भारत में दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग बच्चियों का खतना किए जाने की प्रथा है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग बच्चियों का खतना किए जाने की प्रथा पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह एक बच्ची के शरीर की ‘अखंडता’ को भंग करता है.
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ को कहा कि इस प्रथा से बच्ची को ऐसा नुकसान पहुंचता है जिसे भरा नहीं जा सकता और इसको प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.
उन्होंने पीठ से कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और 27 अफ्रीकी देशों में इस प्रथा पर रोक लगी हुई है. मुस्लिम समुदाय की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी ने कहा कि मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेजा जाना चाहिए क्योंकि यह एक धर्म की आवश्यक प्रथा का मामला है, जिसकी जांच की आवश्यकता है.
पीठ ने पूछा, ‘किसी एक व्यक्ति की शारीरिक अखंडता क्यों और कैसे एक आवश्यक प्रथा हो सकती है?’ उसने कहा कि यह एक बच्ची के शरीर की ‘अखंडता’ को भंग करता है.
पीठ ने कहा, ‘किसी अन्य के जननांगों पर किसी और का नियंत्रण क्यों होना चाहिए?’ सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल ने केंद्र के रुख को दोहरते हुए कहा कि इस प्रथा से बच्ची के कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है और इससे भी अधिक खतने का स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है.
सिंघवी ने दलील दी कि इस्लाम में पुरुषों का खतना सभी देशों में मान्य है. पीठ ने वकील सुनीता तिवारी की ओर से जारी जनहित याचिका स्वीकार कर ली और इस पर अब 16 जुलाई को सुनवाई की जाएगी.