गुजरात के ‘मोदीफाइड’ नौकरशाहों की फ़ौज देश चला रही है

देश के उच्च संस्थानों के प्रमुख पदों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चहेते नौकरशाहों को जगह दी हुई है और गुजरात के इन 'मोदीफाइड' अफ़सरों को केंद्र में लाने के लिए अक्सर नियमों को ताक पर रखा गया है.

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The Prime Minister, Shri Narendra Modi addressing at the 11th Civil Services Day function, in New Delhi on April 21, 2017.

देश के उच्च संस्थानों के प्रमुख पदों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चहेते नौकरशाहों को जगह दी हुई है और गुजरात के इन ‘मोदीफाइड’ अफ़सरों को केंद्र में लाने के लिए अक्सर नियमों को ताक पर रखा गया है.

The Prime Minister, Shri Narendra Modi addressing at the 11th Civil Services Day function, in New Delhi on April 21, 2017.
सिविल सर्विस दिवस 2017 के कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी (फोटो साभार: पीआईबी)

गुजरात कैडर के अधिकारियों के भरोसे रहना मोदी सरकार की एक गौरतलब खासियत है. ये अधिकारी महत्वपूर्ण केंद्रीय मंत्रालयों के ऊंचे पदों पर आसीन हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह मानना है कि उनके साथ पहले काम कर चुके गुजरात कैडर के ये अधिकारी कुछ खास हैं.

ये भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुछ चुनिंदा अधिकारी हैं. इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी के साथ काम कर चुके इन अधिकारियों को केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय में ऊंचा ओहदा मिला है.

इसमें सबसे ऊपर वित्त सचिव हसमुख अधिया का नाम आता है. बीते सात मई को पीके सिन्हा को दूसरी बार ज़िम्मेदारी मिलने से पहले तक वे कैबिनेट सचिव बनने की दौड़ में पहली पसंद थे. अधिया को लगता है कि इसका अंदाज़ा हो गया था और वो अचानक से लंबी छुट्टी (5 से 20 मई) पर चले गए.

उनके जाने के बाद वित्त मंत्रालय एक तरह से बिना किसी नेतृत्व का रह गया है क्योंकि वित्त मंत्री अरुण जेटली का किडनी ट्रांसप्लांट होने वाला है और वो हफ्ते में दो बार डायलिसिस पर रहते हैं.

अधिया उस वक़्त नज़र में आए थे जब द वायर  ने रिपोर्ट किया कि उनके राजस्व सचिव रहते हुए उन्हें एक ‘अनजान कारोबारी’ की ओर से दिवाली के उपहार के रूप में सोने के बिस्किट मिले थे. अधिया ने इस संबंध में किसी भी तरह की जांच नहीं कराई थी कि उन्हें कौन प्रभावित कर रहा है और क्यों? इस रिपोर्ट के आने के बाद अधिया ने स्पष्ट किया था कि किन हालातों में उन्हें वो बेनाम उपहार मिला था.

प्रधानमंत्री ने उन पर अपना भरोसा कायम रखा और जब जेटली बीमार पड़े तो उन्हें एक तरह से वित्त मंत्रालय का कार्यभार ही सौंप डाला.

हालांकि पीके सिन्हा को दोबारा मौका देने से यह तो सुनिश्चित हो गया कि आईएएस के दो बैच सिविल सेवा के इस सबसे बड़े और प्रतिष्ठित पद तक नहीं पहुंच सकते.

कैबिनेट सचिव की दौड़ में शामिल एक दूसरे अधिकारी का कहना है, ‘ऐसा लगता है कि मोदी अपने खासमखास को अपने पास रखने में यकीन करते हैं जो उनके प्रति पूरी तरह से वफादार हो. नौकरशाही ऐसे काम नहीं करती. अपने खास अधिकारियों के मामले में नियमों को ताक पर रख देने से सभी अधिकारी दुखी हैं.’

अब ज़रा बात कर लेते हैं कुछ दूसरे ‘गुजरात के मोदीफाइड अधिकारियों’ की. रीता तेवतिया वर्तमान में वाणिज्य सचिव हैं और तपन राय कॉरपोरेट मामलों के सचिव. मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में भी गुजरात कैडर के अधिकारी भर दिए हैं. अरविंद कुमार संयुक्त सचिव के पद पर हैं. राजीव तोपनो मोदी के निजी सचिव हैं तो वहीं संजय भावसर और हिरेन जोशी विशेष अधिकारी हैं.

