ग्राउंड रिपोर्ट: कोचांग गांव का आंखों देखा हाल, जहां पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ गैंगरेप हुआ

झारखंड के खूंटी ज़िले के कोचांग गांव में पिछले दिनों मानव तस्करी के ख़िलाफ़ जागरूकता फैलाने गईं पांच युवतियों को अगवाकर गैंगरेप ​किया गया था.

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झारखंड के खूंटी ज़िले के कोचांग गांव में पिछले दिनों मानव तस्करी के ख़िलाफ़ जागरूकता फैलाने गईं पांच युवतियों को अगवाकर गैंगरेप किया गया था.

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24 जून को कोचांग में ग्राम सभा की बैठक में शामिल लोग. (फोटो: नीरज सिन्हा/द वायर)

आप बंदगांव होकर यहां पहुंचे या फिर अड़की-बीरबांकी के रास्ते. सुखलाल मुंडा के इस सवाल का मेरे पास सीधा जवाब थाः अड़की-बीरबांकी के रास्ते. तब आदिवासी बुजुर्ग का कहना था कि कितनी तकलीफें उठानी पड़ी होगी उबड़-खाबड़, पथरीली टूटी सड़कों पर चलते हुए. फिर पहाड़ों की तराई में बसे आदिवासी गांवों की त्रासद जिंदगी देखकर भी जेहन में कई सवाल उठते रहे होंगे. कुछ पलों के लिए मैं अवाक सा था और वाकई आंखों के सामने तेजी से वैसी ही तस्वीरें घूम रही थी, जिसका जिक्र सुखलाल मुंडा ने किया था.

सुखलाल मुंडा कोचांग के रहने वाले हैं. दो महिलाओं समेत पांच युवतियों के साथ गैंगरेप की घटना की वजह से आदिवासी बहुल खूंटी जिले का यह दुर्गम गांव सुर्खियों में है.

19 जून को मानव तस्करी के खिलाफ नुक्कड़ नाटक करने कोचांग गई महिलाओं-लड़कियों का अगवा कर गैंगरेप किया गया था. जबकि इस टीम में शामिल पुरुष सदस्यों के साथ अपराधियों ने बदसलूकी की थी.

कोचांग गांव खूंटी के अड़की प्रखंड का हिस्सा है. खूंटी से बंदगांव ( चाईबासा जिला) होकर इस गांव की दूरी 45 किलोमीटर तथा अड़की-बीरबांकी के रास्ते 55 किलोमीटर है.

55 किलोमीटर पहुंचने में दो घंटे से ज्यादा वक्त लगते हैं. कोचांग में 195 आदिवासी परिवार रहते हैं. इस गांव में भी पत्थलगड़ी की गई है.

मुलाकात के साथ ही सुखलाल मुंडा का मुझसे किए गए सवालों का मकसद साफ था कि पहाड़ों की तराई में बसे इस इलाके की बड़ी आबादी आखिरी कतार में शामिल है और विकास के नाम पर तमाम योजनाएं यहां जमीन पर उतरने से पहले कहीं ठहर सी जाती है.

वो नाराजगी के साथ कहते है, ‘तभी आदिवासी ग्राम सभा की ताकत और अपना शासन बहाल करना चाहते हैं. इसमें गलत क्या है.’

खौफ का साया

19 जून को हुई गैंगरेप की घटना के बाद के हालात के बारे में पूछे जाने पर सुखलाल मुंडा कहते है, ‘ये सवाल कहां ठहरता है. रास्ते में आपको सन्नाटा भी दिखा होगा. उन्मुक्त जिंदगी जीने वाले आदिवासियों की आंखों में खौफ, चेहरे पर उदासी और खमोश जुबां ही तो बहुत कुछ बयां कर जाती है.’

जाहिर है कि इसी वजह से रास्ते में बहुत लोग इस घटना को लेकर कुछ भी बताने से इनकार करते रहे. जबकि बहुतों को झकझोरने वाली किसी घटना की जानकारी नहीं थी. हाल के दिनों में बाहर से आती गाड़ियों को देखकर वे समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इस इलाके में क्या हुआ है.

