कर्नाटक चुनाव में देवगौड़ा को लेकर मोदी के सुर क्यों बदल रहे हैं?

तुमकुर में हुई एक रैली में नरेंद्र मोदी ने देवगौड़ा की तारीफ़ तो की लेकिन कहा कि जनता उन पर वोट बर्बाद न करें. शायद भाजपा को इस बात का डर है कि राज्य में एंटी-इंकम्बेंसी का फायदा कहीं जेडीएस को न मिल जाए, इसलिए वे उसकी कांग्रेस से नज़दीकी बताने में लगी हुई है.

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तुमकुर में हुई एक रैली में नरेंद्र मोदी ने देवगौड़ा की तारीफ़ तो की लेकिन कहा कि जनता उन पर वोट बर्बाद न करें. शायद भाजपा को इस बात का डर है कि राज्य में एंटी-इंकम्बेंसी का फायदा कहीं जेडीएस को न मिल जाए, इसलिए वे उसकी कांग्रेस से नज़दीकी बताने में लगी हुई है.

The former Prime Minister, Shri H.D. Deve Gowda calling on the Prime Minister, Shri Narendra Modi, in New Delhi on June 03, 2015.
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो: पीआईबी)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक चुनाव में पहले से तय 15 रैलियों की जगह अब 21 चुनावी रैलियां करने का फैसला किया है. उन्हें उम्मीद है कि वे वैसे वोटरों को इन ताबड़तोड़ रैलियों की बदौलत भाजपा की तरफ करने में कामयाब होंगे जो अब तक तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें किस तरफ जाना है.

लेकिन यह किसी राजनीतिक ड्रामे और लोगों का मूड रातों-रात बदल देने वाले किसी मुद्दे के बिना इतना आसान भी नहीं. ऐसा भी हो सकता है कि वैसे वोटरों की तादाद बहुत छोटी हो जो किसी संशय में हो और ज्यादातर वोटर पहले से तय कर रखे हो कि उन्हें किसे वोट देना है.

ऐसा आम तौर पर उन चुनावों में होता ही है जिसमें कोई बहुत बड़ा मुद्दा चुनावों के केंद्र में नहीं होता. इसलिए यह कोई नहीं बता सकता कि वाकई में नरेंद्र मोदी के 21 चुनावी रैलियों का कर्नाटक के वोटरों पर क्या असर पड़ेगा.

अभी तक मोदी का चुनावी अभियान बहुत भटका हुआ नज़र नहीं आ रहा है. इसे लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.

मोदी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेकुलर (जेडीएस) पर खुलकर हमला बोल रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि कांग्रेस के साथ देवगौड़ा की पार्टी का गुपचुप तरीके से सांठगांठ है जबकि मोटे तौर पर माना यह जा रहा है कि अगर किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं आता है तो जेडीएस और भाजपा साथ मिलकर सरकार बना लेंगे. ज्यादातर चुनावी सर्वे त्रिशंकु बहुमत की ओर ही इशारा कर रहे हैं.

बेंगलुरु के बाहर तुमकुर में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने देवगौड़ा की तारीफ करते हुए कहा कि देवगौड़ा कर्नाटक के सबसे सम्मानित नेताओं में हैं लेकिन वोटर अपना वोट उनकी पार्टी को देकर बर्बाद न करें.

उन्होंने कहा कि ‘देवगौड़ा की पार्टी तीसरे स्थान पर आएगी.’ उन्होंने इसके आगे जेडीएस पर हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस के साथ इनका कई निर्वाचन क्षेत्रों में गुप्त समझौता हो रखा है. उन्होंने कई निर्वाचन क्षेत्रों के नाम भी लिए.

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फोटो: पीटीआई)

प्रधानमंत्री का सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस और जेडीएस के बीच गुप्त समझौता होने का आरोप लगाना थोड़ा अजीब सा लगता है. क्योंकि कइयों का मानना है कि चुनाव बाद सरकार बनाने को लेकर जेडीएस के साथ भाजपा की पहले ही गुपचुप सांठगांठ हो चुकी है.

फिर क्यों मोदी जेडीएस पर हमला कर रहे हैं? मोदी ऐसा कहकर क्या पाना चाह रहे है? शायद भाजपा को इस बात का डर है कि राज्य में एंटी-इंकम्बेंसी का फायदा कहीं जेडीएस को ज्यादा न मिल जाए. इसलिए वो जेडीएस को कांग्रेस के नज़दीक बताने में लगी हुई है जो कि कर्नाटक में अभी सत्तारूढ़ दल है.