इन सब में सबसे सीनियर पीके मिश्रा हैं. 1972 आईएएस बैच के अधिकारी मिश्रा पीएमओ में अतिरिक्त प्रधान सचिव हैं. वो कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) का काम देखते हैं.

मोदी सरकार के सारे फैसले पीएमओ तक सीमित कर देने के बाद से उन्हें पीएमओ का सबसे ताकतवर अधिकारी माना जाता है. यहां तक कि वरिष्ठ मंत्री भी मिश्रा से डरते हैं. उन्हें मोदी का ‘दूत’ माना जाता है.

The Prime Minister, Shri Narendra Modi releasing the book on the occasion of the 12th Civil Services Day, in New Delhi on April 21, 2018. The Minister of State for Development of North Eastern Region (I/C), Prime Minister’s Office, Personnel, Public Grievances & Pensions, Atomic Energy and Space, Dr. Jitendra Singh, the Cabinet Secretary, Shri P.K. Sinha and other dignitaries are also seen.
सिविल सर्विस दिवस 2018 के कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी और कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा (फोटो साभार: पीआईबी)

अब गुजरात कैडर के दूसरे ताकतवर अधिकारियों पर भी एक नज़र डाल लेते हैं. अनीता कारवाल सीबीएसई की प्रमुख हैं और असीम खुराना एसएससी के चेयरमैन हैं. अनीता कारवाल के सीबीएसई प्रमुख रहते हुए 10वीं और 12वीं के पेपर लीक हुए तो वहीं खुराना के चेयरमैन रहते हुए एसएससी के पेपर लीक हुए.

इन पेपर के लीक होने के खिलाफ देश भर में गुस्सा भड़कने के बावजूद इन ‘मोदीफाइड अधिकारियों’ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई क्योंकि इनसे संबंधित मंत्रालयों को पता है कि ये गुजरात कैडर के ‘खास चुने हुए’ अधिकारी हैं जिनके सीधे ताल्लुकात प्रधानमंत्री मोदी से हैं.

चुनाव आयोग के अब तक के इतिहास में सबसे विवादित रहने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त एके जोती भी गुजरात कैडर के ही थे. इनकी नियुक्ति भी नरेंद्र मोदी ने ही की थी. एके जोती के कार्यकलाप उन्हें न्यायपालिका के चौखट तक भी ले गए.

गुजरात के महारथियों की फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती. इस फेहरिस्त में जीसी मुर्मू एडिशनल, सेक्रेट्री (वित्तीय सेवा), अनिल गोपीशंकर मुकीम, सेक्रेट्री (खनन विभाग), राजकुमार, सीईओ (कर्मचारी राज्य बीमा निगम), अतानु चक्रवर्ती, डारेक्टर जनरल (हाइड्रोकार्बन) जेस नाम भी शामिल हैं.

गुजरात कैडर के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी भी मोदी सरकार के अंदर अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं. मोदी सरकार ने गुजरात कैडर के इन अधिकारियों को अपना आंख-कान बनाया हुआ है.

विवादास्पद आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को पिछले साल सीबीआई का विशेष निदेशक नियुक्त किया गया. एके पटनायक को नेशनल इंटेलीजेंस ग्रिड का सीईओ बनाया गया और प्रवीण सिन्हा को सीबीआई का संयुक्त निदेशक.

मोदी मानते हैं कि जो अधिकारी उनके प्रति वफादार बनकर रहते हैं उन पर सिविल सेवा के आम नियम लागू नहीं होते. पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर, जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दिल्ली आने की सारी व्यवस्था देखी थी और न्यूयॉर्क के मैडिसन स्कवायर में मोदी के भव्य स्वागत का इंतजाम किया था, को अनिवार्य रूप से दिए जाने वाले एक साल के ‘कूलिंग पीरियड‘ से राहत दे दी गई ताकि वो टाटा समूह जॉइन कर सके.

