विशेष रिपोर्ट: द वायर द्वारा दायर की गई आरटीआई से ये जानकारी सामने आई है कि साल 2016 में सरकारी बैंकों द्वारा 78,322 खातों में, जोकि कृषि लोन पाने वाले कुल खातों का 0.15 फीसदी है, एक लाख 23 हज़ार करोड़ (12,34,81,89,70,000) रुपये डाले गए थे. ये राशि कुल दिए गए कृषि लोन का 18.10 फीसदी है.
नई दिल्ली: साल 2016 में सरकारी बैंकों ने कुल कृषि लोन का लगभग 18 फीसदी हिस्सा सिर्फ 0.156 प्रतिशत खातों में डाला है. वहीं 2.57 प्रतिशत खातों में 31.57 प्रतिशत कृषि लोन दिया गया है. द वायर द्वारा दायर किए गए सूचना का अधिकार आवेदन के तहत भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ये जानकारी दी है.
केंद्र सरकार ने 2014-15 में 8.5 लाख करोड़ रुपये कृषि लोन देने की घोषणा की थी. वहीं, वित्त वर्ष 2018-19 में इसे बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है. हालांकि आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि कृषि लोन का एक भारी हिस्सा मोटे लोन के रूप में कुछ चुनिंदा लोगों को दिया जा रहा है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों के नाम पर यह लोन एग्री-बिजनेस कंपनियों और इंडस्ट्री सेक्टर को दिया जा रहा है.
आरटीआई के जरिए द वायर को मिले आरबीआई के आंकड़ों के हिसाब से सरकारी बैंकों द्वारा साल 2016 में 78,322 खातों में जो कि कृषि लोन पाने वाले कुल खातों का 0.15 फीसदी है, एक लाख 23 हजार करोड़ (12,34,81,89,70,000) रुपये डाले गए थे. ये राशि कुल दिए गए कृषि लोन का 18.10 फीसदी है.
वहीं, इसी साल 12,89,351 खातों में, जो कि कृषि लोन पाने वाले कुल खातों का 2.57 फीसदी है, दो लाख 15 हजार करोड़ (21,54,14,51,60,000) डाले गए हैं. ये राशि कुल दिए गए कृषि लोन का 18.10 फीसदी है. साल 2016 में सरकारी बैंकों द्वारा पांच करोड़ से ज्यादा खातों में छह लाख 82 हजार करोड़ (68,21,47,93,12,000) रुपये का लोन दिया गया था.
कृषि विशेषज्ञों ने हैरानी जताते हुए कहा कि किसान के नाम पर बड़ी-बड़ी कंपनियों को ये लोन दिया जा रहा है. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह ने कहा, ‘एक तरफ तो किसानों को कर्ज देने और कर्ज लौटने के लिए जो समय तय किया गया है वो बहुत ज्यादा गलत और अतार्किक है. दूसरी तरफ सरकार कंपनियों को किसान बनाकर उन्हें इतने करोड़ों का लोन दिलवा रही है. किसान इस देश में मजाक बन कर रह गया है.’
आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि साल दर साल कृषि ऋण के तहत करोड़ों रुपये के लोन की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. जहां एक ओर साल 2015 में 73,265 खातों में 25 लाख से उपर को लोन दिया गया वहीं, साल 2016 में ये संख्या बढ़कर 78,322 खातों तक पहुंच गई, जो कि अब तक का सर्वाधिक है. इन खातों में 1,23,481 करोड़ से ज्यादा का लोन डाला गया. इस हिसाब से देखें तो हर एक खाते में औसतन 1.5 करोड़ तक का ऋण दिया गया है.
साल 2007 में कृषि ऋण के तहत करोड़ों रुपये के ऋण पाने वाले खातों की संख्या 24,729 थी. हालांकि नौ साल के भीतर इस प्रकार के खातों की संख्या तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गया है. वहीं, साल 2014 में अब तक के सबसे ज्यादा इस तरह के लोन दिए गए. इस साल 77,795 खातों में 1,24,517 करोड़ का ऋण दिया गया जो कि अब तक का सर्वाधिक है.
वीएम सिंह कहते हैं, ‘ये बेहद चिंतनीय है. आज के समय में सरकार किसानों के कंधे से बंदूक चला रही है. किसानों को बेवकूफ बनकार सरकार पूंजीपतियों का फायदा करा रही है. हालत ये है कि दो-दो एकड़ वाले किसान बिना लोन के रह रहे हैं और ऐसे लोग बिना जमीन के करोड़ों रुपये का लोन उठा रहे हैं.’
