राजस्थान: आत्महत्या के बाद वसुंधरा सरकार ने किया किसान का क़र्ज़ माफ़

नागौर जिले के मंगल चंद ने पंजाब नेशनल बैंक से 2.98 लाख रुपये का क़र्ज़ लिया था. 1.75 लाख रुपये जमा करवाने के बावजूद बैंक 4.59 लाख रुपये मांग रहा था. ज़मीन की नीलामी का आदेश निकलने से तनाव में आए मंगल ने फांसी लगाकर जान दे दी.

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नागौर जिले के मंगल चंद ने पंजाब नेशनल बैंक से 2.98 लाख रुपये का क़र्ज़ लिया था. 1.75 लाख रुपये जमा करवाने के बावजूद बैंक 4.59 लाख रुपये मांग रहा था. ज़मीन की नीलामी का आदेश निकलने से तनाव में आए मंगल ने फांसी लगाकर जान दे दी.

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बैंक के कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या करने वाले किसान मंगल चंद. (फोटो: अवधेश आकोदिया/द वायर)

मंगल चंद जिस राहत की पिछले पांच महीने से बाट जोह रहे थे, उसका फरमान आ चुका है. अब न तो उनकी जमीन की नीलामी होगी और न ही बैंक वाले कभी कर्ज का तकादा करने आएंगे.

इस सुखद सूचना के बाद भी मंगल के घर में रुदन और विलाप है. सबके चेहरे पर आक्रोश है. शोकाकुल आवाज को एक ही शिकायत है- सरकार इतनी मेहरबानी पहले कर देती तो उनका लाडला मौत को गले नहीं लगाता.

मामला राजस्थान के नागौर जिले के चारणवास गांव का है. यहां के 30 साल के शारीरिक रूप से अक्षम किसान मंगल चंद ने 4 अगस्त की रात फंदे से लटककर खुद को खत्म कर लिया.

परिजनों के मुताबिक मंगल बैंक का कर्ज समय पर नहीं चुकाने से तनाव में थे. उन्होंने जमीन की नीलामी का आदेश जारी होने की वजह से खुदकुशी की.

मंगल की मौत से इलाके के किसानों में रोष व्याप्त हो गया. सैकड़ों किसान परिजनों के साथ धरने पर बैठ गए. उन्होंने कर्ज माफी, 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग पूरी होने पर ही अंतिम संस्कार करने की बात कही.

प्रशासन के साथ कई दौर की वार्ता के बाद आखिरकार कर्जमाफी, जमीन नीलामी का आदेश निरस्त करने और बैंककर्मियों के खिलाफ जांच करने पर सहमति बनी. अधिकारियों ने परिवार को मुआवजा, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान और मंगल की भाभी को आंगनबाड़ी में नौकरी देने की बात भी कही.

गौरतलब है कि मंगल ने अपने तीन भाईयों- हरदेवा, प्रकाश व पूरण के साथ 2010 में पंजाब नेशनल बैंक, सीकर की बाडलवास शाखा से किसान क्रेडिट कार्ड के जरिये 2.98 लाख रुपये का कर्ज लिया था. इस राशि को उन्होंने जमीन को समतल करने और खाद-बीज में खर्च किया, लेकिन इसके बावजूद भी उपज अच्छी नहीं हुई.

चारों भाईयों ने परिवार के खर्चों में कटौती कर खेती से हुई आमदनी में से 1.75 लाख रुपये बैंक में जमा करवा दिए. मंगल के छोटे भाई पूरण बताते हैं, ‘हमने 1.75 लाख रुपये का लोन चुका दिया. बाकी लोन भी चुका देते मगर खेती में कुछ बच नहीं रहा. पिछले तीन-चार साल से लागत भी नहीं निकल रही.’

वे आगे कहते हैं, ‘बैंक का लोन चुकाने के लिए ही मेरे दोनों बड़े भाई पांच-छह महीने पहले मजूदरी करने परदेस गए. मंगल बैंक वालों को बार-बार यही कह रहा था कि वे दोनों आएंगे तो पैसा जमा करवा देंगे मगर बैंक वाले नहीं माने.’

पूरण के अनुसार पिछले एक महीने से बैंक वालों ने बहुत ज्यादा सख्ती कर रखी थी. वे कहते हैं, ‘रिकवरी वाले आए दिन आकर धमकाते थे. बैंक से बार-बार नोटिस मिल रहे थे. बैंक ने 10 जुलाई तक बाकी पैसा जमा नहीं करवाने पर जमीन कुर्क होने का नोटिस भेजा. मंगल ने बैंक वालों के खूब हाथ जोड़े मगर उन्होंने एसडीएम साहब से कुर्की का आदेश करवा लिया.’

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पंजाब नेशनल बैंक की ओर से किसान मंगल चंद को भेजा गया नोटिस (फोटो: अवधेश आकोदिया/द वायर)

वहीं, बैंक मैनेजर नंदलाल के मुताबिक मंगल के परिवार को दिया गया कर्ज चार साल पहले ही एनपीए घोषित हो चुका है. वे कहते हैं, ‘बैंक की ओर से मंगल को धमकाने की बात गलत है. बैंक ने लोन वसूली सामान्य प्रक्रिया के तहत एसडीएम कोर्ट, नावां में जमीन कुर्क करने का आवेदन किया, जिस पर 7 अगस्त को जमीन निलाम करने का ऑर्डर हुआ.’

