झारखंड के रामगढ़ में बीते साल गोमांस रखने के संदेह में हुई अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या के दोषियों को ‘न्याय’ दिलाने की जयंत सिन्हा की मुहिम के बीज हजारीबाग में सिन्हा परिवार की राजनीति में छिपे हैं.
तारीख 29 जून. शाम लगभग साढ़े पांच बजे. कह सकते हैं, हजारीबाग से भाजपा के सांसद और केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा के लिए ये राहत का वक्त था. उन्होंने अपने वाल पर लिखा, ‘रामगढ़ के अलीमुद्दीन हत्याकांड में आठ अभियुक्तों को बेल (जमानत) मिली है. तीन और अभियुक्तों की सुनवाई होगी. संपूर्ण न्याय के लिए सभी लोग आशावान हैं. अभियुक्त, उनके परिवार के लोग, हजारीबाग की जनता न्याय के इस विजय से आनंदित है. संपूर्ण न्याय के लिए पिछले कई महीनों से समन्वित प्रयास किए जा रहे हैं.’
रामगढ़ मॉब लिचिंग के आठ अभियुक्तों को झारखंड हाइकोर्ट से जमानत मिलने के बाद जयंत सिन्हा की यह त्वरित प्रतिक्रिया थी.
और इसकी प्रासंगिकता तब बढ़ती दिखी जब जेल से बाहर निकलने के बाद कई अभियुक्त अपने परिवार के लोगों और भाजपा के नेतओं के साथ जयंत सिन्हा से मिलने उनके हजारीबाग स्थित ऋषभ वाटिका आवास पहुंचे, जहां केंद्रीय मंत्री ने उन्हें माला पहनाई और मिठाई भी खिलाई.
जाहिर है सिन्हा के कद और पद के लिहाज से इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जाने लगे. दरअसल जयंत सिन्हा ने यह भी कहा है कि इस केस के पैरवीकार के प्रयासों के अलावा साक्ष्यों तथा तथ्यों की जानकारी लेने और अभियुक्तों के परिवार वालों से संवाद कर पूरे मामले पर नजर बनाए रखा हूं.
इस बीच अचानक जयंत सिन्हा के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के एक ट्वीट ने इस मामले में अलग बहस छेड़ दी है.
यशवंत सिन्हा ने ट्वीट में लिखा था, ‘पहले मैं लायक बेटे का नालायक पिता था, लेकिन अब इस रोल की अदला-बदला हो गई है. मुझे पता है कि इस बात के लिए भी मेरी आलोचना होगी. आप उनसे कभी नहीं जीत सकते.’
Earlier I was the Nalayak Baap of a Layak Beta. Now the roles are reversed. That is twitter. I do not approve of my son’s action. But I know even this will lead to further abuse. You can never win.
— Yashwant Sinha (@YashwantSinha) July 7, 2018
गौरतलब है कि पिछले साल 29 जून की सुबह रामगढ़ के मनुआ बस्ती निवासी अलीमुद्दीन अंसारी कथित तौर पर प्रतिबंधित मांस लेकर जा रहे थे. रामगढ़ शहर स्थित बाजार टांड़ के पास उन्हें पकड़ा गया. भीड़ ने उनकी पिटाई की तथा वैन में आग लगा दी. बाद में अलीमुद्दीन अंसारी की मौत हो गई.
तब इस मामले में सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया. इस साल 21 मार्च को रामगढ़ की एक अदालत ने 11 लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. इनमें भाजपा तथा हिंदूवादी संगठनों से जुड़े कुछ लोग भी शामिल हैं.
इसी मामले में झारखंड हाइकोर्ट से पिछले महीने 29 जून को आठ अभियुक्तों को और आठ जुलाई को एक को जमानत मिली है.
वैसे भी मॉब लिचिंग का यह मामला देश भर में सुर्खियों में रहा है. जिस दिन इस घटना को अंजाम दिया गया था उसी दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस तरह की हिंसाओं की निंदा भी कर रहे थे.
फिलहाल जयंत सिन्हा ने अभियुक्तों का स्वागत किया तो इस मामले को झारखंड से दिल्ली तक विपक्षी दलों और कुछ संगठनों ने तेजी से लपक लिया है. भाकपा माले ने पूरे राज्य में जयंत सिन्हा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है. जगह-जगह पुतला फूंका जा रहा है. सड़कों पर भाजपा के खिलाफ गुस्सा अलग ही दिख रहा है.
