नोटबंदी के एक साल बाद स्विस बैंक में जमा भारतीयों का पैसा 50 प्रतिशत बढ़ गया है. ज़रूरी नहीं कि स्विस बैंक में रखा हर पैसा काला ही हो लेकिन सरकार को बताना चाहिए कि यह किसका और कैसा पैसा है?
स्विस नेशनल बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया है कि 2017 में उसके यहां जमा भारतीयों का पैसा 50 प्रतिशत बढ़ गया है. नोटबंदी के एक साल बाद यह कमाल हुआ है. ज़रूरी नहीं कि स्विस बैंक में रखा हर पैसा काला ही हो लेकिन काला धन नहीं होगा, यह क्लीन चिट तो मोदी सरकार ही दे सकती है.
मोदी सरकार को यह समझदारी की बात तब नहीं सूझी जब ख़ुद नरेंद्र मोदी अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया करते थे कि स्विस बैंक में जमा काला धन को वापस लाने के लिए वोट करें. ऑनलाइन वोटिंग की बात करते थे.
सरकार को बताना चाहिए कि यह किसका और कैसा पैसा है? काला धन नहीं तो क्या लीगल तरीके से भी भारतीय अमीर अपना पैसा अब भारतीय बैंकों में नहीं रख रहे हैं? क्या उनका भरोसा कमज़ोर हो रहा है?
2015 में सरकार ने लोकसभा में एक सख्त कानून पास किया था. जिसके तहत बिना जानकारी के बाहर पैसा रखना मुश्किल बताया गया था. जुर्माना के साथ-साथ छह महीने से लेकर सात साल के जेल की सज़ा का प्रावधान था. वित्त मंत्री को रिपोर्ट देना चाहिए कि इस कानून के बनने के बाद क्या प्रगति आई या फिर इस कानून को कागज़ पर बोझ बढ़ाने के लिए बनाया गया था.
इस वक्त दो-दो वित्त मंत्री हैं. दोनों में से किसी को भारतीय रुपये के लुढ़कने पर लिखना चाहिए और बताना चाहिए कि 2013 में संसद में जो उन्होंने भाषण दिया था, उससे अलग क्यों बात कर रहे हैं और उनका जवाब मनमोहन सिंह के जवाब से क्यों अलग है.
एक डॉलर की कीमत 69 रुपये पार कर गई और इसके 71 रुपये तक जाने की बात हो रही है. जबकि मोदी के आने से 40 रुपये तक ले आने का ख़्वाब दिखाया जा रहा था.
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध को लेकर छप रही ख़बरों पर नज़र रखिए. क्या भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए स्वतंत्र राह पर चलेगा या अमेेरिका जिधर हांकेगा उधर जाएगा. टाइम्स आफ इंडिया की हेडिंग है कि निक्की हेले सख़्त ज़बान में बोल रही हैं कि ईरान से आयात बंद करना पड़ेगा. निक्की हेले संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत हैं और भारत की यात्रा पर हैं.
अमेरिका चाहता है कि भारत ईरान से तेल का आयात शून्य पर लाए. ओबामा के कार्यकाल में जब ईरान पर प्रतिबंध लगा था तब भारत छह महीने के भीतर 20 प्रतिशत आयात कम कर रहा था मगर अब ट्रंप चाहते हैं कि एक ही बार में पूरा बंद कर दिया जाए.
इंडियन एक्सप्रेस में तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का बयान छपा है. आप इस बयान पर ग़ौर कीजिए जिसका मैंने एक्सप्रेस से लेकर अनुवाद किया है. ऐसा लगता है कि तेल मंत्री ही विदेश मंत्री हैं और इन्होंने ट्रंप को दो टूक जवाब दे दिया है. अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री को औपचारिक रूप दे देना चाहिए ताकि जनता को पता चले कि ईरान प्रतिबंध को लेकर भारत की क्या नीति है.
‘पिछले दो साल में भारत की स्थिति इतनी मज़बूत हो चुकी है कि कोई भी तेल उत्पादक देश हमारी ज़रूरतों और उम्मीदों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है. मेरे लिए मेरा हित ही सर्वोपरि है और मैं जहां से चाहूंगा वहीं से भू-राजनीतिक स्थिति और अपनी ज़रूरतों के हिसाब से कच्चा तेल ख़रीदूंगा. हम जहां से चाहेंगे वहां से कच्चा तेल ख़रीदेंगे.’
ये बयान है धर्मेंद्र बयान का. आपको हंसी आनी चाहिए. अगर दो साल में भारत की स्थिति मज़बूत हो गई है तो भारत साफ-साफ क्यों नहीं कह देता है.
जबकि इसी एक्सप्रेस में इसी बयान के बगल में एक कालम की खबर लगी है कि तेल रिफाइनरियों को कहा गया है कि वे विकल्प की तलाश शुरू कर दें. उन्हें ये बात तेल मंत्रालय ने ही कही है जिसके मंत्री धर्मेंद्र प्रधान हैं. सूत्रों के हवाले से इस ख़बर में लिखा है कि तैयारी शुरू कर दें क्योंकि हो सकता है कि तेल का आयात बहुत कम किया जाए या फिर एकदम बंद कर दिया जाए.
