महाराष्ट्र विधानसभा में इसके लिए आवश्यक संशोधन संबंधित विधेयक को पारित कर दिया गया. खाद्य आपूर्ति मंत्री ने कहा कि दूध प्रसंस्करण कंपनियां किसानों से दूध ख़रीदती हैं, लेकिन जब तक यह उपभोक्ताओं तक पहुंचता है, यह ‘विषाक्त’ हो जाता है.
मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने गुरुवार को खाने-पीने की सामग्री में मिलावट को ग़ैर-ज़मानती अपराध बनाने की घोषणा की. खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गिरीश बापट ने विधान परिषद को सूचित किया कि सरकार मौजूदा क़ानून में संशोधन करेगी जिससे खाद्य सामग्री में मिलावट करने वालों को उम्रक़ैद की सज़ा हो सकेगी.
राज्य विधानसभा ने इसके लिए आवश्यक संशोधन संबंधित विधेयक को पारित कर दिया है, लेकिन अभी यह विधेयक विधान परिषद में पारित नहीं हुआ है.
बापट ने इससे पहले दिन में कहा कि मौजूदा शीतकालीन सत्र से पहले खाद्य मिलावट रोधक (महाराष्ट्र संशोधन) कानून को सदन में रखा जाएगा.
कांग्रेस के विधायक भाई जगतप के ध्यानाकर्षण नोटिस के जवाब में मंत्री ने कहा कि सरकार खाने-पीने के सामान में मिलावट के नतीजों को जानती है और इसे रोकने को पूरी तरह प्रतिबद्ध है.
जगतप ने कहा कि दूध प्रसंस्करण कंपनियां किसानों से दूध ख़रीदती हैं, लेकिन जब तक यह उपभोक्ताओं तक पहुंचता है, यह ‘विषाक्त’ हो जाता है.
उन्होंने कहा कि दूध में डिटर्जेंट पाउडर, यूरिया, स्किम्ड मिल्क पाउडर, कास्टिक सोडा, ग्लूकोज़, रिफाइंड तेल, नमक और स्टार्च की मिलावट की जाती है जिससे यह लोगों के सेवन के योग्य नहीं रह जाता.
लोग खाने-पीने के सामान में मिलावट को पकड़ नहीं सकते हैं. खाद्य एवं दवा प्रशासन द्वारा औचक निरीक्षण के बावजूद मिलावट का यह सिलसिला जारी है.
मंत्री ने कहा, खाद्य मिलावट (महाराष्ट्र संशोधन) कानून, 1969 को इस सत्र के समाप्त होने से पहले पेश किया जाएगा.
बाद में विधानसभा ने मराठा और धन्गड़ कोटा मुद्दे पर विपक्षी सदस्यों के शोरगुल के बीच ध्वनिमत से इस विधेयक को पारित कर दिया.
इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 272 से 276 और दंड प्रक्रिया संहिता की पहली अनुसूची में संशोधन किया गया है.
विधेयक कहता है कि दूध और अन्य खाद्य पदार्थों के अलावा दवाओं में मिलावट लोगों के स्वास्थ्य के साथ गंभीर खिलवाड़ है. अभी तक इन अपराधों में छह महीने की सज़ा या जेल या दोनों का प्रावधान था. यह जुर्माना एक हजार रुपये तक हो सकता है.
चूंकि यह अपराध गैर संज्ञेय और ज़मानती था इसलिए पुलिस और खाद्य सुरक्षा अधिकारी या दवा निरीक्षक आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर पाते थे.
ओड़िशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल इसी तरह के क़ानून को पारित कर चुके हैं. अभी यह विधेयक विधान परिषद में रखा जाना हैं.