माले के पूर्व विधायक विनोद सिंह ने कहा है कि वोट की इस राजनीति में केंद्र सरकार के मंत्री ने मर्यादा तोड़ी ही है. इसका संकेत भी साफ तौर पर दे दिया है कि हत्यारी भीड़ के दोषियों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर उनका साथ है.
पूर्व आईपीएस अधिकारी और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने कहा है कि 11 जुलाई को झारखंड दौरे पर आए अमित शाह की उपस्थिति में जयंत सिन्हा का यह कहना कि अब बैकफुट पर लड़ाई नहीं होगी साफ तौर पर जाहिर करता है कि चुनावों की तैयारी में भाजपा ने अपना एक एजेंडा तय कर लिया है और वह है सांप्रदायिकता को हवा देना. जबकि जयंत सिन्हा को यह बताना चाहिए कि किन वजहों से उन्होंने उम्रकैद की सज़ा पाए दोषियों का महिमामंडन किया.
हालांकि मुलजिमों के स्वागत के बाद उठे विवाद पर केंद्रीय मंत्री ने मीडिया से कहा है कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं. इस कारण अभियुक्त और उनके परिवार के लोग मिलने आए थे. इस मामले में कानून और कोर्ट अपना काम कर रहा है. जो दोषी होंगे उन्हें सजा जरूर मिलेगी.
रामगढ़ में भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा मांडू विधानसभा से चुनाव लड़ते रहे महेश सिंह खुलकर सांसद तथा केंद्रीय मंत्री की तरफदारी करते हुए कहते हैं कि जयंत सिन्हा बेहद सहज सरल व्यक्तित्व वाले राजनेता हैं. हार्वर्ड से पढ़े लिखे विद्वान भी. हर चीज की बारीकी समझते हैं.
अभियुक्तों के परिवार वाले और भाजपा के कई नेताओं-कार्यकर्ताओं ने ही केंद्रीय मंत्री को बताया था कि इस मामले में पुलिस ने गलत दिशा में कार्रवाई की है. क्षेत्र के लोग भी कई मौके पर कहते रहे कि जनप्रतिनिधि होने के नाते निर्दोष लोगों की वे मदद करें.
जनता की भावना के मद्देनजर ही उन्होंने इस केस का अध्ययन किया है, दस्तावेजों को पढ़ा है. तभी तो उन्हें लगा कि इस मामले में संपूर्ण न्याय की जरूरत है.
महेश सिंह बताते हैं कि जेल से बाहर निकलने के बाद अभियुक्त और उनके परिजनों ने अपने सांसद से मिलने की इच्छा जताई थी.
अब इस मामले में विपक्ष जिस तरह का वितंडा खड़ा कर रहा है उससे जयंत सिन्हा के पद-प्रतिष्ठा और जमीनी पकड़ पर कोई असर नहीं पड़ने वाला.
लेकिन उम्र कैद की सजा पाए वे मुलजिम जिन पर भीड़ की शक्ल में हत्या करने का आरोप है, उन्हें माला पहनाने, मिठाई खिलाने के सवाल पर भाजपा नेता कहते है कि मंत्री जी से मिलने और मिलवाने में बहुत लोग थे. उसी भीड़ में किसी ने माला लाई थी जिसे उन्होंने पहना दिया. क्या पता था कि बेवजह इसे तूल दिया जाएगा. जयंत सिन्हा ने न माला मंगवाई थी न ही मिठाई.
हजारीबाग में भाजपा के जिला अध्यक्ष टुन्नू गोप का कहना है कि जेल जाने वाले कुछ लोग भाजपा के युवा कार्यकर्ता-समर्थक थे, जब उन्हें जमानत मिली, तो वे लोग स्थानीय जन प्रतिनिधियों के साथ क्षेत्र के सांसद से मिलने चले आए, तो इसमें क्या गलत है.
इधर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने इस मामले पर मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया है कि सब कुछ स्पष्ट होता दिख रहा है कि राज्य में इस तरह की घटनाएं सरकार और भाजपा द्वारा प्रायोजित हैं. जबकि हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा है कि भीड़ द्वारा हिंसा पर हर हाल में रोक लगाएं.
राज्य में प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं ने भी इसी बहाने भाजपा पर निशाने साधे हैं. जेएमम के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैः गो मांस से जुड़े मामले में उम्र कैद की सजा पाए अभियुक्तों का स्वागत करना भाजपा और उसकी सरकारों के नजरिया को साफ जाहिर करता है.
इससे पहले जयंत सिन्हा ने व्यक्तिगत तौर पर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास से मामले में सीबीआई जांच कराने का भी आग्रह किया है.
