आरएसएस के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा कि समलैंगिक विवाह प्राकृतिक नहीं होते, इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते हैं.
नई दिल्ली: समलैंगिकता को अपराध नहीं करार देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने सावधानीपूर्वक प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए गुरुवार को कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं है लेकिन वह समलैंगिक विवाह का समर्थन नहीं करते हैं क्योंकि यह प्राकृतिक नहीं है.
आरएसएस की यह टिप्पणी तब आई है जब सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध था. न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान संविधान में प्रदत्त समता के अधिकार का उल्लंघन करता है.
संघ के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने एक बयान में कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह हम भी समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते हैं.’
बहरहाल, उन्होंने संघ के पुराने रुख को दोहराते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह और ऐसे संबंध ‘प्रकृति के अनुकूल’ नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘ये संबंध प्राकृतिक नहीं होते, इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते हैं.’
कुमार ने दावा किया कि भारतीय समाज पारंपरिक तौर पर ऐसे संबंधों को मान्यता नहीं देता है. मानव आमतौर पर अनुभवों से सीखता है, इसलिए इस विषय पर सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर चर्चा करने और इसका समाधान करने की जरूरत है.
गौरतलब है कि संघ परंपरागत रूप से समलैंगिकता के खिलाफ रहा है और इसे अप्राकृतिक कहता रहा है लेकिन 2016 में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबोले ने यह कह कर एक विवाद छेड़ दिया था कि किसी की यौन प्राथमिकता अपराध नहीं हो सकती है.
हालांकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर फैसला सुप्रीम कोर्ट के ऊपर छोड़ दिया था. भाजपा नेताओं ने कहा है कि वे शीर्ष न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं लेकिन ऑन रिकार्ड नहीं बोलेंगे.
वहीं, पार्टी के राज्यसभा सदस्य सुब्रहमण्यम स्वामी ने दावा किया कि समलैंगिकता एक आनुवांशिक दोष (जेनेटिक डिफेक्ट) है.
स्वामी ने कहा, ‘यह समाज में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से आपकी स्थिति को प्रभावित नहीं करता है. समलैंगिकों के बीच संबंध को अपराध नहीं करार नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह प्राइवेट रूप से किया जाता है.’
इससे पहले गुरुवार को उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को असंवैधानिक करार देते हुए इसे गैर-आपराधिक ठहराया है. कोर्ट ने अपने ही साल 2013 के फैसले को पलटते हुए धारा 377 की मान्यता रद्द कर दी. अब सहमति के साथ अगर समलैंगिक समुदाय के लोग संबंध बनाते हैं तो वो अपराध के दायरे में नहीं आएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)