विशेष रिपोर्ट: बीते 30 अगस्त को प्रदेश के अख़बारों में प्रकाशित एक विज्ञापन में राजस्थान सरकार ने भरतपुर ज़िले में स्थित एक स्कूल के कायाकल्प से जुड़े कई दावे किए थे, जिनकी ज़मीनी सच्चाई कुछ और है.
राजस्थान में इस साल के आख़िर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी चौसर बिछ चुकी है. 2013 में 200 में से 163 सीटें जीतकर सत्ता में आई भाजपा उस रिवाज को तोड़ने के लिए जद्दोजहद कर रही है, जो पिछले दो दशकों से राजस्थान में जारी है.
पार्टी एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के बीच सत्ता की अदला-बदली के क्रम को तोड़ने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है.
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ‘राजस्थान गौरव यात्रा’ के ज़रिये प्रदेश को नाप रही हैं, वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जगह-जगह पार्टी कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के लिए मंत्र दे रहे हैं.
इन सियासी दांव-पेंचों के बीच वसुंधरा सरकार प्रचार-प्रसार में भी जमकर पैसा बहा रही है. प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया तो सरकारी विज्ञापनों से अटा हुआ है ही, राज्य के शहर, कस्बे और गांव भी होर्डिंग-बैनरों से भरे पड़े हैं.
विज्ञापनों की इस बाढ़ के बीच 30 अगस्त को प्रदेश के अख़बारों में एक फुल पेज का विज्ञापन प्रकाशित हुआ. इसमें सरकार ने शिक्षा विभाग के कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया.
दावा किया गया कि सरकार के बड़े क़दमों की वजह से राजस्थान देश में 26वें स्थान से दूसरे पायदान पर पहुंच गया है. इसकी पुष्टि करने के लिए विज्ञापन में 13 अलग-अलग आंकड़ों का ज़िक्र है.
विज्ञापन में भरतपुर ज़िले के नंगला धरसोनी स्कूल के छात्र नितिन की फोटो और उसका बयान छपा है.
इसमें लिखा है, ‘हमारी स्कूल में पंखे, फर्नीचर है, पीने का साफ पानी है और खेल का मैदान है. शिक्षक रोज़ आते हैं और अच्छा पढ़ाते हैं. स्कूल में खाना भी मिलता है और अब तो दूध भी मिलने लगा है. अब हमारी स्कूल में पहले से ज़्यादा बच्चे पढ़ने लगे हैं. मेरा भी अब रोज़ स्कूल जाने का मन करता है. मुख्यमंत्री मैडम हमारे लिए अच्छा काम कर रही है. उनको धन्यवाद.’
जब नितिन के दावे की पड़ताल की गई तो चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई. विज्ञापन में नितिन के हवाले से कहा गया है कि स्कूल में पंखे हैं. बिल्कुल हैं, लेकिन इन्हें वसुंधरा सरकार ने नहीं बल्कि आठ साल पहले गांव के लोगों ने पैसे इकट्ठे कर लगावाया था.
स्कूल में फर्नीचर होने का दावा तो पूरी तरह से फ़र्ज़ी निकला. कक्षाओं में फर्नीचर के नाम पर अध्यापकों के बैठने की कुर्सियों के अलावा कुछ भी नहीं है. ये भी वसुंधरा सरकार के आने से पहले की ख़रीदी हुई हैं.
छात्र दरी-पट्टी पर बैठकर पढ़ाई करते हैं. इनकी जीर्ण-शीर्ण स्थिति को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता कि ये 10-12 साल पुरानी हैं. स्कूल के ज़्यादातर कमरों का फर्श उखड़ा हुआ है. कई कमरों में तो फर्श का नामोनिशान तक नहीं बचा है.
