पूर्व इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन का कहना है कि इसरो जासूसी मामला 20 अक्तूबर 1994 को मालदीव की नागरिक मरियम रशीदा की गिरफ्तारी के समय से ही झूठा था. उस समय नारायणन इसरो की क्रायोजनिक परियोजना के निदेशक थे.
नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने कहा है कि उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाने वाले षड्यंत्रकारी अलग-अलग उद्देश्यों वाले अलग-अलग लोग थे, लेकिन पीड़ित एक ही तरह के लोग थे.
सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के जासूसी मामले में मानसिक यातना को लेकर बीते शुक्रवार को नारायणन को 50 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का निर्देश दिया था.
शीर्ष अदालत ने मनगढ़ंत मामला बनाने और नारायणन की गिरफ्तारी तथा उन्हें भयानक प्रताड़ना और अत्यंत दुख पहुंचाए जाने को लेकर केरल पुलिस की भूमिका की जांच के लिए उच्चस्तरीय जांच का भी आदेश दिया था.
नारायणन के अनुसार इसरो जासूसी मामला 20 अक्तूबर 1994 को मालदीव की नागरिक मरियम रशीदा की गिरफ्तारी के समय से ही झूठा था. उस समय नारायणन इसरो की क्रायोजनिक परियोजना के निदेशक थे.
रशीदा को इसरो के रॉकेट इंजनों से संबंधित गोपनीय दस्तावेज रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था जो कथित तौर पर पाकिस्तान को दिए जाने थे.
नारायणन का कहना है, ‘यद्यपि मालदीवी महिला की गिरफ्तारी मामले की शुरुआत थी, लेकिन इसकी पटकथा तभी लिखी जा चुकी थी जब उस महिला की त्रिवेंद्रम हवाईअड्डे पर 20 जून 1994 को के. चंद्रशेखर (रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के एक भारतीय प्रतिनिधि) से मुलाकात हुई.’
उनका कहना है, ‘इसरो जासूसी मामले में षड्यंत्रकारी अलग-अलग उद्देश्य वाले अलग-अलग लोग थे, लेकिन पीड़ित एक ही तरह के लोग थे. जब एक पुलिस निरीक्षक को मरियम रशीदा की डायरी में शशिकुमारन (इसरो की क्रायोजनिक परियोजना के तत्कालीन उपनिदेशक) का नाम मिला तो मामले में इसरो को घसीट दिया गया.’
नाराणन ने कहा, ‘जब एक प्रमुख षड्यंत्रकारी को वैश्विक उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में इसरो की गति को धीमा करने का मौका मिल गया तो मैं शिकार बन गया.’ उन्होंने ये टिप्पणियां अपनी किताब में की हैं जो हाल ही में ब्लूम्सबरी ने प्रकाशित की है.
नारायणन को नवंबर 1994 में इसरो के अन्य वैज्ञानिकों और कुछ अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था. तीन महीने बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था.
बाद में मामले की जांच करने वाले केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने केरल की एक अदालत में रिपोर्ट दायर कर कहा था कि जासूसी का मामला झूठा है और आरोपों को साबित करने वाला कोई साक्ष्य नहीं है. अदालत ने इस पर सभी आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में केरल सरकार को निर्देश दिया था कि वह नारायणन और अन्य को एक-एक लाख रुपए का मुआवजा दे. पिछले साल शीर्ष अदालत ने नारायणन की उस याचिका पर सुनवाई शुरू की थी जिसमें मामले की जांच करने वाले केरल पुलिस के पूर्व पुलिस महानिदेशक सिबी मैथ्यूज और अन्य के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया गया था.
किताब ‘रेडी टू फायर: हाउ इंडिया एंड आई सरवाइव्ड द इसरो स्पाई केस’ में नारायणन और पत्रकार अरुण राम इसरो जासूसी मामले की एक-एक कड़ी को उधेड़ते हैं, पुरानी सामग्री को फिर से देखते हैं और भारत के क्रायोजनिक इंजन विकास में देरी कराने वाले अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का खुलासा करने में नई चीजें पाते हैं.
नारायणन का कहना है कि मामले के पीछे निहित स्वार्थ थे क्योंकि मामले के चलते भारत के क्रायोजनिक इंजन का विकास करने में कम से कम 15 साल की देरी हुई.