हिंदू-मुसलमान का एक्शन, ‘हिंदू खतरे में है’ का नाच, जेएनयू पर डायलॉग, संसद का सास-बहू, लव जिहाद का धोखा… पूरा देश समाचारों में एकता कपूर के सीरियल देख रहा है, वहीं भुखमरी, किसान आत्महत्या, बलात्कार, बेरोज़गारी, निर्माण और उत्पादकता का विनाश, महिला और दलित उत्पीड़न के बारे में नज़र आती है तो केवल… चुप्पी.
तस्सवुर कीजिए, आप रात के 9 बजे से निकले हैं, किराने की दुकान बंद होने वाली है. घर में शक्कर ख़त्म हो गयी है. सुबह की फीकी चाय आपके कदमों में वो जान देती है कि आप उस दुकान के बंद होने से पहले फास्ट वॉकिंग का ओलंपिक गोल्ड मेडल जीत सकते हैं.
लेकिन तभी एक महंगी नारंगी स्पोर्ट्स कार लहराती हुई सड़क पर आपसे बस टकराते-टकराते बचती है. आप पीछे पलटते हैं और वो कार आपके पीछे एक 15 साल के युवक को उड़ा देती है. एक सेकेंड में वो लड़का आपकी आंखों के सामने मर जाता है.
स्पोर्ट्स कार में से एक 20 साल का युवक निकल के भागता है. आप उसकी आंखों में आंखे डालकर, 1 पल के लिए उसका चेहरा साफ़ देखते हैं. उसका चेहरा अब आपकी आंखों में बस चुका है. मुबारक हो! अब आप इस अपराध के अकेले चश्मदीद गवाह हैं.
कुछ दिनों में सारी गुत्थियां खुलनी शुरू होती हैं. वो लड़का जो मरा, अपने दसवीं के बोर्ड्स के रिजल्ट्स का इंतज़ार कर रहा था. आज रिजल्ट आया है, उसके 92% मार्क्स आए है. उसका बाप एक ऑटो रिक्शा चलाता है.
वहीं, वो लड़का जो कार चला रहा था, एक बहुत बड़ी इंडस्ट्री के मालिक का बेटा है. आपके पास फोन आने शुरू हो गए हैं. एक फोन कलेक्टर का, 10-12 वकीलों के, एक किसी पुलिस अफसर का और एक हमारे प्यारे स्थानीय एमएलए साब का. सब का कहना है कि बच्चे से ग़लती हो गयी थी, 20 साल का है, जेल हो गयी तो ज़िंदगी खराब हो जाएगी.
एक दिन वो अमीर लड़का भी आपको आपके ऑफिस के बाहर पकड़ लेता है. आपके पैरों में गिरकर रोने लगता है. आप बुरी तरह से कशमकश में फंसे हैं. पर अब भी हम मूल मुद्दे पर नहीं पहुचे हैं. वो अब आएगा.
फिर एक दिन आपके घर, उस लड़के का बाप आंखों में आंसू और बैग में 50 लाख रुपये लिए आ जाता है. गुज़ारिश बस इतनी-सी कि कोर्ट में कुछ नहीं बोलिएगा. और आपको पता चलता है आपकी ‘चुप्पी की कीमत’ 50 लाख रुपये है…
वो लोग, जो कहते अंग्रेजी में कहते थे कि ‘साइलेंस इस गोल्ड’, सही कहते थे क्योंकि आपकी चुप्पी सोने से भी महंगी है. अब ये महंगी है या महंगी पड़ती है, इसका फैसला आप इस लेख के खत्म होने के बाद कीजियेगा.
25 मई को कोबरापोस्ट ने करीब-करीब सारे मीडिया घरों पर किए स्टिंग ऑपरेशन के वीडियो जारी किए. इस स्टिंग ऑपरेशन में मीडिया के कई बड़े मीडिया घरानों के नाम शामिल हैं. इल्ज़ाम है कि ये सब लोग ‘हिंदुत्व’ का एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए, पैसे लेकर कुछ भी करने को तैयार हैं.
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लेकिन ये बात सही नहीं है, ये बात अधूरा सच है. बाकी बात क्या है इसके लिए हमें थोड़ा डाटा खंगालना पड़ेगा.
