झारखंडः क्या ईसाई संगठनों पर दमनकारी रवैया अपना रही सरकार?

झारखंड में ईसाई संगठन और चर्च राज्य सरकार के रवैये पर लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि कुछ घटनाओं को केंद्र में रखकर भाजपा तथा आरएसएस-विहिप भी मिशनरी संस्थाओं पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है.

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झारखंड में ईसाई संगठन और चर्च राज्य सरकार के रवैये पर लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि कुछ घटनाओं को केंद्र में रखकर भाजपा तथा आरएसएस-विहिप भी मिशनरी संस्थाओं पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है.

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क्या झारखंड में ईसाई संगठनों के खिलाफ भाजपा की सरकार पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर दमनकारी और पक्षपात पूर्ण रवैया अपना रही है. क्या वाकई में ईसाईयों को उनकी आस्था को लेकर निशाने पर लिया जा रहा है. रीजनल बिशप काउंसिल और रोमन कैथोलिक चर्च के बिशपों ने हाल ही में ये सवाल उठाए हैं.

जाहिर है ये सवाल राज्य में राजनीतिक तथा सामाजिक हालात को बयां कर रहे हैं.

पिछले छह अगस्त को फेलिक्स टोप्पो ने रांची के चौथे आर्चबिशप का पदभार संभाला है. फेलिक्स टोप्पो झारखंड और अंडमान रिजनल बिशप्स काउंसिल (झान) के अध्यक्ष भी हैं. इसी पद से उन्होंने बयान जारी करते हुए और कई सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा है कि झारखंड में ईसाई संगठनों के प्रति सरकार का रवैया राजनीति से प्रेरित और दमनकारी है. आर्च बिशप के इन बयानों के मायने निकाले जाने लगे हैं.

जानकार बताते हैं कि रांची स्थित संत मारिया गिरिजाघर में प्रेम, शांति और न्याय का संदेश लेकर उत्साह-उमंग, शुभकामनाओं का दौर और प्रार्थना गीतों की गूंज के बीच जब फेलिक्स टोप्पो आर्चबिशप की हैसियत संभाल रहे थे, तब इसे नहीं भांपा जा सका था कि उत्पन्न हालात पर उनकी नजरें हैं और वे जल्दी ही सवालों और सफाई के साथ सामने आएंगे.

दरअसल राज्य में सीआइडी पुलिस इन दिनों विदेशी मुद्रा नियंत्रण कानून (एफसीआरए) के तहत आवंटित फंड और उससे जरिये किए गए काम को लेकर ईसाईयों से जुड़ी गैर सरकारी संस्थाओं की जांच कर रही है.

इसी सिलसिले में पिछले नौ अगस्त को एक साथ 37 संस्थाओं पर छापे मारे गए थे. इन्ही कार्रवाई के मद्देनजर आर्च बिशप ने और भी कई सवाल उठाए हैं.

वैसे रीजनल बिशप्स काउंसिल की प्रतिक्रिया आने से ठीक पहले रोमन कैथोलिक चर्च के बिशपों ने भी राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मिलकर अपनी चिंता जाहिर की थी. बिशपों ने राज्यपाल से कहा है कि झारखंड में ईसाईयों को उनकी आस्था को लेकर निशाने पर लिया जा रहा है.

तब ये पूछा जा सकता है कि आखिर ये परिस्थितियां कैसे उभरी. इसके केंद्र में तीन घटनाओं को देखा जा सकता है. इन घटनाओं ने ईसाई संस्थाओं और चर्च के धर्मगुरुओं को सकते में डाला है, तो भाजपा तथा आरएसएस-विहिप के नेता-पदाधिकारी खुलकर निशाने साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे.

साथ ही भाजपा इस मांग पर भी जोर दे रही है कि जो आदिवासी धर्म बदलकर ईसाई बने उन्हें मिलने वाले अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को खत्म किया जाए. लिहाजा इस मांग पर अलग ही बहस छिड़ी है.

