समिति ने कहा कि आज़ादी के बाद से भारत के सुप्रीम कोर्ट में केवल छह महिला न्यायाधीश नियुक्त की गईं और इसमें पहली नियुक्ति साल 1989 में हुई. उच्चतर न्यायपालिका की पीठ में समाज की संरचना और इसकी विविधता दिखाई देनी चाहिए.
नई दिल्ली: आजादी के बाद से भारत के सुप्रीम कोर्ट में केवल छह महिला न्यायाधीश नियुक्त किये जाने एवं अदालतों में महिला जजों की कम संख्या का हवाला देते हुए संसद की एक समिति ने सिफारिश की है कि कुल न्यायाधीशों में महिला न्यायाधीशों की संख्या करीब 50 प्रतिशत होनी चाहिए.
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दोनों सदनों में पेश कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2018 की स्थिति के अनुसार विभिन्न उच्च न्यायालयों में 73 महिला न्यायाधीश काम कर रही हैं जो प्रतिशत के हिसाब से कामकाजी क्षमता का 10.89 प्रतिशत है.
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के तहत की जाती है जिसमें किसी जाति या व्यक्तियों के वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है .
रिपोर्ट में कहा गया है कि आजादी के बाद से भारत के सुप्रीम कोर्ट में केवल छह महिला न्यायाधीश नियुक्त की गईं और इसमें पहली नियुक्ति साल 1989 में हुई. ऐसे में समिति का मानना है कि उच्चतर न्यायपालिका की पीठ में समाज की संरचना और इसकी विविधता परिलक्षित होनी चाहिए.
समिति ने सिफारिश की है कि उच्च और अधीनस्थ दोनों न्यायपालिका में अधिक महिला न्यायाधीशों को शामिल करने के लिए उपयुक्त उपाय किये जाएं .
कुछ राज्यों में अधीनस्थ न्यायपालिका में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया है. मसलन, बिहार में 35 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना में 33.33 प्रतिशत, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं उत्तराखंड में 30 प्रतिशत, उत्तरप्रदेश में 20 प्रतिशत और झारखंड में 5 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए लागू किया गया है.
समिति ने यह भी राय दी है कि जिस प्रकार का अतिरिक्त कोटा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में लागू किया जाता है, उस तरह की व्यवस्था पांच वर्षीय विधि कार्यक्रमों में दाखिले के लिए, खास तौर पर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में लागू की जानी चाहिए.
संसदीय समिति ने उच्च न्यायालयों में बड़ी संख्या में रिक्तियों को लेकर भी चिंता व्यक्त की और इन्हें भरने को कहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 56 रिक्तियां, कर्नाटक उच्च न्यायालय में 38 रिक्तियां, कलकत्ता उच्च न्यायालय में 39, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में 35 , तेलंगाना एवं आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय में 30 और बॉम्बे हाईकोर्ट उच्च न्यायालय में 24 रिक्तियां हैं, जो बहुत ज्यादा हैं.