झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी के छह विधायकों को भाजपा में शामिल होने के लिए 11 करोड़ रुपये दिए गए थे. वहीं भाजपा ने आरोपों को निराधार बताते हुए मरांडी के ख़िलाफ़ मानहानि का केस करने की चेतावनी दी.
ज़मीन के सवाल पर और कई नीतियों-फैसलों को लेकर झारखंड की भाजपा नीत रघुबर दास सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन-विरोध की धार को चमका रहे पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी द्वारा भाजपा पर लगाए गए आरोप से राज्य की सियासत की फ़िज़ा अचानक बदल गई है.
बाबूलाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के केंद्रीय अध्यक्ष हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उनकी पार्टी के छह विधायकों को भाजपा में शामिल होने के लिए 11 करोड़ रुपये दिए गए थे.
मरांडी ने उन छह विधायकों को नाम भी बताए हैं कि किस-किस को कितने पैसे मिले और भाजपा के किन–किन नेताओं ने किसकी निगरानी में ये पैसे दिए.
इसी मामले में मरांडी के नेतृत्व में पार्टी के नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मिलकर प्रमाण के तौर पर भाजपा का एक पत्र भी सौंपा है.
यह पत्र झारखंड प्रदेश भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष रवींद्र राय की तरफ से कथित तौर पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लिखा गया था. राय अभी कोडरमा से सांसद भी हैं.
बाबूलाल मरांडी ने उस पत्र की फोटोकॉपी भी सार्वजनिक की है. यह पत्र 19 जनवरी 2015 को लिखा गया था.
जबकि रवींद्र राय ने उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री और झारखंड प्रदेश में भाजपा के तत्कालीन प्रभारी त्रिवेंद्र सिंह रावत के मार्फत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को यह पत्र भेजा था.
जेवीएम के आठ उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी
2014 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा से आठ उम्मीदवार चुनाव जीते थे. जबकि भाजपा-आजसू पार्टी गठबंधन के 42 उम्मीदवार चुनाव जीते थे. 81 सदस्यों वाली विधानसभा में बहमुत के लिए 41 विधायकों की ज़रूरत होती है.
चुनाव जीतने के कुछ ही दिनों बाद बाद फरवरी 2015 में जेवीएम के छह विधायक- नवीन जायसवाल, अमर बाउरी, रणधीर सिंह, आलोक चौरसिया, जानकी यादव और गणेश गंझू भाजपा में शामिल हो गए थे.
रणधीर सिंह अभी सरकार में कृषि मंत्री और अमर बाउरी भूमि सुधार राजस्व मंत्री हैं. इनके अलावा आलोक चौरसिया, गणेश गंझू और जानकी यादव को बोर्ड-निगम का चेयरमैन बनाया गया है.
पत्र का मजमून
बाबूलाल मरांडी ने रवींद्र राय द्वारा लिखे गए जिस कथित पत्र को सार्वजनिक किया है उसमें यह लिखा हुआ है कि सभी विधायकों से प्राप्ति पर्ची मुख्यमंत्री रघुबर दास को सौंप दी गई है.
झारखंड विकास मोर्चा के विधायकों को शेष राशि भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के 36 माह बाद उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी रघुबर दास की ओर से ली गई है. पत्र में रवींद्र राय के हवाले से इसका भी उल्लेख है कि इस दौरान भाजपा में आने वाले सभी विधायकों के स्थायित्व की जिम्मेवारी मैं लेता हूं.
भाजपा के इस पत्र के साथ बाबूलाल मरांडी ने राज्यपाल को अलग से एक पत्र भी सौंपा है जिसमें सरकार को बर्ख़ास्त करने के साथ इस मामले में सीबीआइ से जांच कराने का अनुरोध किया है.
मरांडी ने राज्यपाल से कहा है कि पहले भी आपसे (राज्यपाल) मिलकर इस बात की जानकारी दी थी कि जेवीएम के छह विधायकों को पद और पैसे का प्रलोभन देकर भाजपा में शामिल कराया गया है.
बीते छह जुलाई को राज्यपाल को ये पत्र सौंपने के बाद मरांडी और उनकी पार्टी के नेता मीडिया से भी रूबरू हुए.
