अगर सरकार को अंबानी के लिए ही काम करना है तो अगली बार नारा दे, अबकी बार अंबानी सरकार

सितंबर 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री के बीच राफेल क़रार पर दस्तख़त हुए थे, उसके ठीक पहले रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों को लेकर सवाल उठाए थे और इसे फाइल में दर्ज किया था.

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सितंबर 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री के बीच राफेल क़रार पर दस्तख़त हुए थे, उसके ठीक पहले रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों को लेकर सवाल उठाए थे और इसे फाइल में दर्ज किया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनिल अंबानी. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनिल अंबानी. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

इंडियन एक्सप्रेस के सुशांत सिंह की ख़बर पढ़िएगा. सितंबर 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री के बीच राफेल क़रार पर दस्तख़त हुए थे, उसके ठीक पहले रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों को लेकर सवाल उठाए थे और इसे फाइल में दर्ज किया था. यह अधिकारी कांट्रेक्ट नेगोशिएशन कमेटी के सदस्य भी थे. रक्षा मंत्रालय में इनका ओहदा संयुक्त सचिव का था. इनका काम था कैबिनेट की मंज़ूरी के लिए नोट तैयार करना.

सूत्रों ने एक्सप्रेस को बताया है कि संयुक्त सचिव के एतराज़ के कारण कैबिनेट की मंज़ूरी में वक्त लग गया. इनके एतराज़ को दरकिनार करने के बाद ही क़रार पर समझौता हुआ था. जब उनसे वरिष्ठ दर्जे के अधिकारी यानी एक्विज़िशन( ख़रीद-फ़रोख़्त) के महानिदेशक ने उस एतराज़ को दरकिनार कर दिया.

संयुक्त सचिव और एक्विज़िशन मैनेजर ने जिस फाइल पर अपनी आपत्ति दर्ज की थी वो इस वक्त सीएजी के पास है. भारत के नियंत्रक व महालेखापरीक्षक के पास. दिसंबर के शीतकालीन सत्र में सीएजी अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली है. सूत्रों ने एक्सप्रेस को बताया है कि सीएजी अपनी रिपोर्ट में आपत्ति और आपत्ति को दरकिनार करने की पूरी प्रक्रिया को दर्ज कर सकती है.

राफेल विमान या किसी भी रक्षा ख़रीद के लिए कांट्रेक्स नेगोशिएशन कमेटी (सीएनसी) के प्रमुख वायुसेना प्रमुख थे. फ्रांस की टीम से दर्जनों बार बातचीत के बाद अंतिम कीमत के नतीजे पर पहुंचा गया था. संयुक्त सचिव की मुख्य दलील 36 राफेल विमानों के बेंचमार्क कीमत को लेकर थी.

उनका कहना था 126 राफेल विमानों के लिए जो बेंचमार्क कीमत तय थी उससे कहीं ज़्यादा 36 राफेल विमानों के लिए दी जा रही है. बेंचमार्क मतलब आधारभूत कीमत. एक कीमत है राफेल के मूलभूत ढांचे का और दूसरी कीमत है उसे रक्षा ज़रूरतों के अनुसार लैस करने के बाद का. पहली कीमत को ही बेंचमार्क कीमत कहते हैं.

यूपीए के समय 126 लड़ाकू विमानों के लिए टेंडर निकला था. इसके बाद भारतीय वायुसेना ने छह विमान कंपनियों के विमान को टेस्ट किया था. ये सभी फाइनल राउंड के लिए चुने गए थे. राफेल के साथ जर्मनी के यूरोफाइटर से भी बातचीत चली थी.

आपत्ति दर्ज कराने वाले संयुक्त सचिव ने कहा था कि यूरोफाइटर तो टेंडर में कोट किए गए दाम में 20 प्रतिशत की छूट भी दे रहा है. तो यह काफी सस्ता पड़ेगा. यूरोफाइटर ने यह छूट तब देने की पेशकश की थी जब मोदी सरकार बन चुकी थी. जुलाई 2014 में.

संयुक्त सचिव ने लिखा है कि राफेल से भी 20 प्रतिशत की छूट की बात होनी चाहिए क्योंकि उसका कंपटीटर यानी प्रतिस्पर्धी 20 प्रतिशत कम पर जहाज़ दे रहा है. राफेल और यूरोफाइटर दोनों में ख़ास अंतर नहीं है. दोनों ही उत्तम श्रेणी के लड़ाकू विमान माने जाते हैं.

संयुक्त सचिव के नोट में यह बात भी दर्ज है कि भारतीय वायुसेना के पास सुखोई 30 विमानों का जो बेड़ा है उसका निर्माण हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड कर रहा है.

