औरंगाबाद: दंगा पीड़ित दुकानदारों को क्यों लग रहा है कि नीतीश सरकार उन्हें ठग रही है?

ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के औरंगाबाद में मार्च महीने में रामनवमी के समय हुई सांप्रदायिक हिंसा में कई दुकानों में लूटपाट कर आग लगा दी गई थी. उस समय नीतीश सरकार ने पीड़ित दुकानदारों को मुआवज़ा देने की बात कही थी, लेकिन चार महीने बाद भी ज़्यादातर दुकानदारों को एक रुपया भी मुआवज़ा नहीं मिला है.

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Aurangabad: A scene of arson after violent clashes between two groups during a Ramnavmi procession in Aurangabad district on Monday. PTI Photo (PTI3_26_2018_000132B)

ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के औरंगाबाद में मार्च महीने में रामनवमी के समय हुई सांप्रदायिक हिंसा में कई दुकानों में लूटपाट कर आग लगा दी गई थी. उस समय नीतीश सरकार ने पीड़ित दुकानदारों को मुआवज़ा देने की बात कही थी, लेकिन चार महीने बाद भी ज़्यादातर दुकानदारों को एक रुपया भी मुआवज़ा नहीं मिला है.

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नुरूल हसन के गैरेज में जला हुआ ट्रक. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

औरंगाबाद टाउन (बिहार): औरंगाबाद टाउन में एनएच-2 पर बाईं तरफ बनी गैरेज में रखे ट्रक के पिछले और अगले हिस्से में दाईं तरफ के चक्के जले हुए हैं. चक्के से लगे लोहे ऐसे बाहर निकले हुए हैं जैसे चमड़ी झुलस जाने के बाद हड्डियां बाहर निकल आई हों. ट्रक के करीब जले हुए टायरों की राख पड़ी है. राख के बीच एक कार है. वह कार भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है.

करीब चार महीने पहले 26 मार्च को औरंगाबाद टाउन में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद दुकानों में लूटपाट और आगजनी की खौफनाक घटना के ये बचे-खुचे निशान हैं.

मजहबी नफरत की भयावह तस्वीर पेश करते ये निशान इसलिए भी बचे हुए हैं क्योंकि आगजनी की घटना के बाद नीतीश सरकार ने वादा किया था कि पीड़ितों को जल्दी मुआवजा दिया जाएगा. लेकिन, अब तक मुआवजा नहीं मिला है.

एनएच-2 के किनारे बने इस गैरेज को नुरूल हसन चलाते हैं. वह कहते हैं, ‘ट्रक और क्रेन समेत चार गाड़ियों में खूब तोड़फोड़ की गई और फिर उन्हें आग के हवाले कर दिया गया. इस आगजनी में 40 से 50 लाख रुपये का नुकसान हो गया, लेकिन अब तक एक रुपया भी मुआवजा नहीं मिला है.’

नुरूल हसन बताते हैं, ‘दंगे के बाद प्रशासनिक अधिकारी आए थे. उन्होंने नुकसान का आकलन कर मुआवजा देने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन तीन महीना गुजर जाने के बाद भी कुछ होता नहीं दिख रहा है.’

इसी साल मार्च में रामनवमी जुलूस व शोभायात्राएं निकालने के दौरान बिहार के आधा दर्जन जिलों में दो समुदायों के बीच तनाव की घटनाएं हुई थीं. कुछ इलाकों में हिंसक वारदातें भी हुई थीं.

राजपूतों की ठीक ठाक आबादी के कारण बिहार का चित्तौड़गढ़ कहे जाने वाले औरंगाबाद जिले के औरंगाबाद टाउन में सबसे ज्यादा हिंसक वारदातें हुई थीं.

बताया जाता है कि 25 मार्च को मुसलिम बहुल नवाडीह के नवाडीह रोड से होकर रामनवमी को लेकर बाइक जुलूस निकला था. मुसलिम समुदाय के लोगों का आरोप है कि इस जुलूस में आपत्तिजनक नारे लगाए गए थे, जिसका विरोध करने पर दोनों समुदायों में तनाव हो गया था. लेकिन, मामले को तत्काल ही शांत कर दिया गया.

उसके एक दिन बाद यानी 26 मार्च को रामनवमी को लेकर शोभायात्रा निकाली गई. चूंकि 25 मार्च को दो समुदायों में तनाव हुआ था, इसलिए प्रशासन ने एहतियाती तौर पर पूरे इलाके में धारा 144 लगा दी थी.

यह निषेधाज्ञा 26 को भी जारी रही, लेकिन रामनवमी की शोभायात्रा निकालने की इजाजत दी गई थी. दोपहर को जुलूस रमेश चौक से होकर जामा मस्जिद की तरफ बढ़ रही थी, उसी वक्त दुकानों में तोड़फोड़ व आगजनी की गई.

