बीते शुक्रवार मिर्चपुर मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 33 लोगों को दोषी ठहराया और 12 लोगों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई. मिर्चपुर से 80 किलोमीटर दूर बेहद अमानवीय परिस्थितियों में रह रहे पीड़ित परिवार फ़ैसला आने के बाद जहां संतोष व्यक्त कर रहे हैं, वहीं उन्हें यह डर भी है कि उन पर फिर से हमला हो सकता है.
हिसार: ‘हम कभी भी मिर्चपुर वापस नहीं जाएंगे. आठ साल पहले हमने अपनी आंखों के सामने अपने घरों को जलते देखा है. अपनी मांओं, बहनों और बेटियों को पिटते हुए देखा है. अब उस गांव से हमारा कोई वास्ता नहीं है.’ ये कहना है मिर्चपुर कांड मामले के गवाह सत्यवान का.
ये केवल सत्यवान ने ही नहीं कहा. चंद सिंह, बलराज सिंह, दिलबाग सिंह, प्रमिला, सुनीता जैसे सैकड़ों पीड़ित दलित परिवारों की यही कहानी है.
आठ साल पहले 21 अप्रैल 2010 को हरियाणा के हिसार जिले के मिर्चपुर गांव में एक कुत्ते को लेकर उपजे विवाद के चलते जाट समुदाय के लोगों ने दलितों (वाल्मीकि समाज के लोगों) के लगभग दो दर्जन घरों में आग लगा दी थी. इसकी वजह से कई दलित परिवारों के घर जलकर राख हो गए और ताराचंद नाम के एक 60 वर्षीय दलित व्यक्ति और उनकी शारीरिक रूप से अक्षम बेटी सुमन की जिंदा जलने से मौत हो गई थी.
बीते 24 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इस मामले में कुल 33 लोगों को दोषी ठहराया और 12 लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई. कोर्ट ने इस घटना के संदर्भ में कहा कि 71 साल बाद भी दबंग जातियों द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है.
मिर्चपुर से विस्थापित होने के बाद तंवर फार्म हाउस में रह रहे गवाह सत्यवान कहते हैं कि फैसले के बाद वो बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है. उनका कहना है, ‘प्रशासन अगर हमें सुरक्षा नहीं देता है तो जाट समुदाय के लोग कभी भी हमारे पर हमला कर सकते हैं. कुल 26 गवाहों में से नौ लोगों को प्रशासन ने गनमैन की सुरक्षा नहीं दी है.’ हालांकि सत्यवान और मिर्चपुर के दलित पीड़ित परिवार हाईकोर्ट के इस फैसले खुश हैं.
एक बुजुर्ग दलित ने कहा, ‘लंबे समय के बाद न्यायालय से हमें इंसाफ मिला है.’
बता दें कि इससे पहले 24 सितंबर 2011 में निचली अदालत ने 97 आरोपियों में से 15 लोगों को दोषी पाया था और बाकी लोगों को बरी कर दिया था. अब दिल्ली हाईकोर्ट ने 20 और लोगों को दोषी ठहराया है. सत्यवान कहते हैं कि वे फैसले से खुश हैं लेकिन वे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और बाकी बचे लोगों को भी सजा दिलवाएंगे.
इस मामले के अन्य गवाह दिलबाग सिंह कहते हैं, ‘प्रशासन ने हमारा बिल्कुल भी साथ नहीं दिया है. न तो केंद्र सरकार ने मदद की और न ही राज्य सरकार ने. भाजपा और कांग्रेस दोनों एक ही जैसे हैं. हमारी मदद पत्रकारों और एनजीओ ने की है. उन्हीं की बदौलत हमें न्याय मिला है.’
मिर्चपुर के दलित परिवार अब कभी भी अपने गांव वापस नहीं लौटना चाहते हैं. पीड़ित परिवार के एक सदस्य चंद सिंह ने कहा, ‘आठ साल पहले वो जगह हम छोड़ आए हैं. इतना अत्याचार सहने के बाद हम वहां वापस नहीं लौटना चाहते हैं. क्या पता कब फिर से हमारे घर जला दिए जाएं.’
मिर्चपुर से विस्थापित दलित परिवार अलग-अलग जगहों पर रह रहे हैं. 2010 में 254 दलित परिवारों को गांव छोड़ना पड़ा था. जिसमें से लगभग 120 परिवार तंवर फॉर्म हाउस में रह रहे थे. अब यहां परिवारवालों की संख्या बढ़कर लगभग 155 हो गई है.
