बिहार में यादव समुदाय की आबादी करीब 15 प्रतिशत और कुशवाहा समुदाय की करीब 8 फीसदी है. ऐसे में अगर उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए छोड़ कर राजद के साथ जाते हैं, तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है.
यदुवंशी (यादव) के घर के दूध और कुशवंशी (कुशवाहा) के घर के चावल से उत्तम खीर बनने की बात कह राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा ने अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है.
बिहार के सीएम और मंडल आयोग के सूत्रधार रहे बीपी मंडल की जन्मशताब्दी के मौके पर शनिवार को पटना में हुए एक कार्यक्रम में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, ‘यदुवंशी का दूध और कुशवंशी का चावल मिल जाए, तो उत्तम खीर बन सकती है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यदुवंशियों का दूध और कुशवंशियों का चावल मिल जाए, तो खीर बनने में देर नहीं लगेगी. लेकिन, यह खीर तब तक स्वादिष्ट नहीं होगी, जब तक इसमें छोटी जाति और दबे-कुचले समाज का पंचमेवा नहीं पड़ेगा. यही सामाजिक न्याय की असली परिभाषा है.’
कुशवाहा के इस बयान पर सबसे पहले राजद नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने प्रतिक्रिया दी.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘निःसंदेह उपेन्द्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की ज़रूरत है. पंचमेवा के स्वास्थ्यवर्धक गुण ना केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देते हैं. प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता, स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है. यह एक अच्छा व्यंजन है.’
नि:संदेह उपेन्द्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की ज़रूरत है। पंचमेवा के स्वास्थ्यवर्धक गुण ना केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देते हैं। प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता, स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है। यह एक अच्छा व्यंजन है। https://t.co/cfBR3bBePm
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) August 26, 2018
महागठबंधन में इशारा करने का संकेत देते तेजस्वी के बयान के बाद सोमवार को उपेंद्र कुशवाहा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक पर सवा सौ शब्द का एक पोस्ट डाला.
उन्होंने लिखा, ‘खीर के लिए यदुवंशी के घर का दूध, कुशवंशी के घर का चावल, अतिपछड़ा के घर का पंचमेवा, ब्राह्मण के घर से चीनी, दलित के आंगन से तुलसी दल और मिल बैठ कर खाने के लिए मुसलमान भाई के दस्तरखान की जरूरत है.
उन्होंने आगे लिखा, ‘हमने न राजद से दूध मांगा है और न ही भाजपा से चीनी. यदूवंशी का अर्थ न तो राजद है और न ब्रह्मर्षि का अर्थ कोई खास दल. रालोसपा सभी जमात की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहती है. यदुवंशी की ओर भी. हम पार्टी में समाज के सभी वर्गों का समायोजन कर लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत बिहार और देश का सर्वांगीण विकास चाहते है, हम अपनी पार्टी के जनाधार को व्यापकता देने के लिए ऐसा करेंगे. जिन्हें जो अर्थ लगाना हो लगाते रहें.’
गौर करने वाली बात है कि तेजस्वी यादव के बयान के बाद आई उनकी इस प्रतिक्रिया में ब्राह्मण, दलित और मुसलमान भी शामिल हैं. यानी कि फिलहाल वह महागठबंधन में जाने एनडीए के साथ बने रहने के अलावा दोनों ही गठबंधन से अलग होकर सियासत करने का विकल्प भी उन्होंने खुला रखा है. लेकिन, तीसरे विकल्प को आजमाना उनके राजनीतिक करियर पर विराम भी लगा सकता है. इसलिए फिलवक्त उनका जो सियासी कद है, उसमें पहले दो विकल्प ही उनके लिए मुफीद लगते हैं.
हालांकि, रालोसपा के नेताओं को ऐसा नहीं लगता है. उनका कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा खुद को किसी जाति विशेष का नेता नहीं कहलाना चाहते हैं. वह सभी समुदायों का नेता बनना चाहते हैं और उनके बयान में भी यही है.