गौर करने वाली बात ये है कि शोभायात्रा जिस रोड से होकर गुजर रही थी, उस रोड की कुछ दुकानों के साथ ही रमेश चौक से दाईं तरफ जाने वाली एमजी रोड और आगे चलकर मिलने वाले एनएच-2 के किनारे की दुकानों को भी निशाना बनाया गया था. जबकि उस रूट से शोभायात्रा का कोई लेना-देना ही नहीं था.

बलवे में कितनी दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया, इसको लेकर अलग-अलग आंकड़े हैं. 7 अप्रैल को औरंगाबाद के अंचल कार्यालय का निरीक्षण करने के लिए डीएम राहुल रंजन महिवाल आए थे, तो अंचलाधिकारी (सीओ) ने मीडिया के सामने कहा था कि 99 दुकानों (जिन्हें नुकसान पहुंचा है) को चिंह्रित किया गया है. इनमें खोमचे-ठेलेवालों से लेकर बड़ी दुकानें भी शामिल हैं.

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अवधेश प्रसाद की कपड़े की दुकान है. वहां कपड़े की कई दुकानें हैं, लेकिन उनकी दुकान को ही निशाना बनाया गया. आगजनी में उन्हें करीब 8 लाख रुपये का नुकसान हुआ. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

वहीं, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट नाम के एनजीओ के अनुसार 50 से ज्यादा दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया था.

बहरहाल, पूरे मामले में दिलचस्प बात यह है कि एमजी रोड सघन इलाका है. वहां कतार में सैकड़ों बड़ी-छोटी दुकानें गुलजार हैं, लेकिन गिनी-चुनी दुकानों को ही निशाना बनाया गया.

एक स्थानीय पत्रकार कहते हैं, ‘जितनी दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया, उनमें से 90 प्रतिशत से ज्यादा दुकानें मुसलमानों की हैं. इससे साफ तौर पर जाहिर होता है कि बलवाइयों का उद्देश्य ही था मुसलमानों की दुकानों को टारगेट करना.’

स्थानीय पत्रकार के बयान की तस्दीक रमेश चौक के निकट स्थित सदर अस्पताल के पास कपड़े की दुकान चलानेवाले अवधेश प्रसाद भी करते हैं. बलवाइयों ने उनकी दुकान को भी आग के हवाले कर दिया था. अवधेश प्रसाद कहते हैं, ‘मेरी दुकान में आग तो धोखेबाजी (बलवाइयों ने उनकी दुकान को मुसलमान की दुकान समझ लिया था) में लगा दी गई थी.’

उनकी बातों पर यकीन करने में कोई किंतु-परंतु नहीं, क्योंकि उस कतार में कपड़े की और भी दुकानें हैं, लेकिन उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाया गया.

अवधेश प्रसाद 20 साल से यहां कपड़े की दुकान चला रहे हैं. घटना के दिन 144 धारा लगी हुई थी, इसलिए उन्होंने अपनी दुकान बंद कर रखी थी. उन्होंने कहा, ‘आगजनी के कारण मुझे 7-8 लाख का नुकसान हो गया. दो महीने तक दुकान बंद रखनी पड़ी. किसी तरह कर्ज लेकर दुकान को फिर से खड़ा किया.’

उन्हें तत्काल राहत के लिए 20 हजार रुपये का एक चेक मिला था. लेकिन, आगजनी से हुए नुकसान का मुआवजा उन्हें नहीं मिला है. अवधेश प्रसाद कहते हैं, ‘मैंने सभी दस्तावेज प्रशासन को दिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ.’

नुरूल हसन और अवधेश प्रसाद की तरह ही ऐसे और भी दुकानदार हैं, जिनकी दुकानों में रखा सारा सामान दंगाइयों ने फूंक दिया था. घटना के तुरंत बाद पीड़ितों से मिलकर प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें आश्वस्त किया था कि जल्द से जल्द मुआवजा दिया जाएगा.

उस आश्वासन के चार महीने होने को हैं, लेकिन मुआवजे के नाम पर उन्हें फूटी कौड़ी नहीं मिली. हालांकि, फुटपाथी दुकानदारों व जिन्हें बहुत कम नुकसान हुआ है, उन्हें 5 हजार से लेकर 20 से 30 हजार रुपये तक मुआवजा मिला है, मगर जिन्हें ज्यादा नुकसान हुआ है, उन्हें अब तक कुछ नहीं मिला.

ऐसे ही एक दुकानदार हैं मीर असलम. 48 वर्षीय मीर असलम औरंगाबाद के ही अलीनगर में रहते हैं. वह नुरूल इस्लाम के गैरेज के सामने ही भारी वाहनों का पंक्चर बनाते हैं और नया टायर भी बेचते हैं. 15 साल से वह यहां दुकान चला रहे हैं.

