कांग्रेस में कई लोगों का मानना है कि अगर राजस्थान में कांग्रेस को विजय हासिल होती है, तब मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में अशोक गहलोत राहुल गांधी की पहली पसंद होंगे.
Bliss was in that dawn to be alive
But to be young was very heaven.
– William Wordsworth
1970 के दशक की शुरुआत में जब इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की तूती बोलती थी, उस समय अशोक गहलोत को किस्मत से कांग्रेस में एंट्री मिली. संजय एक दूसरे गहलोत, जनार्दन को आगे बढ़ा रहे थे, जिन्होंने कद्दावर भैंरों सिंह शेखावत को 1972 में जयपुर के गांधीनगर से पटखनी दी थी.
लेकिन यह किस्मत का ही खेल था कि जनार्दन के प्रति संजय का प्रेम ज्यादा दिनों तक बना नहीं रहा और उनके लोगों ने जल्दी ही जनार्दन की जगह माली समुदाय से आनेवाले एक दूसरे गहलोत को दे दी.
अशोक को राजस्थान के नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) का अध्यक्ष बनाने का किस्सा बड़ा ही दिलचस्प है. एक बाइकर उनका नियुक्ति पत्र मोटरसाइकिल पर दिल्ली से जयपुर लेकर गया था.
जादूगरों के परिवार से आनेवाले अशोक गहलोत को शुरू में संजय की मंडली में गिल्ली बिल्ली संबोधन से पुकारा जाता था. वे मृदुभाषी और काफी धार्मिक थे और गांधीवादी जीवन पद्धति को कई रूपों में व्यवहार में लाते थे. व्यसन के नाम पर सिर्फ चाय पीनेवाले गहलोत सिर्फ सात्विक भोजन करने में यकीन करते हैं और शाम ढलने के बाद से सुबह तक कुछ भी खाने से परहेज करते हैं.
राहुल गांधी के कांग्रेस के सबसे ताकतवर लोगों में शुमार किये जानेवाले गहलोत के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है, सिवाय इसके कि गहलोत के पिता लक्ष्मण सिंह दक्ष एक प्रसिद्ध जादूगर थे, जो देशभर में अपनी प्रस्तुतियां दिया करते थे.
अपने बचपन के दिनों में अशोक भी अपने पिता के साथ सफर किया करते और जादू दिखाकर दर्शकों को एक तरह से सम्मोहित कर देते थे.
कुछ साल पहले गहलोत ने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘अगर मैं राजनीति में नहीं आया होता, तो मैं एक जादूगर होता. मैं हमेशा सामाजिक काम करना और जादूगरी सीखना पसंद करता था. भविष्य में भी मुझे जादूगर बनने का मौका शायद न मिल सके, लेकिन जादूगरी आज भी मेरी आत्मा में है.’
हालांकि, वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि गहलोत ने इंदिरा गांधी की मौजूदगी में युवा राहुल और प्रियंका के सामने जादू दिखाया था.
कुछ लोग यह महसूस करते हैं कि अशोक गहलोत की खोज का श्रेय इंदिरा गांधी को दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे उत्तर पूर्व क्षेत्र में भीषण शरणार्थी समस्या के दौरान गहलोत से मिलने वाले शुरुआती नेताओं में थीं.
उस समय 20 साल के गहलोत को राजनीति में आने का निमंत्रण और किसी ने नहीं, खुद उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिया था. वे इंदौर में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सत्र में शामिल हुए थे, जहां उनकी मुलाकात संजय गांधी से भी हुई. उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
इंदौर सत्र के दौरान प्रियरंजन दासमुंशी को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था और वे आज तक यूथ कांग्रेस के निर्वाचित होनेवाले एकमात्र अध्यक्ष हैं. यह वह दौर था, जब इंदिरा गांधी और संजय गांधी यह चाहते थे कि यूथ कांग्रेस दक्षिणपंथी संघ और उससे संबंधित संगठनों का मुकाबला करे. यह कांग्रेस में युवा नेताओं को तैयार करने के लिहाज से स्वर्णकाल था.
वैसे तो संजय गांधी की आलोचना 21 महीने चले आपातकाल के दौरान उनकी अकड़ और संविधानेत्तर सत्ता केंद्र के तौर पर काम करने के लिए की जाती है, लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने पार्टी के भीतर एक नेतृत्व के कारखाने की स्थापना की थी, जिससे कई ऐसे नेता निकले जिन्होंने 1980, 1990 और 2000 के दशकों में ग्रैंड ओल्ड पार्टी के अंदर प्रभावशाली भूमिका अदा की.
उनमें से कई, मसलन कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, अंबिका सोनी, व्यालार रवि, एके एंटनी, गुलाम नबी आज़ाद, मुकुल वासनिक, बीके हरिप्रसाद आज भी सक्रिय हैं.
संजय के नेतृत्व में इन नेताओं को कई जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं, मसलन झुग्गियों को गिराना, परिवार नियोजन, वयस्क शिक्षा अभियान, एक व्यक्ति एक पेड़ पर्यावरण योजना, दहेज विरोधी अभियान, सरकारी कर्मचारियों के साथ शारीरिक बल-प्रयोग आदि.
यह संजय गांधी के ‘सीधे शासन’ का विचार था, जिसके तहत यूथ कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं को पथभ्रष्ट नौकरशाहों की सार्वजनिक पिटाई करने का निर्देश दिया गया था. अतिउत्साहित और घमंड से भरे यूथ कांग्रेस के नेताओं द्वारा सरकारी कर्मचारियों पर जूते निकालने की कई घटनाएं हुईं.