कोचांग गांव से कुछ दूर जंगलों के बीच चर्च के गेट पर ताले लटके दिखे जबकि मिशन स्कूल में भी सन्नाटा पसरा था.

सुखलाल मुंडा बताते हैं कि अपनी जिंदगी के 70 साल में इस तरह की घटना और लोगों को परेशान होते कभी नहीं देखा. आदिवासी लोग बहुत विचलित हैं. सच पूछिए तो गांव की बदनामी से सभी उबरना चाहते हैं.

उन्होंने कोई पढ़ाई नहीं की है, लेकिन उनकी बातें और समझ को आप आसानी से काट नहीं कर सकते.

गांव के ही एक बुजुर्ग पंडा मुंडा हर आते-जाते अनजान लोगों को देखकर परेशान हैं. स्थानीय मुंडारी भाषा में वे कहते हैं कि आदिवासियों के रोजमर्रा की जिंदगी को यह घटना बहुत प्रभावित कर रही है. ना जाने आगे क्या होगा.

गैंगरेप में पत्थलगड़ी समर्थकों के हाथ होने के लगते आरोपों पर सुखलाल मुंडा तंज कसते हुए कहते हैं कि ये आरोप लगाना तो बहुत आसान है और अब जो परिस्थितियां पैदा हो रही हैं उसमें यही देखा जा रहा है कि कुछ भी उल्टा-सीधा हो, तो उसके लिए पत्थलगड़ी समर्थकों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है.

पत्थलगड़ी करने वालों को विकास विरोधी कहा जाता है जबकि हमने गांव में स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल के लिए अपनी जमीन सरकार को दी है.

सुखलाल मुंडा से बातचीत के दरम्यान कई लोग जुटते हैं. गांव के लोग अखबारों में छपने वाली कई खबरों को एकतरफा बताते हैं.

बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते लोग

एक आदिवासी महिला तस्वीर लेने से मना करती हैं और नाम भी जाहिर नहीं करती. लेकिन वे इन बातों पर जोर देती है कि कोचांग तथा इस इलाके के आदिवासियों की जिंदगी कितनी कठिन है, कैसे वे बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते हैं, इस पर कभी किसी ने नजरें नहीं डाली. लेकिन पिछले कुछ दिनों से गैंगरेप को लेकर तरह-तरह के सवाल पूछे जाते रहे हैं.

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पहाड़ की तराई में स्थित इसी डाड़ी की पानी से लोग प्यास बुझाते हैं. (फोटो: नीरज सिन्हा/द वायर)

इस बीच गांव के काली मुंडा, राजू सोय, बिरसा सोय समेत कई लोग हमें कुछ दूर पर एक डाड़ी (प्रकृतिक स्त्रोत से गड्ढे में जमा होने वाला पानी) दिखाने ले जाते हैं. ग्रामीण बताने लगे कि गांव के लगभग 90 परिवार इसी डाड़ी की पानी से प्यास बुझाते हैं. सरकारी योजना के तहत सोलर आधारित एक पानी की टंकी बनाई गई थी जो खराब पड़ी है.

डेढ़ साल पहले बिजली के खंभे और तार खींचे गए लेकिन अब तक लोगों को बिजली नसीब नहीं हुई. सिंचाई, स्वास्थ्य सुविधा और रोजगार इस इलाके की बड़ी समस्या है.

एक आदिवासी युवा राजू सोय हमें पेड़ों पर लदे कटहल के बड़े फलों को दिखाते हुए कहते हैं कि बरसात से चार महीने तक यही हमारे लिए पेट भरने का जरिया होगा. दरअसल यह पकेगा, तो कोवा खाएंगे तथा फिर उसके बीज को उबाल कर पेट भरेंगे.

तिड़ू पर आरोप और उठते सवाल

गौरतलब है कि कोचांग गैंगरेप को लेकर पुलिस ने स्थानीय मिशन स्कूल के फादर अल्फांसो आइंद समेत तीन लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा है.

फादर पर आरोप है कि उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस को नहीं दी जबकि उनके स्कूल परिसर से ही महिलाओं और युवतियों का हथियार के बल पर अगवा कर ले जाया गया था.