पिछले साल अक्टूबर, 2017 तक मोदी सरकार, साढ़े तीन साल में 3,755 करोड़ मतलब करीब 37,55,00,00,000 रुपये अपने सरकार की पब्लिसिटी पे ख़र्च चुकी थी. वापस पढ़िये, 37,55,00,00,000 रुपये मोदी सरकार ने किस चीज़ पे ख़र्च किये? पब्लिसिटी पे. अब ये पैसे किस के पास गए? मीडिया के पास. और इस मीडिया का अधिकांश हिस्सा वो है जिस पर कोबरापोस्ट ने स्टिंग किया है.
तो अब सच को पूरा करते हैं. ये पैसे थे, ‘चुप्पी’ के. चुप रहो, जो बोलना है हम बता देंगे. एजेंडा, भाजपा ऑफिस की भव्य बिल्डिंग और आरएसएस के नागपुर की ‘नॉट सो भव्य’ बिल्डिंग में तय होगा.
हिंदू मुसलमान का एक्शन, ‘हिंदू खतरे में है’ का नाच, जेएनयू पे डायलॉग, संसद का सास-बहू, लव जिहाद का धोखा आदि आदि, पूरा देश टीवी न्यूज़ पर एकता कपूर के सीरियल देख रहा है.
भुखमरी, किसान आत्महत्या, रेप, बेरोज़गारी, एक्सपोर्ट-निर्माण-उत्पादकता का विनाश, महिला और दलित उत्पीड़न आदि आदि, पे ‘सुई पटक सन्नाटा’ मतलब ‘चुप्पी.’
37,55,00,00,000 रुपये की ‘चुप्पी’
तो ये तो हुआ चुप्पी कितनी महंगी होती है, अब बात करते हैं, कैसे महंगी पड़ती है. ये उनके साथ होता है जो चुप नहीं रहते. दो नाम उठाता हूं. (वैसे बहुत सारे हैं)
रवीश कुमार और राना अय्यूब. दोनों ‘र’ राशि के हैं. दोनों की बोलने की वजह से, लगी पड़ी है. दोनों के फोन नंबर आसानी से नेट पर मिल जाते हैं. आप दिन के किसी भी समय, विश्व के किसी भी कोने से, इन दोनों को गाली बक सकते हैं. इनके परिवार के बारे में जितनी घटिया बातें आप सोच सकते हैं, इन्हें या तो फोन या मैसेज करके बता सकते हैं.
राना का तो एक पोर्न वीडियो भी मार्केट में है, जिस पर उसका चेहरा मॉर्फ करके लगाया हुआ है. दोनों को जान से मारने की धमकी देना आम बात है और पुलिस का नाममात्र डर न होने के कारण, लोग वीडियो बनाकर इनको अपना चेहरा दिखाकर मारने की धमकी भेजते हैं. राना क्योंकि लड़की है, तो उसे रेप करके मारने की धमकी दी जाती है.
दोनों एंटी हिंदू, प्रो पाकिस्तान, एंटी नेशनल टाइप के नामों से पुकारे जाते हैं. ये दोनों दर्जनों एफआईआर कर चुके हैं. पर ये न भूलिए कि भाजपा के 11-12 करोड़ मेम्बर हैं. इज्ज़त और आबरू दोनों की सड़क पर हैं.
अगर ये दोनों उन 37,55,00,00,000 रुपये में से दो-चार करोड़ ले लेते तो आज इनकी इज्ज़त और आबरू ऐश कर रही होती. सच के चक्कर में इनके घर वाले भी ये दिन देख रहे हैं. क्योंकि सरकार इन दोनों खरीद नहीं पा रही है, अक्सर लोग इन्हें फोन करके पूछते हैं ‘तुम्हारा रेट क्या है.’ शायद ‘शरकार’ को लगता है कि ये किसी कॉलर को अपना रेट बता देंगे तो, हमारा काम आसान हो जायेगा.
पर ये दोनों अकेले नहीं, सोशल मीडिया के वो जानवर जो ‘Blessed to be followed by PM Modi’ हैं, उन्हें देश में खुली छूट है. कोई लड़का या लड़की इनकी गालियों से अछूते नहीं रहेंगे, अगर उसने सरकार से सवाल पूछा.