भारतीय वायुसेना इस पैसे में ज़्यादा सुखोई 30 हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड से ही ख़रीद सकती है. सुखोई 30 भी उत्तम श्रेणी के लड़ाकू विमानों में है और इस वक्त भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों का नेतृत्व करता है.

सूत्रों के अनुसार अगस्त 2016 में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इस नोट पर विचार किया था. इसके लिए डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल है जिसे डीएसी कहते हैं. इसी बैठक में 36 राफेल विमानों की ख़रीद की मंज़ूरी दी गई थी और कैबिनट को प्रस्ताव भेजा गया था.

इस बैठक में ही संयुक्त सचिव के एतराज़ को खारिज किया गया. संयुक्त सचिव एक महीने की छुट्टी पर चले गए. सितंबर के पहले सप्ताह में डीएसी ने राफेल डील को मंज़ूरी दे दी.

पत्रकार रोहिणी सिंह ने ट्वीट किया है कि एक्विजिशन की महानिदेशक स्मिता नागराज को रिटायर होने के बाद सरकार ने एहसान चुका दिया. उन्हें यूपीएससी का सदस्य बना दिया.

कमाल है जिसने एतराज़ किया उसे छुट्टी पर और जिसने समझौता किया उसे रिटायरमेंट के बाद वेतन लेने का जुगाड़.

उस अफसर के छुट्टी पर चले जाने के बाद एक नए अफसर से कैबिनेट के लिए नोट तैयार करवाया गया, जिसे सितंबर 2016 के तीसरे सप्ताह में मंज़ूरी दी गई. 23 सितंबर 2016 को भारत के रक्षा मंत्री और फ्रांस के रक्षा मंत्री के बीच 59,262 करोड़ की डील पर दस्तखत हुआ.

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने भी कहा था कि मूल सौदा 126 का था लेकिन भारत में नई सरकार बन गई और उसने प्रस्ताव को बदल दिया, जो हमारे लिए कम आकर्षक था क्योंकि यह सिर्फ 36 विमानों के लिए था.

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि भारत की हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड कंपनी 126 राफेल नहीं बना सकती थी इसलिए अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस के साथ डास्सो एविएशन ने करार किया.

मेरा सवाल यह है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अनिल अंबानी की नई-नई कंपनी 126 विमान नहीं बना सकती थी इसलिए उसे फायदा पहुंचाने के लिए 36 विमानों का करार किया गया?

निर्मला सीतारमण के बयान में झोल है. उन्हें नहीं पता कि वे किस बात की सफाई दे रही हैं. विमान तो फ्रांस में ही बनना था, फिर 126 भी बन सकता था.

डास्सो के पास तो अपना विमान बनाने की क्षमता थी. उसे क्यों 36 विमान बनाने के लिए कहा गया? क्या डास्सो एविएशन ने कहा था कि हम 126 विमान नहीं बना सकते हैं. आप 36 ही लीजिए.

पूरी भारत सरकार अंबानी के बचाव में उतर गई है. इस मामले में भारत सरकार ने कभी ग़लत साबित नहीं किया है. वह हमेशा ही अंबानी का बचाव करती है.

ऐसा लगता है कि यह मोदी सरकार नहीं, अंबानी सरकार है. अगर अंबानी के लिए ही सरकार को काम करना है तो अगली बार भाजपा अपना नारा बदल ले. पोस्टरों पर लिख दे- अबकी बार अंबानी सरकार.

चूंकि अंबानी का बचाव करना है इसलिए पाकिस्तान को लाया गया. हिंदी के अखबारों और चैनलों को मैनेज कर राफेल विमान सौदे को लेकर सरकार भ्रम फैला रही है. जनता तक असली बात नहीं पहुंच रही है.

अंबानी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा तो एक कॉरपोरेट के लिए प्रधानमंत्री तक विरोधी दल कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं कि पाकिस्तान से गठबंधन हो गया है.

पूरी भाजपा पाकिस्तान-पाकिस्तान कर रही है. क्या वो इसलिए कर रही है ताकि पाकिस्तान-पाकिस्तान के शोर में राहुल गांधी का अंबानी-अंबानी सुनाई न दे.

हिंदी के अख़बार एक सरकार की चमचागिरी में हिंदी के पाठकों की हत्या कर रहे हैं. मेरी यह बात याद रखिएगा. राफेल डील की हर ख़बर को ग़ौर से पढ़िए. देखिए उसमें कितना डिटेल है. या सिर्फ पाकिस्तान-पाकिस्तान है.

हिंदी के अखबार हिंदी के पाठकों को लाश में बदल देना चाहते हैं ताकि उसके ऊपर सरकार की झूठ का कफ़न डाला जा सके. राम नाम सत्य है. राम नाम सत्य है.

(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)