ग्राउंड रिपोर्ट: नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन के कहलगांव स्थित थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख से आसपास के गांवों में रहने वाले लोग पिछले कई सालों से दमा, टीबी और फेफड़ों के संक्रमण जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं.
22 मई को तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदांता समूह की स्टरलाइट कॉपर प्लांट से फैल रहे प्रदूषण और बीमारी को लेकर प्रदर्शन कर रहे स्थानीय लोगों पर पुलिस ने गोलियां चलाईं थीं, जिसमें 13 लोगों की मौत हो गई थी.
उस दिन बिहार की राजधानी पटना से करीब 250 किलोमीटर दूर भागलपुर ज़िले के कहलगांव प्रखंड के आठ गांवों की क़रीब आधा लाख आबादी ने तूतीकोरिन के लोगों की पीड़ा शिद्दत के साथ महसूस किया.
वजह ये है कि यह आबादी भी तूतीकोरिन के लोगों की तरह ही लंबे समय से औद्योगिक इकाई से फैलने वाले प्रदूषण और सेहत के नुकसान से परेशान हैं.
ये लोग भारत की महारत्न कंपनी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) लिमिटेड के कहलगांव स्थित सुपर थर्मल पावर प्लांट के आसपास के गांवों में रहते हैं.
कहलगांव में एनटीपीएस के सुपर थर्मल पावर प्लांट का काम 1985 में शुरू हुआ था. मार्च 1992 में 210 मेगावाट क्षमतावाली पहली यूनिट का संचालन शुरू हुआ.
धीरे-धीरे इसकी क्षमता में इज़ाफ़ा होता गया और 2009 तक इस प्लांट की बिजली उत्पादन क्षमता 2340 मेगावाट हो गई.
प्लांट में बिजली उत्पादन के लिए रोजाना 35 हज़ार से 50 हज़ार टन कोयले का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी आपूर्ति झारखंड स्थित राजमहल कोल माइन से की जाती है.
प्लांट से हर साल करीब 65 लाख टन फ्लाई ऐश निकलता है. फ्लाई ऐश में सिलिका, एल्युमिना, पारा और आयरन होते हैं, जो दमा, फेफड़े में तकलीफ, टीबी और यहां तक कि कैंसर तक का कारण बन सकते हैं.
प्लांट से निकलने वाला यह फ्लाई ऐश 500 मीटर के दायरे में आने वाले आठ गांवों एकचारी, भोलसर, चायटोला, मजदाहा, चकरालू, महेशामुंडा, कटोरिया और जमुनिया टोला में रहने वाले लोगों की सेहत पर बहुत बुरा असर डाल रहा है.
जमुनिया टोला के रहने वाले 60 वर्षीय ढोरी यादव की पिछले साल नवंबर में मौत हो गई थी. वह टीबी व दमा से ग्रस्त थे. उनकी नेत्रहीन बहू लालो देवी कहती हैं, ‘मैं 20 साल पहले शादी करके यहां आई थी, तभी उन्हें दमा की शिकायत थी, जो धीरे-धीरे बढ़ती गई और आख़िरकार मौत का कारण बनी.’
इसी गांव के शंभूनाथ मंडल व उनकी पत्नी जयवंती देवी क़रीब 20 साल से दमे के मरीज़ हैं. खेतीबाड़ी से उनकी जीविका चलती है. दोनों को हर महीने केवल दवा पर 12,00 रुपये ख़र्च करने पड़ते हैं.
शंभूनाथ मंडल कहते हैं, ‘डॉक्टरों से जब दिखाया, तो उन्होंने कहा कि धूलकण के कारण यह रोग हुआ है.’
45 वर्षीय रामरूप यादव भी इसी रोग की जद में हैं. वह भागलपुर से लेकर दिल्ली तक के डॉक्टरों को दिखा चुके हैं. वह कहते हैं, ‘हर जगह के डॉक्टर ने यही सलाह दी कि धूल-धुएं से दूर रहूं.’
उन्होंने कहा, ‘यहां से महज़ 500 मीटर की दूरी पर एनटीपीसी का पावर प्लांट है जहां से चौबीसों घंटे फ्लाई ऐश उड़कर हमारे घर तक पहुंचता है. राख के कारण सांस लेने में बड़ी तकलीफ होती है.’
जमुनिया टोला गांव प्लांट से सबसे दूर है, लेकिन फ्लाई ऐश यहां तक पहुंच रहा है.
संजय कुमार यादव अपने मकान की छत पर हाथ रगड़कर दिखाते हुए कहते हैं, ‘सुबह छत पर झाड़ू लगाने के बावजूद इतना फ्लाई ऐश जम गया है. फ्लाई ऐश उड़ने के कारण हम लोग छतों पर सो नहीं पाते हैं. अनाज बाहर रखते हैं, तो उसमें भी फ्लाई ऐश भर जाता है. सफेद कपड़ा ज़्यादा समय तक छत पर रखने से काला हो जाता है.’