रेप की धमकी अब छोटी-मोटी बात हो गयी है. अब धमकियों में पूरे खानदान के खानदान रेप और मर्डर किये जाते हैं. नरसंहार, जातीय संहार आजकल आम बात है. और ये सब क्या है… ‘चुप्पी तोड़ने की कीमत.’
जी हां, चुप्पी तोड़ने की कीमत, देश के लिए बोलने की कीमत. जो वो चुका रहे हैं, जिन्होंने 37,55,00,00,000 रुपये में से अपना हिस्सा लेने से मना कर दिया है.
पर ये बात मैं आप सब से क्यों कर रहा हूं? आइये अब मूल मुद्दे पर आते हैं. आपकी चुप्पी कितनी महंगी है? या कितनी महंगी पड़ने वाली है, ये मैं आपको बताता हूं.
भाजपा के 11-12 करोड़ मेम्बर्स को हटा दीजिये, उनका तो मुझे समझ में आता है. उनका तो कोई न कोई लालच होगा, पर बाकी 1.2 अरब का क्या? आप लोग क्यों चुप्पी साधे हैं?
जब आपको अब पता है कि ये सरकार या तो आपकी चुप्पी खरीद लेगी या आपको चुप करवा देगी तो आप क्यों चुप है? क्या आप डर चुके हैं? या आपको भी पैसे मिल चुके हैं?
मुझे पता है इन दोनों में से कोई भी बात सच नहीं है क्योंकि मैं अकेला नहीं हूं. आप सिर्फ इसलिए चुप हैं क्योंकि आप घर-बार में व्यस्त है. रोटी की लड़ाई लड़ रहे हैं या अपने काम से जूझ रहे हैं.
लेकिन एक वक़्त ऐसा आता है जब हमें बोलना पड़ता है. चुप्पी तोड़नी पड़ती है. टोकना पड़ता है उन्हें भी जो झूठ बोल रहे हैं और साथ देना पड़ता है उनका जो सच बोल रहे हैं.
अब समय है उन्हें टोकने का, जिन्होंने करोड़ों रुपयों में हमारा विश्वास बेच दिया है. कोबरापोस्ट ने ये साबित कर दिया है, ये चुप्पी मीडिया नहीं है ‘पपी मीडिया’ है, जो सरकार के फेंके गए टुकड़ों पर पल रही है.
और अब समय है उनका साथ देने का, जो आज भी सच बोल रहे हैं और सवाल पूछ रहे हैं. अब समय है चुप्पी तोड़ने का क्योंकि ये चुप्पी शायद आपको और मुझे नहीं, हमारी आने वाली नस्लों को बहुत महंगी पड़ने वाली है.
ज़रूरी नहीं हर बात के लिए सड़कों पर निकला जाए, पर आपके हाथ में एक फोन है जो सोशल मीडिया से जुड़ा है. लिखिए उस पर और अपनी चुप्पी तोड़िए. शायद हो सकता है कि आप मोदी सरकार के समर्थक हों, लेकिन चाहे सरकार बदले न बदले, उसका नजरिया बदलना ज़रूरी है. क्योंकि अगर अब आप न बोले ये देश हमेशा के लिए बदल जायेगा.
इस दुनिया में हमेशा बुरे लोग थे और रहेंगे. पर बुराई सिर्फ तब फैली है जब अच्छे लोग चुप थे. तो तोड़िए अपनी ख़ामोशी क्योंकि आपकी एक आवाज़ न जाने कितने कुकर्म रोक सकती है. क्योंकि आजादी आपके गले में रहती और आपकी आवाज़ के साथ बाहर निकलती है. आज़ादी को अपने शब्दों में पर देकर आज़ाद कर दीजिए और फिर देखिए कैसे बड़े-बड़े दिग्गज रूमालों से अपने माथे का पसीने पोंछते नज़र आयेंगे.
‘तेरा हाकिम, तेरे दर्द को कहां समझता है, बस ख़ामोशी को तेरी, वो ‘हां’ समझता है.’
(दाराब फ़ारूक़ी पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं.)