झारखंड के रामगढ़ में पिछले साल मांस कारोबारी अलीमुद्दीन अंसारी की पीट-पीटकर हत्या के आरोप में 11 लोगों को उम्रकैद की सज़ा हुई है. प्रदेश भाजपा नेता इन्हें निर्दोष बताते हुए सीबीआई या एनआईए जांच की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं. इन नेताओं ने एक मई को रामगढ़ बंद का आह्वान किया है.
मॉब लिंचिंग को लेकर देश भर में सुर्खियों में रहे झारखंड के रामगढ़ में इस घटना के निशान और तपिश अभी बाकी हैं. फर्क यह कि इन दिनों अलीमुद्दीन अंसारी हत्याकांड के दोषी 11 कथित गोरक्षकों को उम्रकैद की सजा के फैसले के खिलाफ भाजपा के कई स्थानीय नेताओं और संगठनों ने आंदोलन छेड़ दिया है. धरना-प्रदर्शन, जुलूस, बैठकों का दौर जारी है. जगह-जगह नारों का शोर है.
भाजपा नेताओं और संगठनों का कहना है कि अलीमुद्दीन अंसारी हत्याकांड की जांच सीबीआई या एनएआई से कराई जाए क्योंकि पुलिस की पूरी कार्रवाई एकतरफा है.
नेता-संगठन इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि अलीमुद्दीन की मौत पुलिस कस्टडी में हुई और पुलिस ने उसे मारा है. इसलिए उच्चस्तरीय जांच जरूरी है.
ये नेता- अटल विचार मंच के बैनर तले आंदोलन को तेवर देने में जुटे हैं. इसी क्रम में उन लोगों ने एक मई को रामगढ़ बंद का आह्वान किया है.
बंद को असरदार बनाने के लिए 30 अप्रैल तक जिले भर में नुक्कड़ सभाएं की जानी है. जबकि इस आंदोलन की अगुवाई रामगढ़ के पूर्व विधायक और नब्बे के दशक में भाजपा के फायरब्रांड नेता की पहचान रखने वाले शंकर चौधरी कर रहे हैं.
तब अटल विचार मंच के संयोजक भी शंकर चौधरी बनाए गए हैं साथ ही रामगढ़ जिला भाजपा कमेटी के महामंत्री बलराम प्रसाद कुशवाहा अटल विचार मंच के अध्यक्ष की भूमिका संभाल रहे हैं.
इससे पहले 10 से 24 अप्रैल तक शंकर चौधरी और बलराम प्रसाद कुशवाहा की अगुवाई में अलीमुद्दीन अंसारी हत्याकांड के दोषी 11 कथित गोरक्षकों को उम्रकैद की सजा के फैसले के खिलाफ धरना कार्यक्रम चलाया गया.
धरना से ठीक पहले शंकर चौधरी ने समर्थकों की मौजूदगी में एक मंदिर के सामने अपने सिर के बाल भी मुंडवाए. साथ ही इस मौके पर कहा जब तक सरकार इस मामले में उच्चस्तरीय जांच नहीं कराती, वे बाल नहीं बढ़ाएंगे.
10 अप्रैल को ही रामगढ़ शहर में जुलूस निकाला गया था. इसमें सामाजिक-धार्मिक संगठनों से जुड़े बड़ी तादाद में लोगों ने तिरंगा और भगवा झंडा लहराए थे. धरना-जुलूस में महिलाएं भी शिरकत करने लगी हैं.
उधर, बड़कागांव से भाजपा के पूर्व विधायक लोकनाथ महतो तथा हजारीबाग से पूर्व विधायक और भाजपा सरकार में मंत्री रहे देवदयाल कुशवाहा भी इस आंदोलन में शामिल होते रहे हैं.
गौरतलब है कि पिछले साल 29 जून की सुबह मनुआ बस्ती के निवासी मांस कारोबारी अलीमुद्दीन अंसारी को रामगढ़ शहर स्थित बाजार टांड़ के पास प्रतिबंधित मांस ले जाने के संदेह में पकड़ा गया था. भीड़ ने उनकी जमकर पिटाई की तथा उनकी वैन में आग लगा दी. बाद में अलीमुद्दीन अंसारी की मौत हो गई थी.
जिस दिन इस घटना को अंजाम दिया गया था उसी दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस तरह की हिंसाओं की निंदा भी कर रहे थे.