आरबीआई के आंकड़े ये भी बताते हैं कि कृषि ऋण के तहत 25 करोड़ से ज्यादा के ऋण में भारी इजाफा हुआ है. द वायर ने अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह से साल 2016 में 615 खातों को कृषि ऋण के तहत औसतन 95 करोड़ से ज्यादा का लोन दिया गया. कृषि जानकारों और किसानों ने इतने ज्यादा लोन देने पर हैरानी जताया है. 2016 में 615 खातों में 58,561 करोड़ से ज्यादा का लोन डाला गया था.
वहीं, पांच करोड़ से लेकर 25 करोड़ तक के कृषि ऋण में भी भारी इजाफा हुआ है. साल 2016 में 2,396 खातों में 5 करोड़ से लेकर 25 करोड़ तक का कृषि लोन डाला गया है. अगर ये सारे ऋण को जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा 17,127 करोड़ तक पहुंचता है. यानी कि 2,396 खातों में से हर एक खाते में औसतन सात करोड़ से ज्यादा का लोन कृषि ऋण के तहत दिया गया.
अगर 2007 से लेकर 2016 तक के आंकड़ों को देखा जाए तो 5 करोड़ से लेकर 25 करोड़ तक के कृषि ऋण देने में भारी इजाफा हुआ है और इसी रफ्तार से खाता संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है. जहां साल 2015 में 2356 खातों में इतने भारी-भरकम ऋण डाले गए वहीं साल 2016 में ये संख्या बढ़कर 2396 तक पहुंच गई. वहीं साल 2014 में 2520 खातों में पांच करोड़ से लेकर 25 करोड़ तक के कृषि ऋण डाले गए थे.
कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि इतने ज्यादा ऋण देने में बैंकों का भी फायदा होता है. बड़ी कंपनियों को करोड़ों का लोन देकर 18 फीसदी कृषि ऋण देने का अपना कोटा पूरा कर लेते हैं.
बता दें कि आरबीआई के नियमों के तहत बैंकों को अपने कुल लोन का 18 फीसदी हिस्सा कृषि ऋण के तहत देना होता है. इसे प्रायॉरिटी सेक्टर लेंडिंग कहते हैं. हालांकि कृषि जानकर कहते हैं कि इसके तहत बड़ी-बड़ी एग्री-बिजनेस कंपनियों को कम दर पर लोन दिया जा रहा है. आरबीआई ने प्रायॉरिटी सेक्टर लेंडिंग के तहत निर्देश जारी किया है कि ये लोन छोटे और सीमांत किसानों को दिया जाएगा.
कृषि ऋण के नियम सामान्य ऋण नियमों के मुकाबले हल्के होते हैं. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के बाद से ये प्रावधान भी किया गया है कि जो किसान बैंक से लिया हुआ ऋण समय पर वापस कर देते हैं तो उन्हें तीन प्रतिशत की छूट मिलती है. इस तरह फसली ऋण पर चार प्रतिशत का ब्याज दर होता है. टर्म लोन अलग-अलग ब्याज़ दर पर दिए जाते हैं.
सरकार ने साल 2014-15 में 8.5 लाख करोड़ के कृषि लोन की घोषणा की थी. साल 2018-19 के लिए 11 लाख करोड़ के कृषि ऋण देने की घोषणा की गई है. लेकिन आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि काफी ज्यादा संख्या में इसके तहत भारी भरकम लोन दिए जा रहे हैं जिसे कृषि जानकर एक चिंताजनक स्थिति बताते हैं.
इस पर योगेंद्र यादव कहते हैं कि पहले एक डायरेक्ट और इनडायरेक्ट लोन का वर्गीकरण था, जिसके जरिए ये पता चल सकता था कि कितना लोन किसानों को जा रहा है और कितना एग्री-बिजनेस कंपनियों को जा रहा है. लेकिन इस सरकार ने वर्गीकरण को ही खत्म कर दिया है.
यादव ने आगे कहा, ‘एग्री बिजनेस कंपनियों को लोन देने में कोई बुराई नहीं है, समस्या ये है कि इसे किसान के कोटे से दिया जा रहा है. बैंक एग्री-बिजनेस को लोन देकर ये दिखाते हैं कि उनका किसानों को लोन देने का कोटा पूरा हो गया. 18 प्रतिशत में से 13 प्रतिशत किसानों को देना होता है और उसमें से लगभग 8 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान के लिए होता है. इस कोटे का इस्तेमाल गलत काम के लिए हो रहा है.’
आरटीआई के जरिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्राप्त जवाब by The Wire Hindi on Scribd