विज्ञापन के मुताबिक स्कूल में पीने का साफ पानी उपलब्ध है, लेकिन हक़ीक़त में इसकी यहां कोई व्यवस्था नहीं है. स्कूल का हैंडपंप पिछले चार साल से ख़राब पड़ा है. छात्र और अध्यापक अपने घर से पानी लेकर आते हैं. यदि किसी का पानी ख़त्म हो जाए या लाना भूल जाए तो उसे आसपास के घरों में पानी पीने जाना पड़ता है.
स्कूल में पानी का इंतज़ाम नहीं होने की वजह से दोनों शौचालयों पर ताला लटका हुआ है. इसकी वजह से स्कूल में पढ़ने वाली छात्राएं सबसे ज़्यादा परेशान हैं. ग्रामीणों के अनुसार वे कई बार पानी की व्यवस्था करने के लिए नेताओं और अधिकारियों से गुज़ारिश कर चुके हैं, लेकिन कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही.
जहां तक खेल के मैदान का सवाल है तो यह स्थापना के समय से स्कूल में है. हालांकि इसमें छात्रों के खेलने की कोई सुविधा नहीं है. वैसे भी एक दर्जन नीम के पेड़ों की वजह से यहां खेलने की जगह बचती ही नहीं है.
छात्रों के अनुसार, सुबह प्रार्थना सभा के अलावा यह मैदान उनके कोई काम नहीं आता. कभी-कभी अपनी मर्ज़ी से लुका-छिपी जैसे पारंपरिक खेल जरूर खेलते हैं.
विज्ञापन में स्कूल में अच्छी पढ़ाई होने का दावा किया गया है, लेकिन अध्यापकों की संख्या इसकी पोल खोलती है. आठवीं तक के इस स्कूल में सात पद स्वीकृत हैं, लेकिन अभी यहां तीन अध्यापक ही तैनात हैं.
प्रधानाध्यापक महेश मीणा संस्कृत पढ़ाते हैं और सतीश हिंदी, जबकि सुवरन सिंह प्रबोधक हैं. हैरत की बात है यह है कि स्कूल में गणित, विज्ञान और अंग्रेज़ी जैसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले विषयों के अध्यापक नहीं हैं. तीन अध्यापक आठ कक्षाओं को कैसे पढ़ाते होंगे और पढ़ाई का स्तर कैसा होगा, यह समझा जा सकता है.
प्रधानाध्यापक महेश मीणा कहते हैं, ‘हम दो कक्षाओं को साथ बिठाकर बच्चों को पढ़ाते हैं. बच्चों का सभी विषयों का कोर्स पूरा करवाया जाता है.’
राजस्थान सरकार के विज्ञापन में अगला दावा स्कूल में खाना और दूध मिलने का है. इसमें कोई दोराय नहीं है कि वसुंधरा सरकार ने इसी साल जुलाई में अन्नपूर्णा दूध योजना शुरू की है. इसके तहत प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले 65 लाख छात्रों को सप्ताह में तीन दिन दूध दिया जाता है, लेकिन स्कूलों में दिए जाने वाले खाने में मौजूदा सरकार का कोई योगदान नहीं है.
स्कूलों में दोपहर का भोजन ‘मिड डे मील कार्यक्रम’ के अंतर्गत दिया जाता है. इस कार्यक्रम को केंद्र सरकार ने 15 अगस्त 1995 को पूरे देश में लागू किया था. इसी के तहत 2004 में मेन्यू आधारित पका हुआ गर्म भोजन देने की व्यवस्था प्रारंभ की गई.
विज्ञापन में स्कूल में छात्रों की संख्या बढ़ने का दावा भी सफेद झूठ है. स्कूल में वर्तमान में छात्रों की नामांकन संख्या 106 है. पिछले कई वर्षों से यह संख्या इसके इर्द-गिर्द ही रही है. स्कूल का रिकॉर्ड इसकी पुष्टि करता है और ग्रामीण भी यही कहते हैं.
