साक्षात्कार: विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की संभावनाओं और पार्टी में मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के संगठन महासचिव अशोक गहलोत से अवधेश आकोदिया की बातचीत.
राजस्थान में प्रचार का शोर थम चुका है. कांग्रेस को कितनी सीटें मिलने का अनुमान लगा रहे हैं आप?
मैं समझता हूं भारी बहुमत से कांग्रेस जीतेगी और ये लोग 50-60 के नीचे रह जाएंगे. सरकार कांग्रेस की बनने जा रही है. भाजपा के लोगों को भी यह पता है. अमित शाह जी ने राजस्थान में 180+ का नारा दिया, लेकिन चुनाव में उन्होंने इसकी बात नहीं की. किसी नेता ने मिशन 180 का नाम नहीं लिया तो आप समझ सकते हैं कि इनकी स्थिति कितनी ख़राब है.
पूरे पांच साल इनके कारनामे ऐसे रहे हैं कि लोगों में भयंकर आक्रोश है. मुख्यमंत्री जी के प्रति तो बहुत भयंकर गुस्सा है. पांच साल तक किसी सर्किट हाउस में नहीं रुकीं. वसुंधरा जी या तो महलों में रुकती हैं या फाइव स्टार होटलों में. जनता जाके मिले कहां इनसे? जयपुर में जनसुनवाई भी नहीं की. जनता इस चुनाव में महलों और महंगे होटलों में रुकने वालों को को ज़मीन पर ला देगी.
सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि कांग्रेस के टिकट वितरण और भाजपा के स्टार प्रचारकों के धुंआधार प्रचार से आख़िरी दिनों में स्थिति बदल गई है. आपको क्या लगता है?
देखिए, वसुंधरा जी के ख़िलाफ़ लोगों में भारी आक्रोश है. मोदी जी और अमित शाह जी के भाषणों से यह दूर नहीं हो सकता. 163 सीट पाने के बाद में जनता की अपेक्षाओं पर पानी फेर दो आप… निराश कर दो लोगों को. लोग कह रहे हैं कि हमारा कसूर क्या है? आपने ऐसा व्यवहार क्यों किया?
मोदी जी और अमित शाह जी चुनाव में डैमेज कंट्रोल करने आए मगर राजस्थान की जनता उनके झांसे में आने वाली नहीं है. इनका हारना निश्चित है और कांग्रेस की सरकार बनना निश्चित है.
आप यह कहना चाहते हैं कि भाजपा के आक्रामक चुनाव प्रचार का ज़मीन पर कोई असर नहीं है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 12 सभाओं से चुनाव में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा?
चुनाव में सबको प्रचार करने का सबको अधिकार है. मोदी जी यहां आए. उन्हें बताना चाहिए था कि वसुंधरा जी की पांच साल की उपलब्धियां क्या रहीं, कहां आप फेल हो गए, क्यों फेल हो गए और आगे क्या करना चाहते हैं.
कैंपेन में इस पर राजनीति घूमनी चाहिए थी लेकिन मोदी जी ने अपने भाषणों में राहुल गांधी जी और उनके ख़ानदान पर आरोप लगाए. ये कोई राजनीति है क्या? राजनीति होती है विकास की, लेकिन मोदी जी ने विकास की बात नहीं की.
राजस्थान के अंदर बच्चियों के साथ रेप हो रहे हैं. चोरी-डकैती आम बात हो गई है. माफिया पनप गए हैं. राजस्थान को बजरी माफिया ने लूट लिया है. चार हज़ार का ट्रक 40 हज़ार में मिल रहा है. नीचे से ऊपर तक पैसा पहुंच रहा है.
प्रदेश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुईं. इसलिए हुई क्योंकि सरकार का इक़बाल रहा है इस प्रकार का हमारा कौन का बिगाड़ लेगा, सरकार भी परवाह नहीं करेगी. मोदी जी को बताना चाहिए था कि राजस्थान में ऐसे हालात क्यों बनें.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान में वसुंधरा राजे के बाद सबसे अधिक सभाएं की. भाजपा की इस रणनीति को कैसे देखते हैं?
भारतीय जनता पार्टी चुनाव में किसे बुलाए किसे नहीं, यह उनका मामला है, लेकिन योगी जी को को राजस्थान की चिंता करने की बजाय उत्तर प्रदेश पर ध्यान देना चाहिए. बुलंदशहर की इतनी बड़ी घटना हो गई.
यह पहली घटना नहीं है. वहां के हालात बड़े नाज़ुक हैं. वहां क़ानून व्यवस्था की स्थिति ठप्प हो चुकी है. विकास ठप पड़ा है. योगी जी उसकी परवाह करने की बजाय यहां हनुमान जी की जाति बता रहे हैं. ऐसी बातों से ही सरकार का इक़बाल ख़त्म होता है.
अपराध होते हैं. हर शासन में होते हैं, लेकिन अपराधियों का निरंकुश होना ख़तरनाक है. भाजपा वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समाज का माहौल बिगाड़ने वालों को सपोर्ट करते हैं. और सपोर्ट न भी करो तो भी उनको महसूस होता है कि हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, हमारा कुछ बिगड़ेगा नहीं. ऐसे ही अपराधियों की हिम्मत बढ़ती है.
यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस यदि मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके चुनाव लड़ती तो उसके लिए लड़ाई आसान हो जाती. क्या कांग्रेस का बिना चेहरे के मैदान में उतरने का निर्णय आत्मघाती हो सकता है?