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एस जयशंकर और अजीत डोभाल के साथ नरेंद्र मोदी (फोटो: पीटीआई)

मालूम हो कि किसी निजी कंपनी से जुड़ने से पहले अनिवार्य तौर पर एक साल की यह सेवा देनी होती है. एस जयशंकर को विदेश सचिव के रूप में 2017 में पहले ही एक साल का एक्सटेंशन दिया जा चुका था. उन्होंने अपना यह कार्यकाल पूरा होने के कुछ ही महीने के अंदर टाटा समूह जॉइन कर लिया.

कुछ अधिकारी इसे लेकर काफी दुखी है कि एस जयशंकर के लिए नियमों को ताक पर रख दिया गया. खासकर तब जब यह स्पष्ट था कि उन्हें एक साल अतिरिक्त कार्यभार देने से उनके जूनियर विदेश सचिव नहीं बन पाएंगे.

एक खार खाए हुए भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी ने कहा, ‘इन नियमों और कार्यकालों का कोई मतलब नहीं रह गया है क्या? फिर तो मोदी को घोषणा कर देना चाहिए कि उनके चहेते ही सारे ऊंचे ओहदों पर बैठेंगे.’

वास्तव में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ लेने के साथ ही अपनी मंशा साफ कर दी थी. उन्होंने नृपेंद्र मिश्रा को प्रधान सचिव बनाने के लिए अध्यादेश ले आया था और साफ कर दिया था कि कोई भी सेवारत अधिकारी उनके प्रधान सचिव बनने के काबिल नहीं है.

इसके बाद सेवानृवित आईपीएस अधिकारी अजीत डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया. ‘ऐतिहासिक नगा समझौते’ से लेकर पठानकोट में हमले के बाद पाकिस्तानी इंटेलिजेंस सर्विस को बुलाने तक के फैसलों में उन्होंने बहुत सी गलतियां की.

नेपाल को दुश्मन साबित करने, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह से जुड़ने के लिए खूब शोर-शराबे के साथ शुरू किया गया वर्ल्ड टूर जो नाकामयाब साबित हुआ और जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा संबंधी मसले को ठीक से नहीं संभाल पाने से लेकर अभी हाल में डोकलाम के मसले पर तकरार डोभाल की नाकामयाबी की कहानी बयां करते हैं. लेकिन इसमें से किसी का भी दाग उनके सिर नहीं गया. मानो उनकी कोई जवाबदेही ही नहीं है.

अधिकारियों का कहना है कि चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध खटास आने के लिए मुख्य तौर पर डोभाल जिम्मेदार हैं लेकिन अपनी वफादारी की वजह से वो प्रधानमंत्री के खास बने हुए हैं.

पुलिस सेवा से सेवानृवित होने के बाद डोभाल ने विवेकानंद फाउंडेशन का कार्यभार संभाला था जो कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ी हुई संस्था है. मनमोहन सिंह की सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर करने वाले अन्ना आंदोलन के पीछे भी इसी का हाथ माना जाता है.

माना जाता है कि मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब से डोभाल कई महत्वपूर्ण मामलों में उन्हें सलाह देते रहे हैं. अनौपचारिक तौर पर वो गुजरात में मोदी के साथ भी थे.

उनका बेटा शौर्य डोभाल भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव के साथ साझेदारी में इंडिया फाउंडेशन नाम की संस्था भी चलाता है. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, रेल मंत्री पीयूष गोयल और सुरेश प्रभु, जयंत सिन्हा, एमजे अकबर जैसे मंत्री इस संस्था के डायरेक्टर हैं.

मोदी अपने वफादार नौकरशाहों का साथ देने के लिए जाने जाते हैं. सूत्रों का कहना है कि भले ही अधिया कैबिनेट सचिव बनने से चूक गए हों, लेकिन मोदी ने शरद कुमार की तरह ही उनके लिए पीएमओ में पहले से ही जगह बनाकर रखी हुई है.

ऐसा हो सकता है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी के महानिदेशक पद से अपना संविदात्मक कार्यकाल पूरा करने के बाद शरद कुमार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का सदस्य बना दिया जाए. हालांकि वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि ऐसे संवेदनशील ओहदे इस तरह से संविदात्मक आधार पर नहीं दिए जाने चाहिए लेकिन इस तरह के नियम ऊंचे ओहदों पर बैठे ‘मोदीफाइड’ अधिकारियों पर कहा लागू होते हैं.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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