मोदी सरकार में विज्ञापन पर ख़र्च की गई राशि यूपीए सरकार के मुकाबले दोगुनी से भी ज़्यादा है. यूपीए ने अपने दस साल के कार्यकाल में विज्ञापन पर औसतन 504 करोड़ रुपये सालाना ख़र्च किया था, वहीं मोदी सरकार में हर साल औसतन 1202 करोड़ की राशि ख़र्च की गई है.
नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने लगभग साढ़े चार सालों के कार्यकाल में विज्ञापन पर करीब 5,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
द वायर को सूचना का अधिकार आवेदन के जरिए लोक संपर्क और संचार ब्यूरो (बीओसी) से मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार में साल 2014 से लेकर सितंबर 2018 तक में 4996.61 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई है.
बता दें कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्था लोक संपर्क और संचार ब्यूरो (बीओसी) भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं इनके विभागों का विज्ञापन करती है. कुछ स्वायत्त संस्थाओं का भी विज्ञापन बीओसी के जरिए कराया जाता है.
इसमें से 2136.39 करोड़ रुपये प्रिंट में विज्ञापन के लिए खर्च किया गया. वहीं 2211.11 करोड़ की राशि को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए विज्ञापन में खर्च किया गया है. इसके अलावा 649.11 करोड़ रुपये आउटडोर पब्लिसिटी में खर्च किया गया है.
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2014-15 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए विज्ञापन में 470.39 करोड़ खर्च किया गया. वहीं साल 2015-16 में 541.99 करोड़, साल 2016-17 में 613.78 करोड़, साल 2017-18 में 474.76 करोड़ और साल 2018-19 में अभी तक 110.16 करोड़ की राशि खर्च की जा चुकी है.
इसी तरह आउटडोर पब्लिसिटी के जरिए विज्ञापन में साल 2014-15 में 81.27 करोड़, 2015-16 में 118.51 करोड़, 2016-17 में 186.37 करोड़, 2017-18 में 208.54 करोड़ और 2018-19 में 10 अक्टूबर तक 54.39 करोड़ की राशि खर्च की जा चुकी है.
सबसे ज्यादा राशि प्रिंट माध्यम में खर्च की गई है. सरकार ने भारत निर्माण, योग, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, आधार जैसी योजनाओं के लिए आउटडोर पब्लिसिटी में काफी राशि खर्च की है. आधार बनाने वाली संस्था भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीआईए) के विज्ञापन में 2014 से लेकर अब तक में 3.27 करोड़ की राशि खर्च की गई है.
इससे पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने राज्यसभा में बताया था कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, स्वच्छ भारत अभियान, स्मार्ट सिटी मिशन और सांसद आदर्श ग्राम योजना पर पिछले तीन सालों में 2015-16 में 52 विज्ञापनों पर 60.94 करोड़ रुपये, 2016-17 में 142 विज्ञापनों पर 83.26 करोड़ और 2017-18 में 309 विज्ञापनों पर 147.96 करोड़ रुपये खर्च किए गए.
तालाब के पुनर्जीवन के मुद्दे पर काम करने वाले ग्रेटर नोएडा निवासी रामवीर तंवर ने आरटीआई के जरिए मोदी सरकार द्वारा विज्ञापनों पर खर्च की जानकारी मांगी थी. वे कहते हैं कि सरकार पानी की तरह जनता के पैसे को अपने प्रचार में बहा रही है और जब कभी पर्यावरण के लिए पैसे देने की बात आती है तो प्रशासन कहता है कि हमारे पास पैसे नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ‘सरकार के पास प्रदूषण से लड़ने के लिए पैसा नहीं हैं लेकिन प्रचार-प्रसार के लिए हैं. लगातार पर्यावरण के लिए अपर्याप्त फंड के कारण एक के बाद एक शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल होते जा रहे हैं. हम जब भी पर्यावरण संरक्षण पर कुछ करने के लिए बोलते हैं तो प्रशासन फंड की कमी बता देता है.’
मालूम हो कि मोदी सरकार अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही विज्ञापनों पर ज़्यादा राशि खर्च करने के कारण सवालों के घेरे में है. सरकार द्वारा पेश किए गए बजटों में कई सामाजिक योजनाओं के लिए आवंटित की जाने वाली राशि में कटौती की गई है.
केंद्र सरकार ने मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए आवंटित की जाने वाली राशि को बहुत ज़्यादा कम कर दिया है. जहां साल 2013-14 में इसके लिए 570 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था वहीं साल 2017-18 में सिर्फ पांच करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. इतना ही नहीं, इस योजना के लिए पिछले चार सालों में एक रुपया भी जारी नहीं किया गया है.
वहीं फैक्टली वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक एनडीए के कार्यकाल में विज्ञापन पर खर्च की गई राशि यूपीए सरकार के मुकाबले बहुत ज़्यादा है. यूपीए सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में औसतन 504 करोड़ रुपये हर साल विज्ञापन पर खर्च किया था.
वहीं मोदी सरकार में ये आंकड़ा काफी ज्यादा है. इस दौरान हर साल औसतन 1202 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इस हिसाब से यूपीए सरकार के मुकाबले मोदी सरकार में विज्ञापन पर दोगुनी से भी ज़्यादा राशि खर्च की गई है.
यूपीए सरकार के दस साल में कुल मिलाकर 5,040 करोड़ रुपये की राशि खर्च हुई थी. वहीं मोदी सरकार के लगभग साढ़े चार साल के कार्यकाल में ही 4996.61 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं.