प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए सरकार भले ही आशांवित नज़र आ रही है लेकिन महाराष्ट्र और गुजरात के किसानोंं ने इसके ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ाई का ऐलान किया है.
पालघर (महाराष्ट्र): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट बुलेट ट्रेन के ख़िलाफ़ सभी विपक्षी दलों ने मोर्चा खोल दिया है. 509 किलोमीटर लंबी मुंबई से अहमदाबाद के बीच प्रस्तावित बुलेट ट्रेन परियोजना के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र और गुजरात के किसानों ने मुंबई से लगे पालघर में तीन जून को एकजुट होकर इस योजना का विरोध किया है.
बुलेट ट्रेन विरोधक जनमंच नाम के इस सर्वदलीय सम्मेलन में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और माकपा शामिल हुए.
दरअसल, बुलेट ट्रेन का 110 किलोमीटर का कॉरिडोर पालघर से होकर गुज़रना है. पालघर आदिवासी बहुल इलाका है और वहां के किसान 1,10,000 करोड़ रुपये की बुलेट ट्रेन परियोजना का विरोध कर रहे हैं. सरकार को इस योजना के लिए 1400 हेक्टेयर ज़मीन का अधिग्रहण करना है, जिसके लिए सरकार 10,000 करोड़ रुपये ख़र्च करने वाली है.
अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले ने द वायर से बात करते हुए बताया, ‘मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की जो योजना है, ये एक विवादित योजना है. इसके लिए गुजरात के साथ ठाणे और पालघर में किसानों को ज़मीन अधिग्रहण के लिए नोटिस दिया जाना शुरू हो चुका है. भूमि अधिकार आंदोलन के तहत तीन जून को हुए सम्मेलन में भाजपा को छोड़ सब दल के लोग आए थे.’
धावले ने बताया, ‘बुलेट ट्रेन की कोई ज़रूरत नहीं है. मुंबई से अहमदाबाद हवाई जहाज से एक घंटा लगता है और बुलेट ट्रेन से तीन घंटे लगेंगे और बुलेट ट्रेन का किराया लगभग 4000 रुपये होगा, जो आम आदमी की पहुंच से बाहर है. इससे सस्ती हवाई जहाज की यात्रा है. जब तक बुलेट ट्रेन बनेगी तब तक ये किराया दोगुने से ज़्यादा हो जाएगा. इसलिए ये एक ग़ैर-ज़रूरी योजना है.’
धावले कहते हैं, ‘मुझे प्रधानमंत्री की मंशा पर शक है कि इस योजना को वो विकास से जोड़कर देख रहे हैं. मुझे लगता है बुलेट ट्रेन योजना दरअसल मोदी सरकार अपनी विफलता को छुपाने के लिए छतरी के रूप में इस्तेमाल कर रही है. दूसरी बात ये है कि इस योजना के तहत आम आदमी को कोई फायदा नहीं मिलेगा, बल्कि यह उद्योग घरानों के साथ ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का प्रयास है. योजना में 1,10,000 करोड़ ख़र्च होने वाले हैं. सरकार को ये पैसे जनता की मूल सुविधाओं के लिए ख़र्च करना चाहिए.’
धावले का आरोप है कि सरकार ने किसानों और आदिवासियों को योजना के बारे में कुछ समझाया नहीं है और न ही सरकार ने ज़मीन अधिग्रहण करने की शर्तों की जानकारी उन्हें दी है.
महाराष्ट्र के पालघर-दहानू-भिवंडी में 353 हेक्टेयर ज़मीन अधिग्रहण किया जाना है. ठाणे और पालघर ज़िले में बुलेट ट्रेन योजना से लगभग 108 गांव प्रभावित होंगे. धावले ने बताया कि लगभग 70 ग्रामसभाओं ने प्रस्ताव पारित किया है कि वे इस योजना के लिए होने वाले ज़मीन अधिग्रहण का विरोध करेंगे.