ये भी संभव है कि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा देवगौड़ा के उस बयान से दुखी हो गई हो जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘अगर उनका बेटा (एचडी कुमारस्वामी) भाजपा के साथ किसी भी तरह की सांठ-गांठ करता है तो वो उससे अपना नाता तोड़ लेंगे. पिछली बार भाजपा के साथ जाना बहुत बड़ी गलती थी.’

ऐसा लगता है कि इस बयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंदर बदले की भावना भर दी हो. लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि देवगौड़ा भाजपा को पहले अहमियत देने के वादों से पीछे हट रहे हैं.

सच तो यह है कि देवगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी त्रिशंकु विधानसभा बनने कि स्थिति में सारे पत्ते अपने हाथ में रखना चाहते हैं. उनके पास भाजपा और कांग्रेस में से किसी के पास भी जाने का विकल्प रहेगा.

देवगौड़ा एक बेहद चतुर नेता हैं. अगर भाजपा चुनाव में अच्छी संख्या में सीटें नहीं ले आ पाती है तब देवगौड़ा 2019 के लोकसभा चुनाव को ख्याल में रखते हुए अपने संभावित सहयोगी (भाजपा या कांग्रेस) का चुनाव करेगी.

इसमें कोई शक नहीं कि अगर मोदी का यह आखिरी मैराथन प्रयास रंग नहीं लाता है तो देवगौड़ा कांग्रेस के साथ 2019 के चुनावों के मद्देनज़र सौदेबाजी शुरू कर सकते हैं.

2013 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस और भाजपा दोनों को ही 20 फीसदी वोट शेयर और 40-40 सीटें मिली थीं. लेकिन अगर भाजपा के 20 फीसदी वोट शेयर में येदियुरप्पा की पार्टी केजेपी के 10 फीसदी वोट मिला दे तो भाजपा के पास 30 फीसदी वोट हो जाते हैं.

रेड्डी बंधुओं के फ्रंट बीएसआरसी के तीन फीसदी वोट मिलाने के बाद भाजपा का वोट शेयर 33 फीसदी तक चला जाता है लेकिन अभी भी ये आंकड़ा कांग्रेस के 36 फीसदी वोट शेयर से कम बैठता है.

प्रधानमंत्री अपने आखिरी मैराथनी चुनावी रैलियों की बदौलत कम पड़ रहे इसी तीन से चार फीसदी वोटरों को अपनी ओर करने के जुगत में लगे हुए हैं. वो वोटरों को यह विश्वास दिला रहे हैं कि भाजपा निर्याणक लड़ाई के कगार पर खड़ा है. वो देवगौड़ा के वोटरों से जेडीएस को छोड़ भाजपा को वोट करने की अपील कर रहे हैं.

नरेंद्र मोदी दलितों और पिछड़ों का वोट पाने अपनी ओर करने में लगे हुए हैं. वो इसके लिए उनके बीच यह संदेश दे रहे हैं कि भाजपा ने एक दलित को राष्ट्रपति और एक पिछड़े को प्रधानमंत्री बनाया है. वो जनता दल (सेकुलर) के दलित और पिछड़े समर्थकों से अपील कर रहे हैं कि वे भाजपा की ओर चले आए.

मोदी को इस बात का बखूबी अंदाज़ा है कि सिद्धारमैया ने राज्य के 24 फीसदी एससी/एसटी वोटरों को मजबूती से अपनी ओर कर रखा है. जेडीएस का मुख्य आधार वोक्कालिगा समुदाय के 12 फीसदी वोट हैं. उसे एससी/एसटी वोटरों का भी अच्छा समर्थन प्राप्त है.

भाजपा को पता है कि सत्ता में आने के लिए एससी/एसटी के वोट कितने मायने रखते हैं. इसलिए मोदी अपील कर रहे हैं कि जेडीएस को वोट देकर अपना वोट बर्बाद मत कीजिए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आख़िरी दौर के प्रचार की कामयाबी अतिरिक्त तीन से चार फीसदी वोट पाने पर टिकी हुई है. ये वोट ही भाजपा को निर्णायक जीत दिला सकते हैं. सबसे बड़ा सवाल है कि क्या वो ये अकेले अपनी साख की बदौलत कर पाएंगे?

बहुतों का यह भी मानना है कि कर्नाटक, उत्तर प्रदेश नहीं है. यहां की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अलग है जिसमें शायद मोदी के लिए जगह बनाना मुश्किल हो. ऐसे भी राज्य में सिद्धारमैया के कद का आज की तारीख में कोई दूसरा नेता नहीं है. यही वजह है कि कांग्रेस को ज्यादातर चुनाव पूर्व सर्वे में बढ़त मिलती दिख रही है.

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