गांव के युवाओं को भी इससे गुरेज है कि गैंगरेप में पत्थलगड़ी समर्थकों का नाम लाया जा रहा है. वे कहते हैं कि इससे तो ग्रामसभा पर सवाल उठेंगे और यह ठीक नहीं है.

पिछले दिनों गिरफ्तारी और पुलिस की जारी कार्रवाई के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए झारखंड पुलिस के अपर महानिदेशक आरके मल्लिक ने बताया था कि इस घटना को अंजाम देने में पत्थलगड़ी समर्थकों का हाथ है.

पुलिस अधिकारी का यह भी कहना था कि गिरफ्तार किए गए दोनों अपराधियों का संपर्क पत्थलगड़ी करने वाले तथा नक्सलियों से भी हैं.

इनके अलावा इस कांड को लेकर दो प्राथमिकी दर्ज की गई है जिसमें पीड़ित लोगों ने इसका उल्लेख किया है कि जब उन्हें अगवा कर ले जाया जा रहा था , तो अपराधी उनसे यह कह रहे थे कि पुलिस के एजेंट हो तथा पत्थलगड़ी का विरोध करने के साथ दीकू (बाहरी) भाषा वालों की मदद करते हो. इसलिए सबक सिखाना जरूरी था.

इस बीच गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों के बयान के आधार पर पुलिस ने जॉन जुनास तिड़ू को इस कांड का सूत्रधार बताया है. पत्थलगड़ी को लेकर भी तिड़ू के खिलाफ कई मुकदमे भी दर्ज हैं.

आदिवासी युवा तिड़ू कोचांग से सटे कुरंगा पंचायत के रहने वाले हैं. और इस गांव में भी ग्राम प्रधान के घर के ठीक सामने पत्थलगड़ी की गई है. कोचांग, कुरांग समेत आसपास के गावों के कई ग्रामीण यह भी बता रहे थे कि पुलिस छानबीन के लिहाज से ग्रामसभा की बैठकों में शामिल हो तो अच्छा होता. इस बीच 24 जून को वे कुचांग गांव में ग्रामीणों की बैठक में शामिल हुए जॉन जिसान तिड़ू ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया.

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जॉन जिसान तिड़ू, जिसे पुलिस गैंगरेप का सूत्रधार बता रही है. (फोटो: नीरज सिन्हा/द वायर)

जॉन का कहना है कि घटना के दिन 11 बजे वो चाईबासा के लिए निकले थे. इस तरह की हरकत या अपराध वे कतई नहीं कर सकते. तिड़ू कहते है, ‘हम लोग सीधे आदिवासी हैं और अपने हाथों में स्वशासन लेने तथा ग्रामसभा को मजबूत करने की मुहिम में जुटे हैं. हमारी ग्रामसभा तो खुद गैंगरेप के आरोपियों की तलाश मे जुटी है.’

पत्थलगड़ी के एक और समर्थक बलराम समद बेहद मुखर दिखे. उनका जोर इस बात पर था कि जॉन जिसान तिड़ू आदिवासी विषयों के जानकार और लिखा-पढ़ी करने में तेज तर्रार हैं, इसलिए पुलिस ने साजिश के तहत पहले पत्थलगड़ी के कई मामले लादे और अब गैंगरेप में उसे प्रमुख सूत्रधार बताया जा रहा है. यह आदिवासियों के स्वशासन की राह में बढ़ने की मुहिम को कमजोर करने की कार्रवाई है.

बलराम बताने लगे कि गैंगरेप की एक पीड़िता कुरंगा की है. और जॉन जिसान तिड़ू की रिश्ते में वो बहू लगती है. इस हालत में जॉन कैसे इस अपराध का सूत्रधार हो गया. कोचांग गांव में भी उस महिला की रिश्तेदारी है. लेकिन गांव के लोगों को उसने कोई जानकारी नहीं दी.

आदिवासी युवा इस बात पर भी सख्त नाराजगी जाहिर करते हैं कि मीडिया और प्रशासन की नजरों में पत्थलगड़ी वालों को देशद्रोही ठहराया जाता रहा है. जबकि वे लोग अपनी जमीन पर पत्थलगड़ी कर रहे हैं. पत्थलगड़ी समर्थक चाहते हैं कि ग्रामसभा के हाथों में स्वशासन हो.