पुनर्वास और ज़मीनों के मुआवज़े पर धावले कहते हैं, ‘हमें इसके लिए सरकार द्वारा किए गए पुनर्वास और मुआवज़े के इतिहास को देखना पड़ेगा. आज तक कोई भी ऐसा पुनर्वास नहीं हुआ जहां किसानों के साथ अन्याय न हुआ हो. हमें ऐसे बहुत सारे किसान मिले हैं जो आज तक मुआवज़े के लिए सरकारी दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं.’
वे आगे कहते हैं, ‘आदिवासियों के लिए उनकी ज़मीन सब कुछ है और सरकार विकास के नाम पर उसकी पहचान जल, जंगल और ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रही है. दरअसल सरकार उन आदिवासियों को कुछ पैसे देकर उनकी पहचान छीनकर उन्हें शहर की तरफ धकेलना चाहती है. सरकार उन्हें अपने विकास के सहारे से शहर का गुलाम बनना चाहती है.’
धावले ने यही भी बताया कि तीन मई को दहानू में 40,000 किसानों ने मुंबई-वडोदरा हाईवे के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया था. यहां भी इसी तरह ज़मीन अधिग्रहण करने का काम सरकार कर रही है, जहां आदिवासी किसानों को पता भी नहीं उनके साथ क्या होने वाला है.
धावले ने स्पष्ट किया है कि सभी ग़ैर भाजपा दल मिलकर बुलेट ट्रेन योजना के ख़िलाफ़ आंदोलन करते रहेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार मौजूदा रेल तंत्र में सुधार नहीं कर पा रही है. पहले मौजूदा रेल तंत्र में सुधार लाना चाहिए जो आम जनमानस की सवारी है. बुलेट ट्रेन अमीर लोगों की सवारी है, जो हवाई जहाज़ से भी चल सकते हैं.
काश्तकारी किसान संगठन के ब्रायन लोबो ने बताया, ‘सरकार आदिवासी किसानों को ठगने का काम कर रही है. सरकार यह नहीं बताना नहीं चाहती कि बुलेट ट्रेन योजना से समाज और पर्यावरण को कितना नुकसान होगा. इस बारे में हमने जब ज़िलाधिकारी से बात की तो ज़िला प्रशासन की वेबसाइट पर सामाजिक और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की रिपोर्ट प्रकाशित करने की बात कही गई है.’
लोबो आगे बताते हैं, ‘जापान की एक एजेंसी जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) है, जिसने सामाजिक और पर्यावरण पहलुओं को लेकर दिशा निर्देश बनाए हैं. दुनिया में कहीं भी जापानी परियोजना पर काम होता है, तो जेआईसीए के दिशा निर्देश का पालन करना पड़ता है. लेकिन केंद्र सरकार उसका भी उल्लंघन कर रही है. क्योंकि जेआईसीए के निर्देशों में सामाजिक और पर्यावरण पहलुओं का ख़ास ध्यान देने को कहा गया है. सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि इस योजना में कितने पेड़ काटे जाएंगे, कितनी खेती की ज़मीन चली जाएगी, कितने तालाब ख़त्म होंगे और आदिवासी कहां जाएंगे.’
उन्होंने आगे बताया कि केंद्र सरकार ज़मीन अधिग्रहण क़ानून, 2013 का पालन नहीं कर रही है. इसके उलट सरकार सीधा किसानों से ज़मीन ख़रीदने का प्रयास कर रही है. क्योंकि अगर क़ानून के अनुसार अधिग्रहण का काम करेंगे तो ग्रामसभा की अनुमति लेनी होगी, जिसमें गांववाले प्रस्ताव पारित करेंगे. लेकिन ये किसान और आदिवासी अपनी ज़मीन देने को तैयार नहीं है और न ही इस बुलेट ट्रेन योजना के पक्ष में हैं.
लोबो ने बताया, ‘अधिग्रहण क़ानून के अनुसार ज़मीन की क़ीमत का चार गुना मिलता है और सरकार पांच गुना दे रही है. लेकिन सरकार के लोग निर्धारित कर रहे हैं कि क़ीमत क्या होगी? जबकि ऐसा करना भी था तो किसानों से पूछते कि क्या क़ीमत चाहिए. दरअसल सरकार अपनी इस योजना जो पूरा करने के चलते क़ानून को दरकिनार करना चाहती है.’
