ग्राउंड रिपोर्ट: राजस्थान के कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ ज़िले के किसानों को दिनभर कतार में लगने के बाद मुश्किल से एक कट्टा खाद नसीब हो रहा है. कई जगह तो किसानों का जमावड़ा इतना ज़्यादा है कि पुलिस के पहरे में खाद बांटना पड़ रहा है.
अपने खेतों में लहलहाती सरसों की फसल देखकर एक सप्ताह पहले तक खुश हो रहे बूंदी ज़िले के बड़ाखेड़ा गांव के रामदयाल अब बहुत मायूस हैं. उनका पूरा परिवार यह सोचकर चिंतित है कि एक-दो दिन में फसल को पानी नहीं दिया तो उपज अच्छी नहीं होगी. रामदयाल के पास सिंचाई के पानी का पर्याप्त इंतज़ाम है, लेकिन खाद नहीं मिलने की वजह से वह अपने खेतों को नहीं सींच रहे.
रामदयाल कहते हैं, ‘अभी सरसों में फूल लग रहे हैं. खेतों को पानी की ज़रूरत है. मगर बिना यूरिया पानी आधा असर करेगा. फूल पूरे नहीं लगेंगे तो फली कैसे बनेगी? सात दिन से यूरिया के लिए भटक रहा हूं पर कहीं भी नहीं मिल रहा. गुरुवार को दिनभर लाइन में लगने के बाद एक कट्टा यूरिया मिला. इतने से खाद से क्या होगा? कम से कम 20 कट्टा खाद मिले तो काम चले.’
रामदयाल अकेले नहीं हैं, जो यूरिया की किल्लत से जूझ रहे हैं. खेती के लिए उपजाऊ माने-जाने वाले राजस्थान के हाड़ौती संभाग (कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ ज़िला) के सभी किसान इस पीड़ा से परेशान हैं. इन चारों ज़िलों में खाद की दुकानों के सामने सुबह छह बजे से किसानों की कतार लग जाती है, लेकिन शाम तक उन्हें मुश्किल से खाद का एक कट्टा मिल पाता है.
यूरिया की मांग और आपूर्ति में इतना भारी अंतर है कि सहकारी समितियों की दुकानों पर राशनिंग करनी पड़ रही है. किसानों से आधार नंबर लेकर उन्हें टोकन दिया जा रहा है. जिन किसानों ने टोकन ले लिए हैं उन्हें भी समय पर खाद नहीं मिल रही. पूरे हाड़ौती में सहकारी समितियों की दुकानें खाली पड़ी हैं.
बावजूद इसके किसान दुकानों पर सुबह छह बजे से ही कतारबद्ध होना शुरू कर देते हैं. वे इस उम्मीद में घंटों तक खड़े रहते हैं कि खाद का ट्रक आएगा और उन्हें मिलेगा. दुकानों पर किसानों के जमावड़े का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक किसान को एक-एक कट्टा यूरिया देने पर पूरा ट्रक महज़ एक घंटे में खाली हो जाता है. यह काम में पुलिस के पहरे में होता है.
सहकारी समितियों के अलावा बाज़ार में जिन दुकानों पर यूरिया का स्टॉक है वे किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर जमकर मुनाफाखोरी रहे हैं. किसान महापंचायत के प्रदेश संयोजक सत्यनारायण सिंह के अनुसार किसानों से न सिर्फ़ मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं, बल्कि उन्हें जबरदस्ती दूसरे उत्पाद भी दिए जा रहे हैं.
सत्यनारायण सिंह कहते हैं, ‘पिछले दिनों मायथा गांव का बबलू गुर्जर ने बारां शहर के मेला ग्राउंड की दुकान पर यूरिया लेने गया था. दुकानदार ने यूरिया के साथ जबरदस्ती सेल्टोन जिंक के 15 बैग दे दिए. एक बैग के 300 रुपये लिए. बबलू ने उससे बहुत मना किया, लेकिन उसने साफ कह दिया कि यूरिया चाहिए तो जिंक लेना पड़ेगा.’
वे आगे कहते हैं, ‘मैंने बारां कलेक्टर से दुकानदार की लिखित शिकायत की है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. सभी दुकानदार ऐसे ही कालाबाज़ारी कर रहे हैं. प्रशासन को सब पता है मगर सब धडल्ले से चल रहा है. किसानों को बीच बाज़ार लूटा जा रहा है और कोई कुछ नहीं कर रहा.’
उल्लेखनीय है कि हाड़ौती में इस समय सरसों की फसल में पानी देने का काम चल रहा है और धान की उपज से खाली हुए खेतों में गेहूं की बुवाई हो रही है.
खाद की किल्लत की वजह से किसानों ने सरसों में पानी देना बंद कर दिया है और गेहूं की बुवाई नहीं हो पा रही. उनके लिए एक-एक दिन का इंतज़ार भारी पड़ रहा है. खाद का इंतज़ार कर रहे किसानों का धैर्य जवाब देने लगा है.