वेदपाल तंवर नाम के एक शख्स ने इन पीड़ित दलित परवारों को रहने के लिए जगह दी थी. इसकी वजह से इन्हें कई बार जाट समुदाय और खाप पंचायतों की धमकियों का सामना करने पड़ा था. दलित परिवार कहते हैं कि डेढ़ साल तक तंवर ने अपने घर से उन्हें खाना खिलाया था. सरकार उनकी कोई मदद नहीं कर रही थी.
वेदपाल ने कहा, ‘मानवता के नाते मैंने इन लोगों की मदद की. इसकी वजह से मुझे कई बार धमकियां मिल चुकी हैं कि मैं इन्हें अपनी जमीन पर न रहने दूं. मुझे जान से मारने की भी धमकी दी गई. लेकिन मैं चाहता हूं कि इन्हें इंसान समझा जाए. माननीय कोर्ट के आदेश पर जल्द से जल्द इनका पुनर्वास किया जाना चाहिए.’
हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को सख्त निर्देश दिया है कि वे दलित परिवारों का जल्द से जल्द पुनर्वास करें. हालांकि वेदपाल अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. उन्होंने कहा कोर्ट के आदेश पर पहले कुछ समय के लिए सुरक्षा दी गई थी, लेकिन वो भी प्रशासन ने वापस ले ली.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने घोषणा की है कि सरकारी पशुधन (गवर्नमेंट लाइवस्टॉक फर्म) की साढ़े 11 एकड़ की जमीन, जो कि डंडूर गांव में है, पर लगभग चार करोड़ रुपये खर्च करके दलित परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा. सरकार ये भी घोषणा कर चुकी है कि इस जगह का नाम दीनदयालपुरम रखा जाएगा. हालांकि दलित समुदाय के लोगों का कहना है कि वे चाहते हैं कि जिन लोगों की जलने से मौत हुई है उनके नाम पर इस जगह का नामकरण किया जाए.
सत्यवान ने कहा, ‘जब कोई जाट मरता है तो उसको शहीद का दर्जा दे दिया जाता है. हमारे जाति के लोगों को जलाकर मार दिया गया था, तो क्या हम उनके नाम पर गांव का नाम भी नहीं रख सकते हैं.’
तंवर फार्म में रह रहे दलित परिवार कहते हैं कि उनके लिए यहां रहना बहुत ज़्यादा तकलीफदेह है. यहां रह रहे दलित शख्स राजेश कहते हैं कि वे किसी तरह मजदूरी करके गुजारा कर रहे हैं. रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है. दिन भर मेहनत करने के बाद 100 या 200 रुपये कमा पाते हैं. उसी से घर का गुजारा होता है.
राजेश की पत्नी कमलेश घर में ही रहती हैं. वो कहती हैं कि यहां रहने का मतलब है कि नर्क जैसी जिंदगी जीना. बरसात के समय यहां चारो तरफ पानी भर जाता है. घर के अंदर कीड़े घुस आते हैं. कभी-कभी तो यहां पर सांप भी देखने को मिलते हैं.
एक अन्य दलित महिला प्रमिला एक पन्नी का छप्पर बना कर छोटे से घर में दो बेटियों और एक लड़के के साथ रहती हैं. लड़का अब पास के ही सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने जाता है. बेटी अब भी घर में रहती है. वो पढ़ने नहीं जाती है.
प्रमिला के बच्चों में सिर्फ बेटे शिवा को वो दिन याद है जब इनका घर जलाया गया था. शिवा ने बताया कि उस समय वो दूसरी क्लास में था. स्कूल में किसी ने उसको बताया कि उसके घर को जला दिया गया है. वहां से वो भागते हुए वो घर आया तो देखा कि सभी लोग भाग रहे हैं.
प्रमिला की बेटी भारती उस समय बहुत छोटी है. वो सिर्फ दो साल की थी. उसे उस घटना के बारे में कुछ भी याद नहीं है. पैसे की कमी के चलते भारती स्कूल नहीं जा पाती है.
वहीं चंद सिंह कहते हैं, ‘हम इस नर्क की जिंदगी से निकलना चाहते हैं. हमारी सरकार से गुजारिश है कि वे हमें रहने के लिए जमीन दें. हम भी इंसानों की तरह सम्मानित जिंदगी जीना चाहते हैं. हमनें कोई गलती नहीं की फिर भी इस तरह रहना पड़ रहा है.’
फैसले के बाद मिर्चपुर गांव में पसरा सन्नाटा
हाईकोर्ट के फैसले के बाद तंवर फार्म से लगभग 80 किलोमीटर दूर मिर्चपुर गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है. लोग इस घटना के बारे में बिल्कुल बात नहीं करना चाहते थे. कुछ लोगों ने तो साफ मना कर दिया कि वे इसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं. हालांकि कुछ लोगों ने बात की और कहा कि ये घटना सिर्फ कुछ लोगों के बीच आपसी रंजिश का मामला है.