लोबो कहते हैं, ‘सामाजिक और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की रिपोर्ट को गांववालों को बताने का काम सरकार का है. योजना को लेकर परामर्श की बैठक आदिवासियों के साथ की जानी है. दो मई को एक परामर्श बैठक आयोजित किया गया था, लेकिन वहां न तो रिपोर्ट थी और न ही सभी गांववालों के लिए बैठने की व्यवस्था थी.’
उन्होंने कहा, ‘विरोध के बाद ज़िलाधिकारी ने बैठक को स्थगित कर दिया था और उसके बाद दो जून को रखा गया, लेकिन उस दिन भी बैठक में सिर्फ रिपोर्ट दिखाई गई. अभी एक भी परामर्श बैठक पूरी नहीं हो पाई है, जबकि सरकार कह रही है कि परामर्श की दूसरी बैठक होनी है. हमारा कहना है कि जब तक पहली बैठक पूरी नहीं होती तब तक सरकार कैसे दूसरी बैठक का ऐलान कर सकती है.’
वे कहते हैं, ‘15 नवंबर को महाराष्ट्र के राज्यपाल ने अध्यादेश पारित कर पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम (पेसा) में बदलाव कर दिया, जिसके बाद आदिवासी समुदाय की ज़मीन ख़रीदने के लिए ग्रामसभा की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी. मुंबई में 17 मई को आदिवासी किसानों ने आज़ाद मैदान में प्रदर्शन कर क़ानून को फिर से उसी स्वरूप में लाने की मांग कर आदिवासी किसानों की ज़मीनों से जुड़े अधिकारों को मज़बूत करने की बात कही. उन्होंने आश्वासन तो दिया लेकिन कुछ किया नहीं.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने बुलेट ट्रेन योजना का साथ मिलकर ऐलान किया था. योजना के तहत जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी ने भारत सरकार को 0.1 प्रतिशत की ब्याज दर पर 88,000 करोड़ रुपये का क़र्ज़ दिया है.
केंद्र की मोदी सरकार का दावा है कि वर्ष 2023 तक 1.10 लाख करोड़ रुपये की इस परियोजना का काम हो जाएगा.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता नवाब मलिक ने द वायर से बातचीत में बताया, ‘बुलेट ट्रेन को लेकर हमारी पार्टी की भूमिका स्पष्ट है. हमारी पार्टी किसानों के साथ लड़ती आई है और हम आगे भी किसानों के हित के लिए लड़ते रहेंगे. दरअसल बुलेट ट्रेन दिखावे का प्रोजेक्ट है. मोदी जी भी कहते हैं कि कुछ चीज़ें दिखावे के लिए करना पड़ता है.’
मलिक आगे कहते हैं, ‘बुलेट ट्रेन के लिए जो ज़मीन अधिग्रहण करना है सरकार पहले उसी योजना के बारे में साफ करे कि वो कैसे ज़मीन अधिग्रहण करेगी? इस योजना के तहत गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों का हनन नहीं होना चाहिए और मैं तो कहता हूं ज़रूरत क्या है हमारी जो रेल व्यवस्था है, उसकी हालत ख़राब है, सरकार को उस पर ध्यान देना चाहिए.’
शिवसेना प्रवक्ता नीलम गोरे का कहना है, ‘हमने निर्णय लिया है कि हम बुलेट ट्रेन योजना कर विरोध करेंगे और यह कोई राजनीतिक क़दम नहीं बल्कि किसानों के अधिकार की बात है.’
नीलम ने आगे कहा, ‘हमे यकीन है कि सरकार बुलेट ट्रेन योजना पर पुनर्विचार करेगी. कितने लोग दयनीय स्थिति में पालघर से मुंबई सफ़र करते हैं. हम चाहते हैं पहले से मौजूद रेल व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए, उसके बाद कुछ लोगों के लिए बुलेट ट्रेन बनना चाहिए.’
