केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल भाजपा के आखिरी घोषित राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष थे. अभी वह इस पद पर बरकरार हैं या उनकी जगह किसी नए की नियुक्ति की गई है, भाजपा यह बात चुनाव आयोग और आम जनता से छिपा रही है.
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी दुनिया के सबसे रईस राजनीतिक दलों में से एक है. चुनाव आयोग में दायर किए गए हालिया रिटर्न के मुताबिक 2016-17 में पार्टी की घोषित आय 1,034 करोड़ रुपये थी.
यह भाजपा के लिए खासतौर पर एक अच्छा साल था क्योंकि पिछले साल की तुलना में इसकी कमाई में 81 प्रतिशत का इजाफा हुआ. इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि बाकी सारी पार्टियां मिलकर जितना पैसा इकट्ठा कर पायीं, भाजपा ने अकेले उनसे दोगुने से ज्यादा पैसा अपने खजाने में भर लिया.
तो फिर इस हैरतअंगेज वित्तीय प्रदर्शन का श्रेय भाजपा के किस नेता को जाता है, जिन्होंने 2019 के चुनाव से पहले पार्टी को अब तक के सबसे बड़े खजाने की सौगात दी है.
यह सवाल पूछने के साथ ही चीजों पर रहस्य का पर्दा पड़ जाता है और चुनाव आयोग, जिस पर देश में चुनाव कराने के अलावा राजनीतिक पार्टियों के कामकाज के विनियमन और उसका लेखा-जोखा रखने का दायित्व है, सवालों के घेरे में आ जाता है
चुनाव आयोग में अपनी अनिवार्य घोषणा में पिछले कुछ वर्षों से भाजपा अपने कोषाध्यक्ष के नाम का खुलासा नहीं कर रही है. उदाहरण के लिए, 2016-17 के लिए पार्टी द्वारा जमा किए गये रिटर्न में भी पार्टी के कोषाध्यक्ष के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है और कोषाध्यक्ष के नाम और दस्तखत की जगह वहां एक एक अस्पष्ट दस्तखत है, जो ऐसा लगता है ‘कोषाध्यक्ष के बदले’ (फॉर ट्रेजरर) किया गया है.
पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट भी इस गोपनीयता पर से पर्दा उठाने में मदद नहीं करती. साइट के ‘नेशनल ट्रेजरर ऑफ बीजेपी’ शीर्षक पेज को खाली छोड़ दिया गया है.
पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने द वायर को बताया कि चुनाव आयोग में भाजपा द्वारा की गई आय की घोषणा गलत है और चुनाव आयोग को इस घोषणा को दब्बू की तरह स्वीकार करने की जगह, पार्टी को एक नोटिस जारी करना चाहिए था और उससे पार्टी के कोषाध्यक्ष की जानकारी देने के लिए कहना चाहिए था.
एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि चुनाव आयोग द्वारा 2014 में वित्तीय पारदर्शिता के लिए अपनाया गया दिशा-निर्देश साफतौर यह व्यवस्था करता है कि राजनीतिक दल के संचित खाते की देखभाल के लिए ‘कोषाध्यक्ष या वैसा व्यक्ति जिसे दल द्वारा अधिकृत किया गया हो’ अनिवार्य है.
यह पूछे जाने पर कि आखिर आयोग ने पार्टी को कोषाध्यक्ष या ‘अधिकृत’ व्यक्ति का नाम बताने के लिए दृढ़ता के साथ क्यों नहीं कहा, उन्होंने कहा कि वित्तीय रिटर्नों की जांच ‘निचले स्तर’ पर होती है और इस मसले को कभी ऊपर तक संदर्भित नहीं किया गया.
इसे एक पहेली ही कहा जा सकता है कि 2014 में भाजपा की जीत और नरेंद्र मोदी सरकार के गठन से पहले पार्टी के घोषित कोषाध्यक्ष पीयूष गोयल थे, जो इस वक्त केंद्रीय वित्त और रेलवे मंत्री हैं. जब अमित शाह ने अगस्त, 2014 में पार्टी के पदाधिकारियों का ऐलान किया, उस वक्त पार्टी के कोषाध्यक्ष का नाम उसमें शामिल नहीं था.
मीडिया में इस बात को लेकर कयास लगाया गया था कि मोदी के विश्वासपात्र परिंदु भगत, जिन्हें ‘काकाजी’ के नाम से जाना जाता है, को यह जिम्मेदारी मिलेगी. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. तो क्या पीयूष गोयल सरकार में रहते हुए भी अनाधिकारिक तौर पर पार्टी के कोषाध्यक्ष बने हुए हैं, जो सीधे तौर पर हितों के टकराव का मामला बनता है? अगर उन्होंने खुद को इस जिम्मेदारी से पूर्णतः मुक्त कर लिया है, तो आखिर पार्टी का कोषाध्यक्ष कौन है? भाजपा ने इस विषय पर चुप्पी साध रखी है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी ने द वायर को बताया कि ऐसे खातों पर दस्तखत करने वाले जिम्मेदार अधिकारी का नाम और दस्तखत स्पष्ट होना चाहिए और अगर ऐसा नहीं है, तो चुनाव आयोग को उसके बारे में पता लगाना चाहिए.
एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा कि हालांकि, वे भाजपा से संबंधित इस मौजूदा मसले पर टिप्पणी करना नहीं चाहेंगे, क्योंकि उन्होंने वह दस्तावेज नहीं देखा है, लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा, ‘अतीत के मेरे अनुभवों के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि पार्टी ने अपने संविधान में (हिसाब-किताब की घोषणा करने का) दायित्व किस पर डाला है?’
