दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि साहित्य अकादमी के संविधान में एक बार दिया सम्मान वापस लौटाने का प्रावधान ही नहीं है.
अदालत ने सोमवार को कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लोग यह सम्मान लौटाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि उन्हें काफी सोच विचार के बाद यह प्रदान किया जाता है.
मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने कहा कि अकादमी के कार्यकारी मंडल ने 2015 में कहा था कि एक बार दे दिया गया पुरस्कार वापस नहीं लिया जा सकता इसलिए, पुरस्कार या सम्मान वापस देने के ख़िलाफ़ दिशा-निर्देश बनाने की कोई ज़रूरत नहीं है.
वर्ष 2015 में बहुत से लेखकों, कवियों और कलाकारों ने एमएम कुलबर्गी की हत्या पर अकादमी की चुप्पी और बीफ खाने की अफवाहों को लेकर दादरी में एक व्यक्ति की हत्या किए जाने की पृष्ठभूमि में देश में असहिष्णुता और सांप्रदायिकता के माहौल के ख़िलाफ़ अपने पुरस्कार लौटा दिए थे.
सम्मान लौटाए जाने के विरोध में दाखिल की गई एक जनहित याचिका में उच्च न्यायालय से मांग की गई थी कि वह अवॉर्ड लौटाने की स्थिति में उसके साथ मिली पुरस्कार राशि भी लौटाने के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करे.
एक धार्मिक संगठन और एक अधिवक्ता द्वारा दाखिल की गई इस याचिका में राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों की तरह ही साहित्य अकादमी पुरस्कार की गरिमा बनाए रखने के नियम भी तय करने की मांग की गई थी. इसमें ऐसे सम्मान लौटाने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी दंडात्मक कार्रवाई करने की भी मांग की गई थी.
अदालत ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि साहित्य अकादमी के संविधान में एक बार दिया सम्मान वापस लौटाने का प्रावधान ही नहीं है इसलिए इस याचिका पर आगे विचार की कोई गुंजाइश नहीं है.