We are hopeful that govt will re-think bullet train project. We see millions of railway travellers commuting daily from Palghar to Mumbai in very poor conditions. There is a need to upgrade existing facilities, than have a bullet train for few people: Neelam Gore, MLC, Shiv Sena pic.twitter.com/Mh9wuAhNNy
— ANI (@ANI) June 4, 2018
कांग्रेस मुंबई प्रदेश अध्यक्ष संजय निरूपम ने द वायर से बात करते हुए कहा, ‘हमारी पार्टी बुलेट ट्रेन का विरोध करती है और इसकी कोई ज़रूरत नहीं. सरकार ने पास कोई ठोस योजना नहीं है, जिसके चलते आदिवासी समाज को अपनी ज़मीन से हाथ धोना पड़ेगा.’
निरूपम आगे कहते हैं, ‘अहमदाबाद से मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन की क्या ज़रूरत है. भारतीय रेल तंत्र को सरकार संभाल नहीं पा रही है, अब इसको कैसे संभालेगी. अभी तक एक भी हेक्टेयर ज़मीन का अधिग्रहण नहीं हुआ है. हम किसानों और आदिवासी समाज के हितों के लिए विरोध करेंगे और भारत में बुलेट ट्रेन नहीं बनेगा. हमारी सरकार आती है तो हम बुलेट ट्रेन योजना को बंद कर देंगे.’
पिछले महीने जापान के कौंसुल जनरल ने मुंबई और अहमदाबाद में हुए एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि भारत को बुलेट ट्रेन योजना के लिए जल्द से जल्द ज़मीन अधिग्रहण करने का काम पूरा करना चाहिए. नेशनल हाईस्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरएल) ने अभी तक सिर्फ़ 0.9 हेक्टर ज़मीन का अधिग्रहण पूरा कर पाई है.
बुलेट ट्रेन परियोजना का विरोध करने वाले किसान संगठनों का कहना है कि गुजरात के किसान भी इस योजना से खुश नहीं हैं और आने वाले समय में सर्वदलीय सम्मेलन गुजरात में भी किया जाएगा. किसान और आदिवासी संगठों ने स्पष्ट कह दिया है कि वे बुलेट ट्रेन योजना के लिए एक इंच ज़मीन भी सरकार को लेने नहीं देंगे.
एनएचएसआरएल के अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर द वायर से बात करते हुए कहा, ‘देखिए, पहली बात तो हम किसी भी तरह का ज़मीन सीधे आदिवासियों से ख़रीदने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. हम महाराष्ट्र का ज़मीन अधिग्रहण अधिनियम 2013 और गुजरात का ज़मीन अधिग्रहण अधिनियम 2017 का पालन कर रहे हैं.’
सामाजिक और पर्यावरण प्रभाव की रिपोर्ट अभी तक प्रकाशित न करने पर अधिकारी ने बताया कि अभी सर्वे चल रहा है और जैसे ही सर्वे पूरा होगा, हम रिपोर्ट को प्रकाशित कर देंगे.
ग्रामसभा का ज़मीन न देने के प्रस्ताव पर अधिकारी ने बताया, ‘देखिये अगर कुछ ग्रामसभाओं ने ज़मीन देने से इनकार करने का प्रस्ताव पारित किया है तो कुछ ग्रामसभा ने ज़मीन देने का भी प्रस्ताव पारित किया है. देखिए, हर प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण करने में दिक्कत आती है. यह सिर्फ इस योजना के लिए नहीं बल्कि सभी में आती है लेकिन हम सुनिश्चित करेंगे कि सभी के हितों का ध्यान रखकर ये योजना पूरी हो.’
परामर्श बैठक के बारे में अधिकारी ने बताया कि दो जून से पहले जो बैठक हुई थी वो ग्राम प्रधान के साथ हुई थी. ये दूसरी परामर्श बैठक है, जो ग्रामसभा के लोगों के साथ होनी थी, जो कुछ समय के लिए स्थगित कर दी गई है. हर ज़िले में परामर्श बैठक होगी. ठाणे में हुई है. पालघर और बोइसर में भी होगी. हर ज़िले में दो बैठक होती है, पहली ग्राम प्रधानों के साथ और दूसरी ग्राम सभा के सदस्यों के साथ.
गुजरात में भी किसान कर रहे बुलेट ट्रेन का विरोध
मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के काम को गुजरात के किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. यहां ग्रामीणों ने कई स्थानों पर संयुक्त माप सर्वेक्षण नहीं होने दे रहे हैं.