रामरूप और शंभूनाथ मंडल की तरह ही इस गांव के और भी कई लोग दमा व टीबी के मरीज हैं.
जमुनिया टोला से सटे महेशामुंडा गांव की हालत और भी ख़राब है क्योंकि यह प्लांट से सटा हुआ है.
गांव के लोगों का कहना है कि फ्लाई ऐश यहां के कई लोगों की जान ले चुका है जबकि कई लोग टीबी से गंभीर रूप से ग्रस्त हैं.
महेशामुंडा की आबादी करीब छह हज़ार है. गांव की मुखिया नुसरत परवीन कहती हैं, ‘यहां के कम से कम दो दर्जन से अधिक लोग टीबी रोग के मरीज़ हैं. कई लोगों की तो मौत हो चुकी है. खेतों में फ्लाई ऐश के जम जाने से उपज भी कम हो गई है.’
प्लांट की राख से सेहत को होने वाले नुकसान को लेकर गांवों के लोग मौखिक और लिखित रूप से एनटीपीसी को अवगत करा चुके हैं. सरकार की तरफ से भी कंपनी को एहतियाती क़दम उठाने को कहा जा चुका है.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस दिशा में कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया गया है.
बिहार विधानसभा की पर्यावरण व प्रदूषण नियंत्रण समिति के चेयरमैन सीपी सिन्हा ने इस साल फरवरी में प्रभावित गांवों का दौरा किया था और बताया था कि कंपनी किस तरह पर्यावरण नियमों की अनदेखी कर रही है, जिससे गांवों में भारी प्रदूषण फैल रहा है.
सीपी सिन्हा अप्रैल-मई में एनटीपीसी से फैलने वाले प्रदूषण और इससे लोगों को होने वाले नुकसान का विस्तृत आकलन करने वाले थे. फिलहाल, उन्हें विज्ञान व जनकल्याण समिति का चेयरमैन बना दिया गया है.
सिन्हा ने बताया, ‘फरवरी में जब मैंने दौरा किया था तो देखा कि आसपास प्लांट का कचरा और फ्लाई ऐश फैला हुआ है. विभिन्न गांवों के लोगों ने प्लांट से निकलने वाले राख से तकलीफ की भी शिकायत की थी.’
इससे पहले 15 फरवरी को एनटीपीसी ग्राउंड में एक जनसभा को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने एनटीपीसी पर नियमों की अनदेखी कर प्रदूषण फैलाने का आरोप लगाया था. उन्होंने प्रदूषण से निपटने के लिए एनटीपीसी को आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल की सलाह दी थी.
ग़ौर करने वाली बात यह है कि ऐसा पहली या दूसरी बार नहीं है, जब कहलगांव एनटीपीसी प्रबंधन को प्रदूषण नियंत्रण के लिए एहतियाती क़दम उठाने को कहा गया है. दो साल पहले भी ऐसा ही एक निर्देश केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जारी किया था.
6 मई 2016 को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहलगांव स्थित एनटीपीसी समेत देश के 20 थर्मल पावर प्लांट्स को पर्यावरण का स्तर बरक़रार रखने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने का आदेश देने की बात कही थी.
उन्होंने कहा था, ‘थर्मल पावर प्लांट से फैलने वाले प्रदूषण को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने किसी तरह की समीक्षा नहीं की है, लेकिन पर्यावरण निगरानी दस्ते के निरीक्षण के बिना पर 14 प्लांट को आदेश दिया गया है कि वे पर्यावरण (सुरक्षा) 1986 के तहत पर्यावरण मानकों को अपनाएं.’
14 प्लांट्स के अलावा छह और प्लांट के लिए संबंधित राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा गया था कि वे पावर प्लांट्स को वायु (प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण) एक्ट 1981 और जल (प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण) अधिनियम 1974 के तहत पर्यावरण मानकों को कायम रखने का आदेश दें. इन छह प्लांट में एनटीपीसी कहलगांव भी शामिल था.
स्थानीय विधायक व पूर्व मंत्री सदानंद सिंह का कहना है कि एनटीपीसी कहलगांव से प्रदूषण को लेकर वह भी कई बार केंद्र सरकार को पत्र लिख चुके हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैंने दो-तीन महीने पहले पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर एनटीपीसी से फैलने वाले प्रदूषण के बारे में बताया था.’
सदानंद सिंह कहते हैं, ‘चिट्ठी में मैंने बताया था कि एनटीपीसी किसी तरह पर्यावरण नियमों की अनदेखी कर रही है जिससे यहां से निकलनाले राख 5-6 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैल जाता है. मैंने यह भी कहा था कि राख के कारण काफी लोग दमे और टीबी से ग्रसित हैं. इस दिशा में केंद्र सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है.’
तमाम आदेशों, अपीलों के बावजूद ज़मीनी हक़ीक़त यही है कि फ्लाई ऐश अब भी लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है.