कांग्रेस ने राजस्थान में आज़ादी के बाद में कभी भी पहले चेहरा घोषित नहीं किया. पार्टी में अभी चेहरे का सवाल है ही नहीं. हमारा एक ही लक्ष्य है चुनाव जीत के कैसे आएं और भाजपा के कुशासन का अंत हो.
पिछली बार के चुनाव में भाजपा ने 163 सीटें जीतीं. फिर भी कोई काम नहीं किया. हमारे सारे प्रोजेक्ट बंद कर दिए. रिफाइनरी, मेट्रो, डेम, ब्रॉडगेज… सब बंद कर दिए. ऐसा करने का क्या तुक है? हमारा लक्ष्य एक ही है इस बार कुशासन का अंत हो और कांग्रेस की सरकार बने इसके अलावा दूसरा कोई लक्ष्य है ही नहीं और दूसरी बात हम सोचते भी नहीं हैं.
इस चुनाव में यह सवाल आपसे सबसे ज़्यादा बार पूछा गया है कि कांग्रेस की सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा. आख़िर सेहरा किसके सिर सजेगा?
इस सवाल का अभी कोई मतबल नहीं है. मुख्यमंत्री इस आधार पर तय होगा कि प्रदेशवासी क्या चाहते है, कार्यकर्ता क्या सोचता है, विधायक जीत के आएंगे उनकी क्या भावनाएं हैं, उसके अनुसार हाईकमान फैसला करता है और वो सबको मंज़ूर होता है.
मुख्यमंत्री का पद हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं है. सभी साथ मिलकर काम कर रहे हैं. चुनाव से पहले ही राहुल गांधी जी के विशेष निर्देश थे सब मिलकर चलो और जिताकर लाओ.
राहुल जी के निर्देश को सब मान रहे हैं. यहां पर न कोई झगड़ा है और न कोई विवाद है. बिना मतलब बीजेपी ने मीडिया के थ्रू ऐसा माहौल बना दिया कि यहां तो कांग्रेस में झगड़े हैं. जबकि झगड़े उधर हैं. वसुंधरा जी और अमित शाह की लड़ाई के चलते 70 दिन तक भाजपा का अध्यक्ष घोषित नहीं हो पाया. वो हमें क्या बताएंगे कि आपके यहां झगड़े हैं?
आप एक ओर कह रहे हो कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कोई लड़ाई नहीं है, दूसरी ओर आपने सीपी जोशी, गिरिजा व्यास, रघु शर्मा, रामेश्वर डूडी और लालचंद कटारिया को इसकी रेस में शामिल बताया. आपके इस बयान के पीछे क्या मक़सद था?
जो नाम आपने लिए हैं, वे सभी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं. इनके अलावा हमारे यहां कई नेता और भी हैं जो इस लायक हैं, योग्य हैं. यह हमारी ताक़त है. राहुल जी ख़ुद चाहते हैं कि हर राज्य के अंदर पांच-पांच, दस-दस ऐसे लोग हों जो मुख्यमंत्री बनने लायक हो.
राहुल जी ने यहां तक कह दिया प्राइम मिनिस्टर लायक क्यों नहीं देश में कई लोग हों. उससे डेमोक्रेसी चलती है. राहुल जी देश और गरीबों के लिए, गांव के लिए बड़ी सोच रखते हैं. वो गरीब को केंद्र बिंदु बनाकर चलते हैं. राजस्थान के अंदर कांग्रेस के पक्ष में आज जो हवा बनी वह राहुल गांधी जी के लीडरशिप में बनी है, क्योंकि उन्होंने उस ढंग से संदेश दिया.
इन सब नामों के बीच मुख्यमंत्री की दौड़ में आप ख़ुद को किस जगह पाते हैं?
मैंने आपको पहले भी कहा है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर हमारे यहां कोई दौड़ नहीं है. ये सवाल हमारे यहां है ही नहीं डिस्कशन में भी नहीं है. इतना अनुशासन है कांग्रेस के अंदर मैंने वर्ष 1977 में विधानसभा चुनाव का टिकट मांगा था. उसके बाद मैंने कोई चीज़ हाईकमान से मांगी ही नहीं.
मैं पांच बार सांसद बना. तीन बार केंद्रीय मंत्री बना. इंदिरा जी के साथ में, राजीव गांधी जी के साथ में और नरसिम्हा राव जी एक साथ में. तीन बार मैं प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना. 34 की उम्र में मैं प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बन गया था. दो बार मैं एआईसीसी का महामंत्री बना. 10 साल मैं मुख्यमंत्री रहा हूं.
बिना मांगे हुए ये सब पद मुझे मिले हैं, ज़िम्मेदारी मिली है. अब हाईकमान तय करे किसका क्या उपयोग हो पार्टी के अंदर. आगे हमें लंबा संघर्ष करना है. कल को आम चुनाव भी आएंगे. हमें पार्टी का झंडा बुलंद करना है देश और प्रदेश के अंदर.
राहुल गांधी जी और हाईकमान के लोग सोचेंगे किस व्यक्ति का, किस नेता का कहा उपयोग हो. प्रदेश में होगा तो वहां काम करेंगे. दिल्ली में हुआ तो वहां काम करेंगे. जब खुली किताब की तरह मैं बात कर रहा हूं तो ये सवाल पैदा होता ही नहीं होना चाहिए.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है.)