बिहार में दो साल से लागू बिहार मद्य निषेध व उत्पाद अधिनियम, 2016 में करीब आधा दर्जन संशोधन के प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. 20 जुलाई से शुरू हो रहे विधानसभा के मॉनसून सत्र में संशोधन प्रस्ताव को पेश किया जाएगा. इसे लेकर काफी हंगामा होने की उम्मीद है.
‘नीतीश कुमार ने तो अब शराब पीने का लाइसेंस दे दिया है. शराब पीजिए और पकड़ाइये, तो 50 हजार रुपये देकर थाने से ही छूट जाइये. पैसा नहीं दे सकते, तो तीन महीने जेल में रहिए. गरीब लोग इतना पैसा कहां से देगा. उसे तो जेल में ही रहना होगा. पैसे वालों के लिए ठीक है. हाथोंहाथ छूट जाएंगे.’
यह कटाक्ष भरी प्रतिक्रिया पटना शहर के गर्दनीबाग इलाके में दूध व चाय बेचने वाले एक दुकानदार की थी. दरअसल, बिहार में दो साल से लागू बिहार मद्य निषेध व उत्पाद अधिनियम, 2016 में करीब आधा दर्जन संशोधन का प्रस्ताव है, जिसे कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है.
इन संशोधन प्रस्तावों में एक प्रस्ताव यह भी है कि पहली बार शराब पीते हुए पकड़े जाने पर आरोपित व्यक्ति से 50 हजार रुपये जुर्माना लेकर छोड़ दिया जाएगा. अगर वह जुर्माना दे पाने में असमर्थ है, तो तीन महीने तक जेल में बिताना होगा.
उस दुकानदार की प्रतिक्रिया इसी संशोधन को लेकर थी. मोटे तौर देखा जाए, तो दुकानदार की बात काफी हद तक सही भी है. शराबबंदी कानून के तहत अब तक जितने लोग गिरफ्तार हुए हैं, उनमें बड़ी संख्या दलितों-पिछड़ों व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की है. उनके लिए तुरंत 50 हजार रुपये दे पाना मुमकिन नहीं है, इसलिए इस संशोधन से इस तबके को कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है.
गौरतलब है कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो चुनावी वादे किए थे, उनमें शराबबंदी सबसे ऊपर था. चुनाव में महागठबंधन की जीत के बाद नीतीश कुमार ने अपना वादा पूरा करते हुए अप्रैल 2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी.
शराबबंदी कानून के कठोर प्रावधानों और इस कानून के दुरुपयोग का सबसे ज्यादा असर पिछड़ी जातियों व गरीबों पर पड़ा. शराबबंदी कानून के उल्लंघन के आरोप में अब तक करीब एक लाख 40 चार लोग गिरफ्तार हो चुके हैं. गिरफ्तारी के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि सबसे ज्यादा गिरफ्तारी दलित, पिछड़े, आदिवासियों व गरीब तबके से आने वाले लोगों की हुई है.
शराबबंदी कानून के कठोर प्रावधानों का चौतरफा विरोध और इसके दुरुपयोग को देखते हुए सीएम नीतीश कुमार ने पिछले महीने के पहले हफ्ते में कहा था कि शराबबंदी कानून की समीक्षा कर इसमें संशोधन किया जाएगा.
इस घोषणा के एक महीने बाद ही कैबिनेट ने करीब आधा दर्जन संशोधन के प्रस्तावों की मंजूरी दे दी. 20 जुलाई से शुरू हो रहे बिहार विधानसभा के मॉनसून सत्र में इन संशोधन प्रस्तावों को पेश किया जाएगा.
नीतीश कुमार ने इस संबंध में कहा कि लोगों से मशविरे लिए जा रहे हैं और कानून में संशोधन इस मंशा से किया जा रहा है कि कानून की आड़ में लोगों को बेवजह परेशान न किया जाए. पता चला है कि बिहार मद्य निषेध व उत्पाद अधिनियम, 2016 की कम से कम पांच धाराओं में संशोधन होगा या उन्हें खत्म कर दिया जाएगा.
शराबबंदी के मौजूदा कानून के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति शराब पीता है, तो उसे कम से कम 5 साल और अधिक से अधिक 7 साल की सजा होगी व 1 लाख रुपये से 7 लाख रुपये तक जुर्माना लगाया जाएगा.