लेकिन ग्रामसभा की अहमयित तो है ही और आपलोग स्वशासन को लेकर कई किस्म के फरमान जारी करने लगे हैं, सिस्टम को चुनौतियां दे रहे हैं, अपना बैंक, स्कूल चलाना चाहते हैं, जब ये सवाल पूछा गया तो बलराम का कहना था, ‘पांचवी अनुसूची क्षेत्र में सिस्टम का दखल नहीं होना चाहिए. सरकार ट्राइबल सब प्लान का पैसा सीधे ग्रामसभा को दे, विकास की योजना ग्रामसभा तय करेगी तथा सरकारी अधिकारियों पर हमारा आदेश होगा क्योंकि आदिवासी ही मालिक हैं.’

बलराम आगे कहते हैं, ‘सत्तर सालों में आदिवासियों की क्या हालत है यह तस्वीर सामने है. अब इस हालात को बदलने के लिए आदिवासी जग रहे हैं एकजुट हो रहे हैं, तो उन्हें निशाने पर लिया जा रहा है.’

ग्रामसभा की बैठकें जारी

कुंरगा होकर कोचांग पहुंचने के दरम्यान ये जानकारी मिलती रही है कि गैंगरेप की घटना के बाद इस इलाके में लगातार ग्राम सभा की बैठकें हो रही है जिसमें बदले हालात पर आदिवासी चर्चा कर रहे हैं.

इसी सिलसिले में 25 जून को कोचांग में भी ग्राम सभा की बैठक हुई थी. जबकि इससे ठीक एक दिन पहले कुरंगा में. कोचांग के ग्राम प्रधान सुखलाल मुंडा बताते हैं कि घटना की जानकारी गांव वालों को भी बाद में मिली. क्योंकि स्कूल के फादर या एनजीओ की लड़कियों ने कुछ भी बताया नहीं था.

मौके पर अगर जानकारी दी जाती, तो गांव के लोग अपराधियों की घेराबंदी में सफल हो सकते थे. कोचांग की ग्रामसभा मे करीब तीन सौ लोग शामिल थे. गांव वालों ने इस घटना की कड़ी निंदा का प्रस्ताव पारित करते हुए एक पत्र तैयार कर जिले के अधिकारियों को भेजा है. प्रशासन को यह भी भरोसा दिलाया है कि अपराधियों की धरपकड़ में वे लोग सहयोग करना चाहते हैं.

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कोचांग में ग्राम सभा की बैठक में शामिल लोग. (फोटो: नीरज सिन्हा/द वायर)

ग्रामप्रधान कहते हैं कि जिन अपराधियों ने इस घटना को अंजाम दिया है वो इस इलाके के नहीं हैं. गांव वाले ये भी चाहते हैं कि इस मामले में पारदर्शी ढंग से कार्रवाई हो. तभी तो ग्रामसभा की बैठक के बाद अपराधियों की तलाश में गांव के लोग जंगलों- पहाड़ों की छान मार रहे हैं.

कुरंगा के ग्राम प्रधान सागर मुंडा भी इस घटना से विचलित दिखे. वे तेज बुखार से तप रहे थे. वे इतना भर कहते हुए चुप हो जाते हैं कि बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पत्थलगड़ी को लेकर उनके खिलाफ भी मुकदमे दर्ज हैं.

वीभत्स घटना

हालांकि गैंगरेप को लेकर दर्ज प्राथमिकी पर गौर करें, तो जिन खौफनाक हालात से महिलाएं और युवतियां गुजरती रहीं वह रोंगटे खड़ा करने वाला है. नुक्कड़ नाटक में शामिल पुरुष सदस्यों को पेशाब पीने तक मजबूर किया गया, जबकि महिलाओं और लड़कियों से बेहद ही अमानवीय सलूक किया गया. उनकी तस्वीरें उतारी जाती रही तथा वीडियो भी बनाया गया.

