नई याचिका में दलील दी गई है कि संसद राज्य की भूमि का अधिग्रहण करने के लिए क़ानून बनाने में सक्षम नहीं है. राज्य की सीमा के भीतर धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन के लिए क़ानून बनाने का अधिकार राज्य विधानमंडल के पास है.
नई दिल्ली: अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल सहित 67.703 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने संबंधी 1993 के केंद्रीय क़ानून की संवैधानिक वैधता को सोमवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देते हुए एक नई याचिका दायर की गयी है.
इससे पहले, 29 जनवरी को केंद्र सरकार ने भी इस भूमि के संबंध में एक याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की थी.
धार्मिक भूमि अधिग्रहित करने के संबंध में संसद के विधायी अधिकार को चुनौती देते हुए यह याचिका स्वयं को रामलला का भक्त बताने का दावा करने वाले लखनऊ के दो वकीलों सहित सात व्यक्तियों ने दायर की है.
इस याचिका में दलील दी गई है कि संसद राज्य की भूमि का अधिग्रहण करने के लिए क़ानून बनाने में सक्षम नहीं है.
याचिका में कहा गया है कि राज्य की सीमा के भीतर धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन के लिए क़ानून बनाने का अधिकार राज्य विधानमंडल के पास है.
अधिवक्ता शिशिर चतुर्वेदी और आनंद मिश्रा सहित इन याचिकाकर्ताओं के अनुसार अयोध्या के कतिपय क्षेत्रों का अधिग्रहण क़ानून, 1993 संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त और संरक्षित हिंदुओं के धर्म के अधिकार का अतिक्रमण करता है.
याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को 1993 के क़ानून के तहत अधिग्रहित 67.703 एकड़ भूमि, विशेष रूप से श्रीराम जन्मभूमि न्यास, राम जन्मस्थान मंदिर, मानस भवन, संकट मोचन मंदिर, जानकी महल और कथा मंडल में स्थित पूजा स्थलों पर पूजा, दर्शन और धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन में हस्तक्षेप नहीं करने का निर्देश दिया जाए.
अधिवक्ता अंकुर एस. कुलकर्णी के माध्यम से दायर याचिका में दलील दी गई है कि संविधान के अनुच्छेद 294 में स्पष्ट प्रावधान है कि संविधान लागू होने की तारीख़ से उत्तर प्रदेश के भीतर स्थित भूमि और संपत्ति राज्य सरकार के अधीन है.
याचिका में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में अयोध्या में स्थित भूमि और संपत्ति उत्तर प्रदेश राज्य की संपत्ति है और केंद्र सरकार अयोध्या में स्थित भूमि तथा संपत्ति सहित उसका कोई भी हिस्सा अपने अधिकार में नहीं ले सकती है.
याचिका में भूमि अधिग्रहण संबंधी 1993 का केंद्रीय क़ानून निरस्त करने और इसे संसद के विधायी अधिकार से बाहर करार देने का अनुरोध किया गया है.
इससे पहले, 29 जनवरी को केंद्र की मोदी सरकार ने भी एक याचिका दायर कर शीर्ष अदालत से अनुरोध किया था कि उसे अयोध्या में 2.77 एकड़ के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के आसपास अधिग्रहित की गई 67 एकड़ भूमि उसके असली मालिकों को सौंपने की अनुमति दी जाए.
केंद्र ने दावा किया है कि सिर्फ़ 0.313 एकड़ भूमि ही विवादित है जिस पर वह ढांचा था जिसे कारसेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को ढहा दिया था.
सरकार ने 1993 में एक क़ानून के माध्यम से 2.77 एकड़ सहित 67.703 एकड़ भूमि अधिग्रहित कर ली थी. इसमें 42 एकड़ ग़ैर विवादित भूमि भी थी जिसका स्वामित्व राम जन्मभूमि न्यास के पास है.
केंद्र ने न्यायालय में दलील दी है कि राम जन्मभूमि न्यास ने भी अधिग्रहित की गयी अतिरिक्त भूमि उसके मूल स्वामियों को लौटाने की मांग की है.