विशेष रिपोर्ट: प्रधानमंत्री के जनसंवाद कार्यक्रम से लौटते समय सड़क दुर्घटना में हुई वैकुंठी जाटव की मौत. किसी योजना में लाभार्थी नहीं थीं मृतक. छत बनवाने का लालच देकर बुलाया था जयपुर.
सात जुलाई को जयपुर में हुए ‘प्रधानमंत्री लाभार्थी जनसंवाद’ कार्यक्रम में भीड़ जुटाने की आपाधापी अलवर जिले की दलित महिला वैकुंठी जाटव के लिए जानलेवा साबित हुई. इन्हें सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं मिला, लेकिन प्रशासन उन्हें ‘उज्ज्वला योजना’ की लाभार्थी बताकर जयपुर ले गया, जहां कार्यक्रम खत्म होने के बाद अज्ञात वाहन की टक्कर से उनकी मौत हो गई.
गौरतलब है कि इस कार्यक्रम का नाम तो ‘प्रधानमंत्री लाभार्थी जनसंवाद’ था, लेकिन इसमें तय की गई 12 योजनाओं के एक भी लाभार्थी को अपने मन की बात कहने का मौका नहीं मिला.
कार्यक्रम में एक ओर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुनिंदा लाभार्थियों की वीडियो क्लिप दिखाकर अपनी सरकार की पीठ थपथपाई, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण के ज़रिये केंद्र व राज्य सरकार का गुणगान किया.
शर्म की बात यह है कि वैकुंठी की मौत पर अफसोस जताने की बजाय वसुंधरा सरकार उन्हें उज्ज्वला योजना की लाभार्थी बताने पर अड़ी है. उनके घर रातोंरात गैस सिलेंडर पहुंच चुका है. यही नहीं, सरकार ने मृतका की चिता की आग ठंडी होने से पहले ही उनके परिवार को 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता भी दे दी.
साथ ही कई योजनाओं में लाभ देने का वादा भी कर दिया. सरकार की इस फुर्ती से मृतक का परिवार हतप्रभ है. वह समझ नहीं पा रहा कि अचानक सरकार उन पर इतनी मेहरबान कैसे हो गई.
अलवर की कठूमर तहसील के समूची गांव की रहने वाली 60 साल की वैकुंठी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुन बस में बैठने के लिए लौट रही थी तो अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी. उनके साथ चल रहे लोग उन्हें राजधानी जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
प्राय: इस प्रकार की घटनाओं पर शोक जताकर भूल जाने वाली सरकार उस समय भौचक रह गई जब यह पता लगा कि मृतक ‘उज्ज्वला योजना’ की लाभार्थी नहीं थी.
सरकार ने मामले को खुलने से रोकने का ज़िम्मा खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री बाबू लाल वर्मा और कठूमर से भाजपा विधायक मंगल राम को दिया.
सूत्रों के अनुसार, ये दोनों जब सवाई मान सिंह अस्पताल गए तो वहां मौजूद अलवर ज़िले के अधिकारियों ने इनके सामने यह आशंका जताई कि यदि शव को अभी गांव ले जाया जाएगा तो बवाल हो सकता है. तय हुआ कि पोस्टमॉर्टम यहीं होगा. आनन-फानन में मृतक के बेटे अशोक जाटव को सरकारी गाड़ी से जयपुर बुलाया.
इस दौरान ‘द वायर’ से बातचीत में अशोक जाटव ने साफतौर पर कहा कि उनके परिवार को अब तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है.
उन्होंने कहा, ‘हमने गांव के सरपंच और सचिव से कई बार घर की छत, शौचालय और गैस कनेक्शन के लिए कहा, लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई. हमें आज तक सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है. ग्राम सचिव मेरी माता जी को यह कहकर जयपुर ले गया कि वहां जाने से आवास योजना के तहत घर की छत बनाने का पैसा मिल जाएगा.’
वहीं, वैकुंठी की पुत्रवधु किरण ने राजस्थान पत्रिका से बातचीत में इन्हीं बातों को दोहराया.
