सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजकर कहा, हाईकोर्ट के कार्यक्रम में योगी को न आमंत्रित करें.
इलाहाबाद के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रबुद्ध नागरिकों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अपील की है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आमंत्रित न किया जाए. इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्थापना को 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस उपलक्ष्य में दो अप्रैल को एक समापन समारोह आयोजित किया जा रहा है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, कई उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश और राज्यपाल के मौजूद रहने की संभावना है.
इलाहाबाद के कुछ वकील, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अपील की है कि योगी के विरुद्ध करीब 28 मामले दर्ज हैं, जिनमें 22 गंभीर क़िस्म के हैं. ये मामले गोरखपुर के विभिन्न थानों में दर्ज हैं.
नागरिक समूह की तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि ‘पत्र में उन 22 प्राथमिकी की सूची दी गई है जो गंभीर क़िस्म की हैं. इन आपराधिक केसों के अलावा मुख्यमंत्री जी के विरुद्ध गोरखपुर में दंगा करवाने का आरोप है, जिसकी सीबीआई जांच के लिए याचिका लंबित है.’
कार्यकर्ताओं की ओर से कहा गया है, ‘माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कतिपय याचिकाओं में यह स्पष्ट आदेश दिया है कि संसद एवं विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के विरुद्ध यदि कोई आपराधिक वाद लंबित है तो उसे सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ निस्तारित किया जाए. इस विधिक प्रस्थापना को उच्च न्यायालय ने भी अपने निर्णयों में स्वीकार किया है. मुख्यमंत्री के विरुद्ध इतने गंभीर आपराधिक वादों के चलते उन्हें न्यायपालिका के उच्च आसन पर बिठाना न्यायपालिका के सम्मान को गिराना होगा. यह न्यायपालिका की निष्पक्षता व पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है.’
मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजने वालों में से एक अधिवक्ता केके राय ने कहा, ‘हमें योगी आदित्यनाथ से निजी तौर पर कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि देश के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और तमाम न्यायाधीशों के साथ मंच पर योगी की मौजूदगी से जनता के बीच ग़लत संदेश जाएगा. लोग न्याय के लिए न्यायपालिका की तरफ देखते हैं. वे समझते हैं कि कोर्ट उनकी संरक्षक है. अगर आदित्यनाथ न्यायपालिका को भी संबोधित करेंगे तो यह न्यायपालिका का अपमान होगा.’
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा सिंह ने नागरिक समाज के इस क़दम का स्वागत किया है. ऋचा ने छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए योगी आदित्यनाथ के विश्वविद्यालय आगमन का विरोध किया था और विश्वविद्यालय में उनका संबोधन नहीं होने दिया था. उन्होंने द वायर से बातचीत में कहा, ‘मुख्य न्यायाधीश को इस बात पर विचार करना चाहिए कि अगर योगी आदित्यनाथ के साथ सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के न्यायाधीश मंच शेयर करते हैं, तो आगे चलकर योगी के ख़िलाफ़ चल रहे गंभीर मामलों की सुनवाई उन्हीं न्यायाधीशों को करनी है. जो लोग आपके साथ मंच शेयर कर रहे हैं, वे कैसे मुख्यमंत्री की हैसियत से आपके ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाएंगे? यह ग़ैरक़ानूनी हो न हो, लेकिन अनैतिक और प्राकृतिक न्याय के ख़िलाफ़ है. यह तथ्य है कि योगी के ख़िलाफ़ बेहद गंभीर मामले चल रहे हैं.’
पत्र भेजने वाले वकीलों में से एक जावेद मोहम्मद ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘हाईकोर्ट के वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक प्रत्यावेदन दिया गया है. उस प्रत्यावेदन में उनके ख़िलाफ़ सभी केस के बारे में बताया गया है. 2008 में गोरखपुर में एक दंगा हुआ था. उस संबंध में हाईकोर्ट में एक केस चल रहा है. पिछले हफ्ते उस केस की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रखा. कोर्ट फ़ैसला देने में अपने को असमर्थ महसूस कर रही है. इस संदर्भ में सारे तथ्य हमने मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा है. उस प्रत्यावेदन की प्रति हमने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और ख़ुद योगी जी को भेज दी है, ताकि यह मामला सबके संज्ञान में रहे. मुख्य न्यायाधीश को चाहिए था कि वे इस मामले का संज्ञान लेते. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. लेकिन शायद प्रोटोकॉल का मामला है, इसलिए मुख्य न्यायाधीश चुप रहे.’
जावेद मोहम्मद ने कहा, ‘हम जल्दी ही इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे और अपील करेंगे कि योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्या के विरुद्ध गंभीर मामलों की सुनवाई में तेज़ी लाई जाए और अगर वे दोषी हैं तो उन्हें हटाया जाए. अगर वे निर्दोष हैं तो इन मसलों पर बात ही ख़त्म की जाए.’
अधिवक्ता फ़रहान नक़वी ने कहा, ‘कार्यकर्ताओं और वकीलों की तरफ से मुख्य न्यायाधीश को जो प्रत्यावेदन दिया गया है, उसमें योगी के ख़िलाफ़ चल रहे सारे गंभीर मामलों की सूची दी गई है. उसमें 302 के तहत हत्या का केस, दंगा भड़काने का केस, भड़काने वाले भाषण देने का केस, 307 का केस आदि हैं. 2008 में दंगे का केस हाईकोर्ट के आदेश पर दर्ज हुआ था. इस एक ही केस में योगी के ख़िलाफ़ 153, 153ए, 153बी, 295, 295बी, 147, 143, 395, 436, 435, 302, 427 और 432 धाराएं लगी हैं.’
फ़रहान का कहना है कि ‘जब हाईकोर्ट के आदेश पर यह केस दर्ज हो गया तो जांच शुरू हुई. लेकिन योगी हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चले गए. सुप्रीम ने पूरे मामले की सुनवाई की और 2012 में आदेश दिया कि हाईकोर्ट का आदेश कानून सम्मत है और जांच आगे बढ़नी चाहिए. उसके बाद से यह मामला पेंडिंग हैं. बसपा की सरकार रही, फिर सपा की सरकार आई और अब योगी ख़ुद ही मुख्यमंत्री और गृहमंत्री हैं.’ यह चिंताजनक है.
मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजने वालों में कवि और सामाजिक कार्यकर्ता अंशु मालवीय, पीयूसीएल के ओडी सिंह, राजनीतिक कार्यकर्ता आशीष मित्तल, वकील केके राय, आरबी द्विवेदी, डीबी यादव और जावेद मोहम्मद आदि शामिल हैं.