उन्होंने कहा, ‘विधायकों की कथित तौर पर ख़रीद-फरोख़्त का आरोप वे पहले से लगाते रहे हैं, पद तो उन्हें पहले से मिला था, अब पैसे के लेनदेन का मामला उजागर हुआ है, इसलिए ज़रूरत पड़ी तो वे राष्ट्रपति के पास जाकर इस मामले को रखेंगे, क्योंकि भाजपा और उसकी सरकारों ने लोकतंत्र को कलंकित किया है.’
मरांडी ने जो पत्र सार्वजनिक किया है उसमें भाजपा के उन नेताओं के नाम भी शामिल हैं जिन्होंने किसकी निगरानी में विधायकों को पैसे दिए थे.
पैसे देने वालों में वर्तमान सांसद सुनील सिंह, महेश पोद्दार, मंत्री सीपी सिंह, विधायक विरंची नारायण, अनंत ओझा और मुख्यमंत्री रघुबर दास के नाम शामिल हैं.
दल-बदल का मामला
वैसे इस मामले में फरवरी 2015 में ही बाबूलाल मरांडी और पार्टी विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने 10वीं अनुसूची के तहत दल-बदल के मामले में उन छह विधायकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष दिनेश उरांव को पत्र लिखा था.
इस मामले में स्पीकर ने कार्रवाई भी शुरू की. स्पीकर की अदालत में अब तक 53 लोगों की गवाही हुई है. 70 लोगों की गवाही निरस्त कर दी गई है. लिहाज़ा अब दल-बदल के इस मामले में बहस शुरू होने वाली है.
पत्र के अनुसार किस विधायक को कितने पैसे मिले
गणेश गंझू (सिमरिया) – दो करोड़ रुपये
रणधीर सिंह (सारठ) – दो करोड़ रुपये
नवीन जायसवाल (हटिया) – दो करोड़ रुपये
अमर बाउरी (चंदनक्यारी) – एक करोड़ रुपये
आलोक चौरसिया (डाल्टनगंज) – दो करोड़ रुपये
जानकी यादन (बरकट्ठा) – दो करोड़ रुपये
उठते सवाल और भाजपा की चुनौती
इस बीच शनिवार यानी सात जुलाई को भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय और छह विधायकों ने पार्टी के दफ्तर में साझा तौर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया. इसमें विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त के आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए बाबूलाल मरांडी को इसकी सत्यता बताने की चुनौती दी.
रवींद्र राय ने मरांडी द्वारा जारी किए पत्र को फ़र्ज़ी बताया और कहा कि यह ओछी राजनीति की पराकाष्ठा है.
उन्होंने कहा कि बाबूलाल मरांडी ने फ़र्ज़ी पत्र के ज़रिये विधायकों की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का काम किया है. उन्होंने यह भी दावा किया है कि यह पैड और हस्ताक्षर दोनों नकली है. इसकी जांच सक्षम एजेंसी से कराई जानी चाहिए, जिससे हक़ीक़त सामने आए.
भाजपा नेता ने दावा किया है कि बाबूलाल मरांडी ने ख़ुद जलसाज़ी कर यह पत्र तैयार किया है. यह राजनीतिक मर्यादा तोड़ने तथा नीचता दिखाने का भी मामला है. लिहाज़ा इस पत्र की प्रामाणिकता बाबूलाल मरांडी पेश करें और एक हफ्ते में सार्वजनिक तौर पर माफी मांगे, वरना उनके ख़िलाफ़ कोर्ट जाएंगे.
इसी प्रेस कॉफ्रेंस में उन छह विधायकों ने भी अपना पक्ष रखा तथा मरांडी पर जमकर निशाना साधा. मंत्री अमर बाउरी ने कहा कि अभी यह मामला स्पीकर के न्यायाधिकरण में है. तब मरांडी ने फैसले का इंतज़ार किए बिना घटिया राजनीति के ज़रिये विधायकों की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ किया है. इस तरह की फोटोकॉपी कोई भी किसी के नाम से तैयार कर जारी कर सकता है.
रणधीर सिंह ने कहा है कि वे बाबूलाल मरांडी के ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दर्ज कराएंगे. जबकि आलोक चौरसिया का कहना है कि वे लोग राज्य हित में तथा सरकार के स्थायित्व के लिए भाजपा में शामिल हुए थे.
