किसान क़र्ज़ माफ़ी के ख़िलाफ़ शोर कॉर्पोरेट जगत के इशारे पर हो रहा है: कृषि विशेषज्ञ

कृषि मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि किसान क़र्ज़ माफ़ी के हकदार हैं. इससे निश्चित तौर पर किसानों को राहत मिली है लेकिन यह थोड़ी ही है, किसानों के लिए देश में बहुत कुछ और करने की आवश्यकता है.

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कृषि मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि किसान क़र्ज़ माफ़ी के हकदार हैं. इससे निश्चित तौर पर किसानों को राहत मिली है लेकिन यह थोड़ी ही है, किसानों के लिए देश में बहुत कुछ और करने की आवश्यकता है.

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कृषि मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: हाल के विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद वहां चुनावी वायदों के अनुरूप नई सरकारों द्वारा किसानों का कर्ज माफ किया गया है. इन घोषणाओं के खिलाफ उठ रहे शोर पर कृषि मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि किसान कर्ज माफी के हकदार हैं. इससे निश्चित तौर पर किसानों को राहत मिली है लेकिन यह थोड़ी ही है, किसानों के लिए देश में बहुत कुछ और करने की आवश्यकता है.

कर्ज माफी को लेकर हो रहे विवाद पर देवेंद्र शर्मा से बातचीत:

किसानों की कर्ज माफी को आप कितना जायज मानते हैं?

निश्चित तौर पर इससे किसानों ने राहत की सांस ली है. वर्ष 2016 के एक सर्वे के अनुसार 17 राज्यों में किसान परिवार की सालाना औसत आय 20,000 रुपये है. उन्हें क्या इस छोटी सी मदद का भी हक नहीं है? 40 साल पहले किसानों को प्याज, टमाटर जैसे उत्पादों के जो भाव मिलते थे, वही भाव आज भी हैं. बढ़ती महंगाई के बीच वे खेती में डटे हैं और तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वे अपने परिवार और पूरे देश का पेट भर रहे हैं. ऐसे में उन्हें थोड़ी राहत दी जाती है और उस पर हायतौबा मचती है तो यह बात समझ से परे है.

कर्ज माफी को लेकर इतना विवाद क्यों हो रहा है?

किसानों की कर्ज माफी को लेकर बवाल कॉर्पोरेट क्षेत्र के इशारे पर हो रहा है. सब जानते हैं कि पिछले चार सालों से किसानों की आय स्थिर है. बढ़ती महंगाई के बीच उनकी वास्तविक आय घटती जा रही है. ऐसे में इतनी कम आय में गाय को पालना भी मुश्किल है. वैश्विक आर्थिक मंदी से उबरने के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र को 2008-09 में सालाना एक लाख 46 हजार करोड़ रुपये की राहत दी गई. राहत पैकेज वर्ष 2008-09 के लिए ही था लेकिन कॉर्पोरेट क्षेत्र हर साल इसका लाभ उठा रहा है. किसानों को मिली कर्ज माफी पर सवाल पैदा करने वाले यह सवाल नहीं उठाते कि कॉर्पोरेट जगत को हर साल राहत का यह पैसा क्यों मिल रहा है?

कर्ज माफी से अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ आने की आशंका जताई जा रही है, यह कितना सही है?

सरकारी कर्मचारियों के लिए आज सातवां वेतन आयोग आ चुका है. अगर चौथे वेतन आयोग के बाद उनके वेतन में ठहराव रहता तो वे अब तक या तो नौकरियां छोड़ चुके होते या आत्महत्या कर लेते लेकिन किसानों के बारे में उनकी सोच इसके उलट है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद 38,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी हुई और देश में हंगामा मच गया. इसी तरह राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कर्ज माफी की गई तो हर जगह अर्थव्यवस्था की चिंता जताई जाने लगी. लेकिन वर्ष 2012-15 के बीच तीन साल में उत्तर प्रदेश की सरकार ने बिजली कंपिनयों के 72,000 करोड़ रुपये के कर्ज को माफ किया और अभी भी किसी ने आपत्ति जाहिर नहीं की. ऐसा क्यों?

आखिरकार इस तरह की कर्ज माफी का बोझ तो करदाताओं को ही भुगतना होता है. आप इससे सहमत हैं?

एनडीए सरकार ने बैंकों के पुनर्पूंजीकरण (री-कैपिटलाइजेशन) के लिए बैंकिंग प्रणाली में 83,000 करोड़ रुपये डालने का फैसला किया है, तो क्या यह करदाताओं का पैसा नहीं है? इसको लेकर तो लोग या करदाता सवाल नहीं उठाते? असल में मनोविज्ञान किसानों से नफरत का है इसलिए किसानों की कर्जमाफी पर सवाल उठाए जाते हैं और कॉर्पोरेट को दी जा रही छूटों पर चुप्पी साध ली जाती है. पूरा सिस्टम कॉर्पोरेट को बचाने में लगा है.

क्या कर्ज माफी वाकई किसानों का भला कर सकती है? उनकी असल भलाई का रास्ता क्या है?

तेलंगाना की ही तरह सभी किसानों को देश भर में प्रत्यक्ष आय समर्थन (डायरेक्ट इनकम सपोर्ट) दिया जाना चाहिए. तेलंगाना में हरेक किसान को प्रति एकड़ प्रतिवर्ष 8,000 रुपये का प्रत्यक्ष आय समर्थन दिया जा रहा है. इसे पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए और यह 8,000 रुपये की जगह कम से कम 16,000 रुपये किया जाना चाहिए. दूसरा, किसानों के लिए सुनिश्चित आय का प्रावधान किया जाना चाहिए. तीसरा, कृषि मूल्य एवं लागत आयोग (सीएसीपी) का नाम बदलकर किसान आय एवं कल्याण आयोग किया जाना चाहिए और इसे निर्देशित किया जाना चाहिये कि देश में हर किसान को कम से कम 18,000 रुपये हर महीने मिले.

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