मामले की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया और इस साल 21 मार्च को 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. इनमें बीजेपी तथा बजरंग दल से जुड़े तीन लोग भी शामिल हैं.
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 50 किलोमीटर दूर रामगढ़ शहर के चौक-चौराहों, गली-नुक्कड़ों पर फिलहाल बंद की तैयारियों और आंदोलन के असर पर चर्चा सुनी जा सकती है.
बात गांवों-कस्बों तक पहुंचने लगी है. तब सियासत में भी इस मसले को अलग-अलग नजरिये से देखा जाने लगा है.
दरअसल पिछले दिनों रामगढ़ में ही हजारीबाग के सांसद तथा केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि इन घटनाक्रमों को उन्होंने गौर से जानने की कोशिश की है. इसलिए उच्चस्तरीय जांच के लिए वे भी सरकार को पत्र लिखेंगे.
हालांकि इस बाबत रामगढ़ के भाजपा नेता और आंदोलन से जुड़े संगठन, जयंत सिन्हा के रुख पर पूछा गया है कि अगर उन्होंने राज्य सरकार को पत्र लिखा है तो उन्हें यह जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए. क्योंकि रामगढ़ उनके चुनावी क्षेत्र का हिस्सा है.
भाजपा नेता शंकर चौधरी कहते हैं कि वे लोग कोर्ट के फैसले के खिलाफ नहीं हैं. कानून ने अपना काम किया है. 11 लोगों को सजा सुनाई गई है इससे इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन हमारे भी कई सवाल हैं. और इन सवालों के घेरे में रामगढ़ पुलिस है. वे लोग मजबूती के साथ कह सकते हैं कि पुलिस कस्टडी में पिटाई से ही अलीमुद्दीन अंसारी की मौत हुई.
चौधरी के अनुसार, घटना के वक्त अलीमुद्दीन पैदल चलकर पुलिस की गाड़ी में बैठे और गाड़ी से उतरकर पैदल ही थाने के अंदर गए. अगर भीड़ की पिटाई से अलीमुद्दीन की हालत गंभीत होती, तो पुलिस को पहले अस्पताल ले जाना चाहिए था.
पुलिस कस्टडी या पिटाई में अलीमुद्दीन की मौत हुई है आखिर इसके आधार क्या हैं, इस सवाल पर भाजपा नेता चौधरी कहते हैं कि जांच हो जाए, बहुत कुछ साफ हो जाएगा.
भाजपा नेता का जोर है कि इस मामले में अब तक पुलिस कलीमुद्दीन अंसारी नाम के व्यक्ति को पकड़ नहीं पाई है, जो घटना के वक्त अलीमुद्दीन अंसारी के साथ वैन में बैठा था और पुलिस के रिकॉर्ड में भी ये बातें हैं.
उन्होंने कहा कि इनके अलावा वैन में रखा मांस कहां से लाया जा रहा था और कहां ले जाया जा रहा था, इसका भी खुलासा होना चाहिए. इन्हीं सवालों पर से परदे उठाने के लिए लोग सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.
कोर्ट से फैसला आने के बाद ये विरोध क्यों, इस सवाल पर शंकर चौधरी कहते हैं पहले भी गिरफ्तारियों के बाबत मुंह पर काली पट्टी बांध कर उन्होंने 1000-1200 लोगों के साथ जुलूस निकाला था, लेकिन तब संगठनों का बहुत साथ नहीं मिला. अब संगठनों और आम लोगों के बीच यह धारणा बनी है कि उच्चस्तरीय जांच जरूरी है, तब वे घर में चुप नहीं बैठ सकते.
झारखंड प्रदेश भूमिका के सवाल पर शंकर चौधरी कहते है, वे चाहते थे कि झारखंड प्रदेश भाजपा इस मसले पर खुलकर सामने आए. झंडा-बैनर के साथ आए. उन्हें अब भी इसका इंतजार है. जनता के मुद्दों पर आंदोलनों और राजनीतिक अनुभवों के आधार पर वे कह सकते हैं कि भाजपा यह नहीं करती है, तो गलत होगा.