प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति पहली बार शराब के नशे में गिरफ्तार होगा, तो 50 हजार रुपये जुर्माना देकर थाने से ही छूट जाएगा. अगर वह जुर्माना नहीं दे पाता है, तो तीन महीने जेल में रहना होगा. वहीं, अगर कोई व्यक्ति दूसरी बार या उससे अधिक बार शराब पीते पकड़ा जाता है, तो उसे दो से पांच साल तक की सजा होगी.
वहीं, शराब बनाने और बेचने वालों को पहले अपराध पर दो साल की सजा होगी. इस अपराध में दूसरी व उससे अधिक बार गिफ्तार होने पर कम से कम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान रखने का प्रस्ताव है. पता चला है कि किसी मकान या वाहन से शराब की बरामदगी पर मकान व वाहन जब्त करने का जो प्रावधान था, उसे पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा.
शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तार कई लोगों का केस लड़ रहे वकील हिमांशु कुमार ने कहा, ‘आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग अगर शराब पीते हुए पकड़ा जाता है, तो पुलिस वाले उससे 40-50 हजार रुपये लेकर बिना केस दर्ज किए छोड़ देते हैं. लेकिन, गरीबों-पिछड़ों के पास पैसा नहीं होता, जिस कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है. अगर वे भी 50 हजार रुपये देने में समर्थ होते, तो उन्हें जेल नहीं होती. अतः इस प्रावधान से गरीबों को कोई राहत नहीं मिलने वाली है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘गरीबों के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम ही मुश्किल से हो पाता है, वे 50 हजार रुपये का इंतजाम कहां से कर पाएंगे.’
जानकारों का मानना है कि यह प्रावधान इसलिए शामिल किया जा रहा है क्योंकि हाल ही में शराब मामले में एक ऐसी गिरफ्तारी हुई, जिसको लेकर बिजनेस के सिलसिले में बिहार आने वाले बाहर के लोग डर गए हैं.
पिछले दिनों एक मोबाइल कंपनी में काम करने वाला चीनी मूल का नागरिक काम के सिलसिले में बिहार आया हुआ था. उसे नहीं पता था कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू है और उसने शराब पी ली थी. सूचना मिलने पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.
शराबबंदी कानून के मौजूदा प्रावधान में शराब पीते हुए गिरफ्तार होने वाले आरोपितों पर गैर जमानती धारा लगती है, इसलिए उस चीनी नागरिक पर भी गैर जमानती धारा लगी और जेल भेज दिया गया.
इस मामले को लेकर भारत में मौजूद चीनी सरकार के प्रतिनिधि ने बिहार सरकार से संपर्क कर कानून की जानकारी नहीं होने का हवाला देते हुए चीनी नागरिक को रिहा करने की काफी गुजारिश की, लेकिन उसे रिहाई नहीं मिली.
करीब 25 दिन जेल में बिताने के बाद उसे पिछले हफ्ते जमानत मिली.
माना जा रहा है कि बाहर से यहां आने वाले लोगों को राहत देने के लिहाज से यह प्रावधान लाने का प्रस्ताव दिया गया है, ताकि वे अगर शराब पीते हुए पकड़े जाते हैं, तो जुर्माना भरकर तुरंत फारिग हो जाएंगे.
शराब बरामदगी पर घर और वाहन की नीलामी के प्रावधान में ढील से हालांकि गरीबों-पिछड़ों को कुछ राहत मिल सकती है, क्योंकि शराबबंदी मामले में गिरफ्तार सैकड़ों गरीब लोगों के मकानों की नीलामी का आदेश सरकार जारी कर चुकी है. संशोधन से उनके घर बच जाएंगे.
वाहन से शराब की बरामदगी पर वाहन भी जब्त कर नीलाम करने के प्रावधान में संशोधन की वजह पटना हाईकोर्ट का एक आदेश को माना जा रहा है.
दरअसल, पिछले दिनों पश्चिम बंगाल सरकार की एक बस से एक व्यक्ति को शराब के साथ गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने बस को भी जब्त कर लिया था. मामला जब पटना हाइकोर्ट में पहुंचा, तो अदालत ने बस जब्त किए जाने पर पुलिस को आड़े हाथों लिया था.
जानकार बताते हैं कि पटना हाईकोर्ट की झिड़की के कारण ही इस प्रावधान में संशोधन का निर्णय लिया गया है.
इन प्रावधानों के अलावा जिन दो कठोर प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव है, उनको लेकर लंबे समय से राजनीतिक स्तर पर बहस चल रही थी और सरकार से बार-बार इसमें संशोधन की मांग की जा रही थी.
