मानवता के लिए ज़रूरी है कि न्याय पर राष्ट्रवाद को हावी न होने दें

‘राष्ट्रवादी पाकिस्तानी वकीलों’ को लगता है कि यही वह अवसर है जब वे अपने देश से अपने वास्तविक प्रेम का इज़हार कर दें और कुलभूषण जाधव का मुक़दमा कोई वकील न लड़ पाए. दक्षिण एशिया में ऐसी न्यायिक देशभक्ति नई नहीं है.

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‘राष्ट्रवादी पाकिस्तानी वकीलों’ को लगता है कि यही वह अवसर है जब वे देश से अपने वास्तविक प्रेम का इज़हार कर दें और कुलभूषण जाधव का मुक़दमा कोई वकील न लड़ पाए. दक्षिण एशिया में ऐसी न्यायिक देशभक्ति नई नहीं है.

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पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है. (फाइल फोटो: पीटीआई)

लाहौर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा है कि अगर वहां का कोई वकील भारत के कुलभूषण जाधव का मुकदमा लड़ेगा तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा.

यह गलत है. यह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है. कानून के जानकार मेरे कई दोस्त बताते हैं कि हर व्यक्ति को अपना वकील चुनने का हक़ है.

आज कुलभूषण जाधव को उनके इस हक़ से वंचित किया जा रहा है. ‘राष्ट्रवादी पाकिस्तानी वकीलों’ को लगता है कि यही वह अवसर है जब वे देश से अपने वास्तविक प्रेम का इज़हार कर दें और कुलभूषण जाधव का मुक़दमा कोई पाकिस्तानी वकील न लड़ पाए.

दक्षिण एशिया में इस प्रकार की न्यायिक देशभक्ति बिलकुल नई नहीं है. आप सबकी धुंधली और चयनात्मक याददाश्त बता सकती है कि भारत में सेशन कोर्ट से लेकर उच्च न्यायालयों में वकीलों ने कई बार उन लोगों के मुक़दमे लड़ने से मना कर दिया जिन पर आतंकवाद या देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का ‘आरोप’ था.

यह बिना मुकदमा चले बिना किसी आरोपी के मन और शरीर पर उसके दोषी होने के निर्णय को लाद देने जैसा था.

उत्तर प्रदेश में तो आतंकी गतिविधियों के आरोप में जेल में बंद मुस्लिम युवकों की रिहाई के लिए लखनऊ के कुछ नौजवानों और वकीलों ने एक मंच का गठन किया है. उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनाव में जेल में बंद मुस्लिम युवकों की रिहाई का प्रयास एक चुनावी मुद्दा भी बना.

वास्तव में इस धरती के सभ्य और समतापूर्ण ग्रह होने के लिए यह आवश्यक शर्त है कि न्याय के विचार की सर्वकालिक स्थापना हो. इसका स्वप्न जॉन राल्स ने देखा था. हर व्यक्ति को न्याय मिले.

राष्ट्रवादी किस्म का न्याय इसमें रोक लगाता है. वह राष्ट्र को पहले रखता है. न्याय को राष्ट्र का अनुगामी बना दिया जाता है. इस विचार में कुलभूषण जाधव भारत का नागरिक है. वह मनुष्य उसके बाद है. इस धरा पर उसके बचे रहने का दावा इसके बाद आता है.

स्वयं भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 में ‘अपने पसंद के विधि व्यवसायी यानि वकील से परामर्श करने और अपने बचाव के लिए प्रबंध करने के अधिकार’ को मूल अधिकार माना गया है. लेकिन इसी अनुच्छेद में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह ‘शत्रु देश के निवासियों पर’ लागू नहीं होगा. शत्रु देश के निवासी विएना कन्वेंशन के तहत ‘फेयर ट्रायल’ का अधिकार रखते हैं.

यह राष्ट्रवाद का क़ानूनी पक्ष है जो किसी व्यक्ति को उसके व्यक्ति होने का अधिकार छीनकर उसे किसी देश विशेष का नागरिक बनाता है और फिर उसे फांसी पर चढ़ाता है.

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्र का विचार चरम पर पहुंचा और हजारों लोगों को क़ानूनी रूप से फांसी दी गयी. यह सब कुछ फेयर ट्रायल के नाम पर किया गया. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फिर यही काम दोहराया गया.

अब समय आ गया है कि इस दुनिया के सारे वकील एक जगह बैठें और बात करें कि वे न्याय के पक्ष में हैं. वे जीवन के पक्ष में हैं. उन्हें बात करनी चाहिए कि न्याय का विचार देश के विचार से बड़ा है.

यह तभी संभव हो सकेगा जब हम राष्ट्रवाद की न्यायिक दिक्कतों को समझेंगे और एक न्यायपूर्ण दुनिया के विचार के लिए अपने आपको प्रस्तुत कर पाएंगे. इसकी शुरुआत भारत और पाकिस्तान के वकील करें तो यह दुनिया के लिए एक नज़ीर होगी.

हो सकता है कि भारत अपने राजनयिक मिशन में कामयाब हो जाए और कुलभूषण जाधव को वकील मिल जाए.

भारत के सभी नागरिकों की तरह मुझे बहुत ख़ुशी होगी कि उनका जीवन बच गया है. वास्तव में जीवन नहीं बचता है. बचता है तो केवल न्याय. न्याय के बचने के लिए यह जरूरी है कि देश क़ानूनी राष्ट्रवाद से बचें.

(रमाशंकर सिंह ने अभी हाल ही में जी. बी.पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान से पीएचडी की है)