तब विपक्षी दलों के नेता और ईसाईयों के कई संगठन ये आरोप लगाते रहे हैं कि इन मांगों तथा घटनाओं के बरक्स भाजपा तथा उसकी सरकार चुनावी आहट के साथ अपना पॉलिटिकल एजेंडा तय कर रही है.

वो तीन घटनाएं

खूंटी के कोचांग गांव में पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ गैंगरेप के मामले में स्कूल के फादर अल्फांसो आइंद गिरफ्तार

दुमका में धर्मांतरण कराने की कोशिशों के आरोप में ईसाईयों के सोलह प्रचारक गिरफ्तार

रांची स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी पर बच्चा बेचने का आरोप, एक महिलाकर्मी और एक सिस्टर गिरफ्तार

इन तीनों घटनाओं में कानूनी कार्रवाई जारी है. गैंग रेप की घटना में फादर के अलावा अन्य चार आरोपियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है. हालांकि गैंगरेप के मामले में गिरफ्तार फादर पर आरोप है कि उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस को नहीं दी और युवतियों का अगवा किए जाने में षड़यंत्र किया.

इस बीच रांची स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी से बच्चा बेचे जाने का मामला सामने आने के बाद विभिन्न स्तरों पर जांच बैठाई गई है. तथा जिला प्रशासन ने इन दोनों संस्थाओं का निबंधन रद्द करने की सिफारिश भी की है.

इससे पहले चैरिटी की दोनों संस्थाओं से महिलाओं-युवतियों तथा बच्चों को खाली कराते हुए दूसरे शेल्टर होम में शिफ्ट किया गया है

चैरिटी पर लगे आरोपों के बाद ईसाईयों से जुड़े दूसरी संस्थाओं को भी जांच के घेरे में लिया गया है.

मिशनरी संस्थाओं पर प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर ये आरोप भी लगाये जाते रहे हैं कि पत्थलगड़ी आंदोलन को हवा देने में उनकी भूमिका रही है.

तरह-तरह के आरोपों और मौजूदा हालात के विरोध में पिछले महीने राष्ट्रीय ईसाई महासंघ के बैनर तले राजधानी रांची में भारी बारिश के बीच मसीही समुदाय के लोगों ने मौन प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हुए. महासंघ का कहना है कि शांतिपूर्ण ढंग से वे इन विषयों पर आगे भी असंतोष जाहिर करते रहेंगे.

गौरतलब है कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी पर लगे आरोपों और पुलिस की कार्रवाई के बाद महिला एवं बाल कल्याण विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने भी इस मामले में संज्ञान लिया है और राज्य के मुख्य सचिव को एक पत्र भेजकर राज्य में चल रहे चैरिटी की सभी संस्थाओं तथा बाल आश्रय से जुड़े संगठनों की जांच कराकर राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है.

इसी मंत्रालय ने यह भी ताकीद की है कि राज्य सरकार इन संस्थाओं में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अनुपालन पर नजर रखे. यह घटना सामने आने के बाद राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की टीम भी स्थिति का जायजा लेने रांची पहुंची थी.

इस बीच गृह विभाग, भारत सरकार ने झारखंड पुलिस से कहा है कि ईसाईयों से जुड़े गैर सरकारी संगठनों की जांच कर रिपोर्ट भेजी जाए. लिहाजा मुद्रा नियंत्रण कानून (एफसीआरए) के चहत मिलने वाले फंड और उसके इस्तेमाल को लेकर जांच की जिम्मेदारी सीआईडी को दी गई है.

हाल ही में सीआईडी ने एक साथ 37 ईसाई संगठनों पर छापे मारे थे तथा संचालकों से एफसीआरए से जुड़े मामलो में कई किस्म की जानकारियां मांगी है.

ईसाई संगठनों और धर्मगुरुओं के सवाल हैं कि सिर्फ मिशनरी संस्थाओं को जांच के दायरे में क्यों लिया जा रहा है.

हाल ही में आर्च बिशप टोप्पो ने बयान जारी कर कहा है कि मुद्रा नियंत्रण कानून को लेकर जवाब देने के लिए जिस तरह के दबाव बनाए जा रहे हैं और धमकियां दी जा रही है वह पूर्वाग्रह से ग्रसित है. जबकि ऑडिटेड एफसीआर एकांउट भारत सरकार को दिए जा चुके हैं.