उन्होंने सार्वजनिक किया है कि एक जनप्रतिनिधि के कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए और मामले की संवेदनशीलता का संज्ञान लेते हुए जन अपेक्षाओं के अनुरूप ये कदम उठाए हैं. जबकि एक अभियुक्त रोहित ठाकुर की तबीयत खराब होने के बाद उसके समुचित इलाज के लिए पहल की तथा अभियुक्तों के परिवारो को पूर्ण सहयोग दिया है.
गौरतलब है कि मॉब लिंचिंग के इस मामले में रामगढ़ जिले में भाजपा के मीडिया प्रभारी नित्यानंद महतो को भी उम्र कैद की सजा सुनाई गई है. अब उन्हें भी जमानत मिली है.
इनके अलावा कुछ लोग हिंदूवादी संगठनों से जुड़े हैं. जाहिर है ये लोग भाजपा के समर्थन में चुनावों में भी काम करते रहे हैं. रामगढ़ में भाजपा के जिला अध्यक्ष पप्पू बनर्जी इससे इनकार नहीं करते. वे कहते हैं कि चुनावों में तो हर कैडर को लगना ही होता है.
पप्पू बनर्जी बताते हैं कि जेल से बाहर आने के बाद कुछ अभियुक्त के परिवार वालों ने ही एप्रोच किया था कि वे लोग सांसद सह केंद्रीय मंत्री से मिलना चाहते हैं.
हम लोग पॉलिटिकल आदमी हैं, कैसे इनकार करते. इसके बाद हम सभी लोग हजारीबाग पहुंचे थे. विपक्ष के पास कोई एजेंडा नहीं है इसलिए तूल दे रहा है.
पप्पू बनर्जी का कहना है कि न्यायिक व्यवस्था और फैसले पर हम लोगों को पूरा विश्वास है. लेकिन आप केस के दस्तावेज पढ़ेंगे, तो यह जाहिर होगा कि पुलिस की कार्रवाई ठीक नहीं थी. तभी तो संपूर्ण न्याय की बात की जा रही है.
गौरतलब है कि मॉब लिचिंग के इस मामले में 11 लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाए जाने के बाद रामगढ़ के पूर्व विधायक शंकर चौधरी और कई संगठनों ने अटल विचार मंच के बैनर तले पिछले अप्रैल-मई महीने में आंदोलन छेड़ रखा था.
जुलूस, प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी होने लगी और कई मौके पर भगवा झंडा लहराए गए. नारे भी लगे.
इस दौरान मॉब लिचिंग को लेकर कई सवाल खड़े किए जाते रहे. तब भाजपा नेताओं और संगठनों का जोर था कि अलीमुद्दीन हत्याकांड की जांच सीबीआई या एनएआई से कराई जाए क्योंकि पुलिस की पूरी कार्रवाई एकतरफा है.
नेता- संगठन इस बात पर भी जोर देते रहे कि अलीमुद्दीन की मौत पुलिस कस्टडी में हुई और पुलिस ने ही उसे मारा है. इसलिए उच्च स्तरीय जांच जरूरी है.
इस आंदोलन में हजारीबाग से भाजपा के पूर्व विधायक देवीदयाल कुशवाहा तथा बड़कागांव से पूर्व विधायक लोकनाथ महतो भी शामिल हुए थे. आंदोलन के तहत एक मई को बुलाया गया रामगढ़ बंद बिना हो- हुज्जत के काफी असरदार रहा था.
रामगढ़, हजारीबाग और बड़कागांव ये तीनों विधानसभा क्षेत्र वोट के लिहाज से हजारीबाग संसदीय क्षेत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है.
पिछले चुनाव में सिर्फ रामगढ़ से ही जयंत सिन्हा को लगभग 93 हजार वोट मिले थे.
हालांकि गोरक्षकों के समर्थन में आंदोलन कर रहे शंकर चौधरी इस बिना पर जयंत सिन्हा का विरोध करते रहे और आरोप लगाते रहे कि सांसद होने के नाते लोगों की भावना के अनुरूप केंद्रीय मंत्री सीबीआई जांच कराने की पहल नहीं कर रहे. और ना ही क्षेत्र की जनता की भावना का ख्याल रख रहे हैं.
हजारीबाग संसदीय क्षेत्र में वोटरों का मिजाज भांपने वाले इससे इनकार नहीं करते कि आंदोलन के जरिए एक मोड़ आया, जहां हिंदुत्व की लहरें बल खाने लगी थी. और लोगों की नाराजगी सांसद से बढ़ने लगी.