उन्होंने दुकान के बाहर 150 से ज्यादा टायर रखे थे. उपद्रवियों ने सभी टायर और चक्के में हवा भरने की टंकी को आग के हवाले कर दिया था. आगजनी में उन्हें ढाई से तीन लाख रुपये का नुकसान हो गया.

मीर असलम रुआंसा होकर कहते हैं, ‘प्रशासन ने जो भी दस्तावेज मांगे थे, लेकिन कोई मुआवजा नहीं मिला.’

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आगजनी के चलते मीर असलम को एक महीने तक दुकान बंद रखनी पड़ी. कर्ज लेकर दोबारा उन्होंने दुकान खोली. उन्हें भी मुआवजे का इंतजार है. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

आगजनी के बाद उन्हें एक महीने तक दुकान बंद रखनी पड़ी. लेकिन, कब तक वे दुकान बंद रखते, आखिर परिवार के खाने-पीने और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी तो है. लिहाजा, उन्होंने कर्ज लेकर किसी तरह फिर दुकान खोली.

वह बताते हैं, ‘जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई होने में एक साल लग जाएगा.’ उन्होंने आगे कहा, ‘एक बार पता चला कि 5-5 हजार रुपये आर्थिक मदद के तौर पर दिए जा रहे हैं. लेकिन, मैं जब पहुंचा, तो पता चला कि पैसा खत्म हो गया.’

मोहम्मद शकील की दुकान एमजी रोड में है. वह नट-वोल्ट से लेकर तमाम चीजें बेचते हैं. 26 मार्च की सुबह वह दुकान खोलने आए थे, तो पुलिस ने कहा कि धारा 144 लागू है, इसलिए दुकान नहीं खोल सकते.

वह कहते हैं, ‘प्रशासन की तरफ से मना किए जाने के कारण हम लोग वापस घर चले गए. दोपहर को स्थानीय लोगों ने फोन कर बताया कि दुकान में दंगाइयों ने आग लगा दी है.’

शकील ने बताया, ‘घटना के बाद दुकान को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए सरकारी अफसरों की टीम आई थी. वे आकलन कर रिपोर्ट ले गए. बताया गया कि राहत कोष से फिलहाल 1.5 लाख रुपये मिलेगा. लेकिन, अभी तक डेढ़ रुपया भी नहीं मिला है.’

एनएच-2 पर ही वाहन रिपेरिंग की दुकान चलाने वाले मोहम्मद महफूज की दुकान तो बच गई, लेकिन कई टायर व हवा भरने की मशीन जला दिए गए थे. उन्होंने कहा, ‘बलवाई दुकान भी जला ही देते, लेकिन दुकान से ही सटी हुई गैस की दुकान है और ऊपरी मंजिल पर लोग रहते हैं. गैस दुकानदार व अन्य लोगों ने बलवाइयों से मिन्नतें कीं कि आगजनी से गैस सिलिंडर फटेंगे और बहुत लोगों की मौत हो जाएगी, तो उन्होंने दुकान छोड़ दी.’

महफूज को 30 से 35 हजार रुपये का नुकसान हुआ था. उन्होंने कहा, ‘मुआवजे के लिए डीएम के पास गए, तो उन्होंने ब्लॉक कार्यालय जाने को कहा. ब्लॉक कार्यालय में गए, तो वापस डीएम के पास जाने को कहा गया. मुआवजे के नाम पर इस दफ्तर से उस दफ्तर में चक्कर लगवाया जा रहा है.’

एमजी रोड में ही इमरोज खान की कपड़े और जूते की दुकान है. बलवाइयों ने जूते की दुकान को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया था.

इमरोज खान कहते हैं, ‘मेरी दुकान के सामने पुलिस की गाड़ी खड़ी थी, लेकिन चार घंटे तक उत्पातियों ने दुकान की लूटपाट की और फिर उसे आग के हवाले कर दिया. कपड़े की दुकान को भी वे नुकसान पहुंचाना चाहते थे, लेकिन उक्त बिल्डिंग की मालकिन (जो हिंदू हैं) ने उसे किसी तरह बचा लिया.’

इमरोज के मुताबिक, रामनवमी से ठीक तीन दिन पहले 16 लाख रुपये का स्टॉक मंगवाया था. उनका आकलन है कि आगजनी में 55-60 लाख रुपये का नुकसान हो गया.

उन्होंने कहा, ‘नुकसान का आकलन करने के लिए टीम आई थी. उन्होंने 5 लाख का नुकसान बताया. मैंने डीएम को बताया कि इससे ज्यादा नुकसान हुआ है, तो डीएम ने दोबारा जांच टीम बनाई. लेकिन, अभी तक मुआवजे के नाम पर एक रुपया भी नहीं मिला है.’

