क्यों फसल बीमा के नाम पर बिना अनुमति किसानों के पैसे काट रहे बैंक?

किसानों का कहना है कि बैंक वाले कभी यह देखने नहीं आए कि खेत में कौन सी फसल लगी हुई है. खेत में गन्ना होगा और वे धान का प्रीमियम काट लेते हैं.

किसानों का कहना है कि बैंक वाले कभी यह देखने नहीं आए कि खेत में कौन सी फसल लगी हुई है. खेत में गन्ना होगा और वे धान का प्रीमियम काट लेते हैं.

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फोटो: दीपक वैष्णव

हरियाणा के भिवानी के 46 वर्षीय किसान बंसीलाल के किसान क्रेडिट कार्ड से 2,480 रुपये काट लिए गए.  उन्हें पता नहीं था कि ऐसा क्यों हुआ. जब उन्होंने बैंक से यह पता लगाना चाहा तो बैंक का जवाब था ये पैसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत काटे गए हैं.

जब उन्होंने बैंक से सवाल किया कि मैंने बीमा के लिए आवेदन ही नहीं दिया है तो मेरे अकाउंट से इतने पैसे क्यों काट लिए गए? इस पर बैंक उन्हें कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सका. इसके बाद बंसीलाल ने बैंक पर केस कर दिया है. इसी संबंध में उन्होंने कई आरटीआई लगा रखी है और जवाब की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

ऐसी ही कहानी उत्तर प्रदेश के शामली के भभिसा गांव के किसान नंद राम की है. उन्होंने बताया, ‘पिछले साल जब बैंक से लोन लिया था तो बैंक वालों ने 5,000 रुपये बीमा के काटकर लोन दिया और इसका समुचित कारण भी नहीं बताया.’

वैसे यह केवल बंसीलाल और नंद राम की कहानी नहीं है. पूरे देश में ऐसे कई सारे किसान है जो ये आरोप लगा रहे हैं कि बिना किसी सूचना दिए बैंक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर उनके अकाउंट से पैसे काट रहे हैं.

गौरतलब है कि 13 जनवरी, 2016 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की थी. सरकार ने 2019 तक 50 प्रतिशत किसानों को इस योजना के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा है. मतलब एक साल में दस प्रतिशत किसानों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है.

हालांकि इस योजना के पहले ही 22.33 प्रतिशत किसानों को पहले की तमाम बीमा योजनाओं के तहत कवर किया जा चुका था. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के एक साल पूरे हो जाने के बाद हालिया आंकड़ों के मुताबिक कुल 26.5 प्रतिशत किसानों को इसके दायरे में लाया गया है. मतलब एक साल में 10 प्रतिशत किसानों को दायरे में लाने केे लक्ष्य की जगह लगभग 4 प्रतिशत किसानों को ही इसका लाभ मिला है.

ध्यान देने वाली बात ये है कि शुरुआत में सरकार ने इस योजना के लिए एक साल में 5,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया था. लेकिन साल के अंत में वास्तविक ख़र्च 13,240 करोड़ रुपये का था. इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 7,740 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च करने के बाद भी सरकार अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई है.

किसानों का आरोप है कि सरकार अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए जबरदस्ती बीमा कर रही है. एक पल के लिए हमें ऐसा लग सकता है कि बंसीलाल के अकाउंट से कटे हुए 2,480 रुपये कोई बहुत बड़ी राशि नहीं है, लेकिन 70वें एनएसएसओ सर्वेक्षण के मुताबिक छोटे और मध्यम किसानों की औसत आय 20,000 रुपये से ज़्यादा नहीं है.

इसका मतलब एक किसान परिवार की महीने भर की आय लगभग 1,667 रुपये और एक दिन की आय 56 रुपये से भी कम है. ऐसे में छोटे और मध्यम किसानों के लिए 2,480 रुपये बड़ी राशि होती है.