उन्होंने कहा, ‘हमें अभी तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है. मेरी सास ने आवास योजना, शौचालय निर्माण और गैस कनेक्शन के लिए कई बार ग्राम पंचायत सरपंच और सचिव से कहा मगर कुछ भी नहीं हुआ. हमारे मकान पर छत तक नहीं है.’
उनके पड़ोसियों ने भी वैकुंठी के उज्ज्वला योजना में लाभार्थी नहीं होने की पुष्टि की. वैकुुंठी के पड़ोसियों के मुताबिक उनके परिवार की माली हालत बहुत खराब है. पति की कुछ महीने पहले ही मौत हुई है. गोद लिया हुआ बेटा अशोक और उनकी पत्नी के पास भी कोई स्थायी रोजगार नहीं है. घर में पक्की दीवारें तो हैं, लेकिन छत नहीं है.
पड़ोसियों के अनुसार, वैकुुंठी पिछले कई महीनों से गांव के सरपंच और सचिव के पास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर की छत बनवाने की गुहार लगा रहीं थी. ग्राम सचिव उन्हें इसे बनवाने का दिलासा देकर ही जयपुर ले गए.
वसुंधरा सरकार ने इस मामले की लीपापोती करने में भी वैकुंठी के परिवार की गरीबी का फायदा उठाया. सरकार को यह पता था कि यदि मृतक के परिजन सच बोले तो ‘प्रधानमंत्री लाभार्थी जनसंवाद’ में भीड़ बुलाने में हुए गड़बड़झाले की पोल खुल जाएगी.
खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री बाबू लाल वर्मा और कठूमर विधायक मंगल राम ने कोई खतरा मोल नहीं लिया. दोनों शव के साथ रात्रि 11 बजे समूची गांव पहुंचे.
मंत्री और विधायक ने रात में ही अंतिम संस्कार करने की बात कही तो मृतक के बेटा-बहू तो तैयार हो गए, लेकिन ग्रामीण भड़क गए. उन्होंने प्रशासन पर लाभार्थी नहीं होने के बाद भी वैकुंठी को जयपुर ले जाने का आरोप लगाते हुए परिवार को मुआवज़ा देने की मांग की. मंत्री बाबू लाल वर्मा ने ग्रामीणों के सामने ही मुख्यमंत्री से संपर्क किया और रात्रि 12 बजे 10 लाख रुपये आर्थिक सहायता देने की घोषणा की.
यदि सरकार के मन में कोई खोट नहीं होता तो मंत्री और विधायक आर्थिक सहायता की राशि पर सहमति बनने के बाद अपने-अपने घर लौट जाते, लेकिन उन्होंने तुरंत अंतिम संस्कार करने को कहा.
ग्रामीणों ने ना-नुकुर की तो पुलिस और प्रशासन ने दबाव बनाया. आखिरकार रात्रि दो बजे अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू हुई, जो पांच बजे पूरी हुई. ज्योतिषाचार्य पंडित दिनेश शास्त्री के अनुसार, हिंदू धर्म में सूर्यास्त के बाद चिता को अग्नि देना शास्त्र सम्मत नहीं है.
अंतिम संस्कार ही नहीं, आर्थिक सहायता देने में भी मंत्री बाबू लाल वर्मा ने गजब की फुर्ती दिखाई. वे चिता की आग ठंडी होने से पहले ही 10 लाख रुपये का चेक सौंपने वैकुंठी के घर पहुंच गए, लेकिन वहां उन्हें पता लगा कि परिवार में किसी का बैंक खाता ही नहीं है. इस स्थिति में वे चेक सौंपकर जा सकते थे. वैकुंठी के परिजन खाता खुलवाकर इसे भुना लेते. मगर उन्होंने ऐसा करने की बजाय फिर से मुख्यमंत्री कार्यालय से संपर्क साधा.
मुख्यमंत्री के यहां से पांच लाख नकद और पांच लाख रुपये का चेक वैकुंठी के परिजनों को देने का निर्देश मिला. मंत्री ने इसका पालन करने में ज़रा भी देर नहीं की. उन्होंने 5 लाख रुपये नकद और इतनी ही राशि का चेक मृतक के परिजनों को सौंप दिया.