एक सवाल के जवाब में शंकर चौधरी का कहना था कि वे हिंदू या हिंदुत्व के एजेंडे पर इस आंदोलन को कतई हवा नहीं देना चाहते. वे भाजपा के साधारण वर्कर हैं. और उन्हें यह लगता है कि निर्दोष लोग जेल से बाहर आएं क्योंकि यह देश महज 20 फीसदी लोगों के लिए नहीं है. ये 20 फीसदी कौन लोग हैं, इस सवाल पर वे खुलकर कहने के बजाय कहते हैं सभी लोग इससे वाकिफ हैं.
भाजपा नेता का दावा है कि एक मई का रामगढ़ बंद जोरदार और असरदार होगा, क्योंकि अलीमुद्दीन भी कोई दूध का धुला शख्स नहीं था. विभिन्न थानों में उसके खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों को खंगाला जा सकता है.
भाजपा के जिला महामंत्री बलराम प्रसाद कुशवाहा कहते हैं कि उन्हें यह कहने से गुरेज नहीं कि वे हिंदूवादी संगठनों और समाज की गतिविधियों में शामिल होते रहे हैं. फिर यह लड़ाई पुलिस अन्याय के खिलाफ है. क्योंकि पुलिस ने खुद को बचाने के लिए निर्दोष लोगों को मोहरा बना दिया. जबकि अलीमुद्दीन अंसारी प्रतिबंधित मांस का कारोबारी था.
इस घटना के बाद सरकार की ओर से उसके परिजनों को मुआवजे दिए गए. सुनवाई का लिए फास्ट कोर्ट बैठाया गया. अब बदली परिस्थितियों में सरकार सीबीआई जांच कराए, ताकि सच सामने आ सके.
कुशवाहा का दावा है कि इस आंदोलन को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर आम लोगों और संगठनों के साथ के अलावा मुस्लिम समुदाय का भी साथ मिलता दिखाई पड़ रहा है.
धरना कार्यक्रम में करीब 7,500 लोगों ने समर्थन में हस्ताक्षर किया है. बंद के बाद आंदोलन का रुख क्या होगा, इस सवाल पर वे कहते हैं कि उसी दिन आगे की रणनीति तय करेंगे.
रामगढ़ शहर के ही तिलकराज मंगलम कहते हैं कि जो हालात हैं और जिस तरह का जनमानस उभर कर सामने आया है, उसमें सच सामने आना ही चाहिए. और ये उच्चस्तरीय जांच से ही संभव है. वे कहते हैं कि शहर के बीच में कोई भीड़ अगर किसी शख्स की पिटाई करती है, तो वो दिखाई भी पड़ती. इनके अलावा लोगों के बीच और भी कई सवाल उठ रहे हैं.
इस बीच किसान मजदूर संघ ने एक मई के बंद का समर्थन करते हुए हाट-बाजार बंद रखने का फैसला लिया है. संघ के उपाध्यक्ष अभिमन्यु प्रसाद कुशवाहा कहते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता को समझे.
रामगढ़ इलाके में सालों से कार चला रहे एक टैक्सी ड्राइवर अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते है, एक तरफ न्यायालय का फैसला है और एक तरफ आंदोलन. कोई रास्ता निकलना चाहिए जिससे माहौल ठीकठाक रहे. दरअसल इन नाजुक वक्त में नफरत की हवा चलने का डर ज्यादा हावी रहता है.
उधर हिंदू समाज पार्टी की युवा इकाई से जुड़े दीपक सिसोदिया भी मॉब लिंचिंग पर सवाल खड़े करते हुए आंदोलन का साथ दे रहे हैं. सिसोदिया पहले ही कह चुके हैं कि भीड़ में क्या 11 लोग ही शामिल थे, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया और वे बाद में दोषी ठहराया गया है.
रामगढ़ और इसके आसपास के इलाकों में भाजपा नेताओं तथा संगठनों की गतिविधियों से एक बात साफ तौर पर रेखांकित होती रही कि फिलहाल सबकी नजरें बंद पर है साथ ही यह विरोध कौन सा नया मोड़ लेगा इसे भी भांपने में जुटे हैं.
जाहिर है अगले चुनावों में भी ये मुद्दा गरमा सकता है, जानकार इससे इनकार नहीं करते. क्योंकि जेल गए लोगों के पक्ष में एक तबका खड़ा हो गया है और भाजपा के जिम्मेदार नेताओं की चुप्पी से वे उद्वेलित भी हैं.