यानी राजस्थान सरकार ने 30 अगस्त को अख़बारों में प्रकाशित विज्ञापन में छात्र नितिन के ज़रिये स्कूल के कायाकल्प से जुड़े जो सात दावे किए हैं उनमें से छह फ़र्ज़ी हैं. सिर्फ दूध मिलने का दावा सही है. आश्चर्य की बात यह है कि ख़ुद नितिन को अपने स्कूल की कथित ख़ूबियों की जानकारी अख़बार में छपे विज्ञापन से ही पता चली.
इस बारे में जब नितिन से यह सवाल पूछा कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उनके स्कूल के लिए क्या किया है तो वह कुछ भी बता नहीं पाया. हालांकि उसने विज्ञापन में छपे ख़ुद के फोटो और उनके हवाले से कहीं कई बातों का भेद ज़रूर खोला.
नितिन ने बताया, ‘मैं सर के कहने पर जयपुर गया था. वहीं मेरा फोटो खिंचा. वहां मुझसे किसी ने स्कूल के बारे में कुछ भी नहीं पूछा और न ही मैंने कुछ बताया.’
ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि ख़ुद के मौजूदा कार्यकाल को कांग्रेस के 50 साल के शासनकाल से बेहतर बताने वाली वसुंधरा सरकार को उपलब्धियों का कथित अंबार होने के बावजूद फ़र्ज़ी दावे क्यों करने पड़ रहे हैं.
विज्ञापन के इस गड़बड़झाले के बारे में पूछने के लिए शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी से कई बार संपर्क किया, लेकिन वे न तो अपने सरकारी आवास पर मिले और न ही फोन पर उपलब्ध हुए.
वैसे सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी होने वाले विज्ञापनों में गड़बड़ी का यह पहला मामला नहीं है.
आठ सितंबर को प्रदेश के अख़बारों में प्रकाशित विज्ञापन में भी एक चूक सामने आ चुकी है. इसमें प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत 37.2 लाख परिवारों को एलपीजी गैस कनेक्शन देने का ज़िक्र है और प्रधानमंत्री आवास योजना में 12 लाख से ज़्यादा घरों के निर्माण की जानकारी है.
इस संबंध में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट कहते हैं, ‘राजस्थान की सरकार ने विज्ञापन में जो झूठ बोला है उसके लिए प्रदेश की जनता से माफी मांगनी चाहिए. इस विज्ञापन पर सरकारी ख़जाने का जो पैसा ख़र्च हुआ है उसे भाजपा को राजकोष में जमा करवाना चाहिए. भरतपुर के इस स्कूल की नहीं, प्रदेश के ज़्यादातर स्कूलों की ऐसी ही स्थिति है. हज़ारों स्कूलों को बंद करने वाली यह सरकार किस मुंह से अपनी पीठ थपथपा सकती है.’
वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत का कहना है, ‘भाजपा को केवल मार्केटिंग करना और लोगों को झांसे में फंसाना आता है. झूठ बोलना और फ़र्ज़ी दावे करना इनकी फितरत है. वसुंधरा की सरकार ने कोई काम किया हो तो इसे लोगों को गिनाएं. जब बताने के लिए कुछ नहीं है तो इसी तरह की फ़र्ज़ी कहानियां ही सुनाई जाएंगी.’
गहलोत आगे कहते हैं, ‘इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कि राज्य की भाजपा सरकार फर्जी विज्ञापनों पर सरकारी ख़जाने से करोड़ों रुपये फूंक रही है. इन्होंने पहले सरकारी ख़र्चे पर प्रधानमंत्री का जयपुर में कार्यक्रम किया फिर गौरव यात्रा निकाली. हाईकोर्ट ने इनके मुंह पर तमाचा मारा. ये लोग कितनी भी कोशिश कर लें. कितना भी झूठ बोल लें, लेकिन राजस्थान की जनता अब इनके झांसे में नहीं आएगी. इनकी विदाई तय है.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जयपुर में रहते हैं.)