लेकिन गहलोत संजय की मृत्यु के बाद राजीव गांधी के राजनीति में आने तक राजस्थान और दिल्ली में सामान्य भूमिकाओं में रहे. राजीव ने इंदिरा के मंत्रिमंडल में जूनियर मंत्री के तौर पर उनका नाम आगे किया. हरिदेव जोशी और शिवचरण माथुर जैसे कद्दावर नेताओं के खिलाफ उतारे गए अशोक राजस्थान में राजीव के आंख और कान बन गए.
राजनीतिक गलियारों में ये चर्चाएं रहीं कि जब राजीव गांधी ने राज्य की राजधानी से 170 किलोमीटर दूर कैबिनेट की बैठक करने का फैसला किया, उस समय गहलोत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद से जोशी को हटाए जाने में मुख्य भूमिका निभाई.
राजीव के निर्देशों के तहत राज्य के मंत्रियों को राजीव से मिलने के लिए सरकारी गाड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना था. राजीव खुद एक एसयूवी ड्राइव कर रहे थे, जिसे कथित तौर पर स्थानीय ट्रैफिक कॉन्सटेबल द्वारा सीधे जाने देने की जगह दायें मुड़ने का संकेत दिया गया.
ऊपर से मासूम सी दिखाई देनेवाली यह चूक (कुछ लोगों का दावा है कि यह जादूगर अशोक की कारगुजारी थी) जोशी को महंगी पड़ी, क्योंकि मार्ग में यह बदलाव उस जगह की ओर लेकर गया जहां राज्य के मंत्रियों और अधिकारियों की सैकड़ों में संख्या में गाड़ियां खड़ी की गई थी.
विभिन्न मोर्चों पर लड़ रहे राजीव ने यह निर्देश उस समय भीषण सूखे का सामना कर रहे राजस्थान में किफायत का संदेश देने के लिए दिया था. राजीव द्वारा लगाई गई सार्वजनिक फटकार जोशी को हजम नहीं हुई, जिन्होंने नाराज होकर दोपहर के भोजन का बहिष्कार कर दिया.
मेजबान मुख्यमंत्री की गैरहाजिरी पर जोशी के मित्र पीवी नरसिम्हा राव का ध्यान गया, जो उस समय राजीव गांधी की कैबिनेट में मानव संसाधन विकास मंत्री थे. राव द्वारा बीच-बचाव की कोशिश बेकार गई और एक महीने के भीतर जोशी की जगह माथुर को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया.
इस दौरान गहलोत दिल्ली में थे और पर्यटन मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे. इससे पहले नागरिक उड्डयन मंत्रालय में जूनियर मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल ने उनके कद को बढ़ाने का काम किया था, क्योंकि उन्होंने जी जान लगाकर राजीव के विजन के मुताबिक काम किया था.
इसके बाद गहलोत के हिस्से में कई सफलताएं जुड़ीं. गहलोत को आईएनए मार्केट के सामने दिल्ली हाट की स्थापना का श्रेय दिया गया, जो आज भी लोक-कलाओं के बाजार के तौर पर काम करता है, जो देशभर के दस्तकारों/शिल्पियों और उनके हस्तशिल्प को सीधे खरीददारों से जोड़ता है.
पीवी नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में कपड़ा मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल को कई नवाचारी विचारों कों मूर्त रूप देने के कारण यादगार माना जाता है.
राजीव गांधी के साथ उनकी नजदीकी ने संभवतः सोनिया गांधी और उनके बाद राहुल गांधी के साथ अच्छे संबंध बनाने में गहलोत की मदद की, जो अब तक अपने मित्र सचिन पायलट (जो वर्तमान में राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं) और अपने चाचा के समान गहलोत के बीच बेहतरीन संतुलन कायम करने में कामयाब रहे हैं.
राहुल की मौजूदगी यह सुनिश्चित करने में कामयाब रही है कि गहलोत ने सचिन पायलट का तख्तापलट करने की कोई कोशिश नहीं की है. इसके साथ ही सचिन से यह उम्मीद की जाती है कि वे दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत को पूरा महत्व दें.
कांग्रेस में ऐसा सोचने वालों की कोई कमी नहीं है कि अगर राजस्थान में कांग्रेस कम अंतर से जीत हासिल करने में कामयाब रहती है, तो गहलोत मुख्यमंत्री के तौर पर राहुल की पहली पसंद होंगे.
गहलोत की सरलता और उनकी सादगी ने उनके कद को काफी बड़ा करने में काफी मदद की है. एक समय ऐसा भी था जब गहलोत अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद के सामने कुर्सी पर नहीं बैठा करते थे. आज वे उनके साथ बराबरी की कुर्सी पर बैठते हैं और वे 24 अकबर रोड के किसी भी शक्तिशाली पदाधिकारी जितने ही ताकतवर हैं.
पार्टी नेताओं और सहकर्मियों के एक बड़े हिस्से में गहलोत आज भी अच्छी नीयत वाले व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं, जिन्होंने दिल्ली और जयपुर के सियासी गलियारों में चहलकदमी के बावजूद अपने दोस्तों के साथ सामान्य रिश्ते बनाए रखा है.
अपने गृहनगर जोधपुर में आराम फरमाने का गहलोत का तरीका एक पीसीओ के सामने बैठना और सभी तरह के लोगों के साथ गपशप करना है. इस अनुभवी नेता के पास खुद पर हंसने की क्षमता है.
एक बार उन्होंने एक युवा से धीमे स्वर में फुसफुसाकर कर जो कुछ कहा, वह इस तरह सुनाई दिया जैसे वे कह रहे हों ‘टमाटर खाओ’, जबकि उनके कहने का मतलब था, ‘कमाकर खाओ. जब यह चुटकुला गहलोत को सुनाया गया, तो वे जोर से हंसे थे.
(रशीद किदवई वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं.)
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