उपखंड अधिकारी रामसुख भी इसी बात को दोहराते हैं. वे कहते हैं, ‘बैंक ने जो तथ्य सामने रखे उनके आधार पर जमीन कुर्की का इश्तिहार जारी किया. यह एक सामान्य प्रक्रिया है. आए दिन ऐसा होता है. इसे राजनीतिक रंग देना गलत है. मंगल चंद की आत्महत्या का मुझे भी दुख है.’

मंगल की भाभी सरिता के अनुसार जमीन नीलामी की बात पता चलते के बाद से ही वे सदमे में थे. वे कहती हैं, ‘वो कुर्की का कागज आने के बाद से ही दुखी था. खाना भी ठीक ढंग से नहीं खा रहे था. वो बार-बार कह रहे था कि जमीन चली गई तो परिवार का पेट कैसे भरेगा.’

मंगल ने जमीन को नीलामी से बचाने के लिए खूब कोशिश की. उनके भाई पूरण कहते हैं, ‘कुर्की का कागज मिलने के बाद मंगल बैंक गया था. वहां मैनेजर ने 4 लाख 59 हजार रुपये जमा करवाने पर ही कुर्की रुकने की बात कही. पैसों के लिए कई लोगों से बात की पर किसी ने भी पैसे नहीं दिए.’

वे आगे कहते हैं, ‘हमने 2 लाख 98 हजार रुपये का लोन लिया था और इसमें से 1 लाख 75 हजार रुपये जमा करवा दिए. पता नहीं बैंक हम पर 4 लाख 59 हजार रुपये का बाकी लोन किस हिसाब से बता रहा है. यदि बैंक वाले साथ देते तो आज मेरा भाई जिंदा होता. बड़े-बड़े सेठ बैंकों के लाखों करोड़ खा गए. बैंक उनसे तो ऐसे वसूली नहीं करता.’

कर्ज की शेष बची रकम पर बैंक मैनेजर नंदलाल कहते हैं, ‘समय पर किसान क्रेडिट कार्ड की राशि जमा नहीं करवाने पर पेनाल्टी लगती है. लोन के एनपीए हो जाने पर अतिरिक्त ब्याज लगता है. मंगल चंद के परिवार को 2,08,884 रुपये और बकाया ब्याज का कई बार नोटिस भेजा था.’

मंगल के भाई पूरण के अनुसार उन्हें वसुंधरा सरकार की ओर से घोषित कर्जमाफी का भी कोई लाभ नहीं हुआ. वे कहते हैं, ‘हमने पटवारी, तहसीलदार और बैंक मैनेजर से कई बार कहा कि सरकार ने जितना लोन माफ किया है उतना तो कम कर दो, लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी.’

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एसडीएम की ओर से जारी किसान मंगल चंद की जमीन को नीलाम करने का आदेश (फोटो: अवधेश आकोदिया/द वायर)

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 12 फरवरी को अपनी सरकार के अंतिम बजट में किसानों का 50 हजार रुपये तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की थी. सरकार के मुताबिक वह किसानों का 8 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर चुकी है.

किसान नेता अमराराम इससे सहमत नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘सरकार सफेद झूठ बोल रही है. सरकार ने बजट में किसानों का कर्ज माफ करने के लिए 2 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया था. सरकार यह बताने की स्थिति में नहीं है कि वह बाकी के 6 हजार करोड़ रुपये कहां से लाई. सरकार झूठे आंकड़े दिखाकर किसानों की हितैषी बन रही है.’

नागौर जिले के किसान नेता जीवणराम शेषमा भी सरकार के दावों को गलत करार देते हैं. वे कहते हैं, ‘सरकार भले ही दावा करे, लेकिन कर्जमाफी की घोषणा का किसानों को बहुत कम फायदा हुआ है. अकेले नागौर जिले में ही हजारों किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ है.’

वहीं, स्थानीय किसान नेता कानाराम बिजारणिया बैंकों पर किसानों को बेवजह परेशान लगाते हैं. वे कहते हैं, ‘मंगल अकेला नहीं है. क्षेत्र के ज्यादातर किसानों की यही हालत है. बैंक के अधिकारी किसानों को धमकाते हैं. बैंक पूंजीपतियों से तो लोन नहीं वसूलती और किसानों पर सख्ती करती है.’

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगल चंद की आत्महत्या पर दुख जताते हुए वसुंधरा सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा, ‘प्रदेश का किसान आत्महत्या कर रहा है और मुख्यमंत्री न जाने किस गौरव की यात्रा निकाल रही हैं. प्रदेश के लिए यह बेहद शर्म की बात है कि अन्नदाता की खुदकुशी का सिलसिला थम नहीं रहा है.’

वे आगे कहते हैं, ‘राज्य सरकार के किसान हितैषी होने के तमाम दावे झूठे और खोखले हैं, किसान को राहत देने में सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है. यह सरकार किसानों की आत्महत्याओं को मानने तक को तैयार नहीं है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शायद इसमें ही अपना गौरव समझती हैं, इसलिए जनता के धन और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर यात्रा निकाल रही हैं.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जयपुर में रहते हैं.)