं. वे बेबस महसूस करते हैं. लेकिन उन्हें अपनी बेटी के लिए इंसाफ चाहिए. जब मैं उनसे मिली तब वे यह जानकर खुश हुए कि कोई उनकी बच्ची के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ना चाहता है.
अब वे जानते हैं कि पूरा देश उनकी बेटी के बारे में बात कर रहा है. लेकिन वो कोर्ट-कचहरी, पुलिस, न्याय इन सब के बारे में ज्यादा नहीं जानते. वे बहुत ही गरीब परिवार से आते हैं. मैंने इस केस के लिए उनसे एक पैसा भी नहीं लिया है.
इस मामले से जुड़ रहे धार्मिक ध्रुवीकरण को कैसे देखती हैं? उन्नाव मामले की तरह इस मामले की भी सीबीआई जांच की मांग की जा रही है.
लोगों ने इस केस को बांट दिया है. उन्होंने इसे सांप्रदायिक बना दिया है. उनका कहना है कि इस मामले में हिंदुओं को गलत तरीके से फंसाया गया है. लेकिन उनके पास इसका कोई तर्क या आधार नहीं है.
वे सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं. सीबीआई का ट्रैक रिकॉर्ड क्या रहा है? आरुषि मामला बिगड़ा, 1984 सिख दंगा मामला बिगड़ा, बोफोर्स… ऐसे कई मामले हैं. अब 3 महीने बाद सीबीआई क्या करेगी?
जहां तक उन्नाव मामले की बात है तो वहां जांच अब तक शुरू ही नहीं हुई है. यहां चार्जशीट भी फाइल हो चुकी है, निष्पक्ष जांच हुई है. ये दोनों अलग मामले हैं.
महबूबा मुफ़्ती ने नाबालिग से बलात्कार के लिए सजा-ए-मौत की बात की है.
क्या आपको लगता है कि बलात्कार की समस्या का ये हल है? हां, ये बचाव का तरीका हो सकता है, लेकिन यह कितना कारगर होगा, मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकती.
निर्भया केस के समय इतनी नाराज़गी देखी गयी. कानून कड़े किये गए लेकिन क्या बलात्कार रुक गए?
आज यहां (कठुआ में) एक बच्ची के साथ ऐसा हुआ. ये मामला एक चुनौती है. लड़ाई शुरू हो चुकी है. मीडिया का ध्यान धीरे-धीरे हट रहा है. अभी की बात करें तो मैं सुरक्षित महसूस कर रही हूं लेकिन ऐसा नहीं रहेगा, इसलिए चिंता तो है ही. लेकिन जैसे ही अच्छी खबर मिलेगी ये भी ठीक हो जाएगा और ये अच्छी खबर होगी गुनाहगारों को सजा.
इस साक्षात्कार को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.