एक राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, ‘मौजूदा राजनीतिक हालात में उनके लिए दो ही विकल्प हैं या तो एनडीए में बने रहें या फिर महागठबंधन में शामिल हो जाएं. इसलिए अपने लिए ज्यादा से ज्यादा बारगेनिंग करना चाहते हैं. यही वजह है कि ऐसा बयान देकर वह दोनों तरफ अपनी थाह मापने की कोशिश कर रहे हैं.’
वैसे, ऐसा पहली बार नहीं है कि उपेंद्र कुशवाहा ने राजद के साथ जाने का संकेत दिया है. इससे पहले भी वह ऐसा बयान दे चुके हैं और राजद की तरफ से कई दफे उन्हें महागठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया जा चुका है.
रालोसपा के नेताओं का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा आने वाले समय में सीएम की उम्मीदवारी चाहते हैं और अगर राजद की तरफ उनके पास ऐसा कोई ऑफर आता है, तो निश्चित तौर पर वह राजद के साथ गठबंधन में जा सकते हैं. लेकिन, ऐसा संभव नहीं है.
जहां तक एनडीए में रहते हुए सीएम की उम्मीदवारी का सवाल है, तो वहां भी उनके लिए यह सपना दूर की कौड़ी ही है. इसकी वजह हैं नीतीश कुमार.
भाजपा के लिए रालोसपा से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण जदयू है इसलिए भाजपा जदयू की कीमत पर रालोसपा को नहीं अपनाएगी.
उपेंद्र कुशवाहा खुद भी यह भली तरह जानते हैं और वह ये भी जानते हैं कि एनडीए में नीतीश कुमार के रहते उन्हें अहमियत नहीं मिलने वाली. यही वजह है कि वह अक्सर नीतीश कुमार पर जुबानी हमले करते रहते हैं. कभी कानून-व्यवस्था को लेकर, तो कभी शिक्षा को लेकर.
पिछले दिनों उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि नीतीश कुमार को अब सीएम पद छोड़ देना चाहिए और किसी नए चेहरे को कमान देनी चाहिए.
उनके बयान पर सियासी भूचाल आ गया था, जिसके बाद वह अपनी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देने से बचते रहे.
कुछ दिन पहले वैशाली जिले में रालोसपा के एक नेता की हत्या को लेकर उन्होंने नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोला था और राज्य के कानून व व्यवस्था पर सवाल उठाया था.
बहरहाल, उपेंद्र कुशवाहा को भले ही नीतीश कुमार फूटी कौड़ी नहीं सुहाते हों, लेकिन भाजपा चाहती है कि दोनों ही एनडीए का हिस्सा रहें.
असल में बिहार में कुशवाहा समुदाय की आबादी यादव के बाद सबसे ज्यादा है. बिहार में यादव समुदाय की आबादी 15 प्रतिशत और कुशवाहा समुदाय की आबादी करीब 8 फीसदी है.
ऐसे में अगर उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए छोड़ कर राजद के साथ जाते हैं, तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है.
रालोसपा से जुड़े एक नेता ने कहा, ‘फिलहाल हमारा ध्यान लोकसभा चुनाव की तरफ है और हम इस चुनाव में अपने लिए सम्मानजनक सीटें चाहते हैं.’
यहां यह भी बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोसपा को लोकसभा की तीन सीटें दी गई थीं. उस वक्त नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा नहीं थे, जिस कारण उपेंद्र कुशवाहा का दबाव काम कर गया था.
लेकिन, अभी नीतीश कुमार एनडीए में हैं और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटों के लिए लगातार दबाव बनाए हुए हैं. ऐसी स्थिति में उपेंद्र कुशवाहा की मांग किस हद तक पूरी हो पाती है, यह भी देखने वाली बात होगी.
आम चुनाव से ठीक पहले अलग-अलग जातियों से चावल, चीनी, दूध, पंचमेवा लेकर ‘स्वादिष्ट खीर’ बनाने की विधि बताकर कुशवाहा ने इशारा कर दिया है कि उनके जेहन में कुछ अलग ही ‘खिचड़ी’ पक रही है.
ये ‘सियासी खिचड़ी’ किसके लिए जायकेदार होगी और किसके लिए कड़वी, पकने के बाद ही पता चलेगा.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है और पटना में रहते हैं.)