कहलगांव अनुमंडलीय अस्पताल के चिकित्सक डॉ. संजय सिंह कहते हैं, ‘मेरे निजी क्लिनिक में आने वाले अधिकतर मरीज़ सांस की बीमारी, दमा और चर्मरोग के शिकार होते हैं.’
उल्लेखनीय है कि 80 के दशक में जब कहलगांव में एनटीपीसी के सुपर थर्मल पावर प्लांट बनाने की बात चली थी तो सामाजिक कार्यकर्ताओं और कुछ स्थानीय लोगों ने संभावित नुकसान को भांपते हुए प्लांट स्थापित के ख़िलाफ़ आंदोलन किया था. हालांकि उस आंदोलन को जनसमर्थन नहीं मिल सकता था.
गंगा मुक्ति आंदोलन शुरू करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश ने कहा, ‘असल में गांववालों को विकास और समृद्धि का सब्ज़बाग दिखाया गया था, जिस कारण वे आंदोलन में हिस्सा लेने से बचते रहे.’
एनटीपीसी के ख़िलाफ़ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कहलगांव के कागजी टोला निवासी कैलाश साहनी कहते हैं, ‘एनटीपीसी के प्लांट से होने वाले नुकसान के बारे में हम लोगों ने घर-घर जाकर गांववालों को बताया. उन्हें जागरूक करने की हरसंभव कोशिश की थी, लेकिन उनका समर्थन हमें नहीं मिला. आज ग्रामीण महसूस कर रहे हैं कि विकास के नाम पर उन्हें धोखा दिया गया था.’
स्थानीय लोग बताते हैं कि एनटीपीसी पहले फ्लाई ऐश कहलगांव रेलवे स्टेशन के पास स्थित शारदा पाठशाला के ग्राउंट में ही फेंका करती थी, जिससे क्लास रूम फ्लाई ऐश से भर जाता था और बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह बाधित रहती थी.
स्थानीय लोगों और छात्रों ने इसके ख़िलाफ़ काफी आंदोलन किया, तब जाकर तीन साल पहले यहां फ्लाई ऐश फेंकना बंद हुआ.
महेशामुंडा के वार्ड नं. 7 के वार्ड सदस्य सुमन कुमार तांती ने कहा, ‘प्लांट से निकलने वाले फ्लाई ऐश के कारण मेरी दादी पिछले डेढ़-दो सालों से सांस की तकलीफ झेल रही हैं. हम लोगों ने एनटीपीसी से लिखित और मौखिक शिकायत भी की, लेकिन कोई सुधार नहीं दिख रहा है.’
स्थानीय पत्रकार प्रदीप विद्रोही कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि प्रबंधन ने कभी भी लोगों की समस्याओं को गंभीरता से लिया.’
रिकॉर्ड बताते हैं कि एनटीपीसी कहलगांव में 30 अप्रैल तक 3700 मीट्रिक टन फ्लाई ऐश और 7,37,000 मीट्रिक टन बॉटम ऐश का स्टॉक था, जिनमें से ऐश पॉन्ड में 65.58 प्रतिशत राख था.
बताया जाता है कि कंपनी 50 प्रतिशत से कम राख का इस्तेमाल कर पाती है. बाकी राख व प्लांट से निकलने वाले कचरे को डम्प कर दिया जाता है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि राख व कचरा गंगा में और यहां-वहां डम्प किए जाते हैं. अगर स्थानीय लोग सही कह रहे हैं तो यह भी चिंता की बात है क्योंकि राख में पारा, सिलिका, आयरन जैसे जहरीले तत्व होते हैं, जो जमीन के नीचे जाकर भूगर्भ जल को प्रदूषित करते होंगे.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने कुछ साल पहले ‘सीएसई ग्रीन रेटिंग प्रोजेक्ट’ के तहत अवार्ड देने के लिए कोयला और लिग्नाइट आधारित देश के 41 पावर प्लांट के विभिन्न मानकों को लेकर समीक्षा की थी. इनमें एनटीपीसी कहलगांव भी शामिल थी.
यह समीक्षा रिपोर्ट 28 फरवरी 2015 को प्रकाशित हुई जिसमें एनटीपीसी कहलगांव की रेटिंग 20 से 30 फीसदी ही थी. इसका मतलब है कि एनटीपीसी कहलगांव की ओर से प्रदूषण नियंत्रण व राख के निस्तारण के लिए जो भी क़दम उठाए गए, वे नाकाफी हैं.
इस संबंध में एनटीपीसी प्रबंधन की प्रतिक्रिया जानने के लिए एनटीपीसी कहलगांव के जनसंपर्क अधिकारी सौरभ कुमार को फोन किया गया तो उन्होंने कहा कि इस पर आधिकारिक बयान प्रबंधन से जुड़े अधिकारी ही दे सकते हैं.
सौरभ कुमार ने सवाल ईमेल करने को कहा. उनके कहे अनुसार उनकी मेल आईडी पर 29 मई को दोपहर को सवालों की एक फेहरिस्त भेजी गई.
हालांकि रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनका जवाब नहीं आया था. जवाबी मेल आने पर स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)