चुनाव आयोग की सिफ़ारिश, ग़लत हलफ़नामा दाख़िल करना सदस्यता ख़त्म करने का एक आधार बने

मौजूदा व्यवस्था में ग़लत हलफ़नामा देने वाले उम्मीदवार के ख़िलाफ़ आपराधिक क़ानून के तहत धोखाधड़ी का ही मामला दर्ज होता है.

New Delhi: A general view of Election Commission of India building in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Vijay Verma (PTI1_23_2018_000047B)
चुनाव आयोग (फोटो: पीटीआई)

मौजूदा व्यवस्था में ग़लत हलफ़नामा देने वाले उम्मीदवार के ख़िलाफ़ आपराधिक क़ानून के तहत धोखाधड़ी का ही मामला दर्ज होता है.

New Delhi: A general view of Election Commission of India building in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Vijay Verma (PTI1_23_2018_000047B)
चुनाव आयोग (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने सरकार के साथ चुनाव सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की एक बार फिर पहल करते हुए प्रत्याशियों द्वारा गलत हलफनामा देने पर सदस्यता समाप्त करने और विधान परिषद चुनाव के लिए खर्च की सीमा तय करने के प्रावधान को शामिल करने का प्रस्ताव किया है.

आयोग के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार चुनाव सुधार के नए प्रस्तावों के साथ जल्द ही चुनाव आयोग के अधिकारियों की विधि सचिव जी. नारायण राजू की बैठक की योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है. यह बैठक संसद के शीतकालीन सत्र के समाप्त होने के तुरंत बाद करने की तैयारी है. इस दौरान रिश्वत देने को एक संज्ञेय अपराध बनाने के लिए भी कहा जाएगा.

संसद का शीतकालीन सत्र का समापन आठ जनवरी को होगा.

उल्लेखनीय है कि आयोग के प्रशासनिक मामले सीधे तौर पर विधि मंत्रालय के मातहत आते हैं.

मौजूदा व्यवस्था में गलत हलफनामा देने वाले उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक कानून के तहत धोखाधड़ी का ही मामला दर्ज होता है. प्रस्तावित प्रावधान के तहत गलत हलफनामा देकर चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार की सदस्यता समाप्त करने का प्रस्ताव है.

इसी तरह से चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की तर्ज पर विधान परिषद के चुनाव में भी खर्च की सीमा तय करने की पहल की है.

सूत्रों ने कहा कि आयोग मंत्रालय को मुख्य चुनाव आयुक्त की तर्ज पर दो चुनाव आयुक्तों को संवैधानिक संरक्षण देने की उसकी मांग पर भी विचार करने के लिए कहेगा.

कानून मंत्रालय मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए फाइल आगे बढ़ाता है जबकि राष्ट्रपति इनकी नियुक्ति करते हैं.

मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है. राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के आधार पर चुनाव आयुक्तों को हटा सकते हैं.

विधि आयोग ने मार्च 2015 में चुनावी सुधारों पर पेश अपनी रिपोर्ट में दोनों चुनाव आयुक्तों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव दिया है.

चुनाव आयोग चुनाव आयुक्तों को संवैधानिक संरक्षण देने के लिए चुनाव आयोग जोर दे रहा है.

एक अन्य प्रस्ताव यह है कि चुनाव आयोग सशस्त्र बल के कर्मचारियों के लिए चुनाव कानून ‘जेंडर न्यूट्रल’ (सभी लिंगों के लिए समान) बनाने पर जोर देगा. चुनाव कानून में प्रावधानों के अनुसार फिलहाल किसी सैन्यकर्मी की पत्नी को एक ‘सर्विस वोटर’ के तौर पर पंजीकृत होने का हकदार है, लेकिन किसी महिला सैन्य अधिकारी का पति इसके लिए हकदार नहीं है.

राज्यसभा के समक्ष लंबित एक विधेयक में ‘पत्नी’ शब्द को ‘पति या पत्नी’ से बदलने का प्रस्ताव किया गया है, जिससे प्रावधान लिंगों के लिए एकसमान हो जाएगा.

सशस्त्र बल कर्मचारी, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, अपने राज्य के बाहर तैनात राज्य पुलिस बल कर्मचारी और भारत के बाहर तैनात केंद्र के कर्मचारी ‘सर्विस वोटर’ के रूप में पंजीकृत होने के पात्र होते हैं.

चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा, ‘बहुत कुछ संसद पर निर्भर करता है. विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है. यह लोकसभा चुनावों से पहले सर्विस वोटर के लिए एक बड़ा चुनावी सुधार है. हम चाहते हैं कि सरकार इसे जल्द से जल्द पारित कराये.’

सूत्रों ने गलत हलफनामा दाखिल करने के मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा कि अभी तक इसके लिए छह महीने की जेल की सजा होती है. लेकिन चुनाव आयोग इसे ‘चुनावी अपराध’ बनाना चाहता है.

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि चुनावी अपराध में दोषसिद्धि अयोग्यता का एक आधार है. छह महीने जेल की सजा से डर पैदा नहीं होता है. अयोग्यता से होगा.’