इस योजना के तहत लोन लिए हुए किसानों का बीमा अनिवार्य कर दिया गया है. इसका मतलब जिस भी किसान के पास केसीसी कार्ड है तो उसके अकाउंट से प्रीमियम के पैसे काट लिए जाएंगे.

इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं रखा गया है कि बीमा के लिए लोन लेने वाले किसानों से अनुमति ली जाए.  इस पर कृषि एवं सहकारिता विभाग के एक प्रतिनिधि ने बताया, ‘अधिक से अधिक किसानों को बीमा योजना के दायरे में लाने के लिए लोन लेने वालों के लिए बीमा अनिवार्य किया गया है. आपदा के समय किसान प्रीमियम के पैसे देने के स्थिति में नहीं होता है इसलिए उसके पैसे लोन देने के वक़्त ही काट लिया जाता है.’

भारत में 31 मार्च 2016 तक कुल 752 लाख 72 हज़ार किसान क्रेडिट कार्ड हैं. इस हिसाब से इतने सारे किसानों के अकाउंट से पैसे बिना उनकी अनुमति के काटे जाएंगे. इस पर पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री का कहना है, ‘यह बीमा योजना बीमा कंपनियों के साथ मिलकर इस तरीकेे से बनायी गई है कि इसमें इकाई किसान को नहीं बल्कि एक समूह को माना गया है. अगर पूरे समूह का 70 प्रतिशत फसल बर्बाद होगा तभी मुआवज़ा मिलेगा नहीं तो कोई मुआवज़ा नहीं. इसलिए प्रीमियम के पैसे काटने के बावजूद एक भी किसान को मुआवज़ा नहीं मिल रहा है.’

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किसान बंसीलाल (फोटो: दीपक वैष्णव)

उनका कहना है, ‘यदि कार और फ्रिज का सामूहिक बीमा नहीं हो सकता है तो किसान का सामूहिक बीमा क्यों होता है.’ शामली के ताहिरपुर भभिसा गांव के किसान आशीष का कहना है कि इस बीमा योजना में बिजली की तार से आग लगने की वजह से बर्बाद होने वाले फ़सल को शामिल नहीं किया गया है. इस आग से कितनी भी फसल बर्बाद हो जाए हमें कोई मुआवज़ा नहीं मिलता है और प्रीमियम पहले ही काट लिया जाता है.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर विश्व आर्थिक मंच में महासचिव और दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर अवनेश कुमार गुप्ता का कहना है, ‘किसानों के साथ यह अमानवीय व्यवहार हो रहा है. अगर बीमा योजना अच्छी होगी तो किसान खुद उससे जुड़ेंगे. जबरदस्ती उनके अकाउंट से पैसे काटना बिलकुल गलत है.’

इस योजना के तहत ख़रीफ़ (धान,सोयाबीन इत्यादि) की फ़सलों के लिए 2 प्रतिशत और रबी (गेहूं, चना इत्यादि) की फ़सलों के लिए 1.5 प्रतिशत का प्रीमियम रखा गया है. यानी एक एकड़ में 2,5000 का बीमा होता है तो किसान को 500 रुपये का प्रीमियम भरना होगा. बाक़ी के 2,5000 का 10 प्रतिशत केंद्र सरकार और 10 प्रतिशत राज्य सरकार भरती है. ये सारे पैसे बीमा कंपनियों के खाते में जमा होते हैं. आईसीआईसीआई लॉम्बार्ड और रिलायंस जनरल इंश्योरेंस जैसे 10 प्राइवेट कंपनियो को इस योजना में शामिल किया गया है.

भिवानी के रहने वाले किसान राजा का कहना है, ‘बैंक वाले कभी यह देखने नहीं आए कि खेत में कौन सी फसल लगी हुई है. खेत में गन्ना होगा और वे धान का प्रीमियम काट लेते हैं.’

राजा के ऊपर बीस लाख का कृषि लोन है और पिछले साल उनकी चार एकड़ की फसल जल गयी थी और उन्हें कोई मुआवज़ा नहीं मिला.

(दोनों लेखक पत्रकारिता के छात्र हैं)