बिशप ने ये भी कहा है कि गैर सरकारी संगठनों ने प्रशासन से अनुरोध किया है कि भोले- भाले आदिवासियों के धर्मांतरण कराने के जो आरोप लगाए जाते रहे हैं उससे जुड़े ठोस जानकारी तथा तथ्य उपलब्ध कराए जाएं, ताकि आरोपित पक्ष अपनी सफाई दे सके. लेकिन प्रशासन ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है.

बिशप ने इस मामले पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि विकास भारती जैसे गैर सरकारी संगठन पर कोई क्यों जांच नहीं बैठाई जा रही. यह रवैया पत्क्षपातपूर्ण है, जबकि ये संस्था भी विभिन्न स्त्रोत से आर्थिक सहायता प्राप्त करती रही है.

गौरतलब है कि गैर सरकारी संगठन विकास भारती के सरकार तथा भाजपा से नजदीकी ताल्लुकात की बात कही जाती रही हैं.

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27 जुलाई को राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने के बाद रोमन कैथोलिक चर्च के बिशपों ने मीडिया से बात की (फोटो: नीरज सिन्हा/द वायर)

इससे पहले रोमन कैथोलिक चर्च के बिशपों में थियोडोर मास्करेन्हास, तेलस्फोर बिलुंग, फादर जोसफ मरियानुस कुजुर, बिशप विनय कंडुलना आदि ने राज्यपाल से मिलकर यह सुनिश्चित कराने का अनुरोध किया था कि झारखंड राज्य में मसीही बिना किसी परेशानी, सेवा का काम कर सकें.

तब बिशप मास्करेन्हास ने मीडिया के सामने पक्ष रखते हुए ये सवाल भी उठाये थे कि सिर्फ ईसाईयों से जुड़े गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ सख्ती क्यों बरती जा जा रही है और जांच के नाम पर तरह-तरह के सवाल क्यों पूछे जा रहे हैं. इन कार्रवाईयों के जरिए पूरे ईसाई समुदाय का नाम खराब किया जा रहा है.

उनका ये भी कहना है कि किसी मामले में मानवीय भूल की गुंजाइश है. इसी बहाने मिशनरियों की सभी संस्थाओं के कामकाज पर सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए और न ही बदनाम करने की कोशिशें होनी चाहिए. मिशनरी संस्थाएं शांति और न्याय प्रिय हैं. उन्हें परेशान नहीं किया जाना चाहिए.

इन घटनाक्रमों के बीच हिंदू जागरण मंच, आरएसएस, विहिप की सीधी नजर भी मिशनरी संस्थाओं पर लगे आरोपों और जारी कार्रवाई पर है.

हिंदू जागरण मंच के क्षेत्रीय संगठन मंत्री और आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक सुमन कुमार ने पिछले दिनों रांची दौरे के क्रम में मिशनरीज ऑफ चौरिटी पर लगे आरोपों के संदर्भ में कहा भी था कि सेवा की आड़ में मिशनरियों के कारनामे उजागर होने लगे हैं. सुमन कुमार ने चर्च की भूमिका पर भी सवाल खड़े करते हुए सरकार की सख्त कार्रवाईयों को जरूरी बताया था.

इस बीच दो अगस्त को रांची में ही विहिप के अखिल भारतीय धर्म प्रसार प्रमुख यगुल किशोर ने मीडिया से बातचीत में स्पष्ट तौर पर कहा कि सरकार चर्चों की कथित राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की जांच कराए. मिशनरीज ऑफ चैरिटी पर लगे आरोपों के संदर्भ में ईसाई संगठनों को मिलने वाले विदेशी फंड का हिसाब भी लिया जाना चाहिए.

जुगल किशोर के साथ मौजूद विहिप के दूसरे नेताओं ने ये भी आरोप लगाए कि पत्थलगड़ी आंदोलन को हवा देने में चर्च की भूमिका रही है.

