पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने ईवीएम की विश्वसनीयता को संदेह से परे बताते हुए इसके संचालन से जुड़े कर्मचारियों के माकूल प्रशिक्षण की गुणवत्ता को बरकरार रखने की आयोग को नसीहत दी है.
नई दिल्ली: ईवीएम की विश्वसनीयता पर उठते सवालों के मद्देनजर विभिन्न राजनीतिक दलों ने एक बार फिर मतपत्र (बैलट पेपर) के दौर में लौटने की मांग उठाई है.
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने यह मांग भले ही खारिज कर दी हो लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने ईवीएम की विश्वसनीयता को संदेह से परे बताते हुए इसके संचालन से जुड़े कर्मचारियों के माकूल प्रशिक्षण की गुणवत्ता को बरकरार रखने की आयोग को नसीहत दी है.
पेश हैं इस मुद्दे पर एचएस ब्रह्मा से पांच सवाल:
ईवीएम की विश्वसनीयता पर उठते सवालों को आप कितना जायज मानते हैं?
ईवीएम पर उठ रहे सवाल सही नहीं हैं, क्योंकि ईवीएम हमारे लिए नई चीज नहीं है. हम इसे 2004 से ही अपना रहे हैं. अब हम वीवीपीएटी के साथ इसके दूसरे चरण में आ गये हैं. साल 2012-13 से वीवीपीएटी के इस्तेमाल के बाद अब यह भी सुनश्चित होने लगा है कि मतदाता ने किसे मत दिया है. इसलिए इसके लगातार उन्नत होकर परिपक्वता की ओर बढ़ने के बाद अब इस पर संदेह करने की ना तो कोई गुंजाइश है और ना ही यह संदेह प्रासंगिक है. हां, यह सही है कि इसके रखरखाव और संचालन संबंधी शिकायतें आती हैं. इन्हें आयोग को हर हाल में दूर करना होगा.
दो दशक से इस्तेमाल हो रही ईवीम पर अचानक अभी क्यों सवाल उठने लगे?
यह तो सवाल उठाने वाले ही बता पायेंगे. मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि हर मशीन की एक निर्धारित उम्र होती है. उसी तरह से ईवीएम की भी समयसीमा उसकी कार्यक्षमता के मुताबिक 15 से 20 साल होती है. इसके बाद इसे सेवा से बाहर कर देना चाहिए. आयोग पुरानी मशीनों की जगह नई मशीनों को समय से बदलता भी है. साथ ही इनकी कार्यक्षमता का नियमित परीक्षण भी किया जाता है.
इन परिस्थितियों में आयोग ऐसा क्या करे जिससे ईवीएम पर संदेह के सवाल न उठें?
चुनाव आयोग के सामने सबसे महत्वपूर्ण चुनौती ईवीएम को संचालित करने वाले कर्मचारियों के प्रशिक्षण की है. मैं अपने निजी अनुभव से कह सकता हूं कि ईवीएम बेहद प्रभावी और त्रुटिरहित मशीन है. आयोग को मशीन की कुशलता के अनुरूप ही इसे संचालित करने वाले कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना होगा. गड़बड़ी मशीन में नहीं बल्कि इसे संचालित करने वाले कर्मचारियों की कार्यकुशलता में हो सकती है जिसकी वजह से गड़बड़ी की शिकायतें मिलती हैं.
इसलिये आयोग को सिर्फ दो काम प्राथमिकता के साथ करने होंगे. पहला, कर्मचारियों का बेहतर प्रशिक्षण जिससे मशीन के संचालन में गड़बड़ी न हो और दूसरा, शिकायतों के त्वरित निपटान की कारगर व्यवस्था.
एक सवाल अभी भी जवाब नहीं मिल पाया है कि तकनीकी कुशलता के मामले में अग्रणी देशों ने अभी तक ईवीएम को क्यों नहीं अपनाया?
मुझे नहीं मालूम, विकसित देश अब तक क्यों चुनाव में मतपत्र (बैलट पेपर) पर टिके हैं और उन्हें मशीन पर आने में क्या तकनीकी दिक्कत है? लेकिन बतौर भारतीय नागरिक मुझे इस बात पर गर्व है कि हमने एक ऐसी मशीन (ईवीएम) बनाई है जो बेहद तकनीकी कुशल कैलकुलेटर की संकल्पना पर आधारित है. इसने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लक्ष्य को आसान बनाया है.
पूरी दुनिया ने जिस मतपत्र को आज भी भरोसेमंद माना है, वहीं हर सुझाव का स्वागत करने वाला हमारा चुनाव आयोग मतपत्र की मांग को सिरे से खारिज कर देता है. क्या आयोग को इस मांग के मद्देनजर हरसंभव विकल्पों पर विचार नहीं करना चाहिये?
मुझे नहीं मालूम कि मौजूदा आयोग ने किन दलीलों के साथ मतपत्र पर लौटने की मांग को खारिज किया है. बतौर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त, मैं इतना ही कह सकता हूं कि ईवीएम संदेह से बिल्कुल परे है. इस तथ्य को हमें खुले मन से स्वीकार कर, इस पर शक नहीं करना चाहिये. वहीं आयोग को भी मशीन को उन्नत बनाने का कोई सुझाव मिले, तो उसे सुनने के लिये सदैव तत्पर रहना चाहिये. साथ ही इसे लेकर अगर किसी के मन में कोई जायज शक है तो उसे भी तत्काल दूर करना चाहिये.