सरकार आखिरकार इनमें भी संशोधन करने जा रही है. ये दो संशोधन हैं घर में शराब पीते हुए व्यक्ति के साथ उसके परिवार की गिरफ्तारी और शराब बनाने या शराब की बरामदगी पर पूरे समुदाय पर जुर्माना.
संशोधन प्रस्ताव के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति अपने घर में शराब पीते हुए पकड़ा जाता है, तो उसके परिवार के सभी सदस्यों की गिरफ्तारी नहीं होगी. बल्कि, केवल आरोपित को पकड़ा जाएगा.
मौजूदा कानून में किसी क्षेत्र में शराब बनाते हुए या बेचते हुए पकड़े जाने पर पूरे समुदाय पर जुर्माना लगाने का जो प्रावधान है, उसे भी पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा और कार्रवाई सिर्फ उसी व्यक्ति पर होगी, जो शराब बनाते या बेचते हुए गिरफ्तार होगा.
कांग्रेस प्रवक्ता हरखु झा ने इन दो संशोधनों को लेकर संतोष जताया, लेकिन बाकी संशोधनों को लेकर नाखुशी जाहिर की. उन्होंने कहा, ’50 हजार रुपये लेकर छोड़ देने के प्रावधान से गरीबों-पिछड़ों को कोई राहत नहीं मिलेगी.’
उन्होंने कहा, ’20 जुलाई से शुरू हो रहे विधानसभा के मॉनसून सत्र में संशोधन प्रस्ताव को पेश किया जाएगा. वहां हम आपत्ति जाहिर करेंगे. हम सरकार से मांग करेंगे कि वह ऐसे संशोधन लाए, जिससे गरीब-पिछड़ों को राहत मिले.’
हालांकि, संशोधन प्रस्तावों के कानूनी व आर्थिक पहलुओं से इतर सामाज विज्ञानियों की राय कुछ अलग है.
उनका मानना है कि शराब पीने पर रोक लगाने के लिए कानून में संशोधन सिर दर्द का इलाज करने के लिए पेट दर्द की गोली देने जैसा है.
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज से जुड़े समाजविज्ञानी डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘शराब पीना कोई अपराध नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बुराई है. अतः 50 हजार रुपये लेकर छोड़ देने का प्रावधान ही गलत है.’
उन्होंने आगे कहा, ’शराब पीते वक्त गिरफ्तार व्यक्तियों को 50 हजार रुपये लेकर छोड़ देने की जगह सरकार को चाहिए था कि उन्हें जेल की जगह नशामुक्ति केंद्र में कुछ महीने रखती और नशा छुड़ाकर उन्हें रिहा करती और साथ ही ज्यादा से ज्यादा नशामुक्ति व पुनर्वास केंद्र स्थापित करती, ताकि उनका इलाज किया जा सके.’
शराब के नशे को लेकर मनोरोग चिकित्सकों का कहना है कि शराब अचानक छोड़ देने से कई तरह की मानसिक बीमारियों का खतरा रहता है, इसलिए शराबियों को जेल में डाल देने की जगह उनकी काउंसलिंग की जानी चाहिए और नशामुक्ति व पुनर्वास केंद्र में उन्हें रखकर नशे की लत छुड़ाई जानी चाहिए.
पिछले महीने शराब पीने के आरोप में पूर्वी चम्पारण जिले के पिपराकोठी थाना क्षेत्र के सूर्यपुर से सुरेंद्र शाह नाम के शख्स को गिरफ्तार किया गया था. वह शराब के नशे का आदी थी. गिरफ्तारी के बाद उसे शराब नहीं मिल रही थी, जिस कारण वह बुरी तरह बीमार पड़ गया था. हालत नाजुक होने पर उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया था, जहां उसकी मौत हो गई थी.
सूबे के निजी नशामुक्ति केंद्र में भर्ती नशेड़ियों से बातचीत में भी यह बात सामने आई है कि शराब नहीं पीने पर उन्हें तमाम तरह शारीरिक व मानसिक तकलीफें होती हैं.
डीएम दिवाकर मानते हैं कि शराबबंदी को सफल बनाने के लिए कानून में संशोधन कर देना नाकाफी है. उन्होंने कहा, ‘कानून सहायक की भूमिका निभाता है, लेकिन उसे प्रभावी बनाने के लिए पुनर्वास व नशामुक्ति केंद्र और सामाजिक चेतना का विस्तार जरूरी है. सरकार को इस पर काम करने की आवश्यकता है.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं.)