भोपाल के बैरसिया तहसील के एक गांव में किसान की ज़मीन पर दबंगों ने क़ब्ज़ा कर लिया था. उन्होंने विरोध किया तो उन्हें केरोसिन डालकर ज़िंदा जला दिया गया. हत्या का आरोपी एक प्रभावशाली किसान होने के साथ सत्ताधारी भाजपा का पदाधिकारी भी है.
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 70 किलोमीटर दूर घाटखेड़ी 30 जाटव परिवारों का एक छोटा-सा टोला है जहां का एक बूढ़ा किसान 22 जून को खुद की जमीन जोतने के अधूरे सपने के साथ मौत के मुंह में समा गया. उसे नजदीक के ही परसोरिया गांव के तोरण यादव ने अपने बेटे और दो भतीजों के साथ मिलकर जिंदा जला कर मार डाला.
सत्तर साल के किशोरीलाल जाटव अपनी पत्नी के साथ सुबह करीब नौ बजे अपने खेत पर गए तो देखा कि उस पर तोरण यादव ट्रैक्टर से सोयाबीन की बुवाई कर रहा था. ये खेत किशोरीलाल का था. इस पर उनका बाकायदा मालिकाना हक़ था.
मध्य प्रदेश की पिछली दिग्विजय सिंह सरकार ने अपने दलित एजेंडा के तहत चरनोई की जमीन का बड़ा हिस्सा दलितों को बांटा था. इस योजना से किशोरीलाल को भी फायदा हुआ.
उन्हें करीब साढ़े तीन एकड़ सरकारी जमीन मिली. भोपाल जिले की बैरसिया तहसील में घाटखेड़ी टोला में सरकारी जमीन पाने वाले वे अकेले दलित थे. बाकी जाटव परिवारों के पास थोड़ी बहुत जमीन पहले से थी.
पर जो जमीन किशोरीलाल को मिली उस पर तोरण यादव पहले से गैरकानूनी कब्ज़ा जमाए था. वो आसपास की कुछ और सरकारी जमीन पर भी काबिज़ था. ये सरकारी ज़मीनें उसके मालिकाना हक़ वाली 18 एकड़ जमीन से लगी हुई थीं.
अपनी जमीन पर तोरण को बुवाई करते देख किशोरीलाल भड़क उठे. उन्होंने तोरण को खेत पर ट्रैक्टर चलाने से मना किया. दोनों में तकरार बढ़ी और इतनी बढ़ी कि तोरण ने किशोरीलाल के ऊपर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी.
तोरण के बेटे और दो भतीजों ने किशोरीलाल को हाथों से जकड़ रखा था. उसकी पत्नी ने बीच-बचाव की कोशिश की तो हत्यारों ने उसे बलपूर्वक झटक दिया. सिर्फ दो मिनट में सारा खेल ख़त्म हो गया.
किशोरीलाल और तोरण में झगड़ा पहली बार नहीं हुआ था. ये तभी से चल रहा था जब वर्ष 2002 में दलित किसान को जमीन का पट्टा मिला था. तोरण डरा-धमकाकर किशोरीलाल को उस जमीन के पास फटकने भी नहीं देता था.
हत्या का आरोपी एक प्रभावशाली किसान तो है ही, सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी के पिछड़ा वर्ग भोपाल जिला प्रकोष्ठ का पदाधिकारी भी है. अपने प्रभाव के चलते तोरण ने किशोरीलाल की ज़मीन पर कब्ज़ा बनाए रखा.
बीच-बीच में कभी किशोरीलाल अपने खेत में कुछ बोता भी तो फसल पकने पर तोरण का परिवार जबरन उसे काट लेता था. दलित परिवार यादवों की जाती-सूचक गालियां, धमकियों का लगभग आदी सा हो चला था. ये सिलसिला पिछले 16 साल से चल रहा था.
किशोरीलाल की पत्नी ने हमें बताया कि पिछले दो सालों से यादवों द्वारा उत्पीड़न बढ़ गया था. तोरण हर हाल में किशोरीलाल की जमीन हथियाना चाहता था. इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि इस जमीन से लगी सड़क प्रधान मंत्री सड़क योजना के तहत पक्की बन गई थी. इससे ज़मीन की कीमत में काफी बढ़ोतरी हुई.
किशोरीलाल ने पिछले साल अपनी जमीन पाने के लिए बैरसिया पुलिस थाने में तोरण के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी. पर उस पर कुछ अमल नहीं हुआ. बाद में उन्होंने भोपाल के अनुसूचित जाति/जनजाति थाने में भी शिकायत की, पर वह भी बेअसर रही.
अगर इन दो शिकायतों पर कार्रवाई होती तो शायद किशोरीलाल न केवल आज ज़िंदा रहते बल्कि अपनी ज़मीन पर खेती कर रहे होते.