प्राथमिकी के अनुसार पीड़िताओं ने दावा किया है कि स्कूल के फादर ने अपराधियों के साथ षड़यंत्र रचकर इस खौफनाक घटना को अंजाम दिलाया. फिलहाल सभी पीड़िताओं को पुलिस की सुरक्षा में रखा गया है और अनुसंधान के लिहाज से उनसे मिलने की इजाजत किसी को नहीं है.

इधर पीड़िता और गिरफ्तार किए गए अपराधियों के बयानों के आधार पर पुलिस बाकी अपराधियों को पकड़ने में जुटी है. हालांकि ग्रामीणों का पक्ष है कि उनसे जानकारी लेने पुलिस कभी गांवों में नहीं पहुंची है. जबकि पुलिस का कहना है कि कार्रवाई रणनीति के तहत की जा रही है.

दक्षिणी छोटानागपुर प्रक्षेत्र के डीआइजी एवी होमकर खुद खूंटी में कैंप कर रहे हैं. खूंटी में डीएसपी स्तर के पांच पुलिस अधिकारियों को प्रतिनियुक्त किया गया है. साथ ही बड़ी संख्या में पुलिस बलों की तैनाती की गई है.

पत्थलगड़ी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कुछ खास लोगों के अलावा गैंगरेप से जुड़े अपराधियों/आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए नौ अलग-अलग टीमें बनाई गई हैं.

डीआइजी होमकर का कहना है कि जल्दी ही आरोपियों की गिरफ्तारी होगी. साक्ष्यों तथा तथ्यों के आधार पर ही पुलिस कार्रवाई करेगी. किसी को फसाने या परेशान करने की मंशा कतई नहीं है . साथ ही इस मामले में स्पीडी ट्रायल कराने की कोशिश की जा रही है.

पुलिस का कहना है कि बलात्कार के अन्य तीन आरोपियों की भी पहचान कर ली गई है. एक की पुलिस ने तस्वीर भी जारी की है. तथा सूचना देने वाले को 50 हजार रुपये इनाम देने की घोषणा की गई है.

झारखंड के खूंटी ज़िले के कोचांग गांव में स्थित मिशन स्कूल जहां युवतियां नुक्कड़ नाटक करने गई थीं.
झारखंड के खूंटी ज़िले के कोचांग गांव में स्थित मिशन स्कूल जहां युवतियां नुक्कड़ नाटक करने गई थीं.

गांवों के लोग बताते हैं कि गैंगरेप को लेकर जिस युवक की पुलिस ने तस्वीर जारी की है वो एक नक्सली संगठन का एरिया कमांडर बाजी समद उर्फ टकला है. ग्रामीण इस बात पर भी जोर देते रहे कि गैगरेप के आरोप में गिरफ्तार दोनों युवक इस इलाके से बाहर के हैं.

इस बीच नक्सली संगठन पीएलएफआइ के छोटानागपुर जोन की विजेन कमेटी ने अखबारों को जारी बयान में कहा है कि गैंगरेप में संगठन का कोई हाथ नहीं है. फिलहाल पुलिस ने जिन चेहरे को चिह्नित किया है, उन्हें संगठन से बाहर कर दिया गया है.

इधर गैंगरेप की घटना के विरोध में सामाजिक तथा महिला संगठनों का प्रदर्शन जारी है. साथ ही इस मुद्दे पर सियासत भी गर्माने लगी है. दरअसल फादर की गिरफ्तारी के बाद भाजपा चर्च तथा ईसाई मिशनरियों पर सीधे तौर पर निशाने साध रही है.

जबकि 26 जून को विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों तथा चर्च के लोगों ने राज्य के मुख्य सचिव से मिलकर अदालत की देखरेख में सीबीआई से जांच कराने की मांग रखी है. पूर्व मंत्री बंधि तिर्की का कहना है कि आदिवासियों और ईसाइयों के बीच दूरी बढ़ाने की सरकार कोशिशें कर रही है. तथा जानबूझ कर आदिवासियों को परेशान किया जा रहा है.

आदिवासी विषयों के जानकार बता रहे हैं कि पहली दफा झारखंड में अजीबोगरीब हालात पैदा होते दिख रहे हैं, जो खतरनाक मोड़ पर जा सकता है.