वैसे भी झारखंड प्रदेश भाजपा स्तर पर किसी बड़े नेता का इन आंदोलनों को लेकर किसी किस्म की प्रतिक्रिया नहीं आई है और न ही प्रत्यक्ष तौर पर उन लोगों को किसी का समर्थन मिलता दिख रहा है.
इधर राज्य में प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टचार्य कहते हैं कि इस मामले में केंद्रीय मंत्री और हजारीबाग के सांसद जयंत सिन्हा की टिप्पणी पर अचरज हुआ. लेकिन चुनावों के लिहाज से भाजपा इस तरह के मामलों को एक खास मकसद के साथ चुनावी रंग देना चाहती है इससे इनकार नहीं किया जा सकता. न्यायालय के फैसले पर तो उन लोगों को भरोसा करना ही चाहिए.
हालांकि रामगढ़ भाजपा के नेता विपक्ष की इन बातों को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं कि विरोधी दलों को इतना साहस होना चाहिए कि बीस फीसदी वोट की वकालत करने की होड़ से बाहर भी निकलें.
वरिष्ठ पत्रकार तथा राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्र कहते है कि इस पूरे मामले में संकेत बस इतना भर है कि भाजपा के तीनों पूर्व विधायक भविष्य की संभावना तलाश रहे हैं. क्योंकि चुनावी परिदृश्य में वे लगातार पीछे छूटते चले जा रहे हैं. गुंजाइश है कि उनकी नजरें इस ओर टिकी होंगी कि हिंदुुत्ववाद का नारा उछाल मारे, तो उन्हें भी ऊर्जा मिले.
इधर मॉब लिचिंग की इस घटना में उम्र कैद की सजा पाने वालों में शामिल रामगढ़ जिला भाजपा के मीडिया प्रभारी नित्यानंद महतो के भाई अनिल कुमार ने बताया है कि उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की है. हम लोगों को न्याय मिलने का पूरा भरोसा है.
उनका कहना है कि इस मामले में नित्यानंद महतो निर्दोष साबित होंगे. घटना के वक्त रामगढ़ के डीएसपी को देखकर वे वहां पर रुक गए थे. दोषियों के समर्थन में आंदोलन को वे जायज बताते हुए कहते हैं कि आखिर सरकार तक अपनी बातें पहुंचाने के लिए ही तो लोग इसमें शामिल हो रहे हैं.
उधर मॉब लिचिंग के इस मामले में रामगढ़ सिविल कोर्ट के अपर लोक अभियोजक एसके शुक्ला बताते हैं कि बचाव पक्ष की तरफ से यह साबित नहीं किया जा सका है कि अलीमुद्दीन की मौत पुलिस कस्टडी या पिटाई से हुई है. बाकायदा बचाव पक्ष का एकमात्र गवाह भी ट्रायल के दौरान अविश्वसनीय साबित हुआ है. जबकि पोस्टमाॅर्टम रिपोर्ट में यह दर्ज है कि गंभीर और आंतरिक चोटों की वजह से अलीमुद्दीन की मौत हुई.
अलीमुद्दीन अंसारी की पत्नी मरियम खातून ने फैसले के दिन कहा भी था कि उन लोगों को इंसाफ मिला है, लेकिन वे कतई नहीं चाहतीं कि फिर किसी का खून बहे.
हिंदू-मुसलमान मिलजुल कर रहें. क्योंकि पति की मौत का गम और परिवार संभालने की तकलीफ का मर्म तो वहीं जानती-समझती हैं.
भाजपा नेताओं के आंदोलन पर रामगढ़ के ही सिराजुद्दीन अंसारी कहते हैं कि स्थानीय अखबारों में ये खबरें तो पढ़ते रहे हैं, लेकिन इसके इर्द-गिर्द क्या चल रहा है, इसकी जानकारी नहीं.
सिराजुद्दीन कहते हैं कि अगर किसी ने कोई गलती की है, तो उसकी जान नहीं ली जानी चाहिए. उसे पुलिस के हाथों सौंप देना चाहिए, ताकि कानून अपना काम करे.
जबकि एक बुजुर्ग रामनंदन प्रसाद इसकी वकालत करते हैं कि अगर कोई निर्दोष है, तो उसे भी इंसाफ पाने और बात उठाने का हक है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं.)