झारखंड के खूंटी ज़िले के घाघरा में गत 27 जून को पत्थलगड़ी के दौरान हुई झड़प में आदिवासी बिरसा मुंडा की मौत हो गई थी. इसके बाद भाजपा सांसद करिया मुंडा के तीन सुरक्षाकर्मियों का अपहरण पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा कर लिया गया था.
‘गांव में सन्नाटा और अखबारों व सोशल साइट पर लाठीचार्ज की तस्वीरें और वीडियो देखकर बार- बार विचलित होते रहे. इस दौरान मन में आशंकाएं घर करती रही कि मेरा भाई ही मारा गया है. दो दिनों तक इंतजार करते रहे और तलाश भी. तीसरे दिन यह आशंका सच में बदली. वह लाश मेरे भाई की थी जिसे पोस्टमार्टम के लिए खूंटी से रांची ले जाया गया था. रात करीब साढ़े नौ बजे प्लास्टिक में बंधी लाश लेकर गांव लौटे. प्लास्टिक खोलने के बाद जब गौर से भाई की लाश देखा, तो कलेजा कांप उठा. इस बीच देर रात उसे दफना दिया गया. अब बिरसा इस दुनिया में रहा नहीं. इसलिए कभी कमाने-खटने परदेस नहीं जाएगा और गलती से भी किसी पत्थलगड़ी कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा.’
यह कहते हुए सनिका मुंडा का गला रुंध जाता है. लाश की तस्वीर दिखाते हुए वे बताते हैं कि बिरसा मुंडा की दाहिनी आंख और माथे पर गहरे जख्म के निशान साफ दिख रहे थे. उन जख्मों पर टेप सटे थे और माथे पर पट्टी बंधा था.
तब भाई का यह हाल देख आंखों के सामने घुप अंधेरा छाता रहा. उन्हें यकीन नहीं होता कि भगदड़ में उसके भाई की मौत हुई है.
सनिका मुंडा का कहना था कि एक वीडियो भी वायरल है जिसमें बिरसा, गांव के एकदम शांत जगह पर पड़ा है और गाय की आवाज आ रही है. जबकि घटनास्थल पर लाठीचार्ज के बाद काफी शोरशराबा होते देखा गया है. इसलिए इस वीडियो का सच क्या है और बिरसा की मौत किन परिस्थतियों मे हुई मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए.
वे बताने लगे कि अपनी पत्नी के साथ भाई की लाश लेने अस्पताल गए थे, तो उनसे लिखवाया गया कि भगदड़ के बीच गिर जाने से बिरसा मुंडा की मौत हुई है. तब वे क्या कहते और क्या करते. जैसा कहा गया वैसा लिख दिया.
सनिका मुंडा खूंटी में गांव चामडीह के रहने वाले हैं. पिछले 27 जून को घाघरा में हुए पत्थलगड़ी कार्यक्रम में शामिल होने उनका भाई भी गया था, जहां लाठीचार्ज के बाद अफरातफरी में उसकी मौत हुई. तब राज्य के आला पुलिस अधिकारियों ने बताया था कि भगदड़ में एक व्यक्ति की मौत हो गई है. इसकी जांच भी कराई जाएगी.
गौरतलब है कि 27 जून को घाघरा गांव में पत्थलगड़ी कार्यक्रम में शामिल हुए ग्रामीणों की घेराबंदी करते हुए पुलिस ने उनसे पहले लौटने को कहा था इसके बाद कथित तौर पर लाठीचार्ज हुआ और आंसू गैस के गोले छोड़े गए.
इस दौरान कई ग्रामीण घायल हुए और एक की मौत हुई. मरने वाला चामडीह गांव का बिरसा मुंडा ही था.
उसी दिन पुलिस की कार्रवाई से गुस्साई आदिवासियों की भीड़ ने रास्ते में अनिगड़ा गांव स्थित बीजेपी के सांसद करिया मुंडा के घर पर तैनात सुरक्षा के तीन जवानों का हथियारों के साथ अगवा कर लिया था.
इस घटना के बाद बड़ी तादाद में पुलिस ने उदबुरू, घाघरा, आड़ाडीह, जिकिलता समेत कई गांवों में छापामारी अभियान चलाया. इस दौरान गांवों के अधिकतर घरों की तलाशी ली जाती रही.
चौतरफा दबाव के बीच तीन दिनों बाद अगवा किए गए पुलिस के जवानों को पत्थलगड़ी समर्थकों ने छोड़ दिया. इस बीच पुलिस ने जवानों के हथियार भी बरामद कर लेने का दावा किया है.