इस बीच राज्य में हुए शहरी निकाय चुनाव में रामगढ़ की दोनों सीटों पर भाजपा की हार हुई और सत्ता में शामिल आजसू पार्टी ने भाजपा को हराया. तब इसके गंभीरता को इसी बरक्स देखा जाने लगा.
नजाकत समझते हुए भाजपा के महत्वपूर्ण पदों पर काम करते रहे रामगढ़- हजाराबीग जिले के पदाधिकारी तब इस मिजाज को भांपने में कोई चूक करना नहीं चाहते थे.
हालांकि भाजपा के अंदरखाने ये बातें भी चलने लगी कि शंकर चौधरी इस आंदोलन के जरिए जयंत सिन्हा के खिलाफ मौहाल खड़ा करने की कोशिशों में जुटे हैं.
तब जयंत सिन्हा और उनके नजदीकियों के भी कान खड़े होने लगे कि इस हत्याकांड के बहाने उनके खिलाफ राजनीति की धारा मोड़ी जा सकती है.
अब जमानत पर छूटे अभियुक्तों का स्वागत किए जाने के सवाल पर शंकर चौधरी कहते हैं कि दस महीने तक तो जयंत सिन्हा इस ममले में खामोश रहे अचानक उनका प्रेम जग गया.
वे कहते है कि मुझे लंबी प्रतिक्रिया भी नहीं देनी. जयंत सिन्हा के पिता ने ट्वीट के जरिए बहुत कुछ कह दिया है. शंकर चौधरी इस बात से साफ इनकार करते हैं कि जयंत सिन्हा के खिलाफ उन्होंने माहौल खड़ा करने की कोशिश की थी. वे कहते हैं कि रामगढ़ की जनता सब कुछ जानती-समझती है.
इधर 29 जून को जमानत मिलने के बाद शंकर चौधरी भी अभियुक्तों से मिलते रहे. यह बात भी सामने आई है कि सभी अभियुक्तों को जमानत मिलने के बाद विजय जुलूस निकाला जा सकता है.
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रजत कुमार गुप्ता कहते हैं कि बेशक झारखंड में भाजपा के अधिकतर सांसदों को जमीन खटकती हुई दिख रही है. इससे जयंत सिन्हा अलग नहीं हो सकते हैं. कई स्तर पर सर्वे रिपोर्ट भी भाजपा के बहुत पक्ष में नहीं दिखती.
इस हालात में भाजपा को मास बेस चाहिए ही. तब भाजपा के पास कथित तौर पर एक ही मजबूत बेस है, हिंदुत्व का मसला उछालना.
फिर चुनावों से ठीक पहले हजारीबाग संसदीय क्षेत्र का तानाबाना इन समीकरणों के इर्द- गिर्द ज्यादा केंद्रित होता रहा है. गुंजाइश है कि मॉब लिचिंग के इस मामले के जरिए जयंत सिन्हा समीकरणों को साधने की कोशिश कर रहे हों. मुझे लगता है कि निहायत उनकी राजनीतिक मजबूरियां रही होंगी.
वैसे भी हजारीबाग संसदीय क्षेत्र पर इस बार पूरे देश की नजरें टिकी है.
दरअसल भाजपा और केद्र सरकार की कार्यशैली, नीतियों से खफा चल रहे यशवंत सिन्हा ने पिछले 21 अप्रैल को भाजपा से अपने सभी संबंधों को समाप्त करने की घोषणा के साथ दलगत राजनीति से संन्यास ले लिया है.
हालांकि राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कथित नई रिवाज के तहत भाजपा यह अहसास कराने की कोशिश करती रही है कि किसी नेता या शख्स के जाने या नाराजगी से पार्टी की सेहत पर फर्क पड़ने वाला नहीं है.
भारतीय प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आने के बाद यशवंत सिन्हा ने हजारीबाग को ही कर्मस्थली बनाया था. उनके धुर विरोधी भी मानते हैं कि दो दशकों से ज्यादा वक्त में उन्होंने अपना खासा प्रभाव जमाया है.
1998, 1999 और 2009 के संसदीय चुनावों में यशवंत सिन्हा ने हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से जीत दर्ज की थी. वे देश के वित्त और विदेश मंत्री भी रहे. जबकि 2004 के चुनाव में विपक्ष के एकजुट होकर लड़ने पर हार गए थे.
बदली परिस्थितियों में ये सवाल उठते रहे हैं कि पिता की गैर मौजूदगी जयंत सिन्हा की चुनावी राह कठिन हो सकती है.