टीचर की नौकरी के लिए तैयारी कर रहे जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अमित कहते हैं कि इस मामले में दोनों तरफ के लोगों की गलती है. उन्होंने कहा, ‘ये बात सही है कि यहां पर लोगों के घर जलाए गए थे लेकिन इसमें कुछ सच्चाई है तो कुछ झूठ भी है.’
मिर्चपुर के लोगों की इस घटना को लेकर अपनी-अपनी कहानी है. अमित कहते हैं कि ये आठ साल पुराना मामला है, इसके बारे में निष्पक्ष हो कर कहानी लिखना मुश्किल है. हर कोई अपनी बात को सच कहेगा. ये जान पाना बहुत मुश्किल है कि आखिर सच क्या है.
हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में ये स्वीकार किया है कि मिर्चपुर में जाटों द्वारा दलितों को सबक सिखाने के लिए सुनियोजित तरीके से उनके घरों को जलाया गया.
गांव के जाट परिवारों का दावा है कि यहां पर दलितों के साथ भाईचारा है. कुछ लोगों ने कहा कि दलित हमारे यहां से दूध लेते हैं, दही-मक्खन ले जाते हैं. अमित कहते हैं कि अगर दलित परिवार वापस गांव में आते हैं तो हम दिल खोलकर उनका स्वागत करेंगे. इनका कहना है कि कई बार दलितों को वापस लाने का प्रयास किया गया लेकिन वे नहीं आए.
गांव में अब भी 30-35 दलित परिवार रहते हैं. उन्हें पुलिस की सुरक्षा दी गई है. कुछ दिन पहले ही इसी गांव में पेशे से इलेक्ट्रिशियन विकास नाम के एक लड़के के साथ मारपीट का मामला सामने आया था. लड़के ने आरोप लगाया है कि उस पर डीजल डाल दिया गया था और उसे आग लगाने की कोशिश की गई थी.
मिर्चपुर गांव के जाटों और दलितों के बीच अब कोई संवाद नहीं है. जाट समुदाय के मोंटू कहते हैं, ‘अगर कभी कोई राह चलते दिख जाता है तो दुआ सलाम हो जाती है, वैसे अब हमारी कोई दोस्ती नहीं है.’
वहीं, इस मामले में हाईकोर्ट से दो साल की सजा पाए जगदीश का कहना है कि ये फैसला सही नहीं है. वे कहते हैं, ‘दलितों का घर जलाना कुछ युवा लोगों की गलती थी. मैं निर्दोष हूं. कोर्ट में मेरे खिलाफ किसी ने भी गवाही नहीं दी थी. फिर भी जज ने मुझे सजा दी. ये जातिवादी फैसला दिया है. निचली अदालत का फैसला सही था, हाईकोर्ट ने गलत निर्णय दिया है.’
बता दें कि जगदीश साल 2011 में आए निचली अदालत के फैसले में छूट गए थे. उस समय कामिनी लॉ मामले में जज थीं. जगदीश की बहू ने कहा, ‘ये पहले ही लगभग ढाई साल जेल में विचाराधीन कैदी के रुप में रह कर आ चुके हैं. अब इन्हें सजा नहीं होनी चाहिए.’
जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस आई. एस. मेहता की पीठ ने अपने 209 पेज के फैसले में माना है कि जाट समुदाय की भीड़ द्वारा बाल्मीकि घरों को जानबूझकर निशाना बनाया गया और उनके घरों को योजनाबद्ध तरीके से आग लगा दी गई थी.
पीठ ने कहा, ‘अगर सारे सबूतों को ध्यान से देखा जाए तो इससे साफ हो जाता है कि जाट समुदाय के लोगों ने बाल्मिकी समुदाय के लोगों को सबक सिखाने की साजिश रची थी, जिसकी वजह से उनके घरों को आग लगा दिया गया.’
कोर्ट ने बीआर अंबेडकर का उल्लेख करते हुए कहा, ‘19 और 21 अप्रैल 2010 के बीच मिर्चपुर में हुई घटनाओं ने भारतीय समाज में नदारद उन दो चीजों की यादें ताजा कर दी हैं जिनका उल्लेख डॉ. बीआर अंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा के समक्ष भारत के संविधान का मसौदा पेश करने के दौरान किया था. इनमें से एक है ‘समानता’ और दूसरा है ‘भाईचारा’