चामडीह गांव में भी पत्थलगड़ी हुई है. सनिका मुंडा बताते हैं कि उनका भाई बेंगलुरु में एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में गाड़ी चलाता था. पिछले अप्रैल महीने में वो गांव लौटा था. दरअसल उसका लाइसेंस कहीं गुम हो गया था. खूंटी में वह इसे नए सिरे से बनवाना चाहता था.
साथ ही मां की मौत के बाद कब्र पर हमलोगों को पत्थलगड़ी भी करनी थी. यह पत्थलगड़ी दोनों भाइयों ने मिलकर कर भी दी. बिरसा वापस बेंगलुरु लौटना चाहता था, तो मैंने कहा कि खेती का मौसम है धान बुआई करके चले जाना.
सनिका बताते हैं कि बिरसा तो कभी किसी पत्थलगड़ी कार्यक्रम या सभा में शामिल ही नहीं हुआ. दरअसल वो यहां रहता ही नहीं था. उस दिन दूसरे गांवों के लोग घाघरा जा रहे थे. एक परिचित के कहने पर वो भी साथ चला गया. लेकिन फिर जिंदा नहीं लौटा.
चामडीह गांव के बीच में ही सनिका मुंडा का मिट्टी का घर है. मामूली खेती पर ही घर-परिवार चलाते हैं. इस घटना का दर्द उनकी पत्नी सुकरू टूटी के चेहरे पर साफ झलक रहा था.
सुकरू टूटी बिरसा मुंडा का कब्र दिखाते हुए कहती है कि लाश लेकर जिस रात लौटे थे तब बड़ी संख्या में पुलिस भी गांव आई थी.
गांव के लोगों में हिम्मत नहीं कि कोई मुंह खोले या सवाल करे कि बिरसा की आखिर मौत कैसे हुई. सुकरू के सवाल भी हैं कि गिरने से कैसे मौत होगी क्योंकि आदिवासी तो बहुत मजबूत होता है.
बिरसा मुंडा की पत्नी और बच्चे कहां हैं, इस बाबत पूछने पर सुकरू धीरे से कहती हैं कि उसकी पहली पत्नी कहीं भाग गई और दूसरी पत्नी की मौत हो गई.
स्थानीय लहजे में सुकरू बताने लगी कि तीन दिनों तक उनके घर में चूल्हे नहीं जले और चिंता में रात भर दोनों पति-पत्नी जगे रहते. यह कहते हुए वे माथा पकड़ कर जमीन पर बैठ जाती हैं. इस बीच सुकरू की एक परिजन उन्हें संभालती है.
फिलहाल बिरसा मुंडा की मौत के मामले में पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है. जाहिर है इस मौत से परदा उठना बाकी है. गुंजाइश इसकी भी है कि जांच जारी है, के नाम पर हादसे की तस्वीर भी धुंधली हो जाए.
इस बीच राष्ट्रीय सेंगेल पार्टी के केंद्रीय उपाध्यक्ष मार्शल बारला ने बिरसा मुंडा की मौत की जांच एसआईटी या सीबीआई से कराने की मांग रखी है.
चामडीह गांव की गलियों में सन्नाटा दिखा. एक युवा तस्वीर लेने से मना करते हैं. कहते हैं पेपर (अखबार) में पढ़ा है कि बड़ी संख्या में पुलिस गांवों में घुसकर पत्थलगड़ी समर्थकों और नेताओं को तलाश रही है. लेकिन पत्थलगड़ी तो ग्रामसभा के फैसले पर की जाती है. इसमें लोगों का क्या कसूर.
वे बताने लगे कि गांव के मर्द खेतों की ओर गए हैं. वैसे बिरसा मुंडा की मौत के बाद दहशत तो है ही. शाम को जब गांव के लोग एक जगह जुटते हैं, तो चर्चा होती है कि कई गांवों में पुलिस लगातार आती-जाती रही है.
गौरतलब है कि घाघरा गांव की घटना के बाद पुलिस पत्थलगड़ी कार्यक्रम की अगुवाई कर रहे युसूफ पूर्ति की तलाश में उदबुरू समेत कई गांवों में तलाशी लेती रही है. इस दौरान युसूफ के घर से कई दस्तावेज भी बरामद किए गए हैं. पुलिस हर हाल में उसे पकड़ना चाहती है.
युसूफ के अलावा बलराम समद तथा जॉन जिसान तिड़ू समेत कई लोगों की भी पुलिस को तलाश है. पुलिस ने कोचांग गांव में गैंगरेप की घटना में भी जिसान तिड़ू को प्रमुख सूत्रधार के तौर पर चिन्हित किया है. जबकि कोचांग और तिड़ू के कुरंगा गांव में लोग इन आरोपों से इनकार करते रहे हैं कि गांव का कोई आदमी इस घटना में शामिल रहा है.