गौरतलब है कि 2014 में जयंत सिन्हा पहली दफा हजारीबाग से चुनाव लड़े थे. हालांकि चुनाव में पिता यशवंत सिन्हा ही जयंत के सारथी थे जबकि नरेंद्र मोदी सबसे बड़े ब्रांड. तब यशवंत सिन्हा ने पुत्र की जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
लिहाजा सारे समीकरण पक्ष में होते चले गए और जयंत सिन्हा एक लाख 59 हजार 128 वोट से चुनाव जीते.
पहली दफा चुनाव जीतने वाले चेहरे को मंत्री बनाए जाने में जयंत सिन्हा को भी शामिल किया गया. अभी वे नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
अब 2019 के संसदीय चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं और भाजपा के अंदर तैयारियों को लेकर हलचल तेज है.
यशवंत सिन्हा के बगावती तेवर के बाद झारखंड में सरकार और संगठन से जयंत सिन्हा के रिश्ते पहले से बेतहर बने हैं, लेकिन चुनाव जीतने के लिए जनता की अदालत में तौले वही (जयंत सिन्हा) जाएंगे.
रामगढ़ में सांसद प्रतिनिधि रवींद्र शर्मा कहते हैं कि पार्टी का हर कार्यकर्ता उनके साथ डटकर खड़ा है. वैसे चार सालों में सांसद-मंत्री के नाते जयंत सिन्हा ने भी अपनी अलग पहचान बनाई है और खुद को स्थापित किया है.
मंत्री होने के बाद भी क्षेत्र को उन्होंने भरपूर समय दिया है और विकास योजनाओं को लेकर उनकी समझ का जोड़ नहीं हो सकता. यह ठीक है कि यशवंत सिन्हा का तजुर्बा बहुत रहा है, लेकिन जयंत सिन्हा कम समय में हर वर्ग तक पहुंचने में सफल रहे हैं.
गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले जयंत सिन्हा ने ट्वीटर के जरिए दावा किया था कि हजारीबाग में अद्वितीय विकास हुआ है. हमनें एक तरफ विश्व स्तरीय प्रोजेक्ट शुरू किए और दूसरी तरफ मूलभूत सुविधाएं दी है.
केंद्रीय मंत्री ने ‘हैप्पी हजारीबाग’ का स्लोगन दिया है जबकि जबकि उनके समर्थक ‘कहो दिल से जयंत सिन्हा फिर से’ इस स्लोगन को उछालने में जुटे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक रजत कुमार गुप्ता कहते हैं कि जयंत सिन्हा एक सुसंस्कृत, हार्वर्ड से पढ़े लिखे कई विषयों के जानकार हो सकते हैं, वे विजनरी भी हैं, लेकिन चुनावी बिसात पर मोहरे बिछाने का उनका अनुभव अगले चुनाव में ही परखा जाना है.
वैसे जयंत सिन्हा के सुलझे होने, उनकी योग्यता के आधार पर फायदा उन्हें मिल सकता है, लेकिन हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के समीकरण अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब से तय होते हैं. जबकि यशवंत सिन्हा को अपने विरोधियों को साधने में भी महारत थी. इसलिए इस चुनाव में यशवंत सिन्हा के प्रत्यक्ष तौर पर सामने नहीं आने से जयंत की मुश्कलें बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता.
रामगढ़ में भाजपा के नेता प्रकाश मिश्रा कहते हैं कि पिछले चुनाव में ही जयंत सिन्हा ने क्षेत्र को समझ लिया था. चुनाव जीतने और मंत्री पद की जिम्मेदारी मिलने के बाद उनका कद बढ़ा है और उनके काम करने का ढंग, नजरिया औरों से हटकर है. यही वजह है कि कार्यकर्ता- वोटर से सीधा संपर्क स्थापित करने में जयंत सिन्हा सफल होते जा रहे हैं. वे बड़े अंतर से चुनाव जीतेंगे क्योंकि इस देश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया है.
हालंकि जयंत सिन्हा के खिलाफ विपक्ष से कौन उम्मीदवार होगा तथा विपक्षी दलों के गठबंधन का स्वरूप क्या होगा इस बारे में अभी स्पष्ट तस्वीर नहीं है. राज्य में उनकी सरकार कई फ्रंट पर अलग ही विरोध का सामना कर रही है.
जाहिर है अगले कुछ महीनों में पानी का कई घाट से बहना बाकी है. और इसकी गहराई नापने में जयंत सिन्हा को कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं.)