सहारनपुर और फतेहपुर की हिंसा अगर पिछली सरकार के दौर में हुई होती, तो भाजपा समाजवादी पार्टी के खिलाफ ‘गुंडाराज’ का आरोप लगाते हुए आसमान सिर पर उठा चुकी होती.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी के वक्त भारतीय जनता पार्टी ने दावा किया था कि कानून और व्यवस्था को सख्ती से लागू करना उनका सबसे सबल पक्ष होगा.
लेकिन, पिछले शनिवार को हिंदुत्व परिवार के विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और हिंदू युवा वाहिनी जैसे युद्धप्रिय संगठनों से जुड़े लोगों की एक भीड़ ने आगरा के फतेहपुर सीकरी पुलिस स्टेशन पर हमला किया.
इन हमलावरों ने पुलिसकर्मियों पर पत्थर फेंके और एक मुस्लिम सब्जी वाले के साथ मारपीट और लूटपाट करने के आारोप में इन संगठनों के कुछ कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करनेवाले डीएसपी को थप्पड़ मारा.
अखबारों में आयी रिपोर्टों के मुताबिक संघ कार्यकर्ताओं द्वारा पुलिस वालों पर हमले के वक्त स्थानीय भाजपा नेता हेमंत तिवारी भी वहां मौजूद थे.
हिंदुत्व कार्यकर्ताओं का यह दुस्साहसी हमला बताता कि यूपी में भाजपा की जबरदस्त जीत के बाद वहां दक्षिणपंथी ताकतों का साहस कितना बढ़ गया है.
विडंबना यह है कि यह घटना शनिवार को यूपी के नये पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के तौर पर सुलखान सिंह के पद संभालने के तुरंत बाद हुई, जबकि पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद सुलखान सिंह ने गो-रक्षकों और कानून तोड़नेवालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी.
फतेहपुर सीकरी की घटना अपने आप में कोई इकलौती या अलग-थलग घटना नहीं है. मात्र दो दिन पहले, 20 अप्रैल को सहारनपुर में सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था जिसमें दर्जनभर लोग घायल हुए थे और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) लव कुमार के आवास पर स्थानीय भाजपा सांसद के नेतृत्व वाली भीड़ द्वारा हमला किया गया था.
एसएसपी ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को ऑन रिकॉर्ड बताया कि भाजपा सांसद राघव लखनपाल शर्मा उनके घर तक आयी भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने ही इस भीड़ को तोड़-फोड़ करने के लिए उकसाया.
जिस समय यह सब हुआ उस समय पुलिस अधिकारी का परिवार घर के भीतर ही था और काफी घबरा गया था. भीड़ ने संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और एसएसएसपी आवास के बाहर लगे नेमप्लेट और सीसीटीवी कैमरे को उखाड़ फेंका. इस मामले में भाजपा सांसद को भी एफआईआर में नामजद किया गया है.
ये दो घटनाएं कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर योगी आदित्यनाथ के बेहद मजबूत और कृतसंकल्प होने के भाजपा के दावों को कितना सही साबित करती हैं?
क्या आदित्यनाथ भाजपा, बजरंग दल और हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, जिन्हें पिछले एक सप्ताह के भीतर गिरोह हिंसा के दो गंभीर मामलों में नामजद किया गया है?
आदित्यनाथ को गोरक्षकों के साथ ही युद्धप्रिय हिंदुत्व संगठनों के व्यापक मसले से निपटना होगा, जो न केवल कानून को अपने हाथों में ले रहे हैं, बल्कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर भी हमले करने का दुस्साहस दिखा रहे हैं.
योगी के विवादित शपथग्रहण के वक्त मीडियाकर्मियों समेत कई विश्लेषकों ने कहा था कि आदित्यनाथ का मूल्यांकन उनके इतिहास के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि एक प्रशासक के तौर पर अपनी काबिलियत साबित करने का उन्हें एक मौका दिया जाना चाहिए.
पद संभालने के कुछ हफ्तों के भीतर ही मुख्यमंत्री का इम्तिहान लिया जा रहा है और वह भी संघ परिवार के उनके अपने ही भाई-बंधुओं के द्वारा.
जानकारी के मुताबिक सहारनपुर में 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के मौके पर दलितों और मुस्लिमों द्वारा निकाला गया जुलूस दंगे की वजह बना.
इसी से होड़ लेते हुए लिए भाजपा और संघ परिवार से संबंध रखनेवाले अन्य संगठनों ने कुछ दिनों के बाद आंबेडकर दिवस मनाने के नाम पर अपना अलग से जुलूस निकालने का फैसला किया.
भाजपा सांसद के नेतृत्व में निकाले गये इस जुलूस ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया और इसी क्रम में आखिरकार इसमें शामिल लोगों ने एसएसपी के आवास पर हमला किया.
ऊपरी तौर पर ये इक्का-दुक्का घटनाएं नजर आ सकती हैं, लेकिन ये घटनाएं हिंदुत्व कैडरों में बढ़ रहे लड़ाकूपन की ओर इशारा करती हैं, जिनका मनोबल यूपी विधानसभा में जीत के बाद सातवें आसमान पर पहुंच गया है.
अब जबकि राज्य में भाजपा का ही शासन है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभवतः यह दलील नहीं दे सकते कि कानून-व्यवस्था राज्यसूची का विषय है और ऐसी अनियंत्रित हिंसा को काबू में करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है.
सहारनपुर और फतेहपुर की हिंसा अगर पिछली सरकार के दौर में हुई होती, तो भाजपा समाजवादी पार्टी के खिलाफ ‘गुंडाराज’ का आरोप लगाते हुए आसमान सिर पर उठा चुकी होती. लेकिन अब सत्ता बदल गयी है.
चाहे सहारनपुर का दंगा हो या राजस्थान में दूध का कारोबार करनेवाले पहलू खान की हत्या, जवाबदेही प्रधानमंत्री, भाजपा और केंद्र सरकार की बनती है क्योंकि ये सारी हिंसाएं भाजपा शासित राज्यों में हो रही है.
भय और पक्षपात के बिना न्याय किया जाएगा या नहीं, यह देखने पर जनता की निगाहें टिकी हैं.
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