खूंटी-अड़की मार्ग पर एक बुजुर्ग रूना मुंडा मिले. पहले वे बात करने के लिए तैयार नहीं थे. फिर भरोसा में लिए जाने पर कहते हैं कि हफ्ते भर से यही आलम है. पुलिस को देखकर लोग भागने को विवश हुए हैं. सबको यही लगता है कि पकड़े जाएंगे. खेती के दिन हैं और जो हालात बने हैं उससे संकट बढ़ेगा. कई गांवों की गलिया सूनी दिखाई पड़ी.
बुजुर्ग का कहना था कि बहुतेरे लोग कतई नहीं चाहते हैं कि विवाद बढ़े, गांवों में अशांति हो. ना जाने कैसे और क्यों गांव-घर के हालात बिगड़ रहे हैं. उन्हें ये भी लगता है कि भोले लोगों को एकजुट करने और बहकाने में कुछ लोग सफल होते रहे हैं. लेकिन पत्थलगड़ी कोई गलत काम नहीं है. आदिवासी अपना हक अधिकार ही तो चाहते हैं.
जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला कहती हैं कि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्रामसभाओं को कई अधिकार हैं और ग्रामसभाएं ही पत्थलगड़ी कर रही थी. अब पुलिस की मौजूदा कार्रवाई से यह कहा जा सकता है कि दमन के बूते ग्रामसभाओं को तोड़ने की कोशिश की जा रही है.
जबकि महीनों से शासन-प्रशासन का किसी जिम्मेदार शख्स ने ग्रामसभाओं से संवाद करने की जरूरत नहीं समझी. दयामनी, भाजपा सांसद करिया मुंडा की उस टिप्पणी पर भी गौर करने को कहती हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि फुंसी को फोड़ा बनाया गया.
दयामनी के मुताबिक, ग्रामसभाओं से संवाद करने के बजाय गांवों में खौफ पैदा किया जा रहा है और पत्थलगड़ी की अगुवाई करने वाले को देशद्रोही ठहराया जा रहा है. गांव के गांव खाली हो गए हैं और प्रशासन-पुलिस को यह लग रहा है कि इन आवाजों को इसी तरीके से दबाया जा सकता है. पत्थलगड़ी के कारणों की सरकार को ईमानदारी से मंथन करना चाहिए.
इस बीच कोचांग की ग्रामसभा ने निर्णय लिया है कि गैंगरेप की घटना में अपराधियों की गिरफ्तारी में पुलिस की मदद की जाएगी. घटना के सोलह दिनों बाद चार जुलाई को पुलिस जांच करने कोचांग गांव पहुंची थी.
इससे पहले पूर्व आइपीएस अधिकारी और अनुसूचित जाति- जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके कांग्रेस नेता डॉ रामेश्वर उरांव भी उस इलाके में घटना की जानकारी लेने गए थे. हालांकि उन्होंने कई सवाल खड़े किए हैं.
इस बीच दिल्ली से आई वीमेन अगेंस्ट सेक्सुअल वायलेंस एंट स्टेट रिप्रेशन से जुड़ी महिलाओं की एक टीम भी पिछले दिनों फैक्ट फाइंडिग के लिए खूंटी में कई बिंदुओं पर जानकारी जुटाने की कोशिश की है और इस टीम ने भी गैंगरेप की घटना पर कई सवाल खड़े किए हैं.
अब लोगों का घर छोड़कर जहां-तहां चले जाने के बाद प्रशासनिक स्तर पर प्रचार कराया जा रहा है कि पत्थलगड़ी तथा अन्य विवाद को लेकर घर छोड़कर दूसरी जगह चले गए लोग गांव लौट आएं प्रशासन उनकी मदद करेगा. तथा खेती के लिए खाद- बीज दिए जाएंगे.
प्रशासन अनावश्यक किसी निर्दोष व्यक्ति को परेशान भी नहीं करेगा. इसी सिलसिले में तीन जुलाई को प्रशासनिक अमला घाघरा गांव पहुंचा था. अधिकारियों ने गांव वालों से बातें की और विश्वास जगाने का प्रयास भी.
इस बीच छह जुलाई को खूंटी के विधायक और सरकार में मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा भी आला अधिकारियों को लेकर गांव पहुंचे. लेकिन इस बैठक में गिने-चुने ग्रामीण ही शामिल हुए. अलबत्ता घाघरा के स्कूल में बच्चों की उपिस्थिति नगण्य हो गई है. शिक्षक उनका इंतज़ार करते रहते हैं.