कोटा के किसान नेता दशरथ कुमार कहते हैं, ‘सरसों में पानी देने समय यूरिया नहीं डाला तो फसल अच्छी नहीं होगी. धान से फ्री हुए खेतों में वैसे ही गेहूं की बुवाई लेट होती है. खाद नहीं मिलने की वजह से इसमें और देर हो रही है. इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा. फिर भी हमारी सुनवाई करने वाला कोई भी नहीं है. किसान आख़िर मरे तो कहां जाकर मरे?’
वे आगे कहते हैं, ‘इस बार लहसुन और उड़द की उपज का सही दाम नहीं मिलने की वजह से हाड़ौती के किसान पहले ही परेशान हैं. किसानों की लागत भी नहीं निकल पाई. उन्हें गेहूं और सरसों की फसल से इस घाटे की नुकसान की भरपाई की उम्मीद थी, लेकिन खाद की किल्लत ने इस पर ग्रहण लगा दिया है.’
गौरतलब है कि हाड़ौती में इस बार लहसुन और उड़द की बंपर पैदावार हुई थी, लेकिन किसानों को औने-पौने दामों पर अपनी फसल को बेचना पड़ा. सरकार ने बाज़ार हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत लहसुन का दाम 3,257 रुपये प्रति क्विंटल की दर से लहसुन की ख़रीद करने की घोषणा थी परंतु इसके साथ शर्तें इतनी कड़ी कर दीं कि 20 प्रतिशत किसान भी अपनी उपज नहीं बेच पाए.
ख़रीद की पहली शर्त यह थी कि लहसुन की गांठ का आकार न्यूनतम 25 मिलीमीटर होना चाहिए. इसके अलावा वह गीली, ढीली व पिचकी हुई नहीं होनी चाहिए. इन शर्तों की वजह से ज़्यादातर किसान सरकारी खरीद केंद्रों पर लहसुन नहीं बेच पाए. उन्हें मजबूरी में इसे मंडी में बेचना पड़ा, जहां उन्हें नाममात्र के पैसे मिले.
बारां ज़िले के एक किसान का लहसुन तो मात्र 195 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बिका. फसल की लागत भी नहीं निकलना हाड़ौती के किसानों के लिए बड़ा सदमा था.
कई किसान इसे झेल नहीं पाए. पांच किसानों ने आत्महत्या कर ली जबकि दो की मौत सदमे की वजह से हो गई.
उड़द की उपज का भी कमोबेश यही हाल रहा. सरकार ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,600 रुपये प्रति क्विंटल तय किया, लेकिन सरकारी केंद्रों पर समय पर ख़रीद शुरू नहीं होने की वजह से किसानों को 500 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अपनी उपज बेचनी पड़ी.
हाड़ौती के किसान लहसुन और उड़द की उपज में हुए घाटे से उबरने के लिए सरसों और गेहूं के खेतों की ओर से देख रहे हैं, लेकिन खाद की कमी उनकी उम्मीदों के पर कतर रही है. क्षेत्र के किसान चुनावी मौसम में हो रही उपेक्षा से हतप्रभ हैं. उनके बीच यह चर्चा आम है कि जब चुनावों में ही हमारी सुध कोई नहीं ले रहा तो बाद में कौन सुनेगा.
सहकारिता विभाग के रजिस्ट्रार नीरज के. पवन यह स्वीकार करते हैं कि इस बार हाड़ौती में खाद की मारमारी है. वे इसके लिए कम आपूर्ति को जिम्मेदार मानते हैं.
पवन कहते हैं, ‘इस बार कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ ज़िलों में फसल अच्छी होने की वजह से यूरिया की मांग ज़्यादा है, लेकिन इसके मुक़ाबले आपूर्ति कम है. इसे बढ़ाया जा रहा है. मैंने गुरुवार को कोटा में स्थिति की समीक्षा की है.’
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. रामावतार शर्मा जल्द ही खाद की किल्लत दूर होने का दावा करते हैं. वे कहते हैं, ‘कुछ दिन से यूरिया खाद की कमी थी, लेकिन एकाध दिन में यह दूर हो जाएगी. गुरुवार रात को ही कोटा में 8,300 मीट्रिक टन और बारां में 5,300 मीट्रिक टन यूरिया की रैक आई है. यह सहकारी समितियों तक पहुंच गया है. जल्द ही किल्लत दूर हो जाएगी.’
किसान नेता सहकारिता व कृषि विभाग के दावों से सहमत नहीं हैं. कोटा के किसान नेता जगदीश शर्मा के अनुसार हाड़ौती के चारों ज़िलों में इस बार मांग के मुक़ाबले आधा यूरिया भी नहीं आया है. वे कहते हैं, ‘हाड़ौती में नवंबर के महीने में एक लाख मीट्रिक टन यूरिया की ज़रूरत होती है, लेकिन इस बार अब तक 50 हज़ार मीट्रिक टन यूरिया भी नहीं आया है.’
वे आगे कहते हैं, ‘खाद नहीं मिलने की वजह से किसानों ने सरसों की फसल में पानी देना बंद कर दिया है. किसान दुखी हैं, लेकिन उनका दुखड़ा सुनने वाला कोई नहीं है. नेता चुनावों में वयस्त हैं और अधिकारी आचार संहिता का बहाना बनाकर सुनवाई नहीं कर रहे. यदि जल्द हालत नहीं सुधरे तो हमें आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)