बिहार के बाल आश्रय गृहों में भूख, अलगाव और मौखिक प्रताड़ना का शिकार होते हैं बच्चे: टिस रिपोर्ट

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस की बालिका गृह कांड का ख़ुलासा करने वाली रिपोर्ट में सामने आया है कि राज्य के स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन एजेंसी में रहने वाले 6 साल तक के बच्चों को विभिन्न प्रताड़नाएं, कठोर सजाएं दी जाती हैं और उनका सही से इलाज भी नहीं होता.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस की बालिका गृह कांड का ख़ुलासा करने वाली रिपोर्ट में सामने आया है कि राज्य के स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन एजेंसी में रहने वाले 6 साल तक के बच्चों को विभिन्न प्रताड़नाएं, कठोर सजाएं दी जाती हैं और उनका सही से इलाज भी नहीं होता.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: बिहार में गोद देने वाली विशेष एजेंसियों के केंद्रों में रहने वाले कुछ बच्चे बिल्कुल भी नहीं बोलते हैं क्योंकि उनके पास बात करने के लिए कोई होता नहीं है.

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (टिस) की एक रिपोर्ट में यह बात कही गयी है और इन सरकारी बालगृहों में बच्चों के भूख, अलगाव तथा मौखिक प्रताड़ना के शिकार होने के मामलों का उल्लेख किया गया है.

सरकार 6 साल तक की उम्र के लावारिस और लापता बच्चों को रखने के लिए इन विशेष केंद्रों को चलाती है जिन्हें स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन एजेंसी (एसएए) कहा जाता है.

बिहार के 20 जिलों में 21 एसएए हैं जिनके ऑडिट में टिस ने पाया कि तीन साल की उम्र के आसपास के कुछ बच्चे बिल्कुल भी नहीं बोलते हैं क्योंकि उन केंद्रों में कोई प्रशिक्षित संस्थान नहीं है और उन बच्चों के पास बात करने के लिए कोई नहीं होता. इन संस्थानों में 70 प्रतिशत बालिकाएं होती हैं.

टिस की जिस रिपोर्ट में बिहार के आश्रय गृहों में यौन उत्पीड़न के मामलों का खुलासा हुआ था, उसमें ऐसे बच्चों को दी जाने वाली सजाओं के तरीकों को भी बताया गया है जिनमें कुछ अनाथ हैं, कुछ भागे हुए हैं और कुछ ऐसे हैं जिन्हें परिवारों ने छोड़ दिया है.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘इन केंद्रों पर बच्चों को बाथरूम में बंद कर देने, उनसे उठक-बैठक कराने, अलग-थलग करने, अपशब्द बोलने जैसी बातें देखी गईं.’

इस तरह की सजाओं को बहुत पीड़ादायक बताते हुए रिपोर्ट तैयार करने वाली टिस टीम की अगुवाई कर रहे मोहम्मद तारिक ने कहा कि बच्चों पर इनका दीर्घकालिक असर होता है.

तारिक ने बताया, ‘ये बच्चे बहुत छोटे हैं. उन्हें बाथरूम में बंद कर देने से उनके लिए बड़ी मानसिक आघात वाली स्थिति पैदा हो सकती है जिन्हें शायद ये भी नहीं पता कि उन्हें सजा क्यों दी जा रही है?’

उन्होंने केंद्रों पर स्वास्थ्य कर्मियों की कमी पर भी चिंता जताई.

तारिक ने कहा, ‘कई बार हमने देखा कि लापरवाही या कर्मचारियों की कमी के कारण किसी बच्चे को दो बार दवाई दे दी गई या दवा दी ही नहीं गई. इससे जान पर खतरा भी हो सकता है.’

रिपोर्ट में खासतौर पर तीन एसएए केंद्रों को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है. इनमें पटना का नारी गुंजन, मधुबनी का आरवीईएसके और कैमूर का ज्ञान भारती हैं.

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