मालिकाना हक़ का पट्टा होने के बावजूद ज़मीन से बेदखल होने वाले किशोरीलाल अकेले दलित नहीं हैं. ऐसे हज़ारों दलित परिवार अकेले मध्य प्रदेश में हैं जो दबंगों के खौफ से सरकार से मिली जमीन पर खेती करने से वंचित हैं. ऐसी जमीनों के मामलों में अधिकतर में तो सीमांकन भी नहीं हुआ है.
किशोरीलाल के मामले में भी उनकी दर्दनाक मौत के बाद उन्हें मिली जमीन के सीमांकन की प्रक्रिया शुरू हुई है.
बैरसिया के उप जिला दंडाधिकारी राजीव नंदन श्रीवास्तव ने हमें बताया कि इस संबंध में एक प्रस्ताव तैयार कर संबंधित अधिकारी को त्वरित अमल के लिए भेज दिया गया है.
अगर एक दलित को जिंदा जलाने जैसी सनसनीखेज़ वारदात नहीं होती, अगर ये घटना मीडिया में बड़ी सुर्खी नहीं बनती और अगर ये मध्य प्रदेश में चुनावी साल नहीं होता तो दलितों को मिली जमीन के आधे अधूरे सीमांकन के मामले रोशनी में नहीं आते.
मध्य प्रदेश में चुनाव नज़दीक होने की ही वजह से किशोरीलाल की दर्दनाक मौत बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनी है. हत्या के मुख्य आरोपी के सत्ताधारी दल से जुड़े होने के बावजूद शिवराज सिंह सरकार उसे बचाने की कोशिश करते नहीं दिखना चाहती. हत्या के चारों आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. घटना की जांच के लिए एक खास जांच दल गठित किया गया है.
जांच जारी है और उसे प्रभावित करने की कोशिशें भी जारी हैं. सरकार ने भले ही आरोपियों को कड़ा दंड दिलाने की बात कही हो, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय इकाई के नेता तर्क दे रहें हैं कि तोरण यादव की किशोरीलाल से तकरार जरूर हुई थी पर दलित बूढ़े ने ही खुद को मिट्टी का तेल डाल कर जलाया था.
हालांकि, मृतक की पत्नी अपने दावे पर पूरी ताकत से कायम है कि आग तोरण ने ही लगाई थी और वो इसकी चश्मदीद गवाह हैं.
इसके बाद भी मृतक का परिवार प्रशासन से न्याय मिलने को लेकर सशंकित है. किशोरी लाल के चार बेटे और दो बेटियां हैं. चारों बेटे बाहर मजदूरी करते हैं. एक बेटा महेश जबलपुर में मजदूरी करता है. घर में उनकी बहुएं रहती हैं.
किशोरीलाल के परिवार की महिलाओं ने बातचीत में बार-बार कहा कि हम गरीब हैं और हमें सताने वाले बड़े लोग हैं. सरकार तो बड़े लोगों का साथ देती है. हमारे साथ सरकार होती तो ये दिन ही नहीं देखना पड़ता. यही शंका परिवारवालों ने कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने भी जाहिर की थी जब वे 29 जून की शाम उनसे घाटखेड़ी मिलने गए थे.
बाद में सिंधिया ने एक पत्रकार वार्ता में कहा कि उन्हें विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच पर भरोसा नहीं है. उनकी मांग है कि किशोरीलाल की हत्या की जांच सीबीआई करे. इस बावत वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने मुख्यमंत्री को एक पत्र भी लिखा है.
घाटखेड़ी का दौरा करने और अधिकारियों से बात करने के बाद महसूस होता है कि बैरसिया का प्रशासन इस जघन्य अपराध को लेकर पर्याप्त संवेदनशील नहीं है. प्रशासन ने हत्या के बाद पीड़ित परिवार को पुलिस सुरक्षा देने का आश्वासन दिया था, लेकिन न तो उस खेत पर जहां हत्या हुई थी न ही किशोरीलाल के गांव में कोई पुलिस वाला दिखाई देता है.
जब इस ओर एसडीएम का ध्यान दिलाया तो उन्होंने तुरंत पुलिस बल तैनाती का भरोसा दिया. वहां जाकर पता चला कि बिजली के तार भी एक दिन पहले ही दुरुस्त किए गए थे.
घाटखेड़ी टोला में रहने वाले सारे 30 परिवार जाटवों के हैं. वहां से कुछ दूर परसोरिया गांव है जहां यादवों का बाहुल्य है. इस टोले में सिर्फ गरीबी दिखती है. स्कूल नहीं हैं, कोई और सुविधा तो दूर की बात है.
टोले का सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा बच्चा राजेंद्र जाटव है जो भोपाल में एक हॉस्टल में रहकर बारहवीं की पढाई कर रहा है. टोले की लड़कियां लगभग सारी अनपढ़ हैं. वे गांव से दूर पढ़ने नहीं जाना चाहतीं. ये हकीकत उस गांव की है जो राजधानी से महज़ 70 किलोमीटर दूर बसा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और आठ सदस्यीय उस फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा थे जो मामले की स्वतंत्र जांच के लिए घाटखेड़ी गांव पहुंची थी.)