इन हालातों के मद्देनज़र सरकार के मंत्री ने ग्रामीणों से अपील की है कि लोग पुलिस का भय मन से निकालें. सरकार सुरक्षा और विकास के लिए तैयार है. और पत्थलगड़ी में लिखी गलत बातों को रोकना चाहती है.
इधर सात जुलाई को विपक्षी नेताओं का एक दल हालात का जायजा लेने घाघरा गांव पहुंचा, तो इक्का-दुक्का ग्रामीणों से उनकी बातें हो पाई, अधिकतर घरों में लोग नहीं थे.
इन हालातों पर खुदीमाड़ी गांव के पास खेतों की ओर जाते कुछ युवकों से जानना चाहा, तो वे सवाल करते हुए कहने लगे, ग्रामसभा की बैठकों में सरकार के लोग क्यों नहीं आते. पुलिस के गांवों में बार-बार घुसने से लोगों में कई किस्म की आशंकाएं तो है ही शासन-प्रशासन से दूरियां भी बढ़ती जा रही है.
राजेश मुंडा स्थानीय लहज़े में घटनाओं पर गौर करने को कहते हैं. वे बताने लगे कि कोचांग में गैंगरेप की घटना सामने आई तो साजिश के तहत उसे पत्थलगड़ी की ओर मोड़ दिया गया. अपराधियों को पकड़ने से किसने रोका है पुलिस को, लेकिन वो तो पत्थलगड़ी समर्थकों को घेर कर पीटने लगी.
ज़ाहिर है इन्हीं तस्वीरों के बीच खूंटी का एक खास इलाका उलझनों के दौर से गुज़र रहा है. उन्मुक्त ज़िंदगी जीने वाले लोगों को लगता है कि इन दो घटनाओं को लेकर रोजमर्रा की ज़िंदगी प्रभावित होने लगी है. गरीबी-बेबसी ही सही कई गांवों में आदिवासियों की उन्मुक्त ज़िंदगी कहीं गुम होती जा रही है.
हालांकि एक-दो दिनों से कुछ लोग घरों को वापस लौटने लगे हैं, लेकिन उनके चेहरे पर खौफ साफ दिखता है. कई इलाके में खेतों में हल-बैल नहीं दिखते. पेड़ों के नीचे कोई बैठकी होती नजर आती. अलबत्ता अचानक दो घटना- गैंगरेप और पत्थलगड़ी समर्थकों से टकराव की वजह से कई गांवों की जिदंगी साफ तौर पर प्रभावित होती नजर आती है.
कई ग्रामसभा इस बात से भी बेहद आहत हैं कि जब-तब पुलिस बेकसूरों के नाम भी प्राथमिकी दर्ज करती रही है. खबर है कि कोचांग गांव के ग्राम प्रधान के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है.
जबकि ग्राम प्रधान के घर में ही हेल्थ सेंटर चलता है और उनके पिता ने स्कूल के लिए अपनी जमीन दी है. घाघरा की घटना से पहले उन्होंने प्रशासन को ग्रामसभा का हस्ताक्षरयुक्त पत्र भेजकर बताया था कि गैंगरेप की घटना से वे लोग आहत हैं तथा अपराधियों की खोज कर रहे हैं. इस काम में पुलिस की भी मदद करेंगे.
आदिवासी विषयों पर लिखते रहे सांस्कृतिक कर्मी अनिल अंशुमन कहते हैं कि शासन पहले दमन का रुख अख्तियार करता है और फिर घावों पर मरहम लगाने का कथित प्रयास. इससे आदिवासियों का विश्वास टूट रहा है और दूरियां बढ़ती ही जा रही है.
अंशमुमन कहते हैं कि गौर कीजिए गांवों में फोर्स भी मार्च करती रहेगी, संगीने तनी रहेंगी तथा सरकार आदिवासियों के विकास के लिए प्रतिबद्धता जाहिर करेगी, तो आदिवासियों के मन में क्या कुछ चलेगा यह समझा जा सकता है. फिर आदिवासी की मौत वैसे ही इस राज्य में कोई मुद्दा नहीं होता. मानो लड़ने-मरने के लिए ही वे पैदा हुए हैं.
जाहिर है खूंटी के जरिए इसे राज्य के लिए खतरनाक संकेत के तौर पर देखा जाना चाहिए. इसलिए दमन की कार्रवाई के बदले ग्रामसभाओं से संवाद होना चाहिए. ग्रामसभाएं तो चाहती हैं कि कोई उनसे बात करने के लिए आए. पंचायत और प्रखंड स्तर पर सकारात्मक पहल की जानी चाहिए वरना मुश्किलें बढ़ेंगी.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं.)