इसके बरक्स आप मंत्री का बयान देखिए. साफ-साफ कहना चाहिए कि जो अमेरिका कहेगा हम वही करेंगे और हम वही करते रहे हैं. इसमें 56 ईंच की कोई बात ही नहीं है.
आप रुपये की कीमत पर पॉलिटिक्स कर लोगों को मूर्ख बना सकते हैं, बना लिया और बना भी लेंगे लेकिन उसका गिरना थोड़े न रोक सकते हैं. वैसे ही ट्रंप को सीधे-सीधे मना नहीं कर सकते.
ज़रूर भारत ने अमेरिका से आयात की जा रही चीज़ों पर शुल्क बढ़ाया है मगर इस सूची में वो मोटरसाइकिल नहीं है जिस पर आयात शुल्क घटाने की सूचना खुद प्रधानमंत्री ने ट्रंप को दी थी. अब आप पॉलिटिक्स समझ पा रहे हैं, प्रोपेगैंडा देख पा रहे हैं?
बिजनेस स्टैंडर्ड के पेज छह पर निधि वर्मा की ख़बर छपी है कि भारत ईरान से तेल आयात को शून्य करने के लिए तैयार हो गया है. आप ही बताइये क्या इतनी बड़ी ख़बर भीतर के पेज पर होनी चाहिए थी? इस खबर में लिखा है कि तेल मंत्रालय ने रिफाइनरियों को कहा है कि वैकल्पिक इंतज़ाम शुरू कर दें. यह पहला संकेत है कि भारत सरकार अमेरिका की घुड़की पर हरकत करने लगी है.
भारत कह चुका है कि वह किसी देश की तरफ से इकतरफा प्रतिबंध को मान्यता नहीं देता है. वह संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध का ही अनुसरण करता है. लेकिन जब यह कहा है कि तो फिर इस बात को तब क्यों नहीं दोहराया जा रहा है जब निक्की हेली दिल्ली आकर साफ-साफ कह रही हैं कि ईरान से आयात को शून्य करना पड़ेगा.
हिंदी अखबारों में ये सब जानकारी नहीं मिलेगी. मेहनत से आप तक लाता हूं ताकि आप इन्हें पढ़ते हुए देश दुनिया को समझ सकें. ज़रूरी नहीं कि आप भक्त से नो भक्त बन जाएं मगर जान कर भक्त बने रहना अच्छा है, कम से कम अफसोस तो नहीं होगा कि धोखा खा गए.
अब देखिए, मूल सवालों पर चर्चा न हो इसलिए सरकार या भाजपा का कोई न कोई नेता इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ लाता है. वो भी ग़लत सलत. तू-तू, मैं-मैं की पॉलिटिक्स चलाने के लिए. हर दिन आप चैनल खोल कर खुद से देख लें, पता चलेगा कि देश कहां जा रहा है.
जिन नेताओं के पास जनता की समस्या पढ़ने और निराकरण का वक्त नहीं है, वो अचानक ऐसे बयान दे रहे हैं जैसे सुबह-सुबह उठते ही इतिहास की एक किताब ख़त्म कर लेते हैं. उसमें भी गलत बोल देते हैं.
अब देखिए प्रधानमंत्री मगहर गए. कबीर की जयंती मनाने. वहां भाषण क्या दिया. कितना कबीर पर दिया और कितना मायावती अखिलेश पर दिया, इससे आपको पता चलेगा कि उनके लिए कबीर का क्या मतलब है.
जब खुद उनकी पार्टी मज़ार-मंदिर जाने की राहुल गांधी की राजनीति की आलोचना कर चुकी है तो इतनी जल्दी तो नहीं जाना चाहिए था. जब गए तो ग़लत-सलत तो नहीं बोलना था.
मगहर में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ऐसा कहते हैं कि यहीं पर संत कबीर, गुरु नानक देव जी और गुरु गोरखनाथ एक साथ बैठकर आध्यात्मिक चर्चा करते थे.’
जबकि तीनों अलग-अलग सदी में पैदा हुए. कर्नाटक में इसी तरह भगत सिंह को लेकर झूठ बोल आए कि कोई उनसे मिलने नहीं गया.
आप सोचिए, जब प्रधानमंत्री इतना काम करते हैं, तो उनके पास हर दूसरे दिन भाषण देने का वक्त कहां से आता है. आप उनके काम, यात्राओं और भाषण और भाषणों में ग़लत-सलत तथ्यों को ट्रैक कीजिए, आपको दुख होगा कि जिस नेता को जनता इतना प्यार करती है, वो नेता इतना झूठ क्यों बोलता है. क्या मजबूरी है, क्या काम वाकई कुछ नहीं हुआ है.
आज नहीं, कल नहीं, साठ साल बाद ही सही, पूछेंगे तो सही. कबीर, नानक और गोरखनाथ को लेकर ग़लत बोलने की क्या ज़रूरत है. क्या ग़लत और झूठ बोलने से ही जनता बेवकूफ बनती है? क्या भारत को विश्व गुरु बनाने की बात करने वाले मोदी भारत को बेवकूफ बनाना चाहते हैं?
(यह लेख मूलतः रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)