केंद्र ने कहा, राष्ट्रीय राजधानी का प्रशासन अकेले दिल्ली सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता

पिछली सुनवाई में दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि उसका कामकाज पूरी तरह पंगु है और वह राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन के बारे में संविधान पीठ के फैसले के बावजूद अधिकारियों के तबादले या पदस्थापना का आदेश नहीं दे सकती है.

New Delhi: A view of the Supreme Court, in New Delhi, on Thursday. (PTI Photo / Vijay Verma)(PTI5_17_2018_000040B)
(फोटो: पीटीआई)

पिछली सुनवाई में दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि उसका कामकाज पूरी तरह पंगु है और वह राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन के बारे में संविधान पीठ के फैसले के बावजूद अधिकारियों के तबादले या पदस्थापना का आदेश नहीं दे सकती है.

New Delhi: A view of the Supreme Court, in New Delhi, on Thursday. (PTI Photo / Vijay Verma)(PTI5_17_2018_000040B)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि राष्ट्रीय राजधानी का प्रशासन अकेले दिल्ली सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता है. उसने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते इसकी ‘असाधारण’ स्थिति है.

बीते बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र ने जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ से कहा कि शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने साफ तौर पर कहा है कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है.

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गत चार जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए व्यापक मानदंड निर्धारित किए थे. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की 2015 में सरकार बनने के समय से ही केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच खींचतान चल रही थी.

सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से उपस्थित वकील ने कहा कि बुनियादी मुद्दों में से एक यह था कि क्या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार को ‘सेवा’ मामलों के संबंध में विधायी और कार्यकारी शक्तियां हासिल हैं.

केंद्र के वकील ने कहा, ‘संविधान पीठ ने साफ तौर पर कहा है कि केंद्र शासित प्रदेश और राज्य के बीच बराबरी नहीं हो सकती है. संविधान का अनुच्छेद 239 एए (यह दिल्ली सरकार की शक्तियों और स्थिति से संबंधित है) को एक स्वतंत्र तंत्र के रूप में बनाया गया है. अदालत ने कहा है कि दिल्ली सरकार को तीन मुद्दों (लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि) को छोड़कर सारी शक्तियां हैं.’

उन्होंने पीठ से कहा, ‘देश की राजधानी होने की वजह से दिल्ली की असाधारण स्थिति है.’

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली में संसद, उच्चतम न्यायालय और कई महत्वपूर्ण संस्थान हैं और यहां विदेशी राजनयिक भी रहते हैं. इसलिये (दिल्ली) का प्रशासन किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश पर नहीं छोड़ा जा सकता.’

वह अपनी दलीलें 25 सितंबर को भी जारी रखेंगे.

इस बीच, दिल्ली सरकार ने पीठ से कहा कि उसके पास जांच आयोग गठित करने की विधायी शक्ति है.

दिल्ली सरकार के वकील ने कहा, ‘हम यह दलील नहीं दे रहे हैं कि आप (अदालत) दिल्ली को संविधान के तहत राज्य बताए. हमें जांच आयोग अधिनियम के उद्देश्यों को देखना होगा. हम ऐसी दलील नहीं दे रहे हैं जो विचित्र हो. जांच आयोग गठित करने की शक्ति निश्चित तौर पर है.’

गत 18 जुलाई को नई दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि उसका कामकाज पूरी तरह पंगु है और वह राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन के बारे में संविधान पीठ के फैसले के बावजूद अधिकारियों के तबादले या पदस्थापना का आदेश नहीं दे सकती है.

चार जुलाई के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा तो नहीं दिया था लेकिन ये ज़रूर कहा था कि उपराज्यपाल को स्वतंत्र फैसला लेने का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर काम करना होगा.