बिहार बालिका गृह: मुख्य आरोपी के अख़बार को केस दर्ज होने के बाद भी मिला सरकारी विज्ञापन

एक जून से 14 जून तक बिहार के सूचना व जनसंपर्क विभाग की ओर से मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के अख़बार ‘प्रातः कमल’ के नाम 14 विज्ञापन जारी किए गए. सूचना व जनसंपर्क विभाग ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संभालते हैं.

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मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह में बच्चियों के साथ बलात्कार मामले का मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर, अख़बार प्रात: कमल और मुख्यमंत्री ​नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक/रॉयटर्स)

एक जून से 14 जून तक बिहार के सूचना व जनसंपर्क विभाग की ओर से मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के अख़बार ‘प्रातः कमल’ के नाम 14 विज्ञापन जारी किए गए. सूचना व जनसंपर्क विभाग ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संभालते हैं.

मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह में बच्चियों के साथ बलात्कार मामले का मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर, अख़बार प्रात: कमल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक/रॉयटर्स)
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह में बच्चियों के साथ बलात्कार मामले का मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर, अख़बार प्रात: कमल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक/रॉयटर्स)

बिहार के समाज कल्याण विभाग के फंड से चल रहे मुज़फ़्फ़रपुर के बालिका गृह में 30 से ज़्यादा बच्चियों से बलात्कार के मामले में गिरफ्तार मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर दो महीने से जेल में है. इस बीच ब्रजेश ठाकुर के राजनीतिक रसूख व कथित तौर पर नौकरशाहों से अच्छे ताल्लुक़ात की बदौलत कुछ भी करा लेने के किस्से रोज़ सुर्खियां बन रहे हैं.

पिछले दिनों एक ख़बर खूब चर्चा में थी कि काली सूची डाले जाने के बावजूद ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ को सरकारी प्रोजेक्ट दिए गए थे. अब एक नया खुलासा सामने आया है, जिससे एक बार फिर सरकारी बाबूओं से उसकी सांठगांठ के आरोपों को मज़बूती मिल रही है.

पता चला है कि 31 मई को ब्रजेश ठाकुर के ख़िलाफ़ महिला थाने में एफआईआर दर्ज होने के बाद भी उसके अखबार ‘प्रातः कमल’ के लिए सरकारी विज्ञापन जारी होते रहे थे.

‘द वायर’ के पास उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि 1 जून से 14 जून तक बिहार के सूचना व जनसंपर्क विभाग की ओर से ‘प्रातः कमल’ अख़बार के नाम 14 विज्ञापन जारी किए गए. इनमें वर्गीकृत, डिस्प्ले और टेंडर शामिल हैं.

26 मई को टिस की रिपोर्ट ज़िलों के चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट के पदाधिकारियों को सौंपी गई थी. उसी दिन समाज कल्याण विभाग समेत कई विभागों से 8 विज्ञापन प्रातः कमल के नाम जारी किए गए थे.
26 मई को टिस की रिपोर्ट ज़िलों के चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट के पदाधिकारियों को सौंपी गई थी. उसी दिन समाज कल्याण विभाग समेत कई विभागों से 8 विज्ञापन प्रातः कमल के नाम जारी किए गए थे.

यहां यह भी बता दें कि सूचना व जनसंपर्क विभाग ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संभालते हैं.

‘प्रातः कमल’ अख़बार की स्थापना ब्रजेश ठाकुर के पिता राधामोहन ठाकुर ने 1982 में की थी. उनके निधन के बाद ब्रजेश ठाकुर ने अख़बार का संचालन जारी रखा और इसके साथ ही रिअल एस्टेट के कारोबार व एनजीओ में भी हाथ आजमाया.

उसने सेवा संकल्प एवं विकास समिति नाम के एनजीओ की स्थापना की और राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर बालिका गृह व अन्य गृहों के संचालन के लिए समाज कल्याण विभाग से सालाना मोटी रकम लेने लगा.

‘प्रातः कमल’ दावा करता है कि वह उत्तर बिहार का सर्वाधिक लोकप्रिय अख़बार है और उत्तर बिहार के 21 ज़िलों में बिकता है.

अख़बार की वेबसाइट के मुताबिक, उत्तर बिहार के 21 ज़िलों के अलावा कोलकाता, पटना, नई दिल्ली और मुंबई से भी इसका प्रकाशन होता है. वेबसाइट ने 1 अप्रैल 2017 तक 61,233 प्रतियों के प्रसार का दावा किया है. वहीं, मुज़फ़्फ़रपुर में 9130 प्रतियां बेचने का दावा है.

अख़बार के प्रसार का यह दावा हवा-हवाई ही लगता है क्योंकि ख़ुद मुज़फ़्फ़रपुर के ही कई लोगों का कहना है कि उन्होंने कभी अख़बार नहीं देखा है. बताया जाता है कि ‘प्रातः कमल’ की बहुत कम प्रतियां छपती थीं और उन्हें सरकारी दफ़्तरों में भेजा जाता था, ताकि सरकार को लगे कि अख़बार नियमित छप रहा है.

1 जून को प्रातः कमल के नाम पांच विज्ञापन जारी किए गए थे, जिन्हें 2 जून को छापा जाना था.
1 जून को प्रातः कमल के नाम पांच विज्ञापन जारी किए गए थे, जिन्हें 2 जून को छापा जाना था.

