विशेष रिपोर्ट: राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के पास यह जानकारी भी नहीं है कि देश में कुल कितने सफाईकर्मी हैं. 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1993 से लेकर अब तक सीवर में दम घुटने की वजह हुई मौतों और मृतकों के परिवारों की पहचान कर उन्हें 10 लाख रुपये मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया था.
नई दिल्ली: पिछले कई सालों से सीवर सफाई के दौरान जहरीली गैस से दम घुटने की वजह से बड़ी संख्या में सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है. हाल ही में दिल्ली के दिल्ली मोती नगर इलाके में डीएलएफ ग्रीन्स के परिसर में पांच सफाईकर्मियों की मौत हो गई. गौर करने वाला पहलू यह है कि यहां मरने वालों में से कोई भी पेशे से सफाई कर्मचारी नहीं था.
देश में लगातार सफाईकर्मियों के जान जोखिम में डालने और उनके लिए समुचित सुरक्षा के इंतज़ामों पर उठते सवालों के बीच इनके परिवार को मुआवजा देने की भी बात होती रही है, लेकिन अब तक कुल कितने सीवर सफाई कर्मचारियों ने काम के दौरान जान गंवाई, इसका आंकड़ा बमुश्किल ही सामने रखा जाता है.
इस बारे में द वायर के जानकारी मांगने पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने बताया कि 1993 से लेकर 2018 तक में कुल 666 सफाईकर्मियों की मौत हुई है.
मालूम हो कि 27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि 1993 से लेकर अब तक सीवर में दम घुटने की वजह से मरे लोगों और उनके परिवारों की पहचान की जाए और हर एक परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चार साल बीत जाने के बाद भी अभी तक सभी राज्यों ने जानकारी नहीं दी है. इनमें से भी आयोग के पास सिर्फ मृतकों की संख्या की ही जानकारी है.
आयोग को इस बात की जानकारी नहीं है कि इन सफाईकर्मियों की पहचान क्या है यानी ये कौन हैं, कहां से आते हैं, इनके नाम क्या हैं और इनमें से कितने लोगों को मुआवजा मिला है.
आयोग की असिस्टेंट डायरेक्टर यासमीन सुल्ताना का कहना है कि इन लोगों की पहचान और मुआवज़े से संबंधित जानकारी धीरे-धीरे जुटाई जा रही है.
सुल्ताना ने बताया, ‘हम सभी राज्यों को पत्र लिख रहे हैं कि वे हमें ये जानकारी दें कि कितने लोगों को मुआवजा दिया गया है. फिलहाल राज्यों ने हमें अभी तक सीवर में दम घुटने हुई लोगों की मौतों की संख्या भेजी है.’
आयोग द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक सीवर में दम घुटने से सबसे ज़्यादा 194 मौतें तमिलनाडु में हुई हैं.
वहीं दूसरे स्थान पर गुजरात है, जहां सीवर में दम घुटने की वजह से 122 लोगों की मौत हो चुकी है.
आयोग के अनुसार हरियाणा में 54, कर्नाटक में 69, उत्तर प्रदेश में 61, दिल्ली में 39, राजस्थान में 38, पंजाब में 29 और पश्चिम बंगाल में 10 सीवरकर्मियों ने सफाई के दौरान अपनी जान गंवाई.
यहां धयान देने वाला एक पहलु यह भी है कि आयोग द्वारा दिया गया आंकड़ा केवल 17 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों का है, जिनकी ओर से यह जानकारी उन्हें दी गई.
इस जानकारी का आधार क्या है, यह पूछने पर आयोग की ओर से बताया गया कि उसने यह जानकारी मीडिया में छपी रिपोर्ट्स और राज्यों को लिखे पत्रों के आधार पर जुटाई है.
ये पूछे जाने पर कि क्या आयोग के लोगों ने इस प्रकार की मौतों के सत्यापन के लिए कोई फील्ड वर्क किया है, अधिकारियों ने कहा कि वे सिर्फ राज्य, नगर निगमों और जिलाधिकारी को पत्र लिखकर कार्रवाई करने और आंकड़ा भेजने का निर्देश देते हैं.
द वायर ने मृतकों से संबंधित पूरी जानकारी जैसे कि उनका नाम, पता, एफआईआर, मुआवज़ा इत्यादि जानकारी मांगी, लेकिन आयोग के अधिकारियों ने कहा कि उनके पास सिर्फ मृतकों की संख्या है. अन्य जानकारी अभी वो धीरे-धीरे जुटा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने सभी राज्यों से वर्षवार इससे संबंधित जानकारी मांगी थी, लेकिन आयोग अब तक ये भी जानकारी इकट्ठा नहीं कर पाया है कि देश में कुल कितने सफाई कर्मचारी काम कर रहे हैं.