उनकी दुकान में 6 लोग काम करते थे. आगजनी के बाद कई दिनों तक दुकान बंद रही जिस कारण 5 कर्मचारी काम की तलाश में दूसरे राज्यों में चले गए.

इमरोज खान की दुकान में काम करने वाले एक कर्मचारी ने कहा, ‘आगजनी के बाद जितने दिन तक दुकान बंद रही, मैं बेरोजगार रहा. घर चलाने में बड़ी दिक्कत हुई.’

इमरोज खान कहते हैं, ‘मेरी किसी से दुश्मनी नहीं थी. मैं रामनवमी व अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में न केवल चंदा देता था बल्कि खुद भी शामिल रहता था, लेकिन मेरी दुकान को भी निशाना बनाया गया.’

उन्हें किसी समुदाय से नहीं बल्कि नीतीश सरकार से नाराजगी है. उन्होंने कहा, ‘नीतीश कुमार कहते हैं कि वह सेकुलर नेता हैं, लेकिन प्रभावित दुकानदारों को उनकी सरकार की तरफ से किसी तरह का सहयोग नहीं मिला है.’

औरंगाबाद नगर परिषद के चेयरमैन उदय कुमार गुप्ता ने कहा कि सभी तो नहीं मगर कुछ दुकानदारों को मुआवजा दिए जाने की खबर है, लेकिन इस संबंध में विस्तृत सूचना डीएम कार्यालय से ही मिलेगी.

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इमरोज खान का कहना है कि उनकी जूते की दुकान में पहले लूटपाट की गई और इसके बाद उसे आग के हवाले कर दिया गया. उनके मुताबिक, आगजनी के चलते उन्हें 50 लाख का नुकसान हुआ है, लेकिन मुआवजे में चवन्नी नहीं मिली. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

स्थानीय विधायक व कांग्रेस नेता आनंद शंकर सिंह भी स्वीकार करते हैं कि ज्यादातर दुकानदारों को मुआवजा नहीं मिला है.

उन्होंने कहा, ‘मुआवजा मिलना तो दूर नुकसान के नाम भी महज खानापूर्ति की गई. हमने विधानसभा में इस मुद्दे को उछाला, तब जाकर दोबारा नुकसान का आकलन किया गया. दुकानदारों को अब तक मुआवजा नहीं मिलना नीतीश सरकार की उदासीनता का सबूत है.’

सिंह ने कहा कि वह मानसून सत्र में दोबारा इस मुद्दे को उठाएंगे और प्रभावितों को जल्द मुआवजा देने की मांग करेंगे.

मुआवजे को लेकर औरंगाबाद के डीएम राहुल रंजन महिवाल की प्रतिक्रिया लेने के लिए उनके आधिकारिक मोबाइल नंबर पर कॉल किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया.

अलबत्ता, औरंगाबाद के अंचल कार्यालय के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर यह स्वीकार किया कि ज्यादातर दुकानदारों को अब तक मुआवजा नहीं मिला है. लेकिन, उन्होंने मुआवजा नहीं मिलने की वजह सरकारी उदासीनता की जगह दस्तावेज का नहीं होना बताया.

उन्होंने कहा, ‘मुआवजे को लेकर अखबारों में विज्ञापन जारी कर जरूरी दस्तावेज कार्यालय में जमा करने को कहा गया था, लेकिन ज्यादातर दुकानदारों ने जरूरी दस्तावेज जमा नहीं किए.’

प्रभावित दुकानदार उक्त अधिकारी के बयान से इत्तेफाक नहीं रखते. ज्यादातर दुकानदारों का कहना है कि जो भी दस्तावेज मांगे गए थे, जमा किए गए.

मीर असलम ने कहा, ‘ब्लॉक कार्यालय से कर्मचारी आए थे और जांच कर गए. उन्हें आधार कार्ड से लेकर बैंक अकाउंट व अन्य सभी कागजात दिए गए. कर्मचारियों ने कहा था कि बैंक अकाउंट में पैसा जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ.’

अंचल कार्यालय के उक्त अधिकारी ने कहा कि दुकानदारों को मुआवजा देने के लिए कैंप लगाने की योजना पर विचार चल रहा है. इस कैंप में दुकानदारों से दस्तावेज लिए जाएंगे और मुआवजे की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

पिछले लगभग चार महीने से मुआवजे की राह ताक रहे पीड़ित दुकानदारों में इस सूचना से जरा भी खुशी नहीं है. उन्हें लगता है कि चार महीने से मुआवजा लटकाए रखने के लिए अपनाए गए तमाम हथकंडों की तरह यह भी एक हथकंडा है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं.)

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