किसान नेता मांग कर रहे हैं कि अधिग्रहण का काम केंद्रीय क़ानून के तहत होना चाहिए, न कि राज्य के अधिनियम के तहत.
वलसाड ज़िले के वाघलधरा क्षेत्र से एक सर्वेक्षण टीम दो बार वापस लौटा दिया गई. पड़ोसी सरोन गांव के एक किसान भागूभाई पटेल ने कहा कि समय पर सर्वेक्षण के बारे में ग्रामीणों को सूचना नहीं दी गई थी.
उन्होंने कहा, ‘किसानों ने पूर्वसूचना नहीं दिए जाने का हवाला देते हुए आपूर्ति की और मंगलवार को एक सर्वेक्षण दल को वापस लौटा दिया गया. इससे पहले भी लगभग 150 प्रभावित किसानों मिलकर ने आपत्ति जताई थी और इस दल को सर्वेक्षण करने नहीं दिया था.’
पटेल ने कहा, ‘जो ज़मीन अधिग्रहित की जा रही है वह ऐसे उपजाऊ और सिंचित इलाके के लिए है, जो निर्यात-गुणवत्ता वाले फल की खेती के लिए जाना जाता है. सरकार को इसके बजाय समर्पित फ्रेट कॉरिडोर परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि का उपयोग करना चाहिए था.’
उन्होंने कहा, ‘हमें सर्वेक्षण के बारे में काफी देर से सूचित किया जा रहा है और प्रतिक्रिया जताने के लिए काफी कम समय दिया जा रहा है. कई बार तो केवल दो-तीन दिन पहले बताया जा रहा है जबकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत ऐसा करने के लिए 60 दिनों का समय निर्धारित किया गया है.
इस परियोजना की आधारशिला वर्ष सितंबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे ने रखी थी. परियोजना को गुजरात के आठ ज़िलों में प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिन ज़िलों से होकर यह ट्रेन चलेगी.
परियोजना के विरोध की अगुवाई करने वाले गुजरात खेदुत समाज से संबद्ध सागर रबारी ने कहा, ‘गुजरात के संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून (2016) में 70-80 प्रतिशत किसानों की स्वीकृति, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, पुनर्वास और अन्य सुरक्षा उपायों जैसे प्रावधानों (जो केंद्रीय कानून में हैं) को तिलांजलि दे दी गई है.’
भाजपा शासित राज्यों ने संप्रग सरकार के द्वारा संशोधन के बाद पारित किए गए भूमि अधिग्रहण कानून के कुछ प्रावधानों को हटा दिया है जिसमें अनिवार्य सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन और किसानों के बहुमत की सहमति जैसी बातें थीं.
बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का काम वर्ष 2016 के संशोधित राज्य कानून के तहत किया जा रहा है.
पर्यावरण सुरक्षा समिति नामक एनजीओ के कृष्णकांत ने कहा कि जब तक सरकार उनकी आपत्तियों को दूर नहीं करती तब तक ग्रामवासियों ने भूमि सर्वेक्षण करने की अनुमति नहीं देने का फैसला किया है.
उन्होंने कहा, ‘एक बहु-राज्य परियोजना होने के कारण अधिग्रहण प्रक्रिया का काम केंद्र सरकार द्वारा की जानी चाहिए न कि राज्य के द्वारा. किसानों द्वारा अदालतों में इसी आधार पर ज़मीन अधिग्रहण को चुनौती दिए जाने की संभावना है.’
रबारी ने कहा, ‘परियोजना लाभप्रद नहीं है. अहमदाबाद और मुंबई को जोड़ने के लिए 26 उड़ानें, 69 ट्रेनें और लगभग 125 दैनिक लक्ज़री बसें हैं.’
गुजरात में अहमदाबाद, खेड़ा, आणंद, वडोदरा, भरूच, सूरत, नवसारी और वलसाड ज़िलों में परियोजना के लिए करीब 850 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जाएगी जिससे करीब 5,000 परिवार प्रभावित होंगे.
अधिकारियों ने दावा किया कि अधिग्रहण प्रक्रिया उचित है और सरकार ने प्रभावित किसानों से संपर्क किया है.