गौरतलब है कि पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर उपजे टकराव की हालत के बीच झारखंड प्रदेश बीजेपी के कई नेता भी प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार के कामकाज और विकास को बाधित करने के लिहाज से पत्थलगड़ी आंदोलन को हवा देने में मिशनरियों की संलिप्तता रही है.

जबकि मिशनरी संस्थाएं इन आरोपों पर सीधा जवाब देने से बचती रही हैं. उनका कहना है कि मौजूदा दौर में सरकार को किसी जन सवाल पर विरोध का सामना करना होता है, तो ईसाईयों पर आसानी से आरोप मढ़ दिए जाते हैं.

इस बीच भाजपा के कई नेताओं के अलावा कुछ सरना आदिवासी संगठन इस मांग जोर देते दिखाई पड़ रहे हैं कि ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासी को अनूसचित जनजाति वर्ग को मिलने वाला आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए.

इसी सिलसिले में पिछले नौ अगस्त को गोड्डा से बीजेपी के सांसद निशिकांत दूबे द्वारा ने लोकसभा में भी ये मामला उठाया था.

दस अगस्त को उन्होंने अपने वाल पर इसका वीडियो भी जारी किया है, जिसमें वे कह रहे हैं कि झारखंड समेत कई राज्यों में आदिवासी समाज में ईसाई धर्म के प्रति कनवर्जन (धर्मांतरण) बढ़ा है. शिक्षा, स्वास्थ्य के नाम पर ये काम कराए जा रहे हैं.

उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की गतिविधियों पर भी सख्त आरोप लगाए हैं. साथ ही मांग की है कि आदिवासियों को क्षेत्र के नाम पर जब आरक्षण नहीं मिलता है, तो धर्म के आधार पर भी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए.

इससे पहले खूंटी में फादर की गिरफ्तारी और तुरंत बाद मिशनरीज ऑफ चौरिटी पर लगे आरोपों को केंद्र में रखते हुए भाजपा के सांसद समीर उरांव और विधायक रामकुमार पाहन द्वारा जारी उस बयान की चर्चा भी प्रासंगिक है जिसमें दोनों नेताओं ने कहा था कि कई मामलों को लेकर चर्च और मिशनरी संस्थाओं की भूमिका तो संदेह के घेरे मे है ही अब इनकी पोल भी खुलने लगी है.

जबकि पिछले साल राज्य सरकार ने झारखंड में धर्म स्वतंत्र विधेयक लागू किया है. इस कानून के लागू किए जाने के खिलाफ मसीही समुदाय तथा ऑल चर्चेज एसोसिशन, सेंगेल अभियान जैसे संगठन जगह-जगह प्रदर्शन करते रहे हैं.

ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के संस्थापक अध्यक्ष तथा झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता रहे प्रभाकर तिर्की अभी ईसाई महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

प्रभाकर तिर्की कहते हैं कि मिशनरियों के खिलाफ भाजपा तथा उसकी सरकार जिस तरह डर का माहौल बना रही है उसे समझने में ज्यादा पेंच नहीं है.

दरअसल झारखंड में जमीन की सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों को लेकर आदिवासी लगातार सरकार की नीति और कार्रवाई के खिलाफ आंदोलन करते रहे हैं. तो इस आंदोलन को कमजोर करने तथा धर्म के नाम पर आदिवासियों को बांटने की राजनीति में सरकार मिशनरी को बदनाम करने में जुटी है.

प्रभाकर कहते हैं कि गिरफ्तारी, जगह-जगह छापे, पूछताछ और जांच का सिलसिला इसलिए तेज हुआ है कि मिशनरी संस्थाएं और ईसाई समुदाय को झारखंडी समाज में निंदित किया जा सके. जो घटनाएं सामने आई हैं उनकी भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.

वे कहते हैं कि अलग राज्य गठन के बाद इस तरह का माहौल पदली दफा बनाया जा रहा है.

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मुख्यमंत्री रघुबर दास (फोटो: पीटीआई)

तेजी से बदलती इन परिस्थितियों के बीच झारखंड के प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, पूर्व मंत्री बंधु तिर्की, पूर्व सांसद प्रदीप बलमुचू, पूर्व केंद्रीय सुबोधकांत सहाय समेत कई जनसंगठनों के सामाजिक कार्यकर्ता भी लगातार अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते रहे हैं.