भाजपा के संविधान में पार्टी अध्यक्ष से एक राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष की नियुक्ति करने के लिए कहा गया है. इसमें यह भी कहा गया है कि कोषाध्यक्ष का कर्तव्य पार्टी की कमाई और खर्च का हिसाब रखना और उसका ऑडिट कराना होगा. जहां तक पार्टी के लिए चंदा इकट्ठा करने की बात है, केंद्रीय या राज्य के स्तर पर प्रिंटेड रसीद जारी किए जाएंगे और ‘हर रसीद (पार्टी फंड के) पर संबंधित कोषाध्यक्ष के दस्तखत का चित्र होगा.’
इसलिए यह सवाल पैदा होता है कि 2014 से भाजपा ने चंदे के तौर पर जो सैकड़ों करोड़ रुपये जमा किए हैं, भाजपा द्वारा जारी की गयी उन चंदों की रसीदों पर किसके दस्तखत का चित्र लगाया गया है.
अगर गोयल का दूर-दूर से भी कोई रिश्ता पार्टी के खाते से है, तो यह मोदी सरकार के शीर्षस्थ स्तर पर हितों के टकराव का एक और मामला होगा. गोयल, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु, नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा और विदेश राज्यमंत्री एम.जे.अकबर, ये सब आज भी इंडिया फाउंडेशन के निदेशक बने हुए हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल और भाजपा महासचिव राम माधव द्वारा संचालित एक थिंक-टैंक है. इसके कार्यक्रमों के प्रायोजकों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों समेत कई कॉरपोरेट शामिल हैं.
सामान्य तौर पर राजनीतिक पार्टियां अपने कोषाध्यक्षों को हितों के टकराव के आरोपों से दूर रखने के लिए सरकारी पदों से दूर रखने की नीति अपनाती हैं, क्योंकि पार्टी के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए उन्हें कई तरह की तिकड़मबाजी करनी पड़ती है.
मोतीलाल बोरा कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष हैं और वे ही इसके खातों पर दस्तखत करते हैं. वे कभी भी मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में मंत्री नहीं थे.
भाजपा के कोषाध्यक्ष को लेकर गोपनीयता का यह खेल जुलाई, 2014 में अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद शुरू हुआ, जब उन्होंने राजनाथ सिंह की जगह ली. जनवरी, 2016 में शाह तीन साल के कार्यकाल के लिए निर्विरोध ढंग से पार्टी अध्यक्ष चुने गये. पार्टी के संविधान के मुताबिक, वे लगातार दूसरे तीन वर्ष के कार्यकाल के हकदार हैं.
द वायर को विश्वस्त सूत्रों से यह जानकारी मिली है कि आरएसएस के भीतर इस बात को लेकर एकराय है कि शाह को या तो दूसरा कार्यकाल दिया जाएगा या आम चुनाव तक उनके कार्यकाल को विस्तार दिया जाएगा. ऐसा लगता है कि मोदी ने कहा है कि भाजपा के सर्वशक्तिमान अध्यक्ष के तौर पर शाह का कार्यकाल प्रधानमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल तक चलेगा.
कयासों का बाजार इस संभावना को लेकर गर्म है कि शायद शाह ने, जिन्हें गोयल के साथ पार्टी के लिए मुख्य चंदा इकट्ठा करने वाला माना जाता है, भाजपा के कोषाध्यक्ष का भी जिम्मा संभाल लिया है. एक पारदर्शी राजनीतिक पार्टी में, जिसका दावा भाजपा कभी गर्व के साथ किया करती थी, कोषाध्यक्ष की पहचान जैसी जानकारियां सार्वजनिक तौर पर मौजूद रहनी चाहिए. लेकिन ऐसा लगता है कि ‘मोदीमय भाजपा’- जिसमें मोदी और शाह की मर्जी के बगैर एक भी पत्ता नहीं हिलता, पार्टी के बाहर या भीतर किसी भी दूसरे को, यहां तक कि चुनाव आयोग को भी इन सवालों को पूछने की हिम्मत नहीं है.
एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने द वायर को बताया, ‘हम अपना अध्यक्ष चुनने में गर्व महसूस किया करते थे, फिर भी शाह को मनोनीत किया गया. मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं और ईमानदारी से कहूं, तो मैं आपको यह नहीं बता सकता कि भाजपा का कोषाध्यक्ष कौन है? गोयल की जगह किसने ली या वे अभी भी वह जिम्मा संभाल रहे हैं, यह एक रहस्य है. लेकिन कॉरपोरेट के भीतर अपने संपर्कों से मुझे इस बात की जानकारी है कि पार्टी के लिए चंदा जुटाने का काम मुख्य तौर पर ये दोनों ही कर रहे हैं.’
चुनाव आयोग में की गई घोषणा और पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर छूटी हुई खाली जगह यह संकेत देती है कि मोदी-शाह की जोड़ी को पार्टी के रिकॉर्डों में अनियमितता की जानकारी है.
संविधान विशेषज्ञों का कहना है चुनाव आयोग को, जिसकी निष्पक्षता मोदी द्वारा अचल कुमार जोती के मनोनयन के बाद सवालों के घेरे मे है, भाजपा से मुश्किल सवाल पूछने से गुरेज नहीं करना चाहिए.
जोती द्वारा अपने कार्यकाल के आखिरी दिन आम आदमी पार्टी के विधायकों को अयोग्य घोषित करने के फैसले, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए निरस्त कर दिया और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर बार-बार उठनेवाले विवाद ने चुनाव आयोग की छवि को नुकसान पहुंचाया है. भाजपा से उसके कोषाध्यक्ष की जानकारी न मांग कर चुनाव आयोग मोदी सरकार के सामने घुटने टेकने का एक और उदाहरण पेश करेगा.
(स्वाति चतुर्वेदी वरिष्ठ पत्रकार हैं.)
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