एक अधिकारी ने कहा कि 30 तहसीलों में प्रभावित किसानों के साथ अंशधारक परामर्श बैठक आयोजित की गई है.
परियोजना के एक सलाहकार द्विपायन दत्ता ने कहा, ‘हम संयुक्त माप सर्वेक्षण संचालित करने की प्रक्रिया में हैं.’
उन्होंने कहा कि ज़िला भूमि राजस्व अधिकारी, नेशनल हाईस्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी) के अधिकारियों के साथ संयुक्त माप सर्वेक्षण आयोजित कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘भूमि के स्वामित्व का पता लगाने के लिए किया जा रहा ये सर्वेक्षण मुआवज़े का फैसला करने के लिए एक पूर्वशर्त हैं. भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुसार, भूमि मालिकों की एक सूची प्रकाशित की जाएगी. इसके बाद मुआवज़े का फैसला किया जाएगा.’
क्या अधिक मुआवज़ा देने का रेल मंत्री पीयूष गोयल का दावा ग़लत है?
गुजरात के किसानों का आरोप है कि सरकार एक बीघा ज़मीन का 40 लाख रुपये दे रही है, जबकि बाज़ार में उसकी कीमत पांच करोड़ रुपये है.
समाचार वेबसाइट डीएनए की ख़बर के अनुसार, गुजरात खेडूत समाज (जीकेएस) के अध्यक्ष जयेश पटेल अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे हैं और परियोजना के ख़िलाफ़ भी किसानों को संगठित करने के लिए चार दिवसीय ड्राइव पर हैं क्योंकि यह योजना उपजाऊ भूमि में ख़त्म करेगी.
पटेल ने कहा, ‘हर गांव में, 100-500 किसान बैठक में भाग ले रहे हैं और परियोजना का विरोध कर रहे हैं.’
अमाडपोर गांव के बारे में पटेल ने बताया कि भूमि का बाज़ार मूल्य पांच करोड़ रुपये है, लेकिन सरकार कम दरों पर ज़मीन खरीदना चाहती है जो 40 लाख रुपये प्रति बीघा है.
पटेल ने आगे बताया, ‘किसान इतनी कम कीमतों पर अपनी ज़मीन कैसे दे सकता है. दक्षिण गुजरात में भूमि बेहद उपजाऊ है. तापी नदी के साथ-साथ अन्य छोटे बांधों और उकाई बांध से नहर का पानी भी प्राप्त होता है. किसान आम, अमरूद, केला और गन्ने की खेती कर अच्छे पैसे कमा रहा है. चीनी सहकारी समिति के चलते किसानों की आमदनी में सुधार हुआ है. इसलिए किसान अपनी ज़मीन नहीं देना चाहते.’
छोटे किसानों को डर है कि अगर उनकी भूमि अधिग्रहित की जाती है तो वे अपनी आजीविका खो देंगे.
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए पर्याप्त ज़मीन मिलने की उम्मीद जताई है.
गोयल का कहना है कि उन्हें बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए आवश्यक ज़मीन प्राप्त करने में कोई दिक्कत दिखाई नहीं देती है. उन्होंने यह भी दावा किया है कि सरकार ज़मीन के एवज में अधिक मुआवज़ा देने वाली है, जबकि जीकेएस के अध्यक्ष जयेश पटेल का कहना है कि सरकार पांच करोड़ की ज़मीन का सिर्फ 40 लाख रुपये दे रही है.
गोयल ने एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) के शिखर सम्मेलन में कहा, ‘परियोजना के लिए पर्यावरण एवं सामाजिक प्रभाव अध्ययन या तो पूरा हो चुका है या फिर खत्म होने के करीब है. मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि परियोजना के लिए ज़मीन मिलने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.’
उन्होंने कहा कि जबसे ज़मीन का मुआवज़े बढ़ाकर बाज़ार कीमत का चार गुना किया गया है, तब से भूमि अधिग्रहण में किसी तरह के विरोध का सामना नहीं करना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के मामले में सहमति के आधार पर मुआवज़े को चार से बढ़ाकर पांच गुना तक किया जा सकता है.
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)