आयोग ने बताया कि नियमित, कॉन्ट्रैक्ट, परमानेंट, आउटसोर्स इत्यादि आधार पर काम कर रहे सफाईकर्मियों के बारे में जानकारी के लिए राज्यों को पत्र लिखा है लेकिन अभी तक उनके पास जानकारी नहीं पहुंची है.
16 मार्च 2017 को आयोग के अध्यक्ष बने मनहर वालजीभाई ज़ाला कहते हैं कि इनमें से ज़्यादातर लोगों को मुआवज़ा मिल गया है. हालांकि वो भी स्पष्ट आंकड़ा नहीं दे पाए कि कितने लोगों को मुआवज़ा दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक हर एक परिवार को दस लाख का मुआवज़ा दिया जाना चाहिए.
ज़ाला ने कहा, ‘राज्य इस दिशा में तत्परता के साथ काम नहीं कर रहे हैं. सफाईकर्मियों के मौत के और भी ज्यादा मामले हो सकते हैं लेकिन हमें इतने की ही जानकारी है. हम सभी परिवारों को घर तक 10 लाख रुपये पहुंचाएंगे.’
हालांकि सफाईकर्मी और मैला ढोने वालों के लिए काम करने वाली दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) सफाई कर्मचारी आंदोलन के आंकड़ों के मुताबिक साल 2000 से अब तक में 1,760 सफाईकर्मचारियों की मौत हो चुकी है.
इस एनजीओ के संस्थापक बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि आयोग द्वारा पेश किया गया आंकड़ा बिल्कुल गलत है. उन्होंने कहा, ‘ये आंकड़ा सही नहीं है. इन्होंने जल्दबाजी में इसे इकट्ठा किया है. अब तक में 666 नहीं, 1,760 सफाईकर्मियों की मौत हो चुकी है.’
जब आयोग के अध्यक्ष से ये पूछा गया कि क्या उन्होंने कभी इस प्रकार के एनजीओ से जानकारी मांग कर प्रभावित लोगों को मुआवज़ा दिलाने और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की है? तब उन्होंने कहा कि अब वे इनसे संपर्क करेंगे और सफाईकर्मियों के आंकड़ों को इकट्ठा करेंगे.
द वायर के पास मौजूद आंकड़ों से ये स्पष्ट होता है कि अभी तक किसी भी राज्य ने साल 1993 में सीवर साफ करते वक्त दम घुटने से हुई मौत के आंकड़ों को इकट्ठा नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उलट ज्यादातर राज्यों ने साल 2013 के आस-पास या उसके बाद हुई घटनाओं की ही पहचान की है.
इसमें से ज़्यादातर लोगों को 10 लाख का मुआवजा नहीं मिला है. मनहर ज़ाला ने बताया कि जिन लोगों को 10 लाख से कम का मुआवजा मिला है, उन्हें पूरा मुआवज़ा देने के लिए आयोग द्वारा सभी राज्य सरकारों और नगर निगमों को पत्र लिखे जा रहे हैं.
नियमानुसार देखें तो राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग का काम मॉनिटरिंग और दिशा निर्देश देना है. इसके पास इन निर्देशों को लागू कराने की शक्तियां नहीं हैं. जिला स्तर पर अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि पात्र लोगों को मुआवज़ा दिया जाए.
12 अगस्त 1994 को सफाई कर्मचारी आयोग का गठन एक वैधानिक संस्था के रूप में तीन साल के लिए किया गया था. हालांकि बीच-बीच में संशोधन करके इसकी समय सीमा को बढ़ाया जाता रहा है. मौजूदा समय में ये गैर-वैधानिक (नॉन स्टैट्युटरी) संस्था के रूप में काम कर रहा है.
बता दें कि मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है.
सीवर में अंदर घुसने के लिए इंजीनियर की इजाजत होनी चाहिए और पास में ही एंबुलेंस होनी चाहिए ताकि दुर्घटना की स्थिति में जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सके.
सीवर टैंक की सफाई के दौरान विशेष सूट, ऑक्सीजन सिलेंडर, मास्क, गम शूज, सेफ्टी बेल्ट व आपातकाल की अवस्था के लिए एंबुलेंस को पहले सूचित करने जैसे नियमों का पालन करना होता है. हालांकि ऐसे कई सारे मामले सामने आ चुके हैं जिसमें ये पाया गया है कि न तो सरकारी और न ही निजी एजेंसियां इन नियमों का पालन कर रही हैं.