सरकार और आदिवासी अब आमने-सामने

वैसे भी पत्थलगड़ी आंदोलन को हवा देने, सरकार विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और देशद्रोह के मामले में अब तक दर्जन भर लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है.

कई महीनों से कुछ खास गांवों और सरकारी तंत्र के बीच दूरियां बढ़ने के संकेत भी साफ दिखाई पड़ रहे हैं. इलाके में तनाव है तथा बाहरियों के लिए आना-जाना भी बहुत आसान नहीं होता.

गांवों के दौरे के क्रम में ये संकेत मिलते रहे कि पुलिस के खिलाफ आदिवासियों में ज्यादा गुस्सा है. आदावासियों के मन में यह घर करता जा रहा है सरकार उनके खिलाफ दमनात्मक कदम उठा रही है.

हालांकि सरकार आदिवासियों के विकास की प्रतिबद्धता जताती रही है और हर मौके पर यह कहती रही है कि पत्थलगड़ी आंदोलन के पीछे देशद्रोही ताकतों का हाथ है जिसे सरकार कुचल कर रख देगी.

इस बीच 26 जून को पुलिस ने उदबुरू गांव में पत्थलगड़ी आंदोलन के सबसे बड़े अगुवा युसूफ पूर्ति के घर की कुर्की की. युसूफ के खिलाफ आधे दर्जन भर मामले दर्ज हैं और पुलिस उसे गिरफ्तार करने को कोशिशों में जुटी है. इसी दिन पुलिस जॉन जिसान तिड़ू को भी गिरफ्तार करने में भी जुटी है.

पुलिस की इस कार्रवाई से पहाड़ों के गांवों में बेचैनी है. मंगलवार को ही पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत घाघरा में पत्थलगड़ी किया गया. यहां पुलिस ने ग्रामीणों को घेर लिया तथा पीछे हटने को कहा. ग्रामीण अड़े रहे, तो पुलिस ने लाठी चार्ज किया.

वहां से लौटते ग्रामीणों ने अनिगड़ा गांव स्थित भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा खूंटी के सांसद करिया मुंडा के घर में तैनात पुलिस के तीन जवानों को हथियार के साथ अगवा कर लिया और घाघरा गांव ले गए.

पुलिस के तीन जवानों का अगवा किए जाने के बाद पुलिस ने रात भर घाघरा गांव को घेरे रखा. बुधवार यानी 27 जून को हिंसक झड़पें हुई. लाठी चार्ज तथा आंसू गैस के गोले छोड़े जाने के बाद मची भगदड़ में एक आदिवासी की मौत और कई गांवों के घरों में तलाशी के बाद तनावपूर्ण माहौल बना है.

अब तक अगवा जवानों को मुक्त नहीं कराया जा सका है. कई आला अधिकारी खूंटी में कैंप कर रहे हैं.

बदली परिस्थितियों के बीच सियासत भी गर्माने लगी है. विपक्ष दलों के निशाने पर सरकार है, तो राज्य के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने एक बार फिर कहा है कि राष्ट्र विरोधी ताकतें खूंटी और कुछ इलाके को अशांत करने में जुटी है. इसे सफल नहीं होने देंगे. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि विकास के जरिए सरकार साजिशों को नाकाम करेगी.

जबकि जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष तथा नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन का कहना है कि झारखंड बेहद संकट के दौर से गुजर रहा है. सरकार आदिवासियों की जान लेने पर तुली है. पांचवी अनुसूची क्षेत्र में सरकार और उनके नुमाइंदों का आदिवासियों के साथ संवाद समाप्त हो गया है.

आदिवासी विषयों के जानकार तथा कई संगठनों से जुड़े लक्ष्मी नारायण मुंडा कहते हैं कि खूंटी के जरिए यह तस्वीर उभरी है कि हक-अधिकार और जमीन की सुरक्षा के लिए मुखर होते आदिवासियों के खिलाफ सत्ता और तंत्र दमनकारी रुख अख्तियार कर रहा है. बिना शर्त आदिवासियों से बातचीत की तत्काल पहल की जानी चाहिए.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं.)