इन सभी छह विधायकों ने कहा कि हम लोगों को एक हफ़्ते का इंतज़ार है, बाबूलाल माफी मांग लें या मानहानि के मुक़दमे के लिए तैयार रहें.
गौरतलब है कि पहले भी दल-बदल के लगते आरोपों के जवाब में ये छह विधायक झारखंड के विकास तथा सरकार के स्थायित्व को लेकर अपना पक्ष रखते रहे हैं.
कई मौके पर वे कहते रहे हैं कि झारखंड विकास मोर्चा का ही भाजपा में विलय हो गया है. क्योंकि बाबूलाल ने ही इस विलय की सहमति दी थी और बाद में पीछे हट गए.
इस बीच पत्र को लेकर भी कई सवाल उठने लगे हैं. दरअसल तब रवींद्र राय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे, लेकिन जिस पत्र का बाबूलाल मरांडी हवाला दे रहे हैं उस लेटर पैड पर रवींद्र राय को किसान मोर्चा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बताया गया है जबकि प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहने से पहले राय किसान मोर्चा के उस पद पर थे.
साथ ही भाजपा ने सवाल खड़े किए हैं कि जेवीएम के नेताओं ने साज़िश के तहत यह हथकंडा अपनाया है. अगर 19 जनवरी 2015 को यह पत्र लिखा गया था, तो इतने दिनों तक बाबूलाल ने क्यों नहीं सार्वजनिक किया?
भाजपा की इन चुनौतियों पर झारखंड विकास मोर्चा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री बंधु तिर्की कहते हैं कि वे लोग तो इस मामले की सीबीआई से जांच की मांग कर ही रहे हैं. सरकार और भाजपा इस मामले में पहल करे. पत्र की सत्यता भी सामने होगी.
बंधु तिर्की कहते हैं कि उनकी पार्टी दल-बदल मामले में भी जल्दी फैसला सुनाए जाने की अपेक्षा करती रही है, क्योंकि साढ़े तीन साल से इस मामले में सुनवाई हो रही है.
नई बहस छिड़ी
अब इस मसले ने झारखंड की राजनीति में नई बहस भी छेड़ दी है. दरअसल अगले साल लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होने हैं. लिहाज़ा इस आरोप को लेकर सोशल साइट पर भी वार-पलटवार का युद्ध छिड़ा है.
इस पत्र के असर को लेकर हमने वरिष्ठ पत्रकार तथा दैनिक आवाज़ के प्रधान संपादक दीपक अंबष्ठ से पूछा तो उन्होंने कहा कि ज़ाहिर है यह भाजपा के लिए नुकसान पहुंचाने वाला हो सकता है.
वे कहते हैं, ‘वैसे भी कई अहम सवालों और नीतियों को लेकर भाजपा की सरकार चौतरफा घिरी है. और अब ये सवाल भी उठने लगे हैं कि राज्य गठन के 14 सालों बाद पहली दफ़ा बहुमत की सरकार बनने के बाद भी क्या भाजपा सरकार लोगों की उम्मीदों को पूरा करने में सफल होती दिख रही है. जबकि सरकार को स्थायित्व देने के लिए ही छह विधायकों को शामिल कराया गया था. और वे छह विधायक भी इसी बात पर जोर देते रहे हैं.’
दीपक अंबष्ठ का कहना है कि राज्य में विधि व्यवस्था की हालत अच्छी नहीं है और आदिवासी इलाकों में सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष बढ़ता हुआ दिखता है.
एक सवाल के जवाब में वे यह भी कहते हैं कि गुंजाइश है कि बाबूलाल मरांडी को यह पत्र हासिल करने में तीन साल लगे हों. अगर पत्र फर्जी है तो मरांडी भी इसकी जांच पर ज़ोर दे रहे हैं.
क्योंकि एक बात तो साफ है कि भाजपा छोड़ने के 12 सालों के दौरान विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के बाद भी बाबूलाल मरांडी भाजपा के सामने डिगे नहीं और सरकार की कार्यप्रणाली से लेकर हर फैसले पर पर पैनी नज़र रखते रहे हैं.
भाजपा को ही मात देने के लिए बाबूलाल मरांडी अकेला चलने के बजाय विपक्षी दलों की मुहिम को मज़बूत करने में जुटे हैं. अलबत्ता अपनी और पार्टी की साख भी बचाने की चुनौती का सामना कर रहे हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं.)