सुबोधकांत सहाय का कहना है कि सरकार और भाजपा का रुख यह जाहिर करता है कि बारास्ता झारखंड वे अपना पॉलिटिकल एजेंडा तय कर रहे हैं. किसी मामले में कानून जब काम कर रहा है, तो भाजपा तथा आरएसएस के लोग क्यों इतना उतावलापन दिखाते हैं.

पूर्व मंत्री तथा झारखंड विकास मोर्चा के नेता बंधु तिर्की का कहना है कि स्वास्थ्य, शिक्षा तथा मानवता के क्षेत्र में काम कर रही मिशनरी संस्थाओं को यकीनन दमन का सामना करना पड़ा रहा है. अलबत्ता राजनीतिक दलों तथा सामजिक संगठनों द्वारा की जाने वाली किसी भी रैली, सभा, मार्च- प्रदर्शन के पीछे ईसाईयों का हाथ करार देना अफसोसजनक है. ये आदिवासियों के बीच दरार पैदा करने की सोची-समझी चाल हो सकती है.

प्रदीप बलमुचू के सवाल हैं कि सिर्फ ईसाईयों से जुड़े गैर सरकारी संगठनों की जांच क्यों. यह कार्रवाई सरकार का नजरिया जाहिर करती है. कार्रवाई के नाम पर संस्थाओं को डराया भी जाता रहा है. ये हालत इस राज्य में पहले नहीं थी. आगे डर इसका है कि चुनावों के नजदीक आने के साथ इसे तूल दिया जा सकता है.

इधर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव भी दावा करते हैं कि इन मामलों को एक नजर में समझा जा सकता है. पहला यह कि आखिर किन सच्चाईयों के सामने आने से ईसाई धर्मगुरु और संगठन परेशान हैं.

मिशनरीज ऑफ चैरिटी पर जो आरोप लगे हैं या खूंटी, दुमका में फादर तथा ईसाईयों के प्रचारकों की गिरफ्तारी में कानून अपना काम कर रहा है. अलबत्ता दुमका में तो आदिवासी ग्राम प्रधान की अगुवाई में ग्रामीणों ने ईसाई प्रचारकों का विरोध किया तथा पुलिस में मामला दर्ज कराया.

प्रतुल कहते हैं कि ईसाई संगठनों से जुड़ी संस्थाओं की जांच केंद्र सरकार के निर्देश पर की जा रही है. इसमें झारखंड भाजपा के क्या हाथ हो सकते हैं.

वे कहते हैं कि ईसाई धर्मगुरुओं को अपने काम के दायरे का ख्याल रखना चाहिए. उनके सवालों और रुख से जांचों के प्रभावित होने की गुंजाइश बढ़ जाती है. अगर ईसाई संस्थाओं ने कुछ गलत नहीं किया है, तो जांच पर आपत्ति क्यों. भाजपा इन सवालों को मुद्दा बना रही है ये आरोप निराधार है. पार्टी का नजरिया स्पष्ट हैः सबका साथ सबका विकास.

प्रतुल का दावा है कि केंद्र और राज्य की सरकार किसी धर्म, मजहब के साथ भेदभाव नहीं करती. हां पार्टी इस बात की जरूर वकालत कर रही है कि जो आदिवासी धर्म बदल कर ईसाई बने उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए. क्योंकि आदिवासियों की रीति- रिवाज, पंरपरा उनसे अलग हैं. और ये मांग आदिवासियों के बीच भी उभरती रही है.

किसी आंदोलन या रैली, सभा में ईसाईयों की भूमिका को लेकर भाजपा अक्सर सवाल खड़ा करती है, इस मामले में वे कहते हैं कि जिस तरह की सूचनाएं हमारी पार्टी और सरकार को मिलती रही है उसमें ये सवाल हद तक जायज हैं.

आदिवासी विषयों के जानकार और कई मुद्दों पर पैनी नजर रखते रहे आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के अध्यक्ष प्रेमचंद्र मुर्मू भाजपा की दलीलों से इत्तेफाक नहीं रखते.

