प्रेम संबंध निजी मामला, कॉलेज को दख़ल का अधिकार नहीं: केरल हाईकोर्ट

कोल्लम के एक कॉलेज द्वारा छात्र-छात्रा को प्रेम संबंध के चलते निष्कासित करने के फैसले को ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा कि इसे अनुशासनहीनता मानना प्रबंधन के नैतिक मूल्यों पर आधारित है. यह किसी के लिए पाप हो सकता है, किसी अन्य के लिए नहीं.

केरल हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

कोल्लम के एक कॉलेज द्वारा छात्र-छात्रा को प्रेम संबंध के चलते निष्कासित करने के फैसले को ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा कि इसे अनुशासनहीनता मानना प्रबंधन के नैतिक मूल्यों पर आधारित है. यह किसी के लिए पाप हो सकता है, किसी अन्य के लिए नहीं.

केरल हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)
केरल हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने प्रेम संबंध और घर से भागने के लिए एक छात्रा और उसके सीनियर को निष्कासित करने के कोच्चि के एक कॉलेज के आदेश को खारिज कर दिया. अदालत ने इस संबंध में कहा कि ‘प्यार अंधा होता है. यह स्वाभाविक मानवीय वृत्ति है और लोगों का निजी मामला होता है.’

जस्टिस ए मुहम्मद मुश्ताक ने अपने एक हालिया फैसले में कहा कि कॉलेज द्वारा प्रेम संबंध और भाग जाने को अनैतिक बताते हुए अनुशासनहीनता मानना प्रबंधन के लोगों के नैतिक मूल्यों पर आधारित है.

जस्टिस मुश्ताक ने कहा, ‘यह किसी के लिए पाप हो सकता है और अन्य के लिए नहीं. कानून में चुनने की आजादी स्वतंत्रता का सार है.’

उन्होंने यह भी कहा कि कोल्लम के इस कॉलेज के अधिकारी यह नहीं समझ पाए कि अंतरंग ताल्लुकात व्यक्तियों का निजी मुद्दा है और उसमें हस्तक्षेप का उन्हें अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा, ‘प्यार अंधा होता है और वह स्वाभाविक मानवीय वृत्ति है. अकादमिक अनुशासन को लागू करने के संदर्भ में रिट याचिका में सवाल उठाया गया है कि प्रेम स्वतंत्रता है या बंधन है.’

जस्टिस मुश्ताक ने 21 वर्षीय छात्र और 20 वर्षीय छात्रा की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया. अदालत ने कॉलेज को छात्रा का कोर्स जारी रखने की अनुमति देने और छात्र के अकादमिक दस्तावेज वापस लौटाने का निर्देश दिया. दोनों बीबीए में पढ़ते हैं.

छात्रा ने इस पाठ्यक्रम के 2016-2017 बैच में नामांकन कराया था. इस दौरान उसे अपने एक सीनियर से प्रेम हो गया. कॉलेज प्रशासन और उनके माता-पिता ने उनके संबंधों का विरोध किया. इसके बाद दोनों घर से भाग गए थे.

हालांकि बाद में छात्रा के माता-पिता ने अपना विरोध को वापस ले लिया और विवाह में उसके साथ खड़े हुए. न्यायाधीश ने कहा कि अदालत की भूमिका कॉलेज के अधिकारियों या छात्रों की नैतिक पसंद का समर्थन करने के लिए नहीं बल्कि पसंद करने की आज़ादी सुनिश्चित करने के लिए है.

जस्टिस मुश्ताक ने केएस पुट्टस्वामी बनाम संघ (मामले) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला देते हुए कहा कि निजता का अधिकार मानव गरिमा का एक तत्व है. उन्होंने यह भी कहा कि मात्र एक आरोप को छोड़कर जिसके अनुसार दोनों याचिकाकर्ता कॉलेज परिसर में अंतरंग संबंध में पाए गए थे, इस निष्कर्ष पर पहुंचने का और कोई सबूत या आधार नहीं था.

अदालत ने यह भी कहा कि अगर इससे आयोजित कक्षाओं या सीखने के लिए अनुकूल माहौल को प्रभावित करने के साक्ष्य उपस्थित नहीं है तो अनुशासन के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती.

यह देखते हुए कि किसी के साथ संबंध होना या न होना व्यक्तिगत विकल्प है न्यायाधीश ने यह भी कहा कि अपनी पसंद चुनने की स्वतंत्रता संविधान के तहत दी गयी है.

अदालत ने कहा कि जीवनसाथी या जीवन जीने का कोई एक तरीका चुनना व्यक्तिगत पसंद पर आधारित है. किसी जरूरी कानून के अलावा नैतिक मूल्यों या किसी के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए कोई नियम नहीं बनाए जा सकते.

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