बहरहाल, सूचना व जनसंपर्क विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार 1 जून को यानी एफआईआर दर्ज होने के एक दिन बाद ‘प्रातः कमल’ के नाम पांच विज्ञापन जारी हुए थे.

ये विज्ञापन सड़क निर्माण विभाग, बिहार स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड, जल संसाधन विभाग, भवन निर्माण विभाग व ग्रामीण कार्य विभाग की ओर से जारी किए गए थे. ये विज्ञापन दो जून के अंक में छपने थे.

इसी तरह 2 जून को ‘प्रातः कमल’ के नाम ग्रामीण विकास विभाग की ओर से विज्ञापन जारी किया गया था, जो 3 जून के अंक के लिए था.

4 जून को चार विज्ञापन जारी किए गए थे, जिनमें स्वास्थ्य विभाग व पटना कलेक्टरेट के विज्ञापन शामिल थे. 5 जून, 6 जून, 7 जून, 12 जून और 14 जून को भी ‘प्रातः कमल’ के लिए विज्ञापन जारी हुआ था. 14 जून का विज्ञापन आख़िरी था और जल संसाधन विभाग की तरफ से जारी किया गया था.

यहां यह भी बता दें कि 31 मई को ब्रजेश ठाकुर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज होने के बाद 1 जून को उसे पूछताछ के लिए थाने ले जाया गया था और बाद में उसकी गिरफ़्तारी हुई थी. सूचना व जनसंपर्क विभाग के आंकड़ों से साफ है कि गिरफ़्तारी के बाद भी ‘प्रातः कमल’ को विज्ञापन मिल रहे थे.

सूचना व जनसंपर्क विभाग की वेबसाइट के मुताबिक 5 जून को भी प्रातः कमल के नाम पर विज्ञापन जारी हुआ था.
सूचना व जनसंपर्क विभाग की वेबसाइट के मुताबिक 5 जून को भी प्रातः कमल के नाम पर विज्ञापन जारी हुआ था.

‘प्रातः कमल’ का दफ्तर बालिका गृह के प्रांगण में ही है और वहीं ब्रजेश ठाकुर व उसका परिवार रहता है. ‘प्रातः कमल’ ब्रजेश ठाकुर का बेटा राहुल आनंद संभालता है.

‘प्रातः कमल’ के अलावा ब्रजेश ठाकुर के दो और अखबार हैं हालात-ए-बिहार (उर्दू) और न्यूज़ नेक्स्ट (अंग्रेज़ी). न्यूज़ नेक्स्ट की संपादक ब्रजेश ठाकुर की बेटी अंकिता अग्रवाल हैं. हालांकि एफआईआर दर्ज होने के बाद इन दोनों अख़बारों को कोई सरकारी विज्ञापन नहीं मिला है. अलबत्ता, तीनों अख़बारों के नौ पत्रकारों को एक्रेडिटेशन कार्ड मिले हुए थे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार की तरफ से ‘प्रातः कमल’ व अन्य दो अख़बारों को सालाना करीब 30 लाख रुपये का विज्ञापन मिलता था.

सूचना व जनसंपर्क विभाग के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (टिस) की कोशिश टीम की सोशल ऑडिट रिपोर्ट मिलने के बाद भी ‘प्रातः कमल’ को विज्ञापन देना जारी रखा गया था.

समाज कल्याण विभाग को टिस की अंतिम रिपोर्ट 9 मई को सौंपी गई थी और उसी रोज़ ‘प्रातः कमल’ को 7 विज्ञापन जारी किए गए थे. इनमें कृषि, ग्रामीण कार्य, जल संसाधन, भवन निर्माण, स्वास्थ्य व गृह विभाग के विज्ञापन शामिल थे.

12 जून को स्वास्थ्य विभाग (दरभंगा) की तरफ से प्रातः कमल को विज्ञापन जारी किया गया था.
12 जून को स्वास्थ्य विभाग (दरभंगा) की तरफ से प्रातः कमल को विज्ञापन जारी किया गया था.

26 मई को समाज कल्याण विभाग ने जिला स्तरीय चाइल्ड प्रोटेक्शन अफसरों को रिपोर्ट दी थी. उसी दिन अखबार को 8 विज्ञापन जारी किए गए थे.

इस संबंध में जब सूचना व जनसंपर्क विभाग के डायरेक्टर अनुपम कुमार से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा, ‘घटना के प्रकाश में आते ही कार्रवाई की गई. उसे सरकार की सूची से बाहर कर दिया गया है.’

31 मई को एफआईआर दर्ज होने के बाद यह घटना प्रकाश में आई थी, इसके बाद भी 14 दिनों तक किसके इशारे पर विज्ञापन मिलता रहा, इस सवाल का जवाब सूचना व जनसंपर्क विभाग से नहीं मिला.

नाम नहीं छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि संभवतः विभाग के विज्ञापन जारी करने वाले अफसरों की चूक हो सकती है या फिर यह भी है कि उन्होंने जान बूझकर ऐसा किया हो.

उक्त अधिकारी ने यह भी कहा कि अगर आंतरिक जांच होगी तभी किसी पर ज़िम्मेदारी तय की जा सकती है. लेकिन, अब तक जो जानकारी है, उसके मुताबिक विभाग की ओर से ऐसी कोई जांच नहीं हो रही है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं.)