शीर्ष अदालत ने कॉलेजियम द्वारा की गई सिफ़ारिशें लंबित रखने के लिए केेंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया.
नई दिल्ली: उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्तियों को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच चल रही खींचतान उच्चतम न्यायालय में उस समय खुल कर सामने आ गई जब केंद्र ने उच्च न्यायालयों में रिक्त स्थानों पर नियुक्तियों के लिए थोड़े नामों की सिफारिश करने पर कॉलेजियम पर सवाल उठाए.
शीर्ष अदालत ने भी इसके जवाब में कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशें लंबित रखने के लिये केेंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा, ‘हमें बतायें, कितने नाम (कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशें ) आपके पास लंबित हैं.’
अटार्नी जनरल ने जब यह कहा , ‘मुझे इसकी जानकारी हासिल करनी होगी’ तो पीठ ने व्यंग्य करते हुए कहा , ‘जब यह सरकार पर आता है तो आप कहते हैं कि हम मालूम करेंगे.’
पीठ ने यह तल्ख टिप्पणी उस वक्त की जब वेणुगोपाल ने कहा कि यद्यपि न्यायालय मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त स्थानों के मामले की सुनवाई कर रही है, लेकिन तथ्य तो यह है कि जिन उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 40 पद रिक्त हैं, वहां भी कॉलेजियम सिर्फ तीन नामों की ही सिफारिश की रही है.
अटार्नी जनरल ने कहा, ‘कॉलेजियम को व्यापक तस्वीर देखनी होगा और ज्यादा नामों की सिफारिश करनी होगी. कुछ उच्च न्यायालयों में 40 रिक्तियां हैं और कॉलेजियम ने सिर्फ तीन नामों की ही सिफारिश की है. और सरकार के बारे में कहा जा रहा है कि हम रिक्तियों को भरने में सुस्त हैं.’
वेणुगोपाल ने कहा, ‘यदि कॉलेजियम की सिफारिश ही नहीं होगी तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है.’ पीठ ने इस पर अटार्नी जनरल को याद दिलाया कि सरकार को नियुक्तियां करनी हैं.
कोलेजियम ने 19 अप्रैल को न्यायमूर्ति एम याकूब मीर और न्यायमूर्ति रामलिंगम सुधाकर को मेघालय उच्च न्यायालय और मणिपुर उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की थी जिन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल ने कहा कि न्यायमूर्ति सुधाकर और न्यायमूर्ति याकूब मीर के नामों पर विचार किया जायेगा और इनके आदेश ‘जल्द ही जारी हो जायेंगे.’
पीठ ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ‘जल्दी का मतलब क्या? जल्दी तो तीन महीने हो सकते हैं.’ शीर्ष अदालत ने 17 अप्रैल को एक व्यक्ति की याचिका मणिपुर उच्च न्यायालय से गुजरात उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान इस तथ्य का संज्ञान लिया था कि न्यायाधीशों के पद रिक्त होने की वजह से मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों में स्थिति ‘गंभीर’ है.
न्यायालय ने इस तथ्य को भी नोट किया था कि मणिपुर उच्च न्यायालय के लिए सात न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं लेकिन वहां सिर्फ दो ही न्यायाधीश हैं. इसी प्रकार मेघालय उच्च न्यायालय में चार न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं परंतु वहां इस समय एक और त्रिपुरा में चार पदों की तुलना में दो ही न्यायाधीश हैं.
शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि केंद्र ने कॉलेजियम की सिफारिश के तीन महीने से भी अधिक समय बाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ को पदोन्नति करके शीर्ष अदालत का न्यायाधीश बनाने की सिफारिश लौटा दी थी.
अटार्नी जनरल ने बहस के दौरान मेघालय उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति सोंगखुपचुंग सर्तो को स्थाई न्यायाधीश बनाने से संबंधित कॉलेजियम की छह मार्च के प्रस्ताव का भी जिक्र किया. न्यायमूर्ति सर्तो गुवाहाटी उच्च न्यायालय में तबादले पर काम कर रहे थे.
इस प्रस्ताव में कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति सर्तो को मणिपुर उच्च न्यायालय का स्थाई न्यायाधीश बनाने की सिफारिश करते हुए कहा था कि वह गुवाहाटी उच्च न्यायालय में ही काम करते रहेंगे. वेणुगोपाल ने इस प्रस्ताव का जिक्र करते हुए कहा कि यह बहुत ही विचित्र है कि न्यायमूर्ति सर्तो को गुवाहाटी उच्च न्यायालय में ही काम करने देना चाहिए.
इस पर पीठ ने टिप्पणी की, ‘हो सकता है कि कॉलेजियम उन्हें वापस मणिपुर लाना नहीं चाहती हो. हमें नहीं पता.’ न्यायालय ने तब अटार्नी जनरल से कहा कि यह सिर्फ मणिपुर उच्च न्यायालय में समस्या नहीं है. मेघालय और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों में भी ऐसे ही हालात हैं.
वेणुगोपाल ने कहा कि उन्होंने मणिपुर उच्च न्यायालय के बारे में पता किया था और एक बार न्यायमूर्ति सुधाकर वहां जायेंगे तो न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर तीन हो जायेगी और समस्या हल हो जायेगी. पीठ ने अटार्नी जनरल से कहा कि मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों के बारे में दस दिन के भीतर हलफनामा दाखिल किया जाये.