सरकार के इस उपकार का असर दिखाई दे रहा है! वैकुंठी के परिजन अब इस मामले में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. बार-बार पूछने पर इतना ही कहते हैं, ‘साहब गरीब आदमी हैं. बोलेंगे तो कोई चक्कर पड़ जाएगा.’
हालांकि सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि वैकुंठी के परिवार की स्थिति दयनीय है इसलिए उनके परिजनों को फटाफट आर्थिक सहायता दी गई. सरकार का यह तर्क दो कारणों से गले नहीं उतर रहा.
पहला यह कि सरकार आर्थिक सहायता उन्हें ही दी जाती है जिनकी माली हालत खराब हो और दूसरा बाकी मामलों में सरकारी मदद इस रफ्तार से नहीं पहुंचती.
शहीदों के परिवारों तक को सरकार की ओर से निर्धारित पैकेज को देने में इतनी सुस्ती बरती जाती है कि कई महीनों तक उन्हें एक फूटी कौड़ी नहीं मिलती. परिजन सरकारी दफ्तरों में कई बार चक्कर लगाते हैं तब जाकर सरकार की तिजोरी खुलती है.
अलवर ज़िले में ही पिछले पांच महीने में तीन जवान शहीद हो चुके हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी अभी तक सरकार की ओर से कुछ नहीं मिला है.
गौरतलब है कि राजस्थान सरकार ने शहीदों के लिए एक पैकेज तय कर रखा है. इसमें शहीद के परिवार को तुरंत एक लाख रुपये की सहायता, 25 बीघा ज़मीन/फ्लैट/20 लाख रुपये नकद, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, स्थानीय स्कूल का नामकरण, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की बसों में नि:शुल्क यात्रा व बच्चों को निशुल्क शिक्षा शामिल हैं.
वैकुंठी के परिजनों को तुरत-फुरत में आर्थिक सहायता देने के अलावा उन्हें लाभार्थी घोषित करने का खेल भी सवालों के घेरे में है. सरकार के मुताबिक वे उन्हें उज्ज्वला योजना का लाभ मिला था, लेकिन क्षेत्र की गैस एजेंसी पर इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है.
देवऋषि गैस एजेंसी के कुंदन लाल शर्मा बताते हैं, ‘वैकुंठी जाटव को न तो हमारे यहां से उज्ज्वला योजना में गैस कनेक्शन मिला और न ही उन्होंने आवेदन किया.’
स्थानीय प्रशासन के मुताबिक वैकुंठी को खेरली की देवऋषि गैस एजेंसी से नहीं, बल्कि तसई की अंजलि भारत गैस एजेंसी से मई में कनेक्शन मिला था. मृतक के गांव समूची से खेरली महज़ दो किलोमीटर दूर है जबकि तसई से इसकी दूरी 25 किलोमीटर है. ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि कोई दो किलोमीटर की दूरी पर मौजूद गैस एजेंसी को छोड़कर 25 किलोमीटर दूर की एजेंसी से कनेक्शन क्यों लेगा.
गैस एजेंसी की दूरी को नज़रअंदाज़ कर दें तो भी वैकुंठी के लाभार्थी होने पर शंका खत्म नहीं होती. नौ जुलाई को वसुंधरा सरकार के मंत्री और स्थानीय प्रशासन की मौजूदगी में मीडिया को जो गैस सिलेंडर और चूल्हा दिखाया गया वह हिंदुस्तान पेट्रोलियम का था जबकि अंजलि गैस एजेंसी भारत पेट्रोलियम की ओर से अधिकृत है. यानी वैकुंठी के घर पर रखा सिलेंडर इस एजेंसी का नहीं है.
‘द वायर’ ने अंजलि गैस एजेंसी से वैकुंठी को मिले गैस कथित कनेक्शन का विवरण जानने के लिए कई बार संपर्क किया, लेकिन हर बार सर्वर डाउन होने का जवाब मिला. एजेंसी के संचालक उज्ज्वला योजना के अंतर्गत मृतक वैकुंठी की पंजीकरण संख्या बताने तक को तैयार नहीं हैं. गौरतलब है कि इस योजना में ऑनलाइन पंजीकरण होता है, जिसमें फेरबदल संभव नहीं है. यदि यह बाहर आई तो सरकार की पोल खुलनी तय है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है और जयपुर में रहते हैं.)