वे कहते हैं कि पांचवी अनूसची क्षेत्र में संवैधानिक प्रमुख की हैसियत से राज्यपाल को इन मामलों में हस्तेक्षप करना चाहिए, साथ ही सरकार को भी समभाव का नजरिया अपनाना चाहिए. ये साफ प्रतीत होता है कि चर्च के बिशपों ने इन्ही ख्यालों से राज्यपाल को अपनी चिंता से वाकिफ कराया है.

मुर्मू कहते हैं इस किस्म का माहौल बनाकर राज्य के जनमुद्दों को मोड़ने की कोशिशें की जा रही है. कई रिपोर्ट्स की चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि विकास और कल-कारखाने के सवाल पर सबसे ज्यादा खामियाजा आदिवासियों ने भुगता है.

अब आदिवासी इन बातों को लेकर आंदोलन करें, तो उसे कमजोर करने के लिए कई किस्म की कार्रवाईयां शुरू हो जाती है. रही बात आरक्षण की, तो उछालने के बजाय सरकारों को इस पर नीति स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि ये संवैधानिक विषय अधिकार है.

आदिवासी विषयों पर लगातार काम कर रहे युवा पत्रकार तथा लेखक कार्नोलियुस मिंज कहते हैं कि मिशनरी संस्थाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, मानवता, जागरूकता के क्षेत्र में दशकों से इन इलाकों में काम कर रही हैं. और इसके सकारात्मक परिणाम भी देखे जा सकते हैं.

लेकिन हाल की कुछ घटनाओं को केंद्र में रखते हुए ये आरोप आसानी से लगाए जाने लगे हैं कि मिशनरी संस्थाएं सेवा की आड़ में गैरकानूनी गतिविधियों तथा धर्मांतरण को बढ़ावा देती रही है. जाहिर है इन आरोपों से संस्थाएं तथा मसीही समुदाय आहत हैं. इससे सामाजिक तानेबाने पर असर और खासकर आदिवासियत और उनके बीच के सवालों पर खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता.

मिंज बताते हैं कि वे खुद भी मसीही समुदाय, संगठनों, बिशपों से चर्चा कर इन आरोपों को समझने की कोशिशें करते रहे हैं. तब एक बात खास तौर पर रेखांकित होती रही है कि चर्च के धर्म गुरु, ईसाई संगठन भी ये चाहते हैं कि जो आरोप लगाए जाते हैं उनके तथ्य और प्रमाण भी सामने लाया जाना चाहिए.

मिंज कहते हैं कि वो अक्सर मिशन संचालित स्कूलों-कॉलेजों के कार्यक्रम का कवर करते हैं. राजधानी रांची में ही दशकों से दूसरे धर्म के बच्चे सालों तक इन संस्थानों में पढ़ते रहे हैं और पढ़ रहे हैं, लेकिन कभी उनलोगों ने ये अहसास नहीं किया होगा कि शिक्षण संस्थान में धर्म परिवर्तन को लेकर कोई शिकायत-बात सामने आती होगी. वे समझते हैं कि इस राज्य में आदिवासियत ज्यादा महत्वपूर्ण है और अब तो ईसाई भी सरना आदिवासियों के सरना कोड की मांग का समर्थन कर रहे हैं.

गौरतलब है कि झारखंड में आदिवासी, जनगणना में अलग से सरना कोड कॉलम देने के लिए सालों से आंदोलन करते रहे हैं ताकि उनकी संख्या भी सामने आए.

हालांकि दुमका के सुदूर शिकारीपाड़ा में भाजपा नेता तथा आदिवासी प्रतिनिधि श्याम मरांडी की शिकायत है कि संथाल परगना इलाके में ईसाई धर्म के कथित प्रचारकों ने भोले आदिवासियों को प्रलोभन देकर, सेवा के नाम पर सालों से धर्मांतरित कराते रहे हैं. पिछले सरकार धर्म परिवर्तन को लेकर जो कानून लाया है, वह आदिवासियों के हित में है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं.)

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