अदालत को अपने राजनीतिक दंगल का अखाड़ा मत बनाएं: सुप्रीम कोर्ट

हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम राजनीतिक मसलों को शीर्ष अदालत में आने से नहीं रोक सकते, परंतु अपने राजनीतिक दंगल के लिए शीर्ष अदालत को अखाड़ा नहीं बनाएं. हम पिछले कुछ महीने से यह प्रवृत्ति देख रहे हैं.’

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(फोटो: पीटीआई)

हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम राजनीतिक मसलों को शीर्ष अदालत में आने से नहीं रोक सकते, परंतु अपने राजनीतिक दंगल के लिए शीर्ष अदालत को अखाड़ा नहीं बनाएं. हम पिछले कुछ महीने से यह प्रवृत्ति देख रहे हैं.’

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने भाजपा और कांग्रेस के प्रमुख नेताओं से जुड़े हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के प्रतिद्वंद्वी गुटों को चेतावनी दी कि वे शीर्ष अदालत को अपनी राजनीतिक लड़ाई का अखाड़ा नहीं बनायें.

न्यायमूर्ति ए के सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने कहा, ‘हम राजनीतिक मसलों को शीर्ष अदालत में आने से नहीं रोक सकते. परंतु अपने राजनीतिक दंगल के लिए शीर्ष अदालत को अखाड़ा नहीं बनायें. हम पिछले कुछ महीने से यह प्रवृत्ति देख रहे हैं.’

शीर्ष अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री और वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता वीरभद्र सिंह को यह स्पष्ट कर दिया कि वह उन्हें उस मामले में पक्षकार के रूप में हटा सकती है जिसमे पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके भाजपा सांसद पुत्र अनुराग ठाकुर राज्य क्रिकेट संघ में कथित भ्रष्टाचार के आरोपी हैं.

सिंह ने धूमल, ठाकुर और अन्य के खिलाफ मुकदमा निरस्त करने के भाजपा सरकार के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा कि इसके लिए कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब महाधिवक्ता अशोक शर्मा ने कहा कि राज्य मंत्रिपरिष्द ने फैसला लिया है कि एचपीसीए प्रकरण सहित राजनीति से प्रेरित सभी मामलों को वापस लिया जायेगा.

कांग्रेस नेता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरूप जार्ज चौधरी ने इसका पुरजोर विरोध किया और कहा कि मुकदमे वापस लेने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा. चौधरी ने कहा कि मुकदमों को वापस लेने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 में प्रक्रिया निर्धारित है.

मजिस्ट्रेट के समक्ष लोक अभियोजक को इसके लिए आवेदन करना होगा. इसके बाद मजिस्ट्रेट के विवेकाधिकार पर निर्भर करेगा कि इसकी अनुमति दी जाये या नहीं. पीठ ने कहा कि वह कानून में प्रतिपादित प्रक्रिया जानती है और साथ ही चौधरी से सवाल किया कि यदि राज्य सरकार ही मामला वापस लेना चाहती है तो शीर्ष अदालत कार्यवाही रद्द क्यों नहीं कर सकती है.

धूमल और ठाकुर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने कहा कि प्रतिवादी वीरभद्र सिंह इस मामले में कोई नहीं है और उनकी कोई स्थिति भी नहीं है. वह मुकदमा चलाने वाली एजेंसी भी नहीं है. उन्हें तो संबंधित समय में मुख्यमंत्री होने के नाते याचिका में प्रतिवादी बनाया गया है.

इसके बाद, पीठ ने सिंह का नाम प्रतिवादियों की सूची से हटाने की चेतावनी दी क्योंकि पक्षकारों के नाम हटाने का याचिकाकर्ताओं को अधिकार है. चौधरी ने इसका विरोध किया और कहा कि उन्हें इस मामले में पक्षकार बनाने की अर्जी दायर करने की अनुमति दी जाए.

धूमल, ठाकुर और एचपीसीए ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के 25 अप्रैल, 2014 के आदेश को चुनौती दे रखी है. उच्च न्यायालय ने इस आदेश में धोखधड़ी करने, आपराधिक साजिश रचने और भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द करने और धर्मशाला में विशेष अदालत में लंबित मुकदमे पर रोक लाने से इंकार कर दिया था.

राज्य के सतर्कता ब्यूरो के धर्मशाला कार्यालय ने एक अगस्त 2013 को कांग्रेस के सत्ता में आने